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Sunday, 22 December, 2024
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यदि कर्नाटक में लोकसभा चुनाव में विधानसभा की तरह ही वोटिंग हुई तो BJP-JD(S) को 18 सीटें मिल सकती है

जेडीएस के साथ गठबंधन के बिना बीजेपी कर्नाटक में सिर्फ 8 सीटें ही जीत पाएगी. दिप्रिंट प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में पार्टियों के वोट शेयर को देखता है और प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र के लिए इसका अनुमान लगाता है.

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नई दिल्ली: कर्नाटक में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की प्रदेश इकाई में जनता दल (सेक्युलर) के साथ गठबंधन को लेकर बेचैनी है. कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और पार्टी नेता डी.वी. सदानंद गौड़ा ने शनिवार को इस बात को और हवा दी जब उन्होंने दिप्रिंट से कहा कि यह गठबंधन पुराने मैसूरु क्षेत्र में जमीनी स्तर पर बीजेपी कार्यकर्ताओं को कमजोर कर देगा.

हालांकि, बीजेपी आलाकमान के पास दक्षिणी राज्य में अपनी स्थिति मजबूत करने का एक कारण है, क्योंकि पार्टी ने 2019 में राज्य की कुल 28 लोकसभा सीटों में से 25 सीटों पर चुनाव जीता था. तब उसके दो मुख्य प्रतिद्वंद्वी कांग्रेस और जेडीएस को केवल एक-एक सीटें मिली थी.

बीजेपी इस साल कर्नाटक विधानसभा चुनाव हार गई और कांग्रेस की 135 सीटों के मुकाबले 224 में से केवल 66 सीटें ही हासिल कर पाई.

यदि 2023 के कर्नाटक विधानसभा चुनावों का मतदान पैटर्न 2024 के लोकसभा चुनावों में होगा, तो बीजेपी जेडीएस के साथ गठबंधन में 18 लोकसभा सीटें जीतेगी, जबकि कांग्रेस 10 सीटें जीत सकती है. यह दिप्रिंट द्वारा किए गए एक विश्लेषण में पाया गया है.

दिप्रिंट के विश्लेषण में यह भी कहा गया है कि अगर विधानसभा परिणामों को लोकसभा चुनावों से जोड़ दिया जाए तो जेडीएस के साथ गठबंधन के बिना बीजेपी कर्नाटक में केवल आठ लोकसभा सीटें जीत सकती है जो 2019 के मुकाबले  17 कम होगी. कांग्रेस को हराने के लिए शेष सीटों पर जेडीएस की संयुक्त शक्ति की जरूरत होगी.

इन आठ सीटों पर बीजेपी ने 2023 के विधानसभा चुनावों में कांग्रेस और जेडीएस की तुलना में अधिक वोट हासिल किए थे, जिससे यह संकेत मिलता है कि अगर विधानसभा चुनाव के मतदान का रुझान लोकसभा चुनावों में भी जारी रहता है तो वह गठबंधन के बिना भी सीटें जीतेगी.

इन सीटों में धारवाड़ (संसदीय मामलों के मंत्री प्रल्हाद जोशी के पास), उडुपी चिकमंगलूर (केंद्रीय राज्य मंत्री शोभा करंदलाजे), बेंगलुरु दक्षिण (तेजस्वी सूर्या) और दक्षिण कन्नड़ सीट (कर्नाटक बीजेपी प्रमुख नलिनकुमार कतील) शामिल हैं.

दिप्रिंट ने पहले खबर दी थी कि जेडीएस बेंगलुरु ग्रामीण के अलावा, मांड्या, हसन और चिक्काबल्लापुर संसदीय सीटों को सुरक्षित करने की उम्मीद कर रही है. ये सभी पुराने मैसूरु क्षेत्र में हैं. बेंगलुरु ग्रामीण वर्तमान में कांग्रेस के डी.के. सुरेश के पास है जो उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार के भाई हैं.

यह देखा गया है कि लोग विधानसभा और संसदीय चुनावों में अलग-अलग तरीके से मतदान करते हैं खासकर जब से नरेंद्र मोदी 2013 में राष्ट्रीय राजनीतिक केंद्र में आए. हालांकि, यह हर बार जरूरी नहीं है.

अपने विश्लेषण के लिए, दिप्रिंट ने प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में राजनीतिक दलों के वोट-शेयर को देखा और इसे प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र के हिसाब से निकाला. इसके बाद प्रत्येक लोकसभा क्षेत्र में उनकी संयुक्त संख्या का अनुमान लगाने के लिए प्रत्येक विधानसभा क्षेत्र में बीजेपी और जेडीएस को मिले वोटों को जोड़ा गया.

जीतने और हारने वाले

विधानसभा चुनाव के आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि जहां कांग्रेस के सुरेश अपनी बेंगलुरु ग्रामीण सीट हार जाएंगे, वहीं उनकी पार्टी को 10 अन्य सीटें मिलेंगी. इन 10 सीटों में से एक को छोड़कर सभी सीटें ओल्ड मैसूर बेल्ट के अलावा अन्य क्षेत्रों में आती हैं, जहां कांग्रेस ने विधानसभा चुनाव जीतने के लिए महत्वपूर्ण बढ़त बनाई थी.

कांग्रेस के लिए पुराने मैसूर के चामराजनगर के अलावा कल्याण कर्नाटक क्षेत्र और कित्तूर कर्नाटक क्षेत्र से तीन-तीन सीटें आएंगी. साथ ही मध्य कर्नाटक से चित्रदुर्ग और दावणगेरे और बेंगलुरु जिले से बेंगलुरु सेंट्रल से एक-एक सीट आएगी.

विश्लेषण के अनुसार हारने वालों में चित्रदुर्ग से मौजूदा केंद्रीय राज्य मंत्री और बीजेपी नेता ए. नारायणस्वामी, दावणगेरे से पूर्व केंद्रीय राज्य मंत्री और बीजेपी नेता जी.एम. सिद्धेश्वर, चामराजनगर से पूर्व केंद्रीय मंत्री और बीजेपी नेता श्रीनिवास प्रसाद शामिल हो सकते हैं.

यदि कन्नडिगाओं की मतदान प्राथमिकताएं विधानसभा चुनाव के रुझान के अनुरूप होती हैं, तो बीजेपी-जेडीएस गठबंधन उन सभी तीन लोकसभा सीटों पर भी कब्जा कर लेगा, जो वर्तमान में बीजेपी के पास नहीं हैं.

2019 में दक्षिणी कर्नाटक के हसन से जेडीएस सुप्रीमो एच.डी. देवेगौड़ा के पोते प्रज्वल रेवन्ना जीते थे. बेंगलुरु ग्रामीण से सुरेश ने जीत हासिल की थी और मांड्या से राज्य की एकमात्र स्वतंत्र सांसद सुमलता अंबरीश ने जीत हासिल की थी, जिन्हें कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और जेडीएस नेता एच.डी. कुमारस्वामी के बेटे निखिल कुमारस्वामी के खिलाफ बीजेपी का समर्थन प्राप्त था.

हसन और तुमकुर की सीटों पर, जहां जेडीएस सुप्रीमो देवेगौड़ा 2019 में हार गए थे, जेडीएस ने 2023 के विधानसभा चुनाव में अन्य दोनों राष्ट्रीय दलों की तुलना में अधिक वोट हासिल किए थे.

यदि बीजेपी और जेडीएस ने 2023 के विधानसभा चुनावों के लिए गठबंधन किया होता, तो दोनों पार्टियां मिलकर कांग्रेस को 45 और सीटों पर हरा देतीं और उसका बहुमत छीन लेती.

कर्नाटक में कुमारस्वामी के नेतृत्व वाली कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सरकार को बीजेपी द्वारा कथित तौर पर गिराने के लगभग चार साल बाद दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन हुआ. हालांकि, विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की भारी जीत एक प्रमुख कारण है जिसने बीजेपी और जेडीएस को करीब ला दिया है.

कांग्रेस ने न केवल बीजेपी का वोट शेयर खाया, उसकी जीत ने जेडीएस पर अधिक प्रतिकूल प्रभाव डाला. बीजेपी ने 2023 के राज्य चुनावों में अपना 2018 का वोट शेयर 36 प्रतिशत बरकरार रखा, लेकिन जेडीएस का वोट शेयर लगभग 18.3 प्रतिशत से घटकर 13.3 प्रतिशत हो गया.

जब सीटों की संख्या की बात आई, तो 2018 के विधानसभा चुनावों में जहां बीजेपी ने 104 सीटें जीती थी, इस चुनाव में घटकर 66 पर आ गई और जेडीएस पहले के 37 के मुकाबले 19 पर आ गई.

2006 के बाद से यह दूसरी बार है जब बीजेपी और जेडीएस एक साथ आए हैं.

जबकि बीजेपी वर्तमान में अपने पास मौजूद 25 लोकसभा सीटों में से अधिकांश को बरकरार रखना चाहती है, जेडीएस जिसके पास एक सीट है, गठबंधन के हिस्से के रूप में कम से कम दो से तीन सीटें और सुरक्षित करने की उम्मीद कर रही है.

जेडीएस चार लोकसभा सीटों हासन, बेंगलुरु ग्रामीण, मांड्या और चिक्काबल्लापुर से चुनाव लड़ना चाहती है. जब विधानसभा चुनावों को लोकसभा चुनावों के साथ जोड़कर देखा जाता है, तो गठबंधन संभवतः सभी चार सीटें जीतेगा, जबकि जेडीएस अपने दम पर दो सीटें जीतेगी.


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जेडीएस को और अधिक लाभ मिलने की संभावना है

गठबंधन के बारे में बोलते हुए, राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर चंबी पुराणिक, जो मैसूर विश्वविद्यालय में राजनीति विज्ञान विभाग के पूर्व संकाय सदस्य हैं, ने कहा कि यह जेडीएस है जो बीजेपी की तुलना में गठबंधन से अधिक लाभ उठाने के लिए तैयार है.

उन्होंने कहा, “भले ही जेडीएस को दो से अधिक सीटें मिलें, शायद तीन या चार, लेकिन यह उनके लिए मनोबल बढ़ाने वाला होगा. प्रासंगिक बने रहने के लिए जेडीएस के पास यह गठबंधन ही एकमात्र विकल्प बचा था. पार्टी को (INDIA गठबंधन के) बेंगलुरु शिखर सम्मेलन के लिए भी आमंत्रित नहीं किया गया था. यहां तक ​​कि सीएम सिद्धारमैया के शपथ ग्रहण समारोह के दौरान भी जेडीएस को आमंत्रित नहीं किया गया था.”

बीजेपी के लिए, जिसे लिंगायत समुदाय का बड़ा समर्थन प्राप्त है, गठबंधन को दक्षिणी कर्नाटक के वोक्कालिगा बेल्ट से वोट मिल सकते हैं.

पुराणिक ने कहा, “जेडीएस के पास राज्य में 14 प्रतिशत वोट-शेयर है, जो बड़े पैमाने पर वोक्कालिगा वोट है. और बीजेपी को निश्चित रूप से उस वोट से फायदा होगा. 2024 में वोक्कालिगा वोट नहीं देंगे जैसा उन्होंने 2023 के विधानसभा चुनावों में किया था. वोक्कालिगाओं ने तब कांग्रेस को वोट दिया था, जब उन्हें उम्मीद थी कि शिवकुमार को सीएम बनाया जाएगा.”

उन्होंने कहा, “शिवकुमार और सिद्धारमैया खेमों (कांग्रेस में) के बीच हालिया राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता को देखते हुए मुझे नहीं लगता कि वोक्कालिगा कांग्रेस को वोट देंगे जैसा उन्होंने 2023 में किया था.”

विश्लेषक का मानना ​​है कि बीजेपी और जेडीएस दोनों अपने वोट एक-दूसरे को ट्रांसफर कर सकते हैं और एकमात्र मुद्दा जेडीएस का मुस्लिम वोट हो सकता है. उनका कहना है कि यह अब 2023 के विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेस के पास चला गया है.

कर्नाटक में अलग तरह से वोट होते हैं

जबकि विधानसभा चुनाव 2024 के लोकसभा चुनावों पर प्रभाव का पता लगाने के लिए उपलब्ध एकमात्र नवीनतम डेटा है, कर्नाटक में विधानसभा चुनावों की तुलना में आम चुनावों में वोट बहुत अलग होते हैं.

दरअसल, पिछले तीन चुनावों में बीजेपी ने विधानसभा चुनावों की तुलना में लोकसभा चुनावों में वोट शेयर के मामले में काफी बेहतर प्रदर्शन किया है.

2019 में 2018 के विधानसभा चुनावों के बाद कुछ महीनों के भीतर राज्य में पार्टी का वोट शेयर 15 प्रतिशत बढ़ गया, 2014 में 23 प्रतिशत और 2009 में 8 प्रतिशत बढ़ गया. 2004 में भी जब लोकसभा और विधानसभा चुनाव एक साथ हुए थे, तब बीजेपी के वोट शेयर में तीन प्रतिशत की वृद्धि देखी गई थी.

इसका कारण राज्य-आधारित राजनीतिक विश्लेषक नरेंद्र पाणि ने दिप्रिंट को बताया था कि “कर्नाटक के मतदाताओं ने दिखाया है कि राष्ट्रीय चुनावों और राज्य-स्तरीय (चुनावों) के बीच अंतर है”.

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना ​​है कि चुनावों में मुद्दे अलग-अलग रहते हैं और राष्ट्रीय नेता स्थानीय चुनावों में वोट नहीं पा सकते हैं.

पाणि ने दिप्रिंट को बताया, “वे अलग-अलग चुनाव हैं. मुद्दे अलग-अलग हैं, इसलिए लोग अलग-अलग तरह से वोट करते हैं. आप प्रधानमंत्रियों से राज्य चुनावों में वोट पाने की उम्मीद नहीं कर सकते. इसी तरह आप राष्ट्रीय चुनावों में राज्य के नेताओं से वोट पाने की उम्मीद नहीं कर सकते. दो अलग-अलग सरकारें दो अलग-अलग चुनाव, हमें एक ही तरह से वोट क्यों देना चाहिए, यही विचार है.”

उन्होंने कहा कि आने वाले लोकसभा चुनाव के लिए पीएम उम्मीदवार कौन होगा यह महत्वपूर्ण होगा. उन्होंने कहा, “यह लोगों के लिए एक नया फैसला होगा, न कि विधानसभा चुनाव से आगे बढ़ाया गया फैसला.”

(संपादन: ऋषभ राज)

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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