नई दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने केरल में तीन दिवसीय समन्वय समिति की बैठक के बाद सोमवार को कहा कि जाति जनगणना में कोई समस्या नहीं है, जब तक कि यह प्रासंगिक समुदायों और जातियों के कल्याण के लिए हो, न कि चुनाव प्रचार के लिए.
अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख सुनील आंबेकर ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि हिंदू समाज में जाति और जाति संबंध “बहुत संवेदनशील मुद्दे” हैं.
पालक्कड़ में आरएसएस की वार्षिक अखिल भारतीय समन्वय बैठक के बाद एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा, “यह हमारी राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. इसलिए, इसे गंभीरता से लिया जाना चाहिए और केवल चुनावी प्रथाओं या राजनीति के आधार पर नहीं.”
आरएसएस के प्रचार प्रमुख ने कहा, “आरएसएस का मानना है…सभी कल्याणकारी गतिविधियों के लिए खासतौर पर पिछड़े समुदाय या जाति को संबोधित करने के लिए, कुछ समुदायों और जातियों पर विशेष ध्यान देने की ज़रूरत है. इसके लिए, कभी-कभी सरकार को संख्याओं की ज़रूरत पड़ती है. पहले भी, उसे इन संख्याओं की दरकार थी. यह एक प्रथा रही है. सरकार गिनती कर सकती है, कोई समस्या नहीं है, लेकिन यह केवल उन समुदायों और जातियों के कल्याण को संबोधित करने के लिए होना चाहिए. इसे चुनावों के लिए राजनीतिक उपकरण के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए और इसलिए, हमने सभी के लिए एक चेतावनी जारी की है.”
आरएसएस का यह बयान लोकसभा चुनावों में भाजपा के खराब प्रदर्शन की पृष्ठभूमि में आया है.
विपक्ष, खासकर कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने राष्ट्रीय चुनावों में सत्ता में आने पर जाति जनगणना कराने का वादा किया था. गांधी जाति जनगणना के लिए अपनी पार्टी की मांग को दोहराते रहते हैं.
2024 के आम चुनावों में भाजपा ने संविधान के लिए खतरा और सरकारी नौकरियों में आरक्षण की कमी के बारे में विपक्ष के प्रचार (जिसे बीजेपी प्रोपेगेंडा कहती है) के कारण एससी/एसटी/ओबीसी वोट खो दिए. राहुल गांधी और इंडिया ब्लॉक ने इन दोनों मुद्दों को चुनावों में अपने मुख्य चुनावी मुद्दों का हिस्सा बनाया था.
गांधी द्वारा उठाए गए जाति जनगणना के सवाल का समाधान करने में भाजपा की “अक्षमता” को एससी/एसटी/ओबीसी समुदायों के बीच पार्टी की कम सीटों के पीछे एक प्रमुख कारण के रूप में देखा गया.
इस बीच, आंबेकर से पूछा गया कि क्या भाजपा और आरएसएस के बीच सब कुछ ठीक है, खासकर भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा के इस बयान के बाद कि पार्टी सक्षम है और उसे संघ की उस तरह ज़रूरत नहीं है, जैसी पहले थी. उन्होंने जवाब दिया कि यह एक “पारिवारिक मामला” था और इसे आंतरिक रूप से निपटाया गया.
केरल की बैठक के बारे में उन्होंने कहा, “हमारे मिशन के बारे में मूल विचार सभी के लिए बहुत स्पष्ट है. अन्य मुद्दों का समाधान किया जाएगा. यह एक पारिवारिक मामला है और इसे सुलझाया जाएगा…यहां तीन दिवसीय बैठक हुई, सभी ने भाग लिया, सब कुछ ठीक चल रहा है.”
आरएसएस ने तीन दिवसीय बैठक में महिलाओं के खिलाफ अपराधों पर भी चर्चा की, जिसमें 9 अगस्त को कोलकाता के सरकारी आर.जी. कर अस्पताल में एक ट्रेनी डॉक्टर के साथ बलात्कार और ऐसे मामलों की वृद्धि पर चिंता व्यक्त की गई.
संगठन ने कहा कि उसने अपनी राष्ट्रीय समन्वय बैठक में इस मुद्दे पर विस्तार से चर्चा की. संघ परिवार ने निष्कर्ष निकाला कि भारत को ऐसी घटनाओं से संबंधित कानूनों पर फिर से विचार करने और त्वरित न्याय के लिए अधिक फास्ट-ट्रैक अदालतें स्थापित करने की ज़रूरत है.
आंबेकर ने कहा कि सोशल मीडिया, इंटरनेट और डिजिटल दुनिया में दिखाई जा रहे (यौन रूप से स्पष्ट) कंटेंट की जांच की जानी चाहिए क्योंकि वो “समाज में तबाही मचाती हैं”.
उन्होंने कहा, “हमने पहले भी देखा है कि आरोपी अपराध करने से पहले लंबे समय तक ऐसे कंटेंट देखते हैं.”
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: पूर्व CM चंपई सोरेन हुए भाजपा में शामिल, झारखंड चुनाव में झामुमो पर क्या पड़ेगा असर