गुरुग्राम: धार्मिक नेता गुरमीत राम रहीम सिंह हरियाणा विधानसभा चुनाव से कुछ दिन पहले रोहतक की सुनारिया जेल से 20 दिन की पैरोल पर बाहर है — विश्लेषकों का कहना है कि घटनाक्रम से सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को फायदा हो सकता है, जबकि अन्य लोग अनुयायियों पर उनके प्रभाव को लेकर संशय में हैं.
भारत के निर्वाचन आयोग (ईसीआई) ने बलात्कार और हत्या के दोषी की पैरोल के लिए तीन शर्तें तय की हैं. इनके अनुसार, उसके हरियाणा में रहने और किसी भी राजनीतिक गतिविधि में शामिल होने पर प्रतिबंध है. सोशल मीडिया कैंपेन में भी शामिल नहीं हो सकता. चुनाव आयोग ने यह भी कहा है कि अगर वे आदर्श आचार संहिता या तीनों शर्तों में से किसी का उल्लंघन करता है तो उसकी पैरोल रद्द कर दी जाएगी.
हरियाणा में पांच अक्टूबर को मतदान होना है, जिसके तीन दिन बाद नतीजे घोषित किए जाएंगे. हरियाणा की 36 विधानसभा सीटों पर उसके खास प्रभाव के कारण राम रहीम की पैरोल को चुनावों से जोड़कर देखा जा रहा है.
दिलचस्प बात यह है कि राम रहीम के 20 दिन की इमरजेंसी पैरोल के लिए आवेदन करने से बहुत पहले ही डेरा सच्चा सौदा के हरियाणा भर के राज्य और ब्लॉक समिति के सदस्य अपने अनुयायियों को एकजुट होकर विशिष्ट उम्मीदवारों के लिए वोट करने के लिए प्रेरित कर रहे थे, ताकि वोटों का बंटवारा न हो. डेरा के एक सूत्र ने खुलासा किया कि डेरा कार्यक्रमों के तहत बैठकें आयोजित की जा रही थीं, जिसमें मुख्य एजेंडे के रूप में “एकता” पर जोर दिया जा रहा था.
सूत्र ने कहा, “संगत से कहा जा रहा है कि 100 प्रतिशत वोट नामित उम्मीदवारों को ही मिलने चाहिए.”
उन्होंने कहा कि पहले, निर्देशों के बावजूद, स्थानीय कारकों के कारण कुछ वोट बंट जाते थे, लेकिन अब सारी संगत को सामूहिक रूप से वोट देने के लिए जोर दिया जा रहा है.
भले ही डेरा प्रमुख राम रहीम सिंह की 2017 में हुई सज़ा के बाद डेरा की राजनीतिक शाखा को भंग कर दिया गया था, लेकिन ब्लॉक कमेटियां — जिनमें से प्रत्येक में 15 सदस्य हैं — सिरसा में धार्मिक निकाय की 85-सदस्यीय राज्य समिति के साथ सीधे समन्वय कर रही हैं. यह समिति डेरा के समग्र शीर्ष नेतृत्व को रिपोर्ट करती है.
यह भी पढ़ें: MP में BJP के पुराने और ‘नए नेताओं’ में अंदरूनी कलह, CM यादव संतुलन के लिए संघर्षरत
‘भाजपा की बेकार कोशिश’
पूछे जाने पर कि डेरा किस राजनीतिक दल को समर्थन देने की योजना बना रहा है, तो सूत्र ने कहा, “परंपरागत रूप से पार्टी या उम्मीदवारों का नाम मतदान से एक दिन पहले संगत को बता दिया जाता है.”
राम रहीम सिंह द्वारा दिए गए पिछले बयानों, खासकर राम मंदिर उद्घाटन का हवाला देते हुए सूत्र ने संकेत दिया कि डेरा का समर्थन भाजपा की ओर झुका हुआ प्रतीत होता है. हालांकि, उन्होंने कहा कि डेरा किस पार्टी और उम्मीदवारों का समर्थन कर रहा है, इसकी घोषणा चुनाव के दिन के करीब ही की जाएगी.
डेरा के मीडिया विंग को संभालने वाले बिट्टू इंसान ने किसी भी राजनीतिक भागीदारी से इनकार करते हुए कहा, “2017 के अदालती फैसले के बाद पिताजी (राम रहीम) के निर्देशों के अनुसार राजनीतिक मामलों की शाखा को भंग कर दिया गया था. मेरी जानकारी के अनुसार, डेरा या इसकी समितियों के भीतर कोई राजनीतिक गतिविधि नहीं हो रही है.”
फिर भी अंदरूनी सूत्र इसके विपरीत संकेत देते हैं, इस बार संगत को एक साथ मतदान करने के लिए मनाने की तैयारियां चल रही हैं.
राजनीतिक विश्लेषक महाबीर जगलान ने कहा कि राम रहीम की रिहाई सत्तारूढ़ भाजपा द्वारा राज्य में सत्ता बरकरार रखने का आखिरी कोशिश है.
जगलान ने मंगलवार को दिप्रिंट से कहा, “राम रहीम की रिहाई निश्चित रूप से सत्तारूढ़ पार्टी के पक्ष में मतदान पर असर डालेगी, लेकिन इससे चुनाव के नतीजों पर असर पड़ने की संभावना नहीं है. एक बार जब लोगों ने सरकार को हटाने का मन बना लिया, तो ऐसे कारकों का ज्यादा असर नहीं पड़ता.”
उन्होंने कहा, “आखिरकार, डेरा की संगत विदेशी नहीं हैं. वह हरियाणा से हैं और वो भी सरकार की नीतियों से उसी तरह प्रभावित होते हैं जैसे दूसरे लोग होते हैं. इसलिए यह मान लेना कि 100 प्रतिशत संगत डेरा की इच्छानुसार मतदान करेंगे, सही नहीं है.”
राजनीतिक विश्लेषक और पॉडकास्टर शिवांश मिश्रा ने कहा कि डेरा सच्चा सौदा प्रमुख की “समय पर” रिहाई के महत्वपूर्ण राजनीतिक निहितार्थ हो सकते हैं, खासकर भाजपा के लिए जो पिछले दो कार्यकाल से हरियाणा में सत्ता में है.
मिश्रा ने कहा, “पिछली पैरोल भी चुनाव के समय ही मिली थी, जिसके कारण आरोप लगे कि सत्तारूढ़ भाजपा ने सत्ता विरोधी भावनाओं का मुकाबला करने के लिए मतदाताओं के एक बड़े आधार पर उनके प्रभाव का लाभ उठाने की कोशिश की. राम रहीम के समर्थन ने ऐतिहासिक रूप से भाजपा को लाभ पहुंचाया है और वर्तमान पैरोल अनुरोध और रिहाई को चुनावी प्रभाव को अधिकतम करने के लिए रणनीतिक रूप से समयबद्ध माना जा सकता है.”
उन्होंने कहा कि रिहाई से वोटों का ध्रुवीकरण हो सकता है क्योंकि राज्य में बड़े पैमाने पर राम रहीम की संगत है, विपक्षी दल अब इसे पैरोल से संबंधित निर्णयों में पक्षपात के मामले के रूप में सवाल उठाएंगे.
संयोग से हरियाणा के पूर्व कांग्रेस मुख्यमंत्री भूपेंद्र सिंह हुड्डा के मीडिया सलाहकार सुनील पार्टी ने इस मामले में शामिल होने से इनकार कर दिया.
‘राम रहीम पैरोल का हकदार’
हरियाणा में भाजपा मीडिया सेल के सह-प्रभारी अशोक छाबड़ा ने राम रहीम की रिहाई को कमतर आंकते हुए कहा कि इसका चुनाव से कोई लेना-देना नहीं है.
छाबड़ा ने कहा, “डेरा सच्चा सौदा प्रमुख एक धार्मिक व्यक्ति है. पैरोल को हरियाणा चुनाव से नहीं जोड़ा जाना चाहिए. किसी भी अन्य कैदी की तरह, राम रहीम को समय-समय पर अस्थायी रिहाई का अधिकार है और वह पैरोल के लिए अपने आवेदन का समय चुनने के लिए स्वतंत्र है.”
राम रहीम वर्तमान में बलात्कार और हत्या के लिए 20 साल की सजा काट रहा है. उन्होंने कहा कि वो इस पैरोल के दौरान उत्तर प्रदेश के बरनावा आश्रम में रहेगा. अगस्त में राम रहीम को 21 दिनों के लिए फरलो दी गई थी.
25 अगस्त, 2017 को राम रहीम को दो महिला अनुयायियों के साथ बलात्कार करने का दोषी ठहराया गया और 20 साल के कठोर कारावास की सज़ा सुनाई गई. वो तब से सुनारिया जेल में बंद है.
11 जनवरी 2019 को पत्रकार रामचंद्र छत्रपति की हत्या के लिए उसे दोषी ठहराया गया और आजीवन कारावास की सज़ा सुनाई गई. 2021 में उसे डेरा के पूर्व प्रबंधक रंजीत सिंह की हत्या के लिए भी दोषी ठहराया गया था, लेकिन इस साल मई में उसे केवल इस मामले के लिए बरी कर दिया गया.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: हरियाणा चुनाव से ठीक पहले राम रहीम फिर जेल से बाहर, बलात्कार के दोषी को अब तक मिली 235 दिन की आज़ादी