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Thursday, 28 March, 2024
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हिमाचल के पीपीई घोटाले ने कैसे सीएम जय राम ठाकुर को मजबूत किया है

ऑडियो क्लिप विवाद से राज्य में मुख्यमंत्री को खुद को मजबूत करने का एक अच्छा मौका मिला है. एक कैबिनेट मंत्री ने कहा, 'यह दिखाता है कि कोई और नहीं बल्कि मुख्यमंत्री कमांडिंग स्थिति में हैं.'

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शिमला: हिमाचल प्रदेश में आपातकालीन चिकित्सा आपूर्ति घोटाले ने सत्तारूढ़ भाजपा में सत्ता को लेकर तनातनी को उजागर कर दिया है, जिसमें मुख्यमंत्री जय राम ठाकुर बाजी मारते हुए नज़र आ रहे हैं.

इस घोटाले में कथित तौर पर 1 करोड़ रुपये के पीपीई किट के भुगतान के लिए रिश्वत मांगी गई, जिसे मार्च और अप्रैल में कोविड-19 संकट के दौरान खरीदा गया था.

राज्य के भाजपा अध्यक्ष राजीव बिंदल, पांच बार के विधायक और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री ने इस प्रकरण के बाद इस्तीफा दिया है, जिन्हें मुख्यमंत्री के लिए संभावित चुनौती के रूप में देखा जा रहा था. हिमाचल से ही आने वाले भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा ने ही बिंदल को चुना था. मंगलवार को नैतिक आधार पर उन्होंने इस्तीफा दे दिया.

डॉ. अजय कुमार गुप्ता से कथित निकटता के कारण उन्हें घोटाले में घसीटा गया. स्वास्थ्य सेवाओं के निदेशक गुप्ता और बिजनेसमैन पृथ्वी सिंह को राज्य सतर्कता और भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो (एसीबी) ने 20 मई को राज्य में एक ऑडियो-क्लिप वायरल होने के बाद गिरफ्तार किया था.

43-सेकंड की ऑडियो-क्लिप में, डॉ. गुप्ता को कथित तौर पर सिंह को लंबित भुगतानों के लिए 5 लाख रुपये की रिश्वत मांगते सुना गया है, जो स्वास्थ्य विभाग को पीपीई और अन्य चिकित्सा उपकरण आपूर्ति का काम संभाल रहे थे.

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शीर्ष सतर्कता अधिकारी जांच को लेकर चुस्त-दुरुस्त हैं खासकर बिंदल की भूमिका के बारे में.

अतिरिक्त डीजीपी (सतर्कता) अनुराग गर्ग ने कहा, ‘ इस समय मैं इतना ही कह सकता हूं कि ये रिश्वत का मामला है. आरोपी डॉ. गुप्ता हमारी हिरासत में है. हमने कोविड-19 संकट के दौरान स्वास्थ्य विभाग को दिए गए एक करोड़ रुपये की आपूर्ति (पीपीई किट) से संबंधित सभी रिकॉर्ड जब्त कर लिए हैं.’

उन्होंने कहा, ‘हमारी जांच का हिस्सा ऑडियो क्लिप में हो रही बातचीत, पैसे के भुगतान के इर्द-गिर्द की है. जिसपर हम ध्यान दे रहे हैं.’


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लेकिन बिंदल को प्रधानमंत्री कार्यालय के इशारे पर इस्तीफा देने को कहा गया था.

सूत्रों का कहना है कि विपक्ष और लोगों की तरफ से बन रहे दबाव के कारण मुख्यमंत्री को इस मामले को पार्टी आलाकमान के पास ले जाना पड़ा. बिंदल पर बढ़ते दबाव के बाद उन्होंने इस्तीफा दे दिया.

संभावित चुनौती देने वाला रास्ते से हट गया

अंदरूनी लोग मानते हैं कि बिंदल और ठाकुर के बीच रिश्ते अच्छे नहीं हैं.

जनवरी में राज्य भाजपा अध्यक्ष बनने तक बिंदल विधानसभा स्पीकर थे लेकिन ये किसी से छिपा नहीं है कि उनकी महत्वाकांक्षा कैबिनेट मंत्री खासकर स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय लेने की थी. पेशे से भाजपा नेता डॉक्टर हैं.

उन्होंने 2007 में भाजपा के पिछले कार्यकाल में स्वास्थ्य मंत्री के रूप में कार्य किया था, लेकिन संदिग्ध भूमि सौदों के आरोपों के बाद उन्हें इस्तीफा देना पड़ा था. एक समय प्रेम कुमार धूमल के वफादार रहे बिंदल, जेपी नड्डा के प्रति निष्ठावान हो गए- जिन्हें 2017 के चुनावों के दौरान अगले मुख्यमंत्री पद के दावेदार के रूप में देखा जा रहा था.

जब खाद्य और आपूर्ति मंत्री कृष्ण कपूर ने कांगड़ा से लोकसभा के लिए चुने जाने के बाद, पिछले साल इस्तीफा दे दिया, तो बिंदल को ये जगह मिलने की उम्मीद थी, लेकिन मुख्यमंत्री ने रिक्ति को भरने से इनकार कर दिया.

उन्हें इस साल जनवरी में नड्डा द्वारा हिमाचल में पार्टी का प्रमुख चुना गया था- राज्य इकाई के अध्यक्ष पद को पहाड़ी राज्य में मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिए एक अवसर के रूप में देखा जाता है.

ठाकुर ने भी 2006 से लेकर 2009 तक हिमाचल में भाजपा का नेतृत्व किया है.

ऑडियो क्लिप विवाद से राज्य में मुख्यमंत्री को खुद को मजबूत करने का एक अच्छा मौका मिला है. एक कैबिनेट मंत्री ने कहा, ‘यह दिखाता है कि कोई और नहीं बल्कि मुख्यमंत्री कमांडिंग स्थिति में हैं.’

सूत्रों ने कहा कि मुख्यमंत्री ने उन रिपोर्टों का भी लाभ उठाया है, जिस दिन ऑडियो क्लिप सामने आई थी, जब डॉ. गुप्ता ने बिंदल से मिलने का प्रयास किया था. गुप्ता, जो संयोग से 31 मई को सेवानिवृत्त होने वाले हैं, बिंदल के गृह जिले नाहन से हैं.

हालांकि, इस मामले पर, मुख्यमंत्री ने बिंदल का बचाव किया है.

उन्होंने कहा, ‘डॉ. बिंदल ने नैतिक आधारों पर इस्तीफा दिया है. उनका इस्तीफा राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने स्वीकार कर लिया है. मामले की जांच की जा रही है. बेकार और आधारहीन आरोप जो विपक्ष की ओर से लगाए जा रहे हैं, उचित नहीं है.’

हालांकि उन्होंने कहा कि राज्य में भ्रष्टाचार को लेकर जीरो टॉलरेंस है. ‘जब देश और यहां तक ​​कि दुनिया, सबसे खराब मानवीय संकट का सामना कर रही है, तो ऐसी स्थिति में भ्रष्टाचार का सहारा लेने वाले लोग अस्वीकार्य हैं.’ ‘मैंने सतर्कता विभाग से इस मामले की तह तक जाने और दोषी का पता लगाने को कहा है.’


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अपनी ओर से, बिंदल ने अपनी मासूमियत को बनाए रखा है. मीडिया को जारी एक वीडियो संदेश में, उन्होंने पार्टी की छवि को ‘सुरक्षित’ रखने का संकल्प दोहराया. उन्होंने कहा, ‘मुझे उम्मीद है कि जल्द ही मौजूदा संकट से उबर जाऊंगा. यह एक परीक्षा है जिसे मैं निश्चित रूप से पास करूंगा. मैंने कोई गलत काम नहीं किया है.’

विपक्ष और जनता की तरफ से भाजपा सरकार को घेरा जा रहा है

बिंदल के इस्तीफे के बाद राज्य की भाजपा सरकार को विपक्ष और जनता की ओर से घेरा जा रहा है.

विपक्षी कांग्रेसी सीधे तौर पर पूर्व स्वास्थ्य मंत्री का नाम लेने से बच रहे थे और ‘भाजपा के शीर्ष नेता का पीपीई घोटाले में भूमिका’ को इंगित कर रहे थे- लेकिन मंगलवार को बिंदल के इस्तीफा ने सब बदल दिया.

नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने पूछा, ‘आपातकालीन चिकित्सा खरीद में बिंदल के शामिल होने पर संदेह पैदा होता है, क्योंकि यह कहने के लिए कि वह निर्दोष है, बिंदल ने नैतिक आधार पर इस्तीफा दे दिया. क्या उनका ये कहना है कि कोविड-19 संकट के दौरान की जा रही सभी खरीद के लिए राज्य भाजपा अध्यक्ष जिम्मेदार हैं? ‘ ‘हम कोरोनावायरस अवधि के दौरान किए गए सभी खरीद के लिए उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के अंतर्गत जांच चाहते हैं.’

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता, अग्निहोत्री ने कहा कि उन्होंने मुख्यमंत्री के सामने सैनिटाइज़र, पीपीई किट, दस्ताने और फेस मास्क सहित चिकित्सा खरीद का मुद्दा उठाया.

अग्निहोत्री ने कहा, ‘अभी तक मुख्यमंत्री ने चिकित्सा खरीद पर कोई जवाब नहीं दिया है. ये भी सवाल है कि डॉ. राजीव बिंदल ने स्पीकर का पद छोड़कर राज्य में पार्टी प्रमुख क्यों बने.’ ‘हमें ऑडियो-क्लिप में एक व्यक्ति के साथ बिंदल की डीलिंग और स्वास्थ्य विभाग में उनके व्यावसायिक हितों के बारे में संदेह है.’

इस घोटाले ने भाजपा की राज्य इकाई में गहरा संकट खड़ा कर दिया है.

पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री शांता कुमार ने पार्टी आलाकमान को कुछ दिन पहले इस घोटाले को लेकर चिट्ठी भी लिखी थी.


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उन्होंने चिट्ठी में लिखा, ‘यह न केवल एक अपराध और शर्मनाक कार्य है, बल्कि एक महापाप (बड़ा पाप) है.’ ‘हिमाचल प्रदेश में कोविड निधि में अपनी बचत में से 5,000 रुपये का दान करने वाले एक मनरेगा कार्यकर्ता की कल्पना करिए और ये लोग उस पैसे को निकालने की कोशिश कर रहे हैं. बेहद शर्मनाक है.’

पूर्व भाजपा मंत्री मोहिंदर सोफत ने भी पीएमओ को एक शिकायत भेजकर उच्च स्तरीय जांच की मांग की, क्योंकि ‘एक शीर्ष भाजपा नेता का नाम बार-बार उल्लेख किया जा रहा था’. जब 2002 में एक उपचुनाव के बाद बिंदल ने पहली बार राज्य विधानसभा में प्रवेश किया, तो उन्हें शांता कुमार के वफादार माने जाने वाले सोफत का टिकट काटकर ही पार्टी टिकट दी गई थी.

पूर्व मुख्यमंत्री प्रेम कुमार धूमल ने महामारी के बीच सामने आए इस घोटाले को ‘देशद्रोह’ करार दिया है और निष्पक्ष जांच की मांग की है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)

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