मुंबई: राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (राकांपा) के प्रमुख शरद पवार ने पिछले साल कहा था कि वह केंद्र में पूर्व मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (सप्रंग) सरकार और नरेंद्र मोदी के बीच एकमात्र वार्ताकार थे. उस समय नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे.
आज वह वही भूमिका फिर से निभा रहे हैं, लेकिन इस बार राजनीतिक पार्टी अलग है.
केंद्र में मोदी के नेतृत्व वाली एनडीए सरकार और महाराष्ट्र में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी (एमवीए) सरकार के बीच संबंध अच्छे नहीं रहे हैं. इन दोनों पार्टियों के बीच एक गहरी खाई है जिसे पाटने की कोशिशों में पवार लगे रहते हैं. इन दिनों वह अकेले ऐसे मध्यस्थ के रूप में उभरे हैं, जिनके पास प्रधान मंत्री के साथ बातचीत के रास्ते हमेशा खुले रहे है, जिसका वह समय-समय पर एमवीए के राजनीतिक लाभ के लिए इस्तेमाल करते रहे है.
इसका सबसे ताजा उदाहरण राकांपा अध्यक्ष की मोदी के साथ पिछले सप्ताह हुई 25 मिनट की बैठक थी. इसमें 80 साल के इस बुजुर्ग ने महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी के 12 एमएलसी को नामित करने के प्रस्ताव को लटकाने और प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा शिवसेना के राज्यसभा सांसद संजय राउत की संपत्ति कुर्क करने जैसी चिंताओं को उठाया था.
राजनीति पर गहरी नजर रखने वालों का कहना है कि बैठक ने महाराष्ट्र में उस भाजपा नेतृत्व को एक संदेश दिया जो केंद्रीय एजेंसियों द्वारा चल रही पूछताछ पर एमवीए नेताओं को निशाना बना रहे थे. इस बातचीत ने लगातार हो रही तीखी आलोचनाओं को शांत करने का काम किया.
एनसीपी 2019 के महाराष्ट्र चुनावों के बाद बनी एमवीए सरकार के एक हिस्से के रूप में शिवसेना और कांग्रेस के साथ सत्ता साझा कर रही है.
राजनीतिक समीक्षक हेमंत देसाई ने दिप्रिंट को बताया, ‘महाराष्ट्र में राजनीतिक स्थिति और सत्ताधारी व विपक्षी दलों के बीच संबंध बिगड़ रहे हैं. पवार शायद महाराष्ट्र में भाजपा नेताओं को इस गंदे राजनीतिक संघर्ष को समाप्त करने के लिए एक संकेत भेजना चाहते थे कि वह मोदी के साथ बातचीत के जरिए संपर्क में बने रहते हैं.’
उन्होंने कहा, ‘कुल मिलाकर, हर कोई यह देख सकता है कि भाजपा एमवीए, विशेष रूप से शिवसेना नेतृत्व को घेरने की कोशिशों में लगी है. विभिन्न केंद्रीय एजेंसी की जांच उनकी इन कोशिशों में से ही एक है. अगर इसका मुकाबला करने के लिए वो कोई कदम उठाते भी हैं तो अंत में फायदा मोदी को ही होना है.’
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बातचीत के लिए खुले रास्ते
बदलते चुनावी मौसम के अनुसार मोदी और पवार के रिश्तों में उतार-चढ़ाव बने रहते हैं. कभी गर्माहट तो कभी कड़वाहट, कभी एक दूसरे की प्रशंसा तो कभी अत्यधिक आलोचना. लेकिन इसके बावजूद उनके बीच संवाद का माध्यम हमेशा कायम रहा है.
महाराष्ट्र के 2019 में हुए चुनावों में भाजपा सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरकर आई थी, लेकिन बहुमत से दूर थी. उस दौरान सरकार बनाने की खींचातानी में पवार का एमवीए के साथ आना भी इन दोनों के बीच कुछ नहीं बदल पाया.
राकांपा के वरिष्ठ नेता, पूर्व राज्यसभा सांसद, माजिद मेमन ने दिप्रिंट को बताया कि पवार और मोदी अपने आप में दो बड़े नेता हैं. राकांपा और भाजपा के बीच के संबंधों के आधार पर इन दोनों के संबंधों का आकलन नहीं किया जा सकता है.
मेमन ने कहा, ‘राजनीति में आप जिस पार्टी से जुड़े हैं उसकी अपनी विचारधारा होती है जिससे आप निश्चित रूप से अलग नहीं होते हैं. मोदी और पवार दोनों बड़े राष्ट्रीय नेता हैं. वे कभी भी आपस में मिल सकते हैं और देश से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर चर्चा कर सकते हैं. इसे राजनीतिक रूप से नहीं देखा जाना चाहिए. पवार ने साफ तौर पर एनसीपी द्वारा कभी भी भाजपा का समर्थन करने की किसी भी संभावना से इनकार किया है.’
वह आगे कहते हैं, ‘ऐसा नहीं है कि उनके बीच बातचीत का कोई विशेष चैनल है. अगर कारण जायज है तो मोदी लोगों से मिलने के लिए हमेशा उपलब्ध रहते है.’
मोदी ने राज्यसभा में अपने दिए गए भाषण में पवार की ‘सकारात्मक राजनीति’ की प्रशंसा की तो वहीं पवार ने पीएम को ऐसा व्यक्ति बताया है ‘जो बहुत मेहनत करते हैं और जिस कार्य को वह तार्किक निष्कर्ष तक ले जाते हैं, उसे पूरा करते हैं.’
राकांपा प्रमुख सभी दलों के नेताओं के साथ अच्छे संबंधों के लिए जाने जाते हैं, चाहे वे उनके राजनीतिक सहयोगी हों या विरोधी. वह शायद एकमात्र विपक्षी नेता हैं जो मोदी तक अपनी बात पहुंचा सकते हैं.
एमवीए के बाद पवार-मोदी के संबंध
शिवसेना की राज्यसभा सांसद प्रियंका चतुर्वेदी ने दिप्रिंट को बताया, ‘किसी को भी पवार साहब को विपक्षी दल के नेता के रूप में नहीं देखना चाहिए. वह अपने आप में एक संस्था है. जिस भी प्रधानमंत्री के साथ उनकी बातचीत रही है, उन्होंने अपनी पार्टी से अलग हटकर पवार को वरीयता दी है. यह उनके अनुभव, उनके राजनीतिक कार्यकाल की वजह से है.’
उन्होंने कहा, ‘समय आने पर विपक्ष के दृष्टिकोण को सरकार के सामने रख सके, अगर ऐसी कोई शख्सियत है तो वह हमेशा काम आती है. राजनीतिक अटकलों के बावजूद पवार सरकार के सामने अपनी बात रखते आए हैं.’
एमवीए के गठन के बाद से पवार को पता है कि कौन सी बात, कब, कहां और कैसे कहनी है और सिस्टम में रहते हुए कैसे काम करना है- कब आक्रामक होना है और कब अपनी आलोचना को शांत करना है.
नाम न बताने की शर्त पर एनसीपी के एक नेता ने दिप्रिंट को बताया, ‘ 2020 में पवार ने कोविड -19 महामारी से निपटने या गलवान घाटी में चीन के साथ गतिरोध जैसे मुद्दों पर भी केंद्र की आक्रामक आलोचना नहीं की.’
नेता ने कहा, ‘राज्य की आर्थिक हालत ठीक नहीं थी. महाराष्ट्र सरकार चाहती थी कि केंद्र माल और सेवा कर (जीएसटी) के मुआवजे के लिए अपना हिस्सा जारी करे. सीएम (उद्धव ठाकरे) और डिप्टी सीएम (अजीत पवार) भी आक्रामक रूप से इसके लिए जोर दे रहे थे.’
पवार ने उस साल अप्रैल और जून में वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए दो बार मोदी के साथ बैठक की. एक बातचीत में उन्होंने महामारी पर और दूसरी में गलवान घाटी गतिरोध पर चर्चा की थी. लेकिन उन्हें एक बार तो महाराष्ट्र के लंबित जीएसटी बकाया मुद्दे को उठाना चाहिए था.
मई 2020 में पवार ने मोदी को केंद्र के फैसले की आलोचना करते हुए लिखा था कि मुंबई को टैग देने के बजाय अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय सेवा केंद्र को गुजरात में स्थानांतरित कर दिया गया. उन्होंने जोर देते हुए कहा था कि बैंकिंग क्षेत्र की सरकारी सिक्योरिटी के मामले में महाराष्ट्र के आपार योगदान के बावजूद ये कदम उठाया गया है जो गलत और अनावश्यक है.
उस वर्ष अक्टूबर में लॉकडाउन के बाद महाराष्ट्र में पूजा स्थलों, विशेष रूप से मंदिरों को फिर से खोलने को लेकर एमवीए और राज्यपाल कोश्यारी के बीच छिड़े एक छद्म युद्ध के बीच, पवार इस मुद्दे को मोदी के पास ले गए थे.
एक पत्र में, उन्होंने सीएम ठाकरे को लिखे कोश्यारी के उस पत्र पर कड़ी आपत्ति जताई थी जिसमें शिवसेना अध्यक्ष की हिंदुत्व की साख पर सवाल उठाया गया और उनसे पूछा था कि क्या वह धर्मनिरपेक्ष हो गए हैं.
एमवीए के गठन के बाद, पवार ने पहली बार जुलाई 2021 में मोदी से व्यक्तिगत रूप से मुलाकात की थी. पीएम के साथ उनकी यह मुलाकात 50 मिनट तक चली. यह बातचीत इस चिंता को लेकर थी कि केंद्र सरकार का अमित शाह के नेतृत्व वाला सहकारिता मंत्रालय, महाराष्ट्र के सहकारी क्षेत्र को एक युद्ध क्षेत्र में बदल देगा जिसमें एक तरफ भाजपा है तो दूसरी तरफ एनसीपी और कांग्रेस.
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दोस्त और दुश्मन
पवार ने खुद ही इस बारे में बताया था कि कैसे वह पूर्व यूपीए सरकार में एकमात्र केंद्रीय मंत्री थे जो मोदी के साथ बातचीत कर सकते थे और उन्होंने राज्य सरकार के अनुरोध पर कई बार गुजरात का दौरा भी किया था. मोदी मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली सरकार के कड़े आलोचक थे.
2014 में, पवार ने विधानसभा चुनावों के बाद महाराष्ट्र में सरकार बनाने के लिए भाजपा को बाहरी समर्थन की पेशकश करके राजनीतिक-हलकों में हलचल मचा दी थी और सभी को आश्चर्य में डाल दिया था. लगभग छह साल बाद, शिवसेना के मुखपत्र सामना को दिए गए अपने एक इंटरव्यू में पवार ने कहा था कि यह कदम मुख्य रूप से शिवसेना को भाजपा से दूर रखने के लिए था, न कि राकांपा और भाजपा को करीब लाने के लिए.
मोदी ने भी तब भौंहें चढ़ा दीं जब 2015 में उन्होंने महाराष्ट्र के बारामती में राकांपा के खिलाफ प्रचार करने और लोगों से खुद को पवार शासन से मुक्त करने के लिए कहा था. लेकिन इसके बमुश्किल चार महीने बाद, उन्होंने विधानसभा चुनावों की कड़वाहट को पीछे छोड़ एनसीपी प्रमुख के साथ उनके गृह मैदान में सब्जियों के लिए एक उत्कृष्टता केंद्र का उद्घाटन करते हुए मंच साझा किया था. उन्होंने अनुभव के भंडार के रूप में पवार की प्रशंसा की और कहा कि सलाह के लिए राकांपा प्रमुख के संपर्क में रहना उनकी जिम्मेदारी थी.
अगले साल राजनीति में 50 साल पूरे करने पर पवार को बधाई देते हुए, मोदी ने कहा था कि राजनीति में अपने शुरुआती दिनों में राकांपा प्रमुख ने उनका हाथ पकड़ा था.
2019 के लोकसभा और महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों में वे एक बार फिर आमने-सामने आ गए. दोनों नेता अपनी पार्टियों के प्रतिद्वंद्वी प्रचारक बन गए थे. लोकसभा चुनाव से पहले पुणे जिले के दौंड में एक चुनावी रैली में पवार ने कहा था कि वह किसी और को मोदी बनाने के डर से दोबारा किसी को अपना हाथ नहीं पकड़ने देंगे.
लेकिन साल के अंत तक में जब महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव में त्रिशंकु जनादेश के बाद सरकार बनाने की कोशिश करने के लिए गठबंधन हाथापाई कर रहे थे, मोदी और पवार फिर से बंद दरवाजों के पीछे चले गए. माना जा रहा था कि वे राज्य में किसानों के संकट पर चर्चा करने के लिए मिले थे.
लेकिन आठ दिन बाद महाराष्ट्र में एमवीए सरकार ने शपथ ले ली.
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