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Sunday, 22 December, 2024
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मेकेदातु परियोजना के सहारे ‘BJP के डबल इंजन विकास’ के वादे की कैसे पोल खोलेगी कर्नाटक कांग्रेस

मेकेदातु कावेरी नदी पर 9,000 करोड़ रुपए की एक प्रस्तावित पेयजल परियोजना है, जिसे पड़ोसी तमिलनाडु के कड़े विरोध के चलते कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण से अभी तक मंज़ूरी नहीं मिली है.

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बेंगलुरू: हाल में हुए उपचुनाव की जीत से उत्साहित होकर कर्नाटक कांग्रेस हड़बड़ी में बहुत सारी राजनीतिक गतिविधियों के जरिए उस गति को बनाए रखना चाहती है.

रविवार को एक साझा संबोधन में कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) अध्यक्ष डीके शिवकुमार और कर्नाटक असेम्बली में नेता प्रतिपक्ष सिद्धारमैया ने मेकेदातु पेयजल परियोजना को लेकर एक पदयात्रा निकालने का ऐलान किया.

मेकेदातु कावेरी नदी पर 9,000 करोड़ रुपए की एक प्रस्तावित पेयजल परियोजना है, जिसे पड़ोसी तमिलनाडु के कड़े विरोध के चलते कावेरी जल प्रबंधन प्राधिकरण से अभी तक मंज़ूरी नहीं मिली है.

कांग्रेस उम्मीद कर रही है कि इस मुद्दे को उठाकर वो बीजेपी के ‘डबल इंजन विकास’ के चुनावी वायदे की ‘क़लई खोलेगी.’

केपीसीसी कार्यकारी अध्यक्ष सलीम अहमद ने दिप्रिंट से कहा, ‘कर्नाटक में बीजेपी ने 2018 चुनावों में वायदा किया था, कि अगर वो चुनकर सत्ता में आ गई, तो राज्य में डबल इंजिन विकास किया जाएगा, चूंकि पार्टी केंद्र में भी सत्ता में है. अब वो दोनों जगह सत्ता में हैं, तो फिर मेकेदातु परियोजना को क्यों लागू नहीं कर पा रहे हैं, जिससे बेंगलुरू को पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित होगी?’ उन्होंने कहा कि पदयात्रा का मक़सद बीजेपी के इसी ‘पाखंड’ को बेनक़ाब करना है.

शिवकुमार ने रविवार को पत्रकारों को बताया, ‘ये पदयात्रा दिसंबर के पहले सप्ताह में आयोजित होगी, और इसमें 100 किलोमीटर का फासला तय किया जाएगा. हम अपनी पदयात्रा मेकेदातु से शुरू करेंगे, और पैदल बेंगलुरू की तरफ बढ़ेंगे. मेकेदातु हमारी ज़मीन पर बनेगा, हमारे पैसे से बनेगा, और उसमें हमारे हिस्से का कावेरी का पानी स्टोर किया जाएगा’.

ये निर्णय रविवार को वरिष्ठ कांग्रेसी नेताओं की बैठक के बाद लिया गया, जिसमें अगले असेम्बली तथा स्थानीय निकाय चुनावों से पहले, पार्टी गतिविधियों की रणनीति पर विचार विमर्श किया गया. बीजेपी पर कांग्रेस के हमलों का जो फल हंगल उपचुनाव में हासिल हुआ, जिसके नतीजे 2 नवंबर को घोषित हुए, उसे देखते हुए पार्टी को उम्मीद है, कि वो इस उत्साह को भुना सकती है.


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मेकेदातु ही क्यों?

परियोजना को लेकर पर्यावरण चिंताएं व्यक्त किए जाने के बावजूद, कांग्रेस ने परियोजना के कार्यान्वयन की मांग करते हुए, पदयात्रा निकालने का फैसला किया है.

इस पदयात्रा से कांग्रेस को उम्मीद है, कि वो 2010 की पदयात्रा– ‘बेल्लारी चलो’ के असर को फिर से पैदा कर पाएगी, जो अवैध खनन और बीएस येदियुरप्पा की तत्कालीन बीजेपी सरकार के भ्रष्टाचार के खिलाफ निकाली गई थी.

पदयात्रा ने 2013 चुनावों में कांग्रेस की मतदान रणनीति तय कर दी, जिसने बीजेपी को मात देकर सत्ता पर क़ब्ज़ा कर लिया.

इस तथ्य के अलावा कि मेकेदातु परियोजना को, सिद्धारमैया की कांग्रेस सरकार के अंतर्गत ‘सैद्धांतिक मंज़ूरी’ मिली थी, पार्टी ने इस मुद्दे को इसलिए भी उठाया है, कि इसने बीजेपी के सामने एक मुश्किल स्थिति पैदा कर दी है.

इसी साल अगस्त में, लोकसभा में एक सवाल के जवाब में जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने कहा था, कि कर्नाटक की विस्तृत परियोजना रिपोर्ट का आगे आंकलन नहीं किया जा सकता. उनका तर्क था कि परियोजना के लिए कर्नाटक को, दूसरे तटीय राज्यों की सहमति लेनी होगी- एक ऐसा रुख़ जो कर्नाटक मुख्यमंत्री बासवराज बोम्मई, और उनके पूर्ववर्त्ती बीएस येदियुरप्पा दोनों के रुख़ के खिलाफ है. कांग्रेस और जेडी(एस) दोनों ने केंद्रीय मंत्री के जवाब का सहारा लेकर, राज्य में बीजेपी पर हमला किया है.

शेखावत के जवाब से पहले, कर्नाटक और तमिलनाडु के बीजेपी नेताओं के बीच, परियोजना को लेकर ज़ुबानी जंग छिड़ चुकी थी. बीजेपी की तमिलनाडु इकाई के प्रमुख के अन्नामलाई ने, परियोजना के विरोध में एक दिन का सांकेतिक उपवास भी रखा था, जिसे बोम्मई ने ‘राजनीति से प्रेरित’ क़रार दिया था.

इस मुद्दे ने बीजेपी राष्ट्रीय महासचिव सीटी रवि के लिए भी- जो कर्नाटक से हैं, लेकिन तमिलनाडु के प्रभारी हैं- एक मुश्किल स्थिति पैदा कर दी थी.

सिद्धारमैया ने रविवार को पत्रकारों को संक्षेप में बताया, कि पार्टी ने अपनी पदयात्रा के लिए मेकेदातु को ही क्यों चुना है, ‘सीटी रवि ने कहा था कि इस मामले में वो भारत-समर्थक हैं. मेकेदातु के मुद्दे पर हम कन्नड़-समर्थक और कर्नाटक-समर्थक हैं.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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