चेन्नई: तमिलनाडु की पट्टाली मक्कल काच्ची (पीएमके) के संस्थापक और उनके बेटे के बीच चल रहे विवाद ने पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच तनाव बढ़ा दिया है और 2026 विधानसभा चुनाव से पहले पार्टी में फूट पड़ने का डर पैदा कर दिया है, जब तक कि कोई समाधान जल्द नहीं निकाला जाता.
हालांकि पार्टी नेतृत्व का कहना है कि सब कुछ ठीक है, लेकिन पीएमके कार्यकर्ताओं को डर है कि अगर एस. रामदास और उनके बेटे अंबुमणि के बीच मतभेद 2026 विधानसभा चुनाव तक चलते रहे, तो पार्टी टूट सकती है.
“हम नहीं चाहते कि ऐसा हो. लेकिन बाप-बेटे के बीच का यह झगड़ा जल्द खत्म होता नहीं दिख रहा, क्योंकि अंबुमणि तो रामदास से बात करने तक को तैयार नहीं हैं,” एक वरिष्ठ अंबुमणि नेता ने बताया, जो 1989 में रामदास के नेतृत्व में पार्टी में शामिल हुए थे.
ताजा विवाद अप्रैल में उस समय सामने आया जब रामदास ने विल्लुपुरम जिले के थैलापुरम स्थित अपने फार्महाउस में जिला स्तरीय पदाधिकारियों की बैठक बुलाई. 220 पदाधिकारियों में से केवल 13 ही इस बैठक में शामिल हुए, जिससे यह साफ हो गया कि अधिकांश पदाधिकारी अंबुमणि के पक्ष में हैं.
पार्टी की कोषाध्यक्ष एम. तिलगपामा, जो अंबुमणि की कट्टर समर्थक मानी जाती हैं, ने आरोप लगाया कि रामदास को कुछ वरिष्ठ नेताओं, खासकर पीएमके के मानद अध्यक्ष जी.के. मणि द्वारा गुमराह किया जा रहा है.
“आयु अधिक हो जाने के कारण अय्या (रामदास) अब पार्टी में हो रही हर चीज़ पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं. जी.के. मणि जैसे लोग इसका फायदा उठा रहे हैं और उन्हें गुमराह कर रहे हैं,” तिलगपामा ने दिप्रिंट से कहा.
1989 में बनी इस पार्टी का मुख्य आधार वन्नियार समुदाय है, जो राज्य में एक अति पिछड़ा वर्ग (MBC) है.
बाप-बेटे के बीच तनाव पहली बार 28 दिसंबर 2024 को विल्लुपुरम में हुई पार्टी की आम परिषद बैठक के दौरान सामने आया था, जब रामदास की बड़ी बेटी गांधीमति के बेटे पी. मुकुंदन को पार्टी की युवा इकाई का अध्यक्ष बनाने को लेकर विवाद हुआ.
विवाद उस समय और बढ़ गया जब रामदास ने 10 अप्रैल को अपने बेटे को पार्टी अध्यक्ष पद से हटा दिया और उन्हें कार्यकारी अध्यक्ष बना दिया.
रामदास ने खुद को पार्टी अध्यक्ष घोषित कर दिया और कहा कि जी.के. मणि मानद अध्यक्ष बने रहेंगे.
यह घटनाक्रम उस दिन से ठीक एक दिन पहले हुआ जब भाजपा के वरिष्ठ नेता और गृहमंत्री अमित शाह ने तमिलनाडु का दौरा किया और 11 अप्रैल को ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (AIADMK) के साथ गठबंधन को फिर से शुरू करने की घोषणा की.
इस घटनाक्रम से जुड़ी जानकारी रखने वाले पार्टी सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि रामदास चुनाव से एक साल पहले किसी भी गठबंधन की घोषणा के पक्ष में नहीं थे, क्योंकि इससे पार्टी की सौदेबाज़ी की ताकत कम हो जाती.
हालांकि पीएमके ने पिछले साल लोकसभा चुनावों में भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के साथ हाथ मिलाया था, पार्टी ने कहा है कि वह 2026 के विधानसभा चुनाव के लिए गठबंधन पर फैसला अगले साल लेगी.
ऊपर उद्धृत वरिष्ठ नेता ने दिप्रिंट को बताया कि रामदास राष्ट्रीय दलों के साथ गठबंधन के पक्ष में नहीं थे, क्योंकि यह उनके सिद्धांतों के खिलाफ था.
“वह हमेशा चाहते थे कि राज्य में पैठ जमाने के लिए किसी एक द्रविड़ दल के साथ हाथ मिलाया जाए. उन्हीं की रणनीति के कारण एक समय में पीएमके का उत्तरी जिलों में वोट शेयर 10 प्रतिशत से अधिक था,” उस वरिष्ठ नेता ने कहा.
“यह पिछले विधानसभा चुनाव में घटकर 5 प्रतिशत से भी कम रह गया,” नेता ने आगे कहा.
जी.के. मणि ने दिप्रिंट से कहा कि यह मुद्दा आपसी सहमति से सुलझा लिया जाएगा.
मणि ने कहा, “हमारे डॉक्टर अय्या और चिन्नैया अंबुमणि जल्द ही आमने-सामने मिलेंगे और सब कुछ पर चर्चा करेंगे. यह पार्टी का आंतरिक मामला है और जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा. यह अफवाह थी कि हमारे अय्या (रामदास) सभी जिला सचिवों से साइन लेकर अंबुमणि को पार्टी से निकालने वाले हैं, लेकिन यह सच नहीं है.”
2026 का विधानसभा चुनाव पीएमके के लिए अहम
राजनीतिक विश्लेषक रविंद्रन दुरईसामी ने दिप्रिंट से कहा कि यह विवाद तब ज्यादा चर्चा में आया जब पार्टी को विधानसभा चुनाव में एक अहम परीक्षा का सामना करना पड़ रहा है.
रविंद्रन ने कहा, “आगामी 2026 का चुनाव पीएमके के लिए बहुत अहम है और यह पार्टी के अस्तित्व की लड़ाई है, क्योंकि उत्तर तमिलनाडु में उसका वोट शेयर कम हो गया है.”
उन्होंने आगे कहा, “पीएमके ने 1991 से डीएमके (द्रविड़ मुनेत्र कड़गम) के वोटों में सेंध लगाकर अपना वोट बैंक बनाया था, लेकिन अब उसने अपना वोट शेयर AIADMK को दे दिया है.”
रविंद्रन के मुताबिक, AIADMK द्वारा एमबीसी कोटे में वन्नियारों के लिए 10.5 प्रतिशत आरक्षण देने का फैसला — जिसे बाद में मद्रास हाईकोर्ट ने रद्द कर दिया — वन्नियार समुदाय की निष्ठा को AIADMK की ओर मोड़ने वाला कदम साबित हुआ.
“अगर पार्टी को अपना खोया हुआ वोट शेयर वापस पाना है, तो उसे वन्नियार समुदाय के बीच मजबूती से काम करना होगा और एनडीए गठबंधन से अलग होना होगा. अगर वह एनडीए में बनी रहती है, तो गठबंधन की दूसरी पार्टियां पीएमके का वोट शेयर खा जाएंगी,” रविंद्रन ने कहा.
हालांकि, राजनीतिक विश्लेषक एन. सत्य मूर्ति ने कहा कि यह विवाद राजनीतिक रणनीति में एक पीढ़ीगत बदलाव को दिखाता है.
“हालांकि अंबुमणि रामदास के बेटे हैं और उन्होंने अपने पिता की गठबंधन रणनीति को करीब से देखा है, लेकिन अब वे आखिरी वक्त में गठबंधन तय करने की पुरानी परंपरा को मानने को तैयार नहीं हैं,” सत्य मूर्ति ने कहा.
“चूंकि वीसीके, डीएमके गठबंधन के साथ है, इसलिए पीएमके के पास AIADMK के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) में शामिल होने के अलावा कोई विकल्प नहीं है. इसलिए अंबुमणि चाहते हैं कि गठबंधन की घोषणा की पहल वे खुद करें. लेकिन रामदास इस पर संकोच कर रहे हैं ताकि सौदेबाजी की ताकत बढ़ाई जा सके, जिसे अंबुमणि शायद बेकार मानते हैं,” उन्होंने जोड़ा.
पीएमके का चुनावी प्रदर्शन
डॉ. रामदास, जो एक प्रैक्टिस करने वाले डॉक्टर हैं, 1980 में सार्वजनिक जीवन में तब आए जब उन्होंने वन्नियार संगम की स्थापना की, जो वन्नियार संगठनों का एक गठबंधन था.
रामदास के नेतृत्व में वन्नियार संगम ने 1987 में बड़े स्तर पर प्रदर्शन किए, जिसमें वन्नियार जाति को अति पिछड़ा वर्ग (एमबीसी) का दर्जा देने की मांग की गई. इस आंदोलन को मिले समर्थन को देखते हुए उन्होंने 1989 में पट्टाली मक्कल काच्ची (पीएमके) की स्थापना की.
पार्टी ने पहली बार 1991 के विधानसभा चुनाव में हिस्सा लिया, जहां उसने 194 सीटों पर चुनाव लड़ा और सिर्फ एक सीट जीत पाई. उस समय पार्टी को लगभग 5.89 प्रतिशत वोट मिले.
1996 में पार्टी ने तीसरा मोर्चा बनाकर लगभग 116 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें उसे करीब चार सीटें मिलीं और वोट शेयर लगभग 5.4 प्रतिशत रहा.
2001 में पहली बार पार्टी ने AIADMK के साथ गठबंधन किया और 27 सीटों पर चुनाव लड़ा. इसमें उसने 20 सीटें जीतीं और 5.56 प्रतिशत वोट शेयर हासिल किया. 2006 में पीएमके ने डीएमके के साथ गठबंधन किया और 31 सीटों पर चुनाव लड़ा. लेकिन वह केवल 18 सीटें ही जीत पाई और वोट शेयर 5.39 प्रतिशत रहा.
2011 में पीएमके ने डीएमके गठबंधन में रहकर 30 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन सिर्फ तीन सीटें जीत पाई. तब भी पार्टी का वोट शेयर 5.23 प्रतिशत रहा. 2016 में पार्टी ने अकेले 234 सीटों पर चुनाव लड़ा, लेकिन पूरी तरह हार गई. तब भी वोट शेयर 5.36 प्रतिशत रहा.
2021 में पीएमके ने एनडीए गठबंधन के साथ मिलकर 23 सीटों पर चुनाव लड़ा, जिसमें उसने पांच सीटें जीतीं और वोट शेयर 3.80 प्रतिशत रहा.
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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