नई दिल्ली: हरियाणा के पूर्व उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला की जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) ने मंगलवार को चंद्रशेखर आज़ाद की आज़ाद समाज पार्टी (कांशीराम) के साथ सीटों के बंटवारे पर समझौता किया. यह कदम चुनावी राज्य हरियाणा में दलित वोटों को एकजुट करने के कांग्रेस के प्रयास को विफल कर सकता है.
अपनी ओर से, कांग्रेस ने गठबंधन को किसी काम का न बताते हुए कहा कि हाल ही में हुए लोकसभा चुनावों में जेजेपी का प्रदर्शन काफी निराशाजनक था और आज़ाद के नेतृत्व वाली आजाद समाज पार्टी का हरियाणा में कोई मज़बूत संगठनात्मक ढांचा मौजूद नहीं है.
2011 की जनगणना के अनुसार, हरियाणा की आबादी में अनुसूचित जातियों (SC) की हिस्सेदारी 20.2 प्रतिशत है, और 90 सदस्यीय हरियाणा विधानसभा में 17 सीटें दलितों के लिए आरक्षित हैं. जो कि दिखाता है कि इस समुदाय का चुनाव के मद्देनज़र कितना महत्त्व है.
परिणामस्वरूप, राज्य के प्रमुख राजनीतिक खिलाड़ी – चाहे वह इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) हो या उसकी शाखा JJP, या कांग्रेस – सबने अतीत में बहुजन समाज पार्टी (BSP) को लुभाने की कोशिश की है, क्योंकि उन्हें दलित समुदाय का वोट अपनी तरफ खींचने के लिए दलित पार्टी का सहयोग लेना सबसे अच्छा विकल्प लगता है. मुख्य रूप से यूपी की नगीना सीट से आज़ाद की लोकसभा जीत के कारण ASP का उदय, अब इसे BSP जैसी ही स्थिति में ला खड़ा करता है.
हालांकि, हरियाणा के लिए कांग्रेस की उम्मीदवार स्क्रीनिंग कमेटी का हिस्सा रहे एक कांग्रेस नेता ने कहा कि पार्टी के पास जेजेपी-एएसपी गठबंधन को लेकर बहुत चिंतित होने की कोई वजह नहीं है.
अन्य कारणों के अलावा, उन्होंने बीएसपी की पिछले कई सालों से चुनाव लड़ने के बावजूद राज्य में कोई खास पैठ बनाने में असमर्थता का हवाला दिया. इसने विधानसभा चुनावों में कभी भी एक से ज़्यादा सीटें नहीं जीती हैं.
कांग्रेस नेता ने कहा, “हमें पूरा यकीन है कि इससे हमारा कैलकुलेशन नहीं गड़बड़ होगा. हरियाणा में दलित, कांग्रेस के साथ मजबूती से खड़े हैं. यह उत्तर प्रदेश से अलग है, जहां एएसपी ने कुछ सफलता का स्वाद चखा है.”
सीट बंटवारे के समझौते के तहत, जेजेपी राज्य की 90 सीटों में से 70 पर चुनाव लड़ेगी, जबकि एएसपी शेष 20 सीटों पर चुनाव लड़ेगी.
बीएसपी इस बार हरियाणा में आईएनएलडी के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ रही है. 2019 में, दोनों पार्टियों ने लोकसभा चुनाव से पहले थोड़े समय के लिए गठबंधन किया था, लेकिन मतदान के दिन से पहले ही अलग हो गए थे.
महीनों बाद, बीएसपी ने जेजेपी के साथ गठबंधन किया, लेकिन अक्टूबर में हुए विधानसभा चुनावों से पहले उसी तरह से संबंध तोड़ लिए.
2019 में अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षित 17 सीटों में से सात कांग्रेस, पांच भाजपा, चार जेजेपी और एक निर्दलीय के खाते में गई थी. 2024 के आम चुनावों में, जबकि कांग्रेस और भाजपा दोनों ने राज्य में पांच-पांच सीटें जीतीं, पर कांग्रेस ने दोनों आरक्षित लोकसभा सीटें बड़े अंतर से जीतीं.
दिप्रिंट से बात करते हुए, हरियाणा कांग्रेस के प्रवक्ता केवल ढींगरा ने कहा कि जेजेपी-एएसपी गठबंधन का 1 अक्टूबर को होने वाले विधानसभा चुनाव के नतीजों पर कोई असर नहीं पड़ेगा.
ढींगरा ने कहा, “लोकसभा चुनाव में, जेजेपी का वोट शेयर 0.87 प्रतिशत था. एएसपी का हरियाणा में कोई आधार नहीं है. जीरो प्लस जीरो आखिरकार जीरो ही होगा.”
कांग्रेस को यह भी लगता है कि जेजेपी के भाजपा के साथ पिछले गठबंधन और भाजपा के साथ भविष्य में संबंध बनाने पर उसके अनिर्णायक रुख से दलित समुदाय नाराज हो जाएगा. मंगलवार की प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान भी इस तरह के गठबंधन की संभावना को चौटाला ने खुला छोड़ दिया अगर 2019 की तरह चुनावों में वह किंगमेकर के तौर पर उभरते हैं तो.
चौटाला ने भाजपा के साथ अपने समीकरण पर सवालों का जवाब देते हुए कहा, “2019 में कांग्रेस के साथ जाने से स्थिर सरकार नहीं बनती. सवाल (2024 में इसी तरह की स्थिति उभरने के) पर, इसे संख्याओं पर छोड़ देते हैं. भविष्य के बारे में कौन बता सकता है.”
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भाजपा का सवाल
2019 के हरियाणा विधानसभा चुनाव में, 10 विधायकों के साथ पहली बार चुनाव लड़ रही जेजेपी किंगमेकर के रूप में उभरी थी, जिसने जाटों का एक बड़ा हिस्सा जीत लिया था, जो राजनीतिक दलों के अनुमान के अनुसार, राज्य की आबादी का 26 प्रतिशत है. चौटाला ने भाजपा का समर्थन किया और उपमुख्यमंत्री बने. लेकिन इस साल मार्च में, जब लोकसभा चुनाव नजदीक आ रहे थे, भाजपा ने जेजेपी के साथ अपने संबंध तोड़ लिए, जिससे वह मुश्किल में पड़ गई.
पिछले कुछ दिनों में, इसके सात विधायकों ने जेजेपी छोड़ दी है. एक कांग्रेस में शामिल हो गया है, जबकि दो के भाजपा में शामिल होने की संभावना है. चौटाला ने पार्टी छोड़ने की घटनाओं को कमतर आंकते हुए कहा कि संबंधित दलों द्वारा उम्मीदवारों की घोषणा के बाद कांग्रेस और भाजपा को भी इसी तरह के विधायकों का सामना करना पड़ेगा.
चौटाला ने चुनाव के बाद भाजपा के साथ हाथ मिलाने का विकल्प खुला रखा, लेकिन हरियाणा और पंजाब में किसानों के विरोध प्रदर्शन से पार्टी के निपटने के तरीके से खुद को दूर रखने की कोशिश की. उन्होंने कहा, “मुझे एक भी बयान दिखाइए जिसमें मैंने कृषि कानूनों का समर्थन किया हो.” आजाद ने भी उनका समर्थन करते हुए कहा, “इतिहास गवाह है कि उनका (चौटाला का) परिवार हमेशा किसानों के साथ रहा है.”
हालांकि, दलित और आदिवासी संगठनों के राष्ट्रीय परिसंघ (NACDAOR) के अध्यक्ष अशोक भारती ने कहा कि दलितों को पता है कि इन राजनीतिक मोर्चों को “भाजपा द्वारा खुले तौर पर या गुप्त रूप से समर्थन और वित्त पोषण किया गया है”.
भारती ने दिप्रिंट से कहा, “हम हरियाणा में जमीनी स्तर पर काम कर रहे हैं और साफ तौर पर देख सकते हैं कि दलित वोट कांग्रेस की तरफ जा रहे हैं. दलित मतदाता जानते हैं कि जेजेपी के जीतने की कोई संभावना नहीं है और वे हारने वाले पक्ष का साथ देने के मूड में नहीं हैं. साथ ही, उनके दिमाग में यह बात भी चल रही है कि जेजेपी फिर से भाजपा के साथ जा सकती है. जेजेपी अपने बयानों जैसे कि कांग्रेस और भाजपा से समान दूरी बनाए रखने के माध्यम से अपने मकसद में मदद नहीं कर रही है.”
प्रेस कॉन्फ्रेंस में चौटाला ने अपने परदादा देवीलाल और बीएसपी संस्थापक कांशीराम के बीच संबंधों का हवाला देते हुए आजाद के साथ अपने गठबंधन को विरासत की निरंतरता के रूप में पेश किया.
चौटाला ने कहा, “जब कांशीराम ने दिल्ली के बोट क्लब में बी.आर. अंबेडकर के लिए भारत रत्न की मांग को लेकर धरना दिया था, तो चौधरी देवीलाल (आईएनएलडी के संस्थापक) उनका समर्थन करने वाले पहले नेता थे. जब वे (देवीलाल) उप प्रधानमंत्री बने, तो अंबेडकर को न केवल भारत रत्न दिया गया, बल्कि संसद में उनकी प्रतिमा का अनावरण भी किया गया.” उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि वे और आजाद लंबे समय तक साथ रहे.
उन्होंने मुस्कुराते हुए कहा, “मत भूलिए, हम दोनों 36 साल के हैं.”
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