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Friday, 1 November, 2024
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बीएल संतोष ने कैसे येदियुरप्पा को दी मात, और कर्नाटक में बीजेपी के लिए सबसे अहम व्यक्ति बने

दोनों नेताओं के बीच कटुता का इतिहास रहा है, लेकिन येदियुरप्पा के बाहर होने के बाद से, कर्नाटक बीजेपी में संतोष के प्रभाव, नियंत्रण और ताक़त में, हर दिन इज़ाफा हो रहा है.

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बेंगलुरु: 15 अक्टूबर को विजयदशमी के दिन, भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के राष्ट्रीय महासचिव (संगठन) बीएल संतोष ने, बीएस येदियुरप्पा से उनके आवास पर मुलाक़ात की. ये पहला मौक़ा था जब संतोष, शीर्ष पद से पूर्व मुख्यमंत्री की आंसुओं के साथ विदाई के बाद, उनसे मुलाक़ात कर रहे थे.

पिछली बार संतोष येदियुरप्पा से मई में मिले थे, जब कर्नाटक में कमान बदलने की चर्चाएं अपने चरम पर थीं. दोनों नेता जब भी आपस में मिलते हैं, सियासी हल्क़ों में अटकलों का बाज़ार गर्म हो जाता है, क्योंकि दोनों के बीच शीत-युद्ध का एक लंबा इतिहास रहा है.

लेकिन जुलाई में येदियुरप्पा के बाहर होने के बाद से, कर्नाटक बीजेपी में संतोष के प्रभाव, नियंत्रण और ताक़त में, हर दिन इज़ाफा हो रहा है. .

वो भले ही 2019 से एक राष्ट्रीय नेतृत्व की भूमिका में हों, लेकिन महासचिव की कर्नाटक में गहरी दिलचस्पी ही उन्हें वहां आगे बढ़ा रही है.

पार्टी नेताओं का कहना है कि चाहे ये कर्नाटक के लिए महासचिव (संगठन) की उनकी भूमिका के कारण हो, या उनके राज्य से होने की वजह से, संतोष अब नई दिल्ली में प्रदेश इकाई के सबसे प्रमुख नुमाइंदे बन गए हैं.

जब वो बेंगलुरु में होते हैं तो उनसे मिलने के लिए विधायकों, कार्यकर्त्ताओं, और मंत्रियों तक का जो तांता लगा रहता है, वो उनकी लोकप्रियता का सुबूत है.


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बीएल संतोष और बीएस येदियुरप्पा

बतौर मुख्यमंत्री येदियुरप्पा के जाने से पहले ही, संतोष राज्य के बहुत से नेताओं का सहारा थे, जिनके ज़रिए वो अपनी चिंताएं व्यक्त कर सकते थे, आलाकमान तक पहुंच सकते थे, और पार्टी तथा सरकार में पदों के लिए भी लॉबी कर सकते थे. येदियुरप्पा के मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटने के बाद, संतोष की स्थिति और मज़बूत हो गई है.

येदियुरप्पा के एक क़रीबी सहयोगी ने दिप्रिंट से कहा, ‘दिल्ली में दो बड़े नामों के बाद, कमान में वो तीसरे व्यक्ति हैं’.

हालांकि उन्हें पूर्व मुख्यमंत्री का नापसंद व्यक्ति माना जाता है, लेकिन संतोष जब भी बेंगलुरू जाते हैं- जो साल में क़रीब तीन-चार बार होता है- तो वयोवृद्ध नेता के पास मिलने ज़रूर जाते हैं, लेकिन वो बीजेपी प्रदेश इकाई के मुख्यालय में गेस्ट रूम में ठहरते हैं.

‘अब कोई बैर नहीं है और न ही उसकी ज़रूरत रह गई है. जो करना था वो कर लिया गया है, ’दिप्रिंट से ये कहना था एक बीजेपी विधायक का, जिसे संतोष ने उठाकर ख़ुद निजी तौर पर तैयार किया था, और जिसने येदियुरप्पा की विदाई में राष्ट्रीय पार्टी के नेता की भूमिका की ओर इशारा किया.

दोनों के बीच का शीत-युद्ध साफतौर पर नज़र आता था. संतोष ने ही उस दौरान पार्टी काडर्स का मार्गदर्शन किया, जब 2012 में येदियुरप्पा ने बीजेपी छोड़ दी थी, जिनके उस क़दम से 2013 असेम्बली चुनावों में, पार्टी की संभावनाओं को नुक़सान पहुंचा था.

संतोष के क़रीबी एक सूत्र के अनुसार, येदियुरप्पा के बीजेपी में लौट आने के बाद भी, दोनों गुटों के बीच जो दरारें गहरी हो गईं थीं, वो कभी भर नहीं पाईं.

अप्रैल 2017 में, दोनों नेताओं के बीच का शीत-युद्ध सार्वजनिक हो गया, जब वरिष्ठ नेता केएस ईश्वरप्पा ने पार्टी के भीतर ही, ‘संगोली रायन्ना ब्रिगेड’ का गठन कर लिया.

वो एक ऐसा क़दम था जिसे येदियुरप्पा ने, जो उस समय बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष थे, ‘पार्टी-विरोधी’ क़रार दिया, और इसके लिए उन्होंने संतोष को ज़िम्मेवार ठहराया.

लेकिन, सभी लोग ये नहीं मानते, कि इनके बीच कोई दरार थी या है.

कर्नाटक बीजेपी उपाध्यक्ष और येदियुरप्पा के बेटे बीवाई विजयेंद्र ने दिप्रिंट से कहा, ‘बहुत बार बीएस येदियुरप्पा और बीएल संतोष के बीच रिश्तों को लेकर, अनावश्यक अटकलें लगाई जाती हैं, लेकिन मैं कहना चाहूंगा कि ये रिश्ते बहुत सौहार्दपूर्ण हैं. पार्टी से आगे कुछ भी व्यक्तिगत नहीं है. पार्टी के हित ही मायने रखते हैं. छोटे-मोटे मतभेदों के बावजूद वो सब मिलकर काम करते हैं’.

उन्होंने आगे कहा कि संतोष यक़ीनन नई दिल्ली में प्रदेश इकाई के नुमाइंदे हैं, लेकिन वैसे ही नुमाइंदे केंद्रीय मंत्री प्रहलाद जोशी भी हैं.

उन्होंने कहा, ‘वो हमारे और केंद्रीय नेतृत्व के बीच पुल का काम करते हैं. सच कहूं तो चाहे वो संतोष हों, येदियुरप्पा हों, या प्रहलाद जोशी हों, सभी का लक्ष्य कर्नाटक में बीजेपी के लिए पूर्ण बहुमत हासिल करना है, और वो अपने अपने तरीक़े से उसी के लिए काम कर रहे हैं’.

पुरानी भूमिकाओं से नए क़दमों में सहायता

येदियुरप्पा की अनुपस्थिति में संतोष ने जो नेतृत्व की भूमिका संभाली, कर्नाटक में अब उसका फल मिल रहा है- उत्तर भारत का एकमात्र बड़ा राज्य जहां बीजेपी सत्ता में है.

‘बीएल संतोष एक ऐसे व्यक्ति हैं जो किसी मामूली कार्यकर्त्ता को उठाते हैं, उसे एक अवसर देते हैं, सलाह देते हैं, और एक अगले स्तर पर ले जाते हैं,’ दिप्रिंट से ये कहना था हासन से बीजेपी विधायक प्रीतम गौड़ा का, जिस सीट को बीजेपी 2018 से पहले कभी नहीं जीती थी.

संतोष राज्य में इतने प्रभावशाली क्यों हैं, इस पर रोशनी डालते हुए गौड़ा ने कहा, ‘वो पूरे सूबे के बूथ-लेवल कार्यकर्त्ताओं को जानते हैं. उनकी जड़ें यहीं पर हैं. उन्होंने यहां कार्यकर्त्ताओं को प्रशिक्षित किया है. वो उन तमाम नेताओं के बारे में ताज़ा स्थिति जानना चाहते है, जिन्हें उन्होंने तैयार किया है. वो लगातार हमारी निगरानी और मार्गदर्शन करते हैं, और हमें सिखाते रहते हैं’.

गौड़ा ने आगे कहा कि पार्टी के अंदर संतोष के बहुत समर्थक हैं. ये समर्थन ही, जिसके लिए संतोष ने बरसों मेहनत की है, उन्हें अपने राज्य से जोड़े रखता है.

कर्नाटक में संतोष का इतना प्रभाव है, कि ख़ासकर येदियुरप्पा के जाने के बाद, बीजेपी विधायक और कार्यकर्त्ता पार्टी इकाई या सरकार के खिलाफ अपनी चिंताएं लेकर सीधे उन्हीं के पास जाते हैं.

अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ पब्लिक पॉलिसी एंड गवर्नेंस के फैकल्टी सदस्य ए नारायण का कहना था, ‘बीजेपी के लिए कर्नाटक में सत्ता का अब केवल एक ही केंद्र है. मुख्यमंत्री दिल्ली के ‘हाकिमों’ के ‘जागीदार’ हैं. कर्नाटक के मामले में आलाकमान मुख्य रूप से बीएल संतोष के ज़रिए ही काम करता है. बीएस येदियुरप्पा जैसे मज़बूत नेता और कर्नाटक की जटिलताओं को देखते हुए, शीर्ष बीजेपी नेताओं का मानना है कि सबसे अच्छा यही रहेगा, कि सूबे को किसी ऐसे व्यक्ति के हाथ में छोड़ दिया जाए, जो राज्य को अच्छे से जानता हो’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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