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Friday, 20 December, 2024
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मोदी 3.0 के सुचारू संचालन के लिए भाजपा कैसे कर रही है नीतीश कुमार तक अपनी पहुंच को बेहतर

जेपी नड्डा ने 2 महीने में तीन बार बिहार का दौरा किया है. दोनों पक्षों के पार्टी नेताओं का कहना है कि उच्च दांव को देखते हुए, जेडी(यू) से निपटने में भाजपा की रणनीति में महत्वपूर्ण बदलाव आया है.

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नई दिल्ली: भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जगत प्रकाश नड्डा दो महीने में तीन बार बिहार आए और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से कई बार मुलाकात की, आधिकारिक कार्यक्रमों में हिस्सा लिया और उनके घर गए. वजह? मोदी सरकार के तीसरे कार्यकाल की स्थिरता, जो आंशिक रूप से अप्रत्याशित सहयोगी नीतीश के हाथों में है.

कमज़ोरी और उच्च दांव को देखते हुए, दोनों पक्षों के पार्टी नेताओं का कहना है कि जनता दल (यूनाइटेड) प्रमुख से निपटने में भाजपा की रणनीति में महत्वपूर्ण बदलाव आया है और इस बार भाजपा का शीर्ष नेतृत्व सीधे उनसे बातचीत कर रहा है.

2024 के आम चुनावों में भाजपा 272 सीटों के बहुमत के आंकड़े से चूक गई, जिससे उसे सत्ता में वापस आने के लिए राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के सहयोगी जेडी(यू) की 12 सीटों और आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्रबाबू नायडू की तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) द्वारा जीती गई 16 सीटों पर निर्भर रहना पड़ा. नीतीश, जिनका पाला बदलने का इतिहास रहा है, लोकसभा चुनाव से कुछ महीने पहले ही एनडीए में वापस आ गए थे.

सितंबर में केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्री का पदभार संभालने के बाद भाजपा अध्यक्ष नड्डा ने बिहार का दो दिवसीय दौरा किया. यह नीतीश की तेजस्वी यादव से मुलाकात के दो दिन बाद हुआ — आठ महीने पहले उन्होंने यादव की राष्ट्रीय जनता दल (राजद) से गठबंधन तोड़कर भाजपा से हाथ मिला लिया था. इसने अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले रणनीति और गठबंधन में संभावित बदलावों के बारे में काफी अटकलें लगाईं.

उस समय, नड्डा नीतीश से उनके आवास पर मिलने गए और बाद में दोनों ने दो आधिकारिक कार्यक्रमों में भाग लिया. बिहार के सीएम ने नड्डा को आश्वासन दिया कि उन्होंने दो बार राजद के साथ गठबंधन करके गलती की है, लेकिन अब वे एनडीए के साथ रहेंगे, उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि भाजपा के साथ उनका जुड़ाव 1995 से है.

यह भाजपा द्वारा यूपीएससी में लैटरल एंट्री की अपनी योजना को वापस लेने और विवादास्पद वक्फ विधेयक को विपक्ष और जेडी(यू) सहित गठबंधन सहयोगियों की आपत्तियों के बीच संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) को भेजने की पृष्ठभूमि में हुआ.

नड्डा ने 29 सितंबर को पार्टी के सदस्यता अभियान की समीक्षा करने के लिए फिर से बिहार का दौरा किया, जहां उन्होंने विधायकों और पार्टी के वरिष्ठ सदस्यों से मुलाकात की. हालांकि, नीतीश से नहीं. गुरुवार को भाजपा अध्यक्ष ने बिहार का अपना तीसरा, अधिक राजनीतिक रूप से प्रतीकात्मक दौरा किया. वे गंगा के किनारे छठ पूजा के उत्सव की देखरेख करने के लिए कुमार के साथ शामिल हुए — राज्य का सबसे महत्वपूर्ण त्योहार.

नड्डा और नीतीश की एक साथ छठ मनाते हुए एक तस्वीर ने 2025 के विधानसभा चुनावों से पहले एनडीए की एकता का संदेश दिय. इसने विधानसभा चुनावों में पार्टी के हितों की रक्षा के लिए नीतीश को खुश रखने की भाजपा के शीर्ष नेतृत्व की इच्छा का भी संकेत दिया और साथ ही, ताकि केंद्र सरकार सुचारू रूप से चलती रहे.


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असहज संबंधों की झलक

भाजपा के राज्य नेताओं ने इस बात पर प्रकाश डाला कि कैसे नीतीश ने दिवंगत अरुण जेटली के साथ अच्छे संबंध साझा किए, जो पहले राज्य इकाई के प्रभारी थे, लेकिन भूपेंद्र यादव के साथ नहीं, जो 2014 में राज्य इकाई के प्रमुख थे और जिनके साथ नीतीश ने 2020 के विधानसभा चुनावों के बाद से संबंध ठीक नहीं रहे हैं.

भाजपा के एक वरिष्ठ राज्य नेता ने दिप्रिंट को बताया, “जब अरुण जेटली राज्य के प्रभारी थे, तब नीतीश को कोई खतरा या विश्वास की कमी महसूस नहीं हुई. जब जेटली प्रभारी नहीं थे, तब भी वे भाजपा में एक प्रभावशाली व्यक्ति थे और बिहार के बारे में निर्णय लेने में भूमिका निभाते थे. नीतीश और जेटली के बीच संबंध मधुर और विश्वास पर आधारित थे, तब भी जब 2014 में भूपेंद्र यादव को राज्य का प्रभारी बनाया गया था.”

इसका प्रमाण यह है कि जब नीतीश ने 2017 में राजद से पाला बदलने के बाद वापसी की, तो उन्होंने जेटली को मेल-मिलाप के लिए बुलाया.

वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, “लेकिन 2019 में जेटली के अचानक निधन के बाद भूपेंद्र यादव ने पहले बिहार में पार्टी के वरिष्ठ नेता को किनारे लगाया, यादव नेतृत्व (जैसे नित्यानंद राय) को आगे बढ़ाया और बाद में 2020 के विधानसभा चुनावों में नीतीश कुमार को छोटा करने के लिए चिराग पासवान का इस्तेमाल किया. विधानसभा चुनाव के बाद नीतीश इतने नाराज़ थे कि उन्होंने उसके बाद भूपेंद्र यादव से मिलने से इनकार कर दिया.”

2022 में यादव के राज्य प्रभारी होने के बावजूद भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को पार्टी के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को नीतीश से मिलने के लिए भेजना पड़ा, जब जद (यू) ने अग्निपथ योजना का विरोध किया और साथ ही, जब भाजपा को एहसास हुआ कि नीतीश पाला बदलने जा रहे हैं. दोनों मौकों पर, अपना मन बनाने के बावजूद, नीतीश ने मुद्दों पर चर्चा करने के लिए जेटली के शिष्य प्रधान का अपने आवास पर गर्मजोशी से स्वागत किया, क्योंकि बिहार के सीएम के साथ उनके अच्छे संबंध थे.

भाजपा नेता ने कहा, “यहां तक ​​कि जब अनंत कुमार 2015 के विधानसभा चुनावों के प्रभारी थे और प्रधान सह-प्रभारी थे, तब भी दोनों के बीच अच्छी केमिस्ट्री थी.”

नीतीश की शानदार वापसी

बिहार में जेडी(यू) की घटती लोकप्रियता और राज्य तथा पूरे भारत में भाजपा की मजबूत होती स्थिति के साथ, नीतीश लगभग हाशिए पर चले गए. दरअसल, 2023 में भाजपा के वरिष्ठ नेता और गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि नीतीश के लिए भाजपा के दरवाजे हमेशा के लिए बंद हो गए हैं. हालांकि, 2024 के लोकसभा चुनावों ने उन्हें शानदार वापसी करने का मौका दिया.

फिर भी, जबकि भाजपा ने जेडी(यू) की नई परिस्थिति के अनुसार पार्टी की रणनीति बदल दी है, नीतीश शाह और यादव द्वारा उनके साथ किए गए व्यवहार को नहीं भूले हैं.

जेडी(यू) के एक राज्य नेता ने दिप्रिंट से कहा, “वक्फ बिल पेश किए जाने के दौरान नीतीश ने सत्ता की बागडोर अपने पास रखी, जब केंद्रीय मंत्री ललन यादव (राजीव रंजन सिंह) ने मोदी सरकार की ज़रूरत से अधिक प्रशंसा की और बिल को जेपीसी को भेजने पर जोर नहीं दिया, जैसा कि टीडीपी ने कहा था.”

जेडी(यू) के कुछ नेताओं द्वारा बिल पर चिंता जताए जाने के कारण पार्टी के रुख को लेकर भ्रम की स्थिति पैदा हो गई. “विजय चौधरी से यह भ्रम दूर करने को कहा गया कि जेडी(यू) अल्पसंख्यक मुसलमानों के अधिकारों की रक्षा करेगा और जेडी(यू) के एक मंत्री (राज्य अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री ज़मा खान) से कहा गया कि वे वक्फ की ज़मीन पर मुसलमानों के लिए एक योजना की घोषणा करें.”

इसके अलावा, जेडी(यू) नेता ने कहा, “हाल ही में जब बीजेपी सांसद गिरिराज सिंह ने मुस्लिम बहुल जिलों में अपनी यात्रा के दौरान हिंदुत्व ध्रुवीकरण को बढ़ावा दिया, तो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एनडीए की बैठक के दौरान स्पष्ट रूप से जोर दिया कि सांप्रदायिक सद्भाव पर कोई समझौता नहीं किया जाएगा, चाहे मुस्लिम वोटों के लिए हो या गठबंधन के लिए.”

अक्टूबर में जेडी(यू) ने गिरिराज सिंह के पांच जिलों में चार दिवसीय ‘हिंदू स्वाभिमान यात्रा’ के प्रस्ताव की आलोचना करते हुए कहा कि यह 2025 के विधानसभा चुनावों से पहले बिहार में दंगे भड़काने की कोशिश है.

नेता ने कहा, “यहां तक ​​कि ललन यादव ने भी गिरिराज सिंह पर कटाक्ष करते हुए कहा कि गिरिराज जी की अपनी यूएसपी है, लेकिन एनडीए को सांप्रदायिक सद्भाव से समझौता नहीं करना चाहिए. गिरिराज ने उस बैठक में इस कटाक्ष को नज़रअंदाज़ कर दिया. नीतीश राज्य के सबसे वरिष्ठ राजनेता हैं और भाजपा ने महसूस किया है कि वरिष्ठ लोगों को मुख्यमंत्री के संपर्क में रहना चाहिए. नड्डा बिहार को भाजपा के कई लोगों से बेहतर जानते हैं. यह गठबंधन के लिए अच्छा है कि वे राज्य में रिश्तों को बेहतर बनाने का प्रयास कर रहे हैं.”

गठबंधन तालमेल के लिए महत्वपूर्ण

भाजपा के संपर्क के बीच, नीतीश ने 2020 के विधानसभा चुनावों के बाद पहली बार राज्य में एनडीए नेताओं की एक बैठक की, ताकि एकता को प्रदर्शित किया जा सके और गठबंधन की रणनीति तैयार की जा सके.

जद(यू) के प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने राज्य में गठबंधन सहयोगियों के बीच बेहतर समन्वय बनाने के भाजपा के प्रयासों का स्वागत किया. उन्होंने कहा, “यह अच्छी बात है कि भाजपा का शीर्ष नेतृत्व गठबंधन में सुचारू तालमेल के लिए बिहार का दौरा कर रहा है.”

उन्होंने कहा, “जे.पी. नड्डा का जन्म बिहार में हुआ था और उन्होंने यहीं पढ़ाई की है, इसलिए उनका राज्य से पुराना नाता है. वे बिहार की राजनीति से अच्छी तरह वाकिफ हैं और चूंकि अगला विधानसभा चुनाव है, इसलिए एनडीए में अच्छी केमिस्ट्री होनी चाहिए.”

भाजपा के एक वरिष्ठ केंद्रीय नेता ने कहा, “चूंकि, स्थिति बदल गई है और भाजपा को नीतीश कुमार की अधिक ज़रूरत है, इसलिए उनसे सीधे बात करना ज़रूरी है. नीतीश की वरिष्ठता को ध्यान में रखते हुए, वरिष्ठ स्तर पर किसी को समय-समय पर उनसे बात करते रहना चाहिए क्योंकि कभी-कभी राज्य प्रभारियों का कद कम होता है या बात समझ में नहीं आती.”

बिहार भाजपा के प्रवक्ता प्रेम रंजन पटेल ने कहा, “बिहार में नड्डा की पिछली साख उन्हें नीतीश के साथ सहज संबंध बनाए रखने के लिए अधिक गुंजाइश देती है. अगले साल विधानसभा चुनाव है और नड्डा जी के बिहार कनेक्शन को जानते हुए, वे गठबंधन सहयोगी के साथ बैठक कर रहे हैं और गठबंधन में अधिक तालमेल और सुचारू समन्वय के लिए राज्य में अधिक समय बिता रहे हैं.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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