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Monday, 6 May, 2024
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कैसे पार्टी में संकट के बीच BJP-JD(S) गठबंधन ने कुमारस्वामी के लिए सत्ता संभालने का रास्ता बनाया है

ऐसा दिखने के बावजूद कि उन्हें केवल पार्टी की बागडोर सौंपी जा रही है, एचडी कुमारस्वामी ने चतुराई से जद (एस) की कमान संभाल ली है, यहां तक कि अपने भाई को भी उन्होंने उनकी राह दिखा दी है.

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बेंगलुरु: 17 अक्टूबर को सी.एम. इब्राहिम जो उन दिनों जनता दल (सेक्युलर) के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष थे ने कहा कि पूर्व प्रधानमंत्री एच.डी. देवेगौड़ा अब “स्वतंत्र रूप से” निर्णय नहीं ले रहे हैं.

इब्राहिम ने दिप्रिंट को बताया, ”देवेगौड़ा दबाव में हैं.”

उन्होंने कहा, “वह अपने निर्णय खुद से नहीं ले रहे हैं. पहले वह स्वतंत्र थे लेकिन अब वह निर्भर हैं. (एच.डी.) कुमारस्वामी सभी निर्णय ले रहे हैं.” इस बयान के ठीक एक दिन बाद, गौड़ा ने पार्टी की राज्य इकाई को भंग कर दिया और अपने बेटे कुमारस्वामी को जद (एस) का ‘विशेष अध्यक्ष’ नामित किया. वहीं इस सारे घटनाक्रम के एक दिन बाद, 19 अक्टूबर को, इब्राहिम को राज्य अध्यक्ष के पद से “हटा दिया” गया.

कुमारस्वामी लगातार परिवार के नेतृत्व वाली जद (एस) पर अपना नियंत्रण मजबूत कर रहे हैं, कभी-कभी अपने भाई एच.डी. रवन्ना पर भी अपनी राह चुनने को लेकर दबाव भी डाल रहे हैं. राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि कुमारस्वामी ने चतुराई से पार्टी की कमान संभाली है, जबकि ऐसा लग रहा है कि उन्हें केवल संकट से निपटने के लिए कमान सौंपी जा रही है.

अब इसमें कुछ भी छुपा नहीं है कि रेवन्ना और कुमारस्वामी के परिवारों के बीच संबंध हाल के दिनों में खराब हुए हैं. हालांकि पार्टी में तीसरी पीढ़ी तक भी पहुंच गई है, एक तरफ रेवन्ना के बेटे जद (एस) सांसद प्रज्वल और एमएलसी सूरज और दूसरी तरफ कुमारस्वामी के बेटे निखिल हैं.

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कुमारस्वामी भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के साथ भी बातचीत की अगुवाई कर रहे हैं, जिसे पार्टी के भीतर से विरोध का सामना करना पड़ा है. यही नहीं गौड़ा, अब अधिकांश चर्चाओं से बाहर रहे हैं.

बेंगलुरु स्थित राजनीतिक विश्लेषक और नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ एडवांस्ड स्टडीज (एनआईएएस) फेकल्टी के सदस्य नरेंद्र पाणि कहते हैं, “अगर पार्टी भाजपा के साथ जा रही है, तो इसे कुमारस्वामी के प्रयास के रूप में देखा जाना चाहिए. फिर अगर पार्टी (चुनाव के बाद) भाजपा से दूर जाने का फैसला करती है, तो वह विकल्प भी खुला है.”

जद (एस) के भीतर, कुमारस्वामी को भाजपा समर्थक के रूप में चित्रित किया जाता है जबकि अन्य लोग उनका अनुसरण करते हैं. विश्लेषकों का कहना है कि इस रणनीति से पार्टी को भाजपा से अलग होने की स्थिति में अपनी ‘धर्मनिरपेक्ष’ साख बचाने का मौका मिलेगा.

इस बीच, कुमारस्वामी ने क्षेत्रीय दल पर अपनी पकड़ मजबूत करना जारी रखा है, जो भाजपा के साथ 2006 के गठबंधन को दोहराने की उम्मीद करता है. हालांकि, परिस्थितियां फिलहाल बदल गई हैं.

जद (एस) और भाजपा के पास सरकार बनाने के लिए पर्याप्त संख्या नहीं है और 2006 के विपरीत, भाजपा में निर्णय अब ज्यादातर दिल्ली में पार्टी के आलाकमान द्वारा लिए जाते हैं, न कि राज्य के नेताओं द्वारा.


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‘पार्टी अध्यक्ष के लिए कुमारस्वामी थे पहली पसंद’

घटनाक्रम से वाकिफ लोगों का कहना है कि यह तीसरी बार है जब कुमारस्वामी को प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया है, हालांकि वह पिछले कुछ समय से पार्टी की ओर से ज्यादातर फैसले ले रहे हैं.

कम से कम दो पूर्व राज्य अध्यक्षों – ए.एच. विश्वनाथ और इब्राहिम – की मुख्य शिकायत यह थी कि उनके पास निर्णय लेने की कोई शक्ति नहीं थी, केवल पदवी थी.

जद(एस) के वरिष्ठ नेता, विधायक और पार्टी के उप नेता बंदेप्पा काशेमपुर ने दिप्रिंट को बताया, “यह तीसरी बार है जब हम उन्हें (कुमारस्वामी) राज्य अध्यक्ष बना रहे हैं. पहले प्रदेश अध्यक्ष के रूप में अपने दो कार्यकालों के दौरान, कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने थे.”

घटनाक्रम से वाकिफ लोगों का कहना है कि इब्राहिम के कांग्रेस छोड़कर जद (एस) में शामिल होने के बाद से उन्हें इसी शर्त पर राज्य अध्यक्ष बनाया गया था, लेकिन यह हमेशा कुमारस्वामी की ही सीट थी.

काशेमपुर ने कहा, “हमने इब्राहिम को अध्यक्ष बनाया क्योंकि वह हाल ही में आए थे, अन्यथा हमने कुमारस्वामी को अध्यक्ष बनाने के लिए (चुनाव के बाद) चर्चा की थी.”

कुमारस्वामी ने पार्टी नेतृत्व में एक बड़ी भूमिका निभायी है क्योंकि उम्रदराज़ गौड़ा का प्रभाव कम हो रहा है, जिससे वह संरक्षक की भूमिका में आ गये हैं. उदाहरण के लिए, इस साल विधानसभा चुनावों के दौरान, गौड़ा कुमारस्वामी को रेवन्ना की पत्नी भवानी को हसन शहर से मैदान में उतारने के लिए मनाने में असमर्थ रहे, जबकि उन्होंने सार्वजनिक रूप से अपनी उम्मीदवारी की घोषणा की थी.

विश्लेषकों का कहना है कि जद (एस) गैलरी के दोनों ओर खेल रहा है. अपने पिता की तरह, कुमारस्वामी के भी हर स्तर पर रिश्ते रहे हैं. हालांकि वह अभी तक अपने दम पर स्थानीय गठबंधन बनाने में सक्षम नहीं हैं, लेकिन यह महत्वपूर्ण है कि भाजपा के साथ गठबंधन कुमारस्वामी के नेतृत्व में होता दिख रहा है.

2006 में कुमारस्वामी ने पार्टी और राष्ट्रीय अध्यक्ष गौड़ा के खिलाफ जाकर सरकार बनाने के लिए बीजेपी से हाथ मिला लिया. लेकिन कुमारस्वामी को अपने कार्यों के लिए कोई परिणाम नहीं भुगतना पड़ा और उन्हें पार्टी में लौटने और यहां तक कि 2008 के चुनावों से पहले इसका नेतृत्व करने की अनुमति दी गई.

पाणि ने कहा, जद (एस) ने केरल, तमिलनाडु और महाराष्ट्र की राज्य इकाइयों के खिलाफ भी कोई कार्रवाई नहीं की है जो गठबंधन को स्वीकार करने से इनकार कर रहे हैं. दरअसल, केरल इकाई ने देवेगौड़ा से मुलाकात की और उन्हें बताया कि राज्य इकाई स्वतंत्र रूप से चलती रहेगी.

पार्टी के केरल प्रदेश अध्यक्ष मैथ्यू टी. थॉमस ने कहा, “हमने उन्हें सूचित किया कि हम रिश्ता खत्म कर रहे हैं और हम स्वतंत्र रहेंगे और फिर हम वापस आ गए. हमने यहां एक समिति की बैठक की और स्वतंत्र रूप से खड़े होने का फैसला किया. हर कोई इससे सहमत था .”

गुरमितकल से शरणगौड़ा पाटिल कंदाकुर और देवदुर्गा से करीमा नायक जैसे विधायकों के साथ-साथ कई जिला स्तर के नेताओं ने भी भाजपा के साथ गठबंधन का विरोध किया है.

काशेमपुर ने यह कहकर समस्याओं को कम कर दिया था कि केवल ‘एक या दो विधायकों’ ने गठबंधन का विरोध किया था. दिप्रिंट ने बताया था कि इसके मुस्लिम समर्थन आधार के एक महत्वपूर्ण हिस्से ने भी गठबंधन का विरोध किया है.

एक जद (एस) नेता ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया, “केवल कुमारस्वामी ही इस संकट से निपटने में हमारी मदद कर सकते हैं. अगर कुमारस्वामी सीएम बनते तो इब्राहिम की मंत्री बनने की बड़ी योजना थी, लेकिन कांग्रेस को अपने दम पर बहुमत मिल गया. ”

इब्राहिम ने यह भी कहा है कि उन्होंने भाजपा के साथ किसी भी गठबंधन पर हस्ताक्षर नहीं किया है और इस बात से इनकार किया है कि वह किसी भी चर्चा का हिस्सा थे.

इब्राहिम ने गुरुवार को बेंगलुरु में संवाददाताओं से कहा, “वे झूठ बोलते हैं. कृपया दिखाएं कि यह प्रस्ताव कहां पारित किया गया था. उन्हें (गौड़ा) 92 साल की उम्र में अपने बेटे के लिए झूठ क्यों बोलना चाहिए? वे प्रज्वल रेवन्ना को दिल्ली नहीं ले गए जो जद (एस) के एकमात्र सांसद हैं. इसके बजाय, वे निखिल (कुमारस्वामी के बेटे) को दिल्ली ले गए. पार्टी में उनका (निखिल का) पद क्या है?”

उन्होंने कहा कि वह पार्टी के नियमों का उल्लंघन करने और उन्हें प्रदेश अध्यक्ष पद से हटाने के लिए अदालत के साथ-साथ चुनाव आयोग (ईसी) का दरवाजा भी खटखटाएंगे.

एक परिवार बंट गया

कुमारस्वामी का पार्टी पर अपनी पकड़ मजबूत करना भी गौड़ा परिवार के भीतर विभाजन को बढ़ावा दे रहा है. एच.डी. रेवन्ना 19 अक्टूबर की बैठक में शामिल नहीं हुए, लेकिन पार्टी अधिकारियों ने बताया कि इस बैठक में उनके बेटे और कर्नाटक से जद (एस) के एकमात्र सांसद प्रज्वल मौजूद थे.

अभिनेता और पार्टी के पूर्व युवा अध्यक्ष निखिल ने 2019 का लोकसभा और 2023 का विधानसभा चुनाव लड़ा था लेकिन असफल रहे थे.

कुमारस्वामी की पत्नी अनिथ ने 2023 के चुनाव में बेटे निखिल के लिए अपनी रामानगर विधानसभा सीट छोड़ दी थी. इस बीच, भवानी को हासन से सीट देने से इनकार कर दिया गया और कुमारस्वामी ने उनके बजाय एच.पी. स्वरूप को उनकी जगह सीट से उतारा.

जबकि परिवार में कलह जारी है और रास्ते में कई नेताओं को खोना पड़ रहा है, 10 मई के चुनावों के आंकड़े पार्टी के लिए कहीं अधिक चिंताजनक स्थिति दिखा रहे हैं.

जद (एस) का वोट शेयर लगभग 18 प्रतिशत से घटकर लगभग 13 प्रतिशत रह गया और पार्टी पुराने मैसूर क्षेत्र में महत्वपूर्ण सीटें हार गई है. जबकि 2023 के चुनावों में जद (एस) के 139 उम्मीदवारों की जमानत जब्त हो गई.
2023 में होलेनारसिपुरा से रेवन्ना की जीत का अंतर 2018 में 43,832 से घटकर मई में 3,152 हो गया.

2018 में, कुमारस्वामी ने अपनी पत्नी अनीता के लिए बाद की सीट छोड़ने से पहले दो सीटों – चन्नापटना और रामानगर से चुनाव लड़ा था.

चन्नापटना में, कुमारस्वामी ने 2018 में 21,530 के अंतर से जीत हासिल की थी. लेकिन 2023 में यह बढ़त घटकर 15,915 रह गई. 2023 के विधानसभा चुनावों में, निखिल रामानगर में सिर्फ 76,439 वोट हासिल करने में सफल रहे, भले ही उनकी मां ने इस निर्वाचन क्षेत्र से नवंबर 2018 के उपचुनावों में 1.07 लाख से अधिक वोटों से जीत हासिल की थी.

रेवन्ना और उनके बेटों पर 2019 के लोकसभा चुनाव में पूर्व भाजपा उम्मीदवार ए. मंजू द्वारा दायर एक मामले में चुनावी धोखाधड़ी और आय को छिपाने का आरोप है. मंजू तब से जद (एस) में शामिल हो गई हैं और हासन जिले के अरकलगुड से विधायक हैं.

इस बीच, ऐसा भी नहीं है कि बीजेपी के सभी विधायकों या नेताओं ने इस गठबंधन को स्वीकार कर लिया है. प्रीतम गौड़ा, एस.टी. सोमशेखर और यहां तक कि पूर्व मुख्यमंत्री डी.वी. सदानंद गौड़ा ने इस साझेदारी पर चिंता जताई है.

दिप्रिंट के साथ एक विशेष बातचीत में, सदानंद गौड़ा ने चिंता जताई थी कि जद (एस) के साथ गठबंधन राज्य के नेताओं से परामर्श किए बिना लिया गया था और पुराने मैसूरु जिलों में भाजपा के जमीनी स्तर द्वारा की गई कड़ी मेहनत को कमजोर कर सकता है.

(संपादन: पूजा मेहरोत्रा)

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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