scorecardresearch
Friday, 1 November, 2024
होमराजनीतिBJP ने कैसे KCR को बदलने पर ‘मजबूर’ किया—MIA की जगह ग्रामीणों के साथ लंच, निर्वाचन क्षेत्र के दौरे कर रहे

BJP ने कैसे KCR को बदलने पर ‘मजबूर’ किया—MIA की जगह ग्रामीणों के साथ लंच, निर्वाचन क्षेत्र के दौरे कर रहे

सत्ता संभालने के बाद से ही अपनी नेतृत्व शैली को लेकर केसीआर की आलोचना होती रही है. आरोप यह कि वह अपने भव्य कार्यालय-सह-आवास प्रगति भवन की चारदीवारी के भीतर से शासन तंत्र चलाते हैं या फिर एरावल्ली स्थित अपने फार्महाउस से.

Text Size:

हैदराबाद: तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव के सार्वजनिक व्यवहार में काफी बदलाव नजर आ रहा है. ‘मिसिंग इन एक्शन’ की जगह अब विभिन्न स्तर पर उनकी भागीदारी से लगता है कि पिछले कुछ महीनों में मुख्यमंत्री के लिए बहुत कुछ बदल चुका है.

सार्वजनिक तौर पर दिखाई नहीं देने के कारण कड़ी आलोचनाओं का सामना करते रहे केसीआर अब आम लोगों के साथ दोपहर का भोजन करते भी नजर आ जाते हैं.

अपने ही मंत्रियों के लिए उपलब्ध न होने के आरोपों ने भी उन्हें खासा परेशान किया है. उन्होंने 2014 में मुख्यमंत्री के तौर पर पदभार संभालने के बाद पहली बार गत जून में एक ‘सर्वदलीय’ बैठक बुलाई थी.

केसीआर सामाजिक विकास योजनाओं का शुभारंभ भी सार्वजनिक तौर पर कर रहे हैं, निर्वाचन क्षेत्रों का दौरा करते हैं, और विभिन्न सार्वजनिक कार्यक्रमों में सामान्य तौर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की कोशिश करते नजर आ रहे हैं.

विश्लेषकों के मुताबिक, लगातार बढ़ते असंतोष और अब नजर आने लगी विपक्ष की मौजूदगी को लेकर चिंता के बीच 2023 के राज्य विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखकर ही उनकी यह सारी ‘कवायद’ चल रही और यह जल्द खत्म नहीं होने वाली है.


यह भी पढे़ं: कैसे सिर्फ 7 सालों के अंदर आंध्र प्रदेश में कांग्रेस एकदम अप्रासंगिक हो गई?


कैसे छवि सुधारने की कोशिश में जुटे केसीआर

विभाजन के बाद राज्य बने तेलंगाना में सत्ता संभालने के बाद से ही अपनी नेतृत्व शैली को लेकर केसीआर की आलोचना होती रही है, उन पर आरोप लगते रहे हैं कि वह तो हैदराबाद के मध्य में स्थित अपने भव्य कार्यालय-सह-आवास प्रगति भवन की चारदीवारी के भीतर से शासन तंत्र चलाते हैं या फिर सिद्दीपेट जिले में एरावल्ली स्थित अपने फार्महाउस से, जो शहर से लगभग 2 घंटे की दूरी पर है.

लेकिन यह तो विपक्षी दलों—खासकर भाजपा—की पैठ बढ़ने का नतीजा था जिसने केसीआर की तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) को पिछले साल एक उपचुनाव में हार का स्वाद चखाया. ऐसा लगता है कि इसने ही मुख्यमंत्री को अंततः व्यवहार में बदलाव की जरूरत समझाई.

कांग्रेस और भाजपा दोनों दलों की तरफ से पिछले साल नियुक्त किए गए प्रदेश प्रमुखों को काफी मुखर, आक्रामक तेवरों वाले और मुख्यमंत्री का कट्टर आलोचक माना जाता है, इसी बात ने मुख्यमंत्री को इस दिशा में ध्यान देने पर बाध्य किया है.

इसी सबसे निपटने की कोशिशों में केसीआर ने सार्वजनिक तौर पर अपनी उपस्थिति दर्ज कराना शुरू कर दिया है.

जून में मुख्यमंत्री ने गांवों और कस्बों में विकास कार्यों का जायजा लेने के लिए राज्य के कुछ जिलों में ‘औचक’ दौरा किया. अपने दौरे के तहत वह कम से कम चार जिलों में पहुंचे. उनमें से एक वारंगल भी था, जहां उन्होंने 30 मंजिला मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल की आधारशिला रखी.

उसी माह वह अपने गोद लिए गांव वासलमारी में एक कम्युनिटी लंच में शामिल हुए और लगभग 2,600 लोगों के साथ दोपहर का भोजन किया. लंच के बाद उन्हें अलग-अलग मेज पर जाकर कुछ ग्रामीणों के साथ बातचीत करते भी देखा गया.

महीने के अंत में उन्हें फिर से एक सार्वजनिक कार्यक्रम में देखा गया जब उन्होंने शहर में दिवंगत प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिम्हा राव की 26 फुट ऊंची कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया.

प्रतिमा का अनावरण सालभर चले राव के जन्म शताब्दी समारोह के समापन के तौर पर किया गया था, जिसे तेलंगाना सरकार ने मुख्यमंत्री के आदेश पर आधिकारिक तौर पर 2020 में शुरू किया था.

जुलाई के शुरू में केसीआर ने एक आवास योजना के तहत 400 नव-निर्मित डबल बेडरूम घरों का उद्घाटन करने के लिए सिरसिला विधानसभा क्षेत्र का दौरा किया, जहां से उनके बेटे और आईटी मंत्री के.टी. रामा राव विधायक हैं. यह योजना 2014 में राज्य के लोगों से किए गए उनके वादों में शामिल रही थी.

यह सब मई में राज्य के तत्कालीन कोविड स्पेशल गांधी अस्पताल का दौरा किए जाने के बाद हुआ था, जो महामारी शुरू होने के बाद और उनके स्वास्थ्य मंत्रालय संभालने से उनकी पहली सार्वजनिक यात्रा थी.

हैदराबाद जब अक्टूबर 2020 में विनाशकारी बाढ़ का सामना कर रहा था, तो मुख्यमंत्री को सार्वजनिक तौर पर नजर न आने और अपने आवास के अंदर से ही स्थिति पर नजर रखने के लिए खासी आलोचना का सामना करना पड़ा था. बेहद कम टेस्ट कराए जाने से लेकर बुनियादी ढांचे की कमी तक—महामारी से निपटने के लापरवाह तरीके को लेकर भी राज्य सरकार की आलोचना की गई थी.

यही नहीं जब पड़ोसी राज्यों आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक में मुख्यमंत्री टीकाकरण अभियान शुरू करने का हिस्सा बन रहे थे, तब केसीआर ने ऐसा कुछ नहीं किया.

उनकी नई कल्याणकारी योजना ‘दलित बंधु’ इसी महीने उसी वासलमारी गांव में शुरू की गई थी. योजना के तहत पात्र अनुसूचित जाति (एससी) परिवारों को आर्थिक रूप से सशक्त बनाने के लिए 10 लाख रुपये की नकद सहायता मिलेगी.

व्यापक स्तर पर आलोचनाओं के घेरे में आई यह योजना—जिसके बारे में विपक्ष ने आरोप लगाया कि मुख्यमंत्री वोट के लिए एक समुदाय विशेष को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं—पहले हुजूराबाद में लागू करने की योजना थी, जहां उपचुनाव होना है.

राज्य में दलित मतदाताओं की हिस्सेदारी 17 प्रतिशत है और यह योजना संभवत: इस तरह की सबसे बड़ी योजना है.

केसीआर ने मंगलवार को पार्टी की एक आंतरिक बैठक के दौरान पूरा ध्यान सितंबर में पार्टी के पूरी तरह से पुनर्गठन पर केंद्रित किया, जिसमें गांव से लेकर राज्य स्तर तक पुनर्गठन, पार्टी की युवा, महिला, छात्र विंग का गठन और लगभग चार साल के अंतराल के बाद पार्टी के जिला अध्यक्षों की नियुक्ति किया जाना शामिल है.


यह भी पढ़ें: तेलंगाना की राजनीति T20 की तरह है, इसलिए कांग्रेस ने मेरे जैसे हार्ड-हिटर को चुना: रेवंत रेड्डी


‘अपने ही सामान्य व्यवहार के विपरीत काम कर रहे’

वरिष्ठ राजनीतिक पर्यवेक्षक भंडारू श्रीनिवास राव का कहना है कि केसीआर के बाहर नजर आने के पीछे एक कारण है.

उन्होंने कहा, ‘अगर केसीआर ने बाहर कदम रखा है तो सीधा मतलब है कि इसके पीछे कोई कारण है और इस बार यह 2023 का चुनाव है. वह खुद अपने लिए लक्ष्य तय करते हैं—चाहे वह तेलंगाना आंदोलन हो या चुनाव और वह इसे हासिल करने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘वह स्थितियों से समझौता करने और अपने ही सामान्य स्वभाव के विपरीत व्यवहार करने के लिए तैयार होंगे. 2018 में भी उन्होंने कुछ ऐसा ही किया था और फिर राज्य के चुनावों में आगे बढ़े.

हुजूराबाद में होने वाला महत्वपूर्ण उपचुनाव अपदस्थ मंत्री एटाला राजेंद्र का निर्वाचन क्षेत्र में है.

कभी केसीआर के करीबी रहे राजेंद्र को भूमि अतिक्रमण के आरोपों के बाद उनके मंत्रालय से हटा दिया गया था, लेकिन अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि दोनों के बीच नेतृत्व के मुद्दों को लेकर टकराव था. टीआरएस से बाहर होने के बाद राजेंद्र ने आरोप भी लगाया था कि केसीआर के मंत्रिमंडल में मंत्री होना ‘गुलाम’ होने से भी बदतर है.

यह अपदस्थ नेता तब भाजपा का दामन थाम चुके हैं और अब सत्ताधारी पार्टी के खिलाफ चुनाव लड़ रहे हैं.

भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष बंदी संजय के साथ राजेंद्र भी एक पिछड़े वर्ग के नेता हैं. सांसद अरविंद धर्मपुरी भाजपा में समुदाय का एक और मजबूत चेहरा हैं. इससे यह आशंका पैदा हो गई है कि राज्य में करीब 23 फीसदी हिस्सेदारी वाला यह वोट बैंक बंट सकता है.

केसीआर को नहीं थी हार की उम्मीद, अपना ‘आकर्षण’ घटने से चिंतित

केसीआर के लिए पहला झटका पिछले साल दुब्बाका उपचुनाव में टीआरएस की हार थी, जहां भाजपा ने जीत हासिल की थी. अगला झटका लगा दिसंबर 2020 में हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में, जहां उनकी पार्टी बहुमत के आंकड़े से पीछे रह गई और भाजपा ने 2018 के अपने प्रदर्शन की तुलना में 10 गुना ज्यादा सफलता हासिल कीं.

भाजपा ने 150 में से 48 वार्डों में जीत हासिल की, वहीं टीआरएस को 55 पर सफलता मिली. कांग्रेस ने दो वार्ड जीते जबकि एआईएमआईएम ने 44 पर जीत हासिल की.

मुख्यमंत्री के कट्टर आलोचक माने जाने वाले बंदी संजय ने जबसे पदभार संभाला है, उन्होंने केसीआर के खिलाफ सत्ता-विरोधी भावनाएं भड़काने में भाजपा की काफी मदद की है.

कांग्रेस के नवनियुक्त प्रदेश अध्यक्ष रेवंत रेड्डी एक ऐसे सांसद हैं जो केसीआर सरकार की और भी अधिक आलोचना करते हैं और उन्हें युवाओं के बीच काफी लोकप्रिय माना जाता है.

उन्होंने बढ़ती बेरोजगारी की स्थिति को एक प्रमुख मुद्दे के तौर पर उठाया है, जिससे निपटना तेलंगाना आंदोलन के समय किए गए मुख्यमंत्री के वादों में से एक रहा है.

भाजपा नेता एन. रामचंदर राव ने कहा, ‘वह (केसीआर) समझ गए कि जमीनी स्तर पर उनकी लोकप्रियता अब पहले जैसी नहीं रह गई है और उन्होंने महसूस किया है कि ऐसी आवाजें हैं जो उनके खिलाफ खड़ी हो सकती हैं और लोगों को आकृष्ट कर सकती हैं. इसलिए, उन्होंने अभिनय करना शुरू कर दिया है.’

उन्होंने कहा, ‘अगला हालिया उपचुनाव नागार्जुन सागर (अप्रैल में) है जिसके लिए उन्होंने सार्वजनिक सभाएं भी कीं—क्या ऐसा करना उनके लिए असामान्य नहीं है?’

विश्लेषक श्रीनिवास राव के मुताबिक, केसीआर, जिनकी पार्टी जीत की आदी रही है खासकर 2018 के विधानसभा चुनावों में प्रचंड बहुमत के बाद, को दुब्बाका उपचुनाव में हार की उम्मीद नहीं थी.

राव ने कहा, ‘भाजपा और कांग्रेस दोनों ही उनकी आलोचना कर रहे हैं और उनके खिलाफ सत्ता-विरोधी लहर को रोज ही उजागर कर रहे हैं. इन दलों ने ऐसा नैरेटिव बनाया है कि तेलंगाना में ऐसी पार्टियां हैं जो अब उनका मुकाबला कर सकती हैं और इसे ही और ज्यादा बढ़ने से रोकने के लिए उन्होंने सार्वजनिक तौर पर नजर आना शुरू किया है. उन्होंने महसूस किया कि वह इसे नजरअंदाज नहीं कर सकते.’

कांग्रेस नेता दासोजू श्रवण ने कहा, ‘उन्होंने लोगों को अपनी योजनाओं के जरिये जोड़ रखा है और अब लोगों को भी एहसास हो रहा है कि वह अपने वादों पर खरे नहीं उतर पाए हैं. वह अपने जनाधार को लेकर आशंकित हैं और भरोसा बहाल करने की कोशिश करना चाहते हैं.’

उन्होंने कहा, ‘उनका ध्यान समग्र सामाजिक-आर्थिक विकास पर नहीं, बल्कि चुनाव से पहले ऐसी योजनाओं के सहारे मतदाताओं को लुभाने पर केंद्रित है.’

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


यह भी पढ़ें: ABVP के पूर्व नेता रेवंत रेड्डी कैसे पार्टी में शामिल होने के चार साल के भीतर ही तेलंगाना कांग्रेस के अध्यक्ष बने


 

share & View comments