पटना: बिहार में जनता दल (यूनाइटेड) और राष्ट्रीय जनता दल की सरकार के सत्ता संभालने के एक हफ्ते के भीतर ही मंगलवार को विभागों के बंटवारे को अंतिम रूप दे दिया गया.
यद्यपि राजद को अधिक विभाग मिले हैं, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने गृह, सतर्कता और कार्मिक जैसे प्रमुख विभाग अपने पास बरकरार रखे हैं—जो कानून-व्यवस्था और प्रशासनिक जिम्मेदारियों को संभालते हैं. मंगलवार को कुल 31 मंत्रियों को कैबिनेट में शामिल किया गया, इनमें राजद से 16, जदयू से 11, कांग्रेस के दो, पूर्व सीएम जीतन राम मांझी के हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (एचएएम) से एक और एक निर्दलीय हैं.
डिप्टी सीएम तेजस्वी यादव को जहां स्वास्थ्य, सड़क निर्माण, शहरी विकास और आवास, और ग्रामीण कार्यों जैसे महत्वपूर्ण विभागों का प्रभारी बनाया गया था, वहीं अन्य राजद नेताओं को पर्यटन, उद्योग, सहकारी और सार्वजनिक स्वास्थ्य इंजीनियरिंग जैसे अपेक्षाकृत कम अहम विभाग सौंपे गए हैं.
पहले जदयू के पास रहे शिक्षा विभाग की जिम्मेदारी एक अपवाद स्वरूप मधेपुरा के राजद विधायक चंद्रशेखर को मिली है.
राजद संरक्षक लालू प्रसाद के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री बनाया गया है, यह एक ऐसा विभाग है जो बिहार में काफी सीमित दायरे वाला है क्योंकि 2000 में झारखंड से अलग होने के बाद केवल राज्य में केवल 6 प्रतिशत वन क्षेत्र बचा था.
2015 और 2017 के बीच जदयू-राजद सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे तेज प्रताप ने महागठबंधन के लिए काफी मुश्किलें खड़ी कर दी थीं.
जदयू की बात करें तो सीएम नीतीश कुमार के करीबी सहयोगी संजय झा के जल संसाधन विभाग को बरकरार रखा गया है, जो बाढ़ संभावित बिहार में एक महत्वपूर्ण मंत्रालय है. नालंदा से जदयू विधायक श्रवण कुमार को काफी महत्वपूर्ण माने जाने वाला ग्रामीण विकास विभाग और एमएलसी अशोक चौधरी को भवन निर्माण विभाग सौंपा गया है. सुपौल के विधायक बिजेंद्र यादव के पास बिजली विभाग बरकरार रहा है.
वित्त, एक अन्य प्रमुख विभाग जो पहले भाजपा के पूर्व डिप्टी सीएम तारकिशोर प्रसाद के पास था, को सरायरंजन से जदयू के विधायक विजय चौधरी को दिया गया है, साथ ही कॉमर्शियल टैक्स का प्रभार भी उन्हीं के पास है.
‘सामाजिक न्याय’ पर जोर
नए कैबिनेट में सभी समुदायों के प्रतिनिधित्व के मामले में सीएम नीतीश कुमार की छाप स्पष्ट तौर पर दिखाई दे रही है. मुस्लिम और यादव समुदायों—जिन्हें राजद का मुख्य वोटबैंक माना जाता है—के नेताओं को क्रमशः पांच और आठ विभाग मिले हैं.
कैबिनेट में तीन कुशवाहा, छह दलित और ईबीसी (अति पिछड़ा वर्ग) का प्रतिनिधित्व करने वाले तीन मंत्री भी हैं.
छह मंत्रालय उच्च जातियों के प्रतिनिधियों के कोटे में आए हैं, लेकिन कैबिनेट में उन समुदायों का वर्चस्व है जो परंपरागत रूप से राजद और जदयू को वोट देते हैं, जिसे ‘सामाजिक न्याय’ का संदेश देने के इन दलों के प्रयास के तौर पर देखा जा रहा है.
यहां तक कि कांग्रेस, जिसे केवल दो कैबिनेट सीटें मिलीं, इसने भी एक दलित और एक मुस्लिम को मंत्री बनाने का फैसला किया.
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जदयू की तरफ से कोई नया चेहरा नहीं
इस बार विभागों का आवंटन 2015 की तुलना में सीएम नीतीश कुमार की कमजोर स्थिति को दर्शाता है, जब राजद और जदयू ने पहले बिहार में गठबंधन सरकार बनाने के लिए हाथ मिलाया था.
2015 में चुनाव पूर्व गठबंधन के तहत राजद को 80 सीटें और जदयू को 71 सीटें मिलने के बाद बनी महागठबंधन सरकार में दोनों पार्टियों के 12-12 मंत्री थे. वह समीकरण अब बदल गया है—राजद के पास 17 मंत्री हैं जबकि जदयू के पास 12 मंत्री हैं, जिनमें सीएम और डिप्टी सीएम शामिल हैं. 2020 के विधानसभा चुनावों में राजद 75 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरी, उसके बाद भाजपा को 74 सीटें मिलीं और उसके तत्कालीन सहयोगी जदयू के खाते में 43 सीटें आईं.
पिछले हफ्ते भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) से नाता तोड़ने वाले बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने अपनी पार्टी के किसी भी नए चेहरे को शामिल नहीं किया और कैबिनेट में शामिल जदयू के सभी 11 मंत्री तत्कालीन भाजपा-जदयू सरकार का हिस्सा रहे हैं.
जदयू के सूत्रों ने दिप्रिंट को बताया कि ऐसी चर्चा थी कि एमएलसी उपेंद्र कुशवाहा, जो पार्टी के कुशवाहा चेहरे और जदयू के राष्ट्रीय संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष हैं, को कैबिनेट में जगह देने के लिए कुछ मंत्रियों को हटाया जा सकता है.
हालांकि, ऐसा लगता है कि मुख्यमंत्री ने इस तरह के किसी कदम से किनारा कर लिया. सूत्रों के मुताबिक, इस तरह के फैसले से विधायकों में नाराजगी पैदा हो सकती थी क्योंकि कैबिनेट में पहले से ही दो एमएलसी शामिल हैं.
इस बीच, राजद नेता तेजस्वी यादव ने मधुबनी से विधायक समीर महासेठ (एक बनिया) और एमएलसी कार्तिक सिंह (एक भूमिहार) जैसे कुछ चेहरों को उल्लेखनीय तौर पर जगह दी.
राजद प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह के पुत्र और रामगढ़ से विधायक सुधाकर सिंह को कृषि मंत्री बनाया गया है.
नीतीश कुमार कमजोर पड़े!
विस्तार की इस कवायद में नीतीश कुमार अपने मंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों के प्रति नजरें फेर लेते नजर आ रहे हैं.
2005 में दूसरी बार बिहार के मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेने वाले नीतीश कुमार ने अपने करीबी सहयोगी जीतन राम मांझी को कैबिनेट से हटा दिया था और यह कदम उनके खिलाफ दर्ज एक सतर्कता मामले के मद्देनजर उठाया गया था.
राज्य के सतर्कता विभाग ने जब मांझी को क्लीनचिट दे दी तभी जाकर 2008 में उन्हें कैबिनेट में शामिल किया गया.
अब, नीतीश तीन विवादास्पद राजद नेताओं के मंत्री पद पर होने के साथ सरकार का नेतृत्व कर रहे हैं—जिसमें ललित कुमार यादव, सुरेंद्र प्रसाद यादव और रामानंद यादव शामिल हैं.
दरभंगा ग्रामीण विधायक ललित कुमार यादव 21 साल बाद सरकार में वापसी कर रहे हैं.
वह 2001 तक राबड़ी देवी मंत्रालय में एक कनिष्ठ मंत्री थे, जब उन्हें एक ट्रक चालक और उसके दलित सहायक को कथित रूप से अवैध ढंग से हिरासत में रखने और प्रताड़ित करने के आरोपों को लेकर इस्तीफा देने को कहा गया था. लेकिन मामले में शिकायतकर्ता, जिसने कैमरे पर दावा किया था कि यादव ने राजद नेता के एक सहयोगी के स्वामित्व वाले ट्रक के लापता होने पर उसे प्रताड़ित किया था, ने अदालत में अपना बयान वापस ले लिया.
यादव, जो अब केवल एक आपराधिक मामले (आईपीसी की धारा 188, 269 और 270 के तहत) का सामना कर रहे हैं, उनके चुनावी हलफनामे के मुताबि, 2016 में उन पर एक स्थानीय व्यवसायी हीरालाल पासवान की हत्या में शामिल होने का भी आरोप लगा था. यद्यपि पासवान के परिवार ने आरोप लगाया कि उनकी मौत में यादव की भूमिका थी, लेकिन राजद नेता ने आरोपों से इनकार किया था.
गया जिले के बेलागंज से सात बार के राजद विधायक सुरेंद्र प्रसाद यादव भी जहानाबाद से पूर्व सांसद हैं. एक व्यवसायी के कथित अपहरण और यातना के आरोप के बाद 2003 की शुरुआत में, उन्हें राबड़ी देवी सरकार में मंत्री पद छोड़ने को कहा गया था.
2020 के चुनावी हलफनामे के मुताबिक, यादव कम से कम नौ आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं. जून 2022 में, उन पर यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम (पोक्सो) के तहत 2018 में एक नाबालिग सामूहिक बलात्कार पीड़िता की पहचान का कथित रूप से खुलासा करने का आरोप लगा था.
उनके 2020 के चुनावी हलफनामे के मुताबिक, फतुहा से राजद विधायक रामानंद यादव चार आपराधिक मामलों का सामना कर रहे हैं. इनमें कथित जबरन वसूली और आपराधिक धमकी के मामले शामिल हैं.
इन तीनों को 2015 में कैबिनेट में जगह नहीं मिली थी और तब कहा गया था कि ऐसा सीएम नीतीश कुमार के ‘स्वच्छ छवि’ वाले मंत्रियों के साथ एक कैबिनेट का नेतृत्व करने पर जोर देने के कारण किया गया था.
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