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Thursday, 23 October, 2025
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हिमंत सरमा को मिला बोडोलैंड से सियासी झटका: BJP को असम चुनाव से पहले BPF के साथ गठबंधन करना पड़ा

बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट द्वारा बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद चुनावों में भारी जीत के बाद, सरमा ने उसके विधायक चरण बोरो को मंत्रिमंडल में शामिल किया. मुख्यमंत्री ने पहले हग्रामा मोहिलरी के नेतृत्व वाली पार्टी को बदनाम करने के लिए कड़ी मेहनत की थी.

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कोकराझार: असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने पिछले हफ्ते बोडोलैंड पीपुल्स फ्रंट (बीपीएफ) के विधायक चरण बोरों को अपने मंत्रिमंडल में शामिल किया और पूर्व उग्रवादी हग्रामा मोहिलारी के नेतृत्व वाली इस पार्टी की प्रशंसा की कि उसने हमेशा बोडो लोगों के हितों की “वकालत की है.”

बोरो का शामिल होना, बीपीएफ और सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के बीच गठबंधन को मजबूत करता है और बीपीएफ की बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल (बीटीसी) चुनावों में भारी जीत के कुछ हफ्तों बाद हुआ. यह सरमा के लिए एक गंभीर क्षण था, जिन्होंने कहा था कि इस बार परिषद एक राष्ट्रीय पार्टी का चयन करेगी ताकि नई दिल्ली, दिसपुर और कोकराझार के बीच बेहतर तालमेल सुनिश्चित हो सके.

बोडोलैंड टेरिटोरियल रीजन (बीटीआर) में कोकराझार, बकसा, चिरांग, उदालगुरी और तमुलपुर — ये पांच जिले शामिल हैं.

पिछले एक दशक में असम में भाजपा के तेज़ी से उभरने का श्रेय सरमा को दिया जाता है. उन्होंने पहले कभी मोहिलारी को एक भ्रष्ट नेता बताने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी, जो विकास निधियों में गड़बड़ी करता था.

साल 2020 में उन्होंने भाजपा और यूनाइटेड पीपुल्स पार्टी लिबरल (यूपीपीएल) के बीच गठबंधन करवाया, जिससे बीपीएफ को बीटीसी की सत्ता से बाहर कर दिया गया.

हालांकि, इस बार के चुनाव परिणामों के बाद जिस तेजी से सरमा ने बीपीएफ को भाजपा-नीत राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में शामिल करने की कोशिश की, उसने आम तौर पर शांत रहने वाले नेता में एक दुर्लभ बेचैनी को उजागर किया.

मोहिलारी, जो यह अच्छी तरह जानते हैं कि निधियों तक पहुंच बनाए रखने के लिए दिसपुर और नई दिल्ली के साथ अच्छे संबंध रखना कितना जरूरी है — क्योंकि उन्होंने 2003 से 2020 तक बीटीसी की लगातार अगुवाई की थी — ने भी भाजपा के सहयोगी बनने में देर नहीं की.

उनके कदम के पीछे एक कारण यह भी था कि असम सरकार ने बीपीएफ के दोबारा सत्ता में आने के तुरंत बाद 19 जनवरी 2021 की अधिसूचना वापस ले ली थी, जिसके तहत बीटीसी के अधीन जिलों में तैनात उपायुक्तों को परिषद के अधीन रखा गया था.

हालांकि, कुछ महीनों में असम में चुनाव होने हैं और इस बार सरमा, मोहिलारी से ज्यादा उत्सुक दिखे. आखिरकार, बीटीआर के 15 विधानसभा सीटें, जो अब मोहिलारी के मजबूत नियंत्रण में हैं, चुनाव में निर्णायक साबित हो सकती हैं.

साल 2021 में भाजपा-यूपीपीएल गठबंधन ने बीटीआर की उस समय की 11 में से आठ सीटें जीती थीं. परिसीमन के बाद चार नई विधानसभा सीटें जोड़ी गईं, जिससे कुल संख्या 15 हो गई. भाजपा ने 2021 में असम की 126 विधानसभा सीटों में से 60 सीटें जीती थीं.

क्षेत्रीय राजनीति

बीटीसी एक स्वायत्त परिषद है, जो 2003 में संविधान की छठी अनुसूची के तहत बनाई गई थी. इसे मोहिलारी के नेतृत्व वाले उग्रवादी संगठन बोडो लिबरेशन टाइगर्स फोर्स, केंद्र और असम सरकार के बीच हुए बोडो समझौते के बाद स्थापित किया गया था.

बोडो समुदाय असम का सबसे बड़ा जनजातीय समूह है, जो राज्य की लगभग 6 प्रतिशत आबादी का हिस्सा है.

बीटीआर इस परिषद के अधिकार क्षेत्र में आता है. बीटीआर की आबादी में लगभग 65 प्रतिशत लोग 19 गैर-बोडो समुदायों से हैं, जिनमें असमिया, कोच-राजबोंगशी और बंगाली भाषी मुसलमान शामिल हैं.

इस क्षेत्र ने अलग राज्य की मांग को लेकर दशकों तक चले सशस्त्र विद्रोह और दंगों को देखा है. शांति समझौतों की एक श्रृंखला, जिसमें सबसे हालिया समझौता 2020 में हुआ, ने आखिरकार इस सशस्त्र आंदोलन को समाप्त कर दिया.

बीटीआर में प्रभावशाली लोगों से हुई बातचीत से पता चलता है कि जब सरमा ने इस क्षेत्र की राजनीति में भाजपा को केंद्रीय ताकत के रूप में स्थापित करने के लिए आक्रामक रूप से प्रचार किया, तो पार्टी की कई गलतियों ने न केवल उसके वोट घटाए, बल्कि उसके सहयोगी यूपीपीएल पर भी असर डाला. यह गठबंधन 2020 में भाजपा द्वारा बीपीएफ को छोड़ने के बाद बना था.

बीटीसी चुनावों से पहले भाजपा ने यूपीपीएल के साथ अपना गठबंधन तोड़ लिया, जो 2020 के समझौते की एक बड़ी राजनीतिक लाभार्थी थी. इसके बजाय भाजपा ने चुनाव अकेले लड़ने का फैसला किया ताकि वह राजा नहीं तो कम से कम किंगमेकर बन सके.

बीटीआर में सरमा बनाम मोहिलरी

राजनीतिक नेताओं और विशेषज्ञों का कहना है कि जब सरमा ने जातीय आधार पर मतदाताओं को बांटने पर जोर दिया, तो मोहिलारी की समझदारी के कारण यह रणनीति उलटी पड़ गई.

“पहले तो उन्होंने (सरमा ने) यूपीपीएल को एक छोटे स्थानीय खिलाड़ी के रूप में दिखाने की कोशिश की, जबकि यह पार्टी पांच साल तक भाजपा की सहयोगी रही थी. उन्होंने यह दिखाने की कोशिश की कि बीटीआर में हुए सभी विकास कार्य भाजपा के प्रयासों का नतीजा हैं. दूसरे, उन्होंने अपनी हर रैली में लोगों से कहा कि भाजपा के शासन में बीटीसी में कोई भी ‘दूसरे दर्जे’ का नागरिक नहीं होगा. यह उनकी गैर-बोडो मतदाताओं को आकर्षित करने की कोशिश थी,” एक वरिष्ठ बीपीएफ नेता ने दिप्रिंट को बताया.

दूसरी ओर, मोहिलारी ने अपने चुनाव प्रचार में हर पात्र परिवार को जमीन के कागज (पट्टा) देने और बेदखली को रोकने का वादा किया. यह बात गैर-बोडो समुदायों को खासतौर पर इसलिए पसंद आई क्योंकि असम के कई हिस्सों में जंगल की जमीन से कथित अतिक्रमण हटाने के नाम पर बेदखली अभियान चल रहे थे.

इसी बीच, असम भाजपा अध्यक्ष और लोकसभा सांसद दिलीप सैकिया के बयानों से बोडो समुदाय असहज हो गया. बीटीसी चुनावों से पहले सैकिया ने कहा कि भूमि कानून जनजातीय और गैर-जनजातीय क्षेत्रों में समान होने चाहिए. इसे इस रूप में देखा गया कि गैर-बोडो लोगों को भी बीटीसी के अधीन आने वाले क्षेत्रों में जमीन खरीदने की अनुमति दी जानी चाहिए.

Hagrama Mohilary greeting BPF leaders and workers at his office after taking charge as BTC chief earlier this month | Sourav Roy Barman | ThePrint
इस महीने की शुरुआत में बीटीसी प्रमुख का पदभार संभालने के बाद अपने कार्यालय में बीपीएफ नेताओं और कार्यकर्ताओं का अभिवादन करते हुए हग्रामा मोहिलरी | सौरव रॉय बर्मन | दिप्रिंट

एक वरिष्ठ यूपीपीएल नेता ने कहा, “बीपीएफ ने सरमा और सैकिया के ऐसे बयानों का कड़ा विरोध किया. लेकिन यूपीपीएल को नुकसान हुआ क्योंकि लोगों में यह धारणा थी कि 2020 से वह भाजपा की ‘बी-टीम’ की तरह काम कर रही है. यूपीपीएल मतदाताओं को बांटने के प्रयासों के खिलाफ सख्त रुख अपना सकती थी, लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। वहीं भाजपा ने भी इस गठबंधन को लेकर कोई सकारात्मक रुख नहीं दिखाया. बल्कि उसने प्रचार के दौरान यूपीपीएल को ही निशाना बनाया.”

प्रमोद बरो के नेतृत्व वाली यूपीपीएल, जो प्रभावशाली ऑल बोडो स्टूडेंट्स यूनियन के पूर्व अध्यक्ष हैं, मानो चुपचाप यह सब स्वीकार कर रही थी. उदाहरण के तौर पर, असम विधानसभा का बजट सत्र इस साल फरवरी में कोकराझार स्थित बीटीसी विधानसभा भवन में आयोजित किया गया था. सरमा ने इसे मुख्यमंत्री के रूप में अपने कार्यकाल का “सबसे गौरवपूर्ण क्षण” बताया था.

उस समय केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने एक बयान में कहा था, “यह कदम हमारे बोडो भाइयों और बहनों के विकास को तेज करने और उनकी संस्कृति को सहेजने की दिशा में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के विज़न को पूरा करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो हमारे सभ्यतागत मूल्यों का गर्व से प्रतिनिधित्व करती है.”

बीटीसी विधानसभा कोकराझार में स्थित है, जो इस क्षेत्र की राजधानी है, और यह विशाल बोडोलैंड टेरिटोरियल काउंसिल सचिवालय परिसर के अंदर है.

The Bodoland Territorial Council Legislative Assembly in Kokrajhar | Sourav Roy Barman | ThePrint
कोकराझार में बोडोलैंड प्रादेशिक परिषद विधान सभा | सौरव रॉय बर्मन | दिप्रिंट

हालांकि, एकीकरण को बढ़ावा देने के बजाय, इस सत्र ने यह संदेश दिया कि बीटीसी को संविधान की छठी अनुसूची के तहत मिली स्वायत्तता कमजोर की जा रही है, ऐसा कहना है गुवाहाटी के वरिष्ठ पत्रकार और ऑनलाइन न्यूज़ मैगज़ीन NEZINE के संपादक सुशांत तालुकदार का.

“पिछले कुछ वर्षों में बीटीसी विधानसभा द्वारा पारित 25 विधेयक अब भी असम के राज्यपाल के पास लंबित हैं. यह विधानसभा 40 विषयों पर कानून बनाने के लिए अधिकृत है, जो पूरे बोडोलैंड क्षेत्र में लागू होते हैं. बोडो समूह पहले से ही इसे बीटीसी की संवैधानिक स्वायत्तता पर आघात के रूप में देख रहे हैं. बीटीसी विधानसभा परिसर में असम विधानसभा का एक दिवसीय सत्र आयोजित करना इस स्थिति में किसी भी तरह मददगार नहीं रहा,” तालुकदार ने दिप्रिंट को बताया.

‘बीजेपी की सीमित अपील’

बीपीएफ और यूपीपीएल के कुछ नेताओं, जिन्होंने दोनों क्षेत्रीय दलों को एक करने की कोशिश की थी, का कहना है कि चुनाव परिणाम भाजपा के उस प्रयास को पूरी तरह नकारते हैं जिसमें वह यूपीपीएल को एक माध्यम बनाकर इस क्षेत्र में अपनी पकड़ बढ़ाना और लगभग 9,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र पर नियंत्रण स्थापित करना चाहती थी.

बीटीसी चुनाव प्रचार के दौरान यह भी सामने आया कि पूर्वोत्तर के अन्य जनजातीय समुदायों में भाजपा का राजनीतिक संदेश ज्यादा असर नहीं डाल पा रहा है. उदाहरण के लिए, प्रद्योत देबबर्मन, जिनकी जनजाति-आधारित पार्टी टिपरा मोथा त्रिपुरा में सत्तारूढ़ भाजपा की सहयोगी है, ने बीटीसी चुनावों के दौरान मोहिलारी के लिए प्रचार किया था.

उन्होंने भाजपा को सत्ता से हटाने की अपील की और पिछले सप्ताह ही चेतावनी दी कि अगर केंद्र सरकार त्रिपुरा की स्वदेशी जनजातियों के विकास के लिए 2024 में किए गए समझौते को लागू नहीं करती है, तो टिपरा मोथा गठबंधन तोड़ देगी. गुरुवार को, टिपरा मोथा के समर्थन वाले नागरिक संगठनों के एक गठबंधन ने इसी मांग को लेकर त्रिपुरा में 24 घंटे की हड़ताल की घोषणा की.

फिलहाल, सरमा की चुनौतियां खत्म नहीं हुई हैं. भले ही बीपीएफ को राज्य मंत्रिमंडल में जल्दी शामिल कर लिया गया, लेकिन यह बात यूपीपीएल को पसंद नहीं आई, जो खुद भी असम सरकार में एक मंत्री पद रखती है.

बीपीएफ और यूपीपीएल में से कोई भी एक ही मंत्रिमंडल में साथ काम करने को लेकर सहज नहीं है. इसी कारण सरमा ने कहा कि भाजपा जल्द तय करेगी कि 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले वह इन दोनों में से किस पार्टी के साथ गठबंधन करेगी.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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