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Sunday, 22 December, 2024
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नवाबों पर भारी, सपा का मुस्लिम चेहरा और ‘महिला-विरोधी’— उतार-चढ़ाव भरा रहा है आजम खान का राजनीतिक सफर

समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता के खिलाफ 93 आपराधिक मामले दर्ज हैं. 2019 में अभद्र भाषा के इस्तेमाल से जुड़े एक केस में उन्हें तीन साल जेल की सजा सुनाई गई है जिसकी वजह से ही शुक्रवार को उन्हें यूपी विधानसभा की सदस्यता के अयोग्य घोषित कर दिया गया.

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लखनऊ: समाजवादी पार्टी के प्रमुख बड़े नेताओं में शुमार आजम खान का राजनीतिक सफर काफी उतार-चढ़ाव भरा रहा है. वह 10 बार विधायक चुने गए और दो बार रामपुर से सांसद भी रहे हैं. अपने बयानों के कारण अक्सर ही विवादों में घिरने वाले यूपी के पूर्व कैबिनेट मंत्री को उनका बड़बोलापन काफी भारी पड़ गया है. 2019 में अभद्र भाषा इस्तेमाल करने से जुड़े एक एक मामले में एमपी/एमएलए अदालत की तरफ से दोषी ठहराए जाने के एक दिन बाद ही शुक्रवार को उन्हें यूपी विधानसभा से अयोग्य घोषित कर दिया गया.

आजम खान ने 2019 में लोकसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान रामपुर के तत्कालीन जिला मजिस्ट्रेट आंजनेय कुमार सिंह, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और कांग्रेस उम्मीदवार संजय कपूर के खिलाफ भड़काऊ बयान दिया था.

कोर्ट ने इस मामले में गुरुवार को सपा नेता को तीन साल कारावास की सजा सुनाई, लेकिन साथ ही उन्हें जमानत दे दी ताकि दोषी ठहराए जाने के खिलाफ एक हफ्ते के भीतर अपील दायर कर सकें.

आजम खान के एक करीबी सूत्र ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि वह हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाएंगे.

आजम खान को अपनी विधानसभा सदस्यता इसलिए गंवानी पड़ी, क्योंकि 2013 के सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में व्यवस्था दी गई थी कि यदि कोई एमएलए, एमएलसी या सांसद किसी आपराधिक मामले में दोषी ठहराया जाता है और उसे कम से कम दो साल की सजा होती है तो वह तत्काल प्रभाव से सदन का सदस्य रहने के अयोग्य हो जाएगा.

आजम खान की तरफ से 2022 में दाखिल चुनावी हलफनामे के मुताबिक, उनके खिलाफ 93 आपराधिक मामले दर्ज हैं, जिनमें 87 तो 2017 के बाद (राज्य में भाजपा के शासनकाल के दौरान) दर्ज किए गए हैं.

सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने शनिवार को राज्य सरकार पर निशाना साधते हुए कहा कि खान यूपी में भाजपा की ‘आंखों की किरकिरी’ बन गए हैं क्योंकि ‘वह (खान) उसकी नफरत और सांप्रदायिकता वाली राजनीति का विरोध करते हैं.’

बहरहाल, महिला सांसदों जया प्रदा (2019) और रमा देवी (2019) के खिलाफ सेक्सिस्ट टिप्पणी हो या फिर योगी आदित्यनाथ (2016) को शादी करके अपनी मर्दानगी साबित करने की चुनौती देना, दिग्गज सपा नेता का विवादों से नाता नया नहीं है.

2020 में पूर्व सपा सहयोगी और तत्कालीन भाजपा नेता जया प्रदा को लेकर आजम खान ने कहा था, ‘मैं उन्हें (जया प्रदा) रामपुर लाया था. आप साक्षी हैं कि मैंने किसी को उन्हें छूने नहीं दिया. उनका असली चेहरा पहचानने में आपको 17 साल लग गए लेकिन मुझे तो 17 दिनों में ही पता चल गया था कि वह खाकी अंडरवियर पहनती हैं.’

आजम खान की विधानसभा सदस्यता छिनने के बाद शनिवार को जया प्रदा ने एक बयान जारी करके कहा कि सपा नेता को उनके कुकर्मों की सजा मिली है. उन्होंने कहा, ‘राजनीति में लोगों के बीच मतभेद होते हैं, लेकिन सत्ता का अहंकार नहीं होना चाहिए. वो भी इतना अहंकार कि आप महिलाओं का सम्मान करना भूल जाएं और गरीबों और शोषितों के साथ अन्याय करने लगें.’

दिप्रिंट यहां बता रहा है कि यूपी की राजनीति में सपा के इस दिग्गज नेता का कितना रुतबा रहा और उन्होंने कैसा उतार-चढ़ाव देखा.


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कैसी रही पृष्ठभूमि और कैसे बढ़ाया सियासी दबदबा

रामपुर के 10 बार के विधायक आजम खान दो बार रामपुर लोकसभा सीट से सांसद भी रहे हैं. उन्होंने मुलायम सिंह यादव सरकार (2003-2007 के बीच) और अखिलेश यादव सरकार (2012-2017) में कैबिनेट मंत्री के तौर पर भी काम किया.

आजम ने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) से कानून की डिग्री ली थी और अपना सियासी सफर जनता पार्टी (सेक्युलर) के साथ शुरू किया, जिसे 1980 के लोकसभा चुनावों से पहले लोक दल का नाम दिया गया. 11 अक्टूबर 1988 को जनता पार्टी के गुटों का विलय हो जाने पर खान बतौर विधायक अपने तीसरे कार्यकाल में जनता दल के सदस्य थे. उर्दू पर असाधारण पकड़ रखने वाले और ‘विवादास्पद और भड़काऊ भाषणों’ के कारण अक्सर सुर्खियों में रहने वाले आजम खान 1993 से सपा के सदस्य हैं.

राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, आजम रामपुर निर्वाचन क्षेत्र में ‘नवाब बनाम आवाम’ का नैरेटिव आगे बढ़ाकर अपना दबदबा बनाने में सफल रहे थे और इसकी एक वजह यह भी थी कि उन्होंने 1980 के दशक में वहां बीड़ी-मजदूरों और कपड़ा श्रमिकों के मुद्दों को जोरशोर से उठाया था.

उन्होंने रामपुर के तत्कालीन नवाब परिवार के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था. नवाब परिवार शिया है जबकि यहां बहुसंख्यक आबादी सुन्नियों की है. आजम परिवार और रामपुर के नवाब का दर्जा रखने वाले कांग्रेस नेता काजिम अली खान के परिवार के बीच दशकों से राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता जारी है और मार्च 2022 के विधानसभा चुनाव के दौरान जेल में बंद होने के बावजूद भी आजम ने काजिम को रामपुर सीट पर चुनाव जीतने नहीं दिया.

लखनऊ के एक्टिविस्ट और आजम के खिलाफ (जमीन हथियाने के एक मामले में) शिकायतकर्ताओं में से एक जमीर नकवी ने दिप्रिंट को बताया कि आजम ने जमीनी स्तर पर शिया-सुन्नी के बीच फूट डालने की कोशिश की और इसने उन्हें फायदा भी पहुंचाया.

नवाबों का आरोप है कि आजम ने चौराहों पर नवाबों के नाम की पट्टिकाएं हटाकर और शहर के गेटों को तोड़कर शाही परिवार के इतिहास को खत्म करने की कोशिश की है.

मुसलमानों का ‘चेहरा’, सियासी रुतबा और विवाद

राजनीतिक विश्लेषकों का कहना है कि 1990 के दशक में आजम ने खुद को राज्य में मुस्लिम समुदाय के एक चेहरे के तौर पर पेश किया और इस छवि को सपा ने खूब भुनाया.

लखनऊ यूनिवर्सिटी में पत्रकारिता एवं जनसंचार विभाग के प्रमुख और प्रोफेसर डॉ. मुकुल श्रीवास्तव ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि अक्टूबर 1990 में राज्य में मुलायम सिंह यादव सरकार के दौरान अयोध्या में कार सेवकों पर पुलिस फायरिंग ने मुस्लिम समुदाय को सपा के करीब ला दिया था.

उन्होंने कहा, ‘यूपी की राजनीति में सपा का दबदबा बढ़ने के साथ आजम का सियासी रुतबा भी बढ़ता गया. आजम पढ़े-लिखे होने के बावजूद सुर्खियों में बने रहने के लिए विवादास्पद बयान देने से नहीं चूकते थे. इससे उनके समुदाय के बीच यह धारणा बनने लगी कि है कि कोई तो है जो उनकी तरफ से बोल रहा है और आजम सुन्नी मुसलमानों का चेहरा बन गए. सपा ने उनका इस्तेमाल अपना मुस्लिम वोटबैंक बढ़ाने के लिए किया.’

श्रीवास्तव ने आगे कहा कि हालांकि शासन का लाभ कुछ क्षेत्रों तक ही सीमित था और यूपी की आबादी में 19 प्रतिशत (2011 की जनगणना के मुताबिक) हिस्सेदारी वाले मुसलमानों के लिए आजम की लड़ाई केवल ‘प्रतीकात्मक’ थी.

श्रीवास्तव ने बताया, ‘सपा शासन में (मुलायम और अखिलेश दोनों की सरकारों में) आजम खान लोक निर्माण विभाग (पीडब्ल्यूडी) और शहरी विकास मामलों के मंत्री थे और विकास का ज्यादातर लाभ उनके निर्वाचन क्षेत्र को ही मिलता था. ऐसे में अन्य नेता उपेक्षित महसूस करते और असंतुष्ट रहते थे. जौहर यूनिवर्सिटी (2006 में रामपुर में स्थापित मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी) को तो उन्होंने अपनी निजी जागीर बना लिया था और यह सुनिश्चित किया कि वह आजीवन चांसलर नियुक्त हों और उनके परिवार के सदस्यों को भी महत्वपूर्ण पद मिल जाएं.’

सेंट्रल वक्फ काउंसिल के पूर्व सदस्य एजाज अब्बास नकवी ने दिप्रिंट को बताया कि मोहम्मद अली जौहर यूनिवर्सिटी (संशोधन) बिल में बदलाव किए गए ताकि आजम खान को आजीवन इसका चांसलर बनाए रखने की व्यवस्था की जा सके.

नकवी ने कहा, ‘राजनीति में शायद ही कभी सक्रिय रहीं उनकी पत्नी को सपा में उनके दबदबे की वजह से ही राज्यसभा भेजा गया. विवादास्पद टिप्पणियों के जरिये वह खुद को सुर्खियों में बनाए रखते रहे हैं ताकि वास्तविक मुद्दों से ध्यान हटाया जा सके.’

2013 में, अमेरिका के बोस्टन स्थित लोगान इंटरनेशनल एयरपोर्ट पर आजम खान की तलाशी और पूछताछ के बाद यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने कुंभ मेला व्यवस्था पर हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में उनके संबोधन को रद्द कर दिया था.

2014 में यूपी पुलिस के लिए उस समय बड़ी अजीब स्थिति उत्पन्न हो गई जब तत्कालीन मंत्री के घर से सात भैंसें चोरी हो गईं. बड़े पैमाने पर तलाशी अभियान के बाद आखिरकर पुलिस ने उन भैंसों को ढूंढ़ निकाला. हालांकि, ‘ड्यूटी में लापरवाही’ को लेकर तीन पुलिसकर्मियों को हटा दिया गया.

इस घटना को लेकर सुर्खियों में आने के बाद आजम खान ने काफी व्यंग्यात्मक अंदाज में कहा था, ‘यह क्या खबर हुई? मैं इसे न्यूज बनाने के लिए मीडिया को धन्यवाद देता हूं.’

2017 के यूपी विधानसभा चुनावों से पहले, 2016 में एक कार्यक्रम के दौरान आजम खान ने तत्कालीन भाजपा नेता और यूपी के मौजूदा सीएम योगी आदित्यनाथ पर यह टिप्पणी करके अच्छा-खासा विवाद खड़ा कर दिया था कि वे शादी करके अपनी मर्दानगी साबित करें.

राजनेता को सांसद रमा देवी और भाजपा नेता जया प्रदा सहित कई महिला नेताओं के खिलाफ सेक्सिस्ट टिप्पणियों के लिए भी जाना जाता है.

2019 में तत्कालीन सांसद आजम खान ने सांसद रमा देवी से कहा था, ‘मैं आपको इतना पसंद करता हूं कि आपकी आंखों में देखना चाहता हूं और चाहता हूं कि आपको देखता ही रहूं.’ उन्होंने यह टिप्पणी संसद में उस समय की जब स्पीकर ओम बिरला की अनुपस्थिति में रमा देवी सदन की कार्यवाही का संचालन कर रही थीं.


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आजम के खिलाफ मामले और क्या कहते हैं शिकायतकर्ता

खान की तरफ से 2022 के यूपी विधानसभा चुनाव से जो चुनावी हलफनामा दायर किया गया था, उसके मुताबिक उस समय तक उनके खिलाफ कुल 87 मामले दर्ज थे. इनमें से 84 मामले 2017 में राज्य में भाजपा की सरकार आने के बाद दायर हुए हैं. सुप्रीम कोर्ट में दायर यूपी सरकार के हलफनामे के मुताबिक, आजम के खिलाफ मामलों की संख्या अब बढ़कर 93 हो गई है.

सपा नेता के खिलाफ दर्ज 93 आपराधिक मामलों में 31 जौहर यूनिवर्सिटी से संबंधित हैं, जिनमें जमीन हथियाना भी शामिल है. मार्च 2016 में रामपुर के डूंगरपुर इलाके में कथित तौर पर स्थानीय लोगों के घरों को ढहाने की साजिश रचने के आरोप में उनके खिलाफ 26 केस दर्ज हुए थे और अन्य मामलों में खान पर चोरी, धोखाधड़ी और जालसाजी का आरोप लगाया गया है.

मई में सुप्रीम कोर्ट ने जमीन हड़पने से जुड़े एक मामले में आजम को अंतरिम जमानत दी थी, जिससे करीब 27 माह बाद जेल से उनकी रिहाई का रास्ता खुला. 87 मामलों में पहले से ही जमानत पर चल रहे आजम खान इलाहाबाद हाई कोर्ट में अपनी जमानत अर्जी पर सुनवाई न होने के बाद शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया था.

आजम खान के वकील का आरोप है कि ये मामले उत्तर प्रदेश में सत्तासीन भाजपा सरकार की राजनीतिक साजिश का हिस्सा हैं. आजम ने जुलाई में दिप्रिंट को दिए एक इंटरव्यू में कहा था कि निचली अदालतों ने उन्हें जमानत देने से इसलिए इनकार कर दिया था क्योंकि वह ‘आजम खान हैं’ और ‘एक मुस्लिम हैं.’

लेकिन आजम खान के खिलाफ मोर्चा खोलने वालों का आरोप है कि सपा नेता ने उनके साथ ‘अत्याचार’ किया है.

आजम पर कई मामले दर्ज कराने वाले और 2022 के विधानसभा चुनावों के दौरान आम आदमी पार्टी (आप) के टिकट पर उनके खिलाफ चुनाव मैदान में उतरे रामपुर निवासी एक एक्टिविस्ट फैजल लाला ने दिप्रिंट से कहा कि सपा नेता ने रामपुर के कुछ लोगों पर जितने अत्याचार किए हैं, उसकी तुलना में उन्होंने खुद कुछ भी नहीं झेला है.

फैजल लाला ने आरोप लगाया, ‘घोसी आदिवासियों के घर इसलिए गिरा दिए गए क्योंकि वह (आजम) यतीमखाने की जमीन कब्जा करना चाहते थे.’

घोसी आदिवासी यतीमखाना के लिए आवंटित भूमि पर रह रहे थे, जो बन नहीं सका था. इसे आजम खान के जौहर ट्रस्ट द्वारा संचालित रामपुर पब्लिक स्कूल के निर्माण के लिए कब्जा लिया गया था.’

उन्होंने कहा, ‘डूंगरपुर के लोगों के घर तोड़े गए क्योंकि जमीन प्राइम लोकेशन पर थी. जिन किसानों ने जौहर यूनिवर्सिटी के लिए अपनी जमीन देने से मना कर दिया, उन्हें परेशान किया गया और फर्जी मामलों में फंसाया गया. मैंने उनका मामला तत्कालीन राज्यपाल राम नाईक के समक्ष उठाया तो मेरे खिलाफ उनके लोगों पर हमले का एक झूठा केस दर्ज कराया गया. मेरे खिलाफ बैंक लूट का भी एक मामला दर्ज हुआ जिसे बाद में हाई कोर्ट ने खारिज किया. आजम ने तो बस एक विधायक का दर्जा खोया लेकिन आर्थिक रूप से सशक्त बने हुए हैं, तो उन्होंने कौन-सा अत्याचार झेला है?’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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