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Thursday, 19 December, 2024
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कभी खट्टर के काफिला रोकने पर हुए थे गिरफ्तार, आज उनके सामने कांग्रेस के दिव्यांशु बुद्धिराजा लड़ रहे चुनाव

करनाल से कांग्रेस के उम्मीदवार बुद्धिराजा को पोस्टर लगाने के लिए 2018 में सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के मामले में 'घोषित अपराधी' करार दिया गया था. पूर्व सीएम खट्टर की तरह वह भी पंजाबी खत्री हैं.

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गुरुग्राम: हरियाणा की करनाल संसदीय सीट पर एक ऐसी लड़ाई होने जा रही है जिस पर उत्सुकता से सबकी निगाहें टिकी हुई हैं.

दरअसल, हरियाणा के मौजूदा युवा कांग्रेस अध्यक्ष 31 वर्षीय दिव्यांशु बुद्धिराजा 69 वर्षीय भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के उम्मीदवार और पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर के सामने मुकाबले के लिए खड़े हैं.

कांग्रेस की छात्र शाखा नेशनल स्टूडेंट्स यूनियन ऑफ इंडिया के पूर्व अध्यक्ष बुद्धिराजा का भी खट्टर के साथ पुराना नाता है.

2018 में तत्कालीन सीएम खट्टर के काफिले को रोकने और विरोध करने के आरोप में उन्हें गिरफ्तार किया गया और जेल में डाल दिया गया.

युवा कांग्रेस नेता ने तत्कालीन सीएम के गवर्नमेंट कॉलेज, पंचकुला के दौरे के समय बेरोजगार युवाओं को एकजुट किया था. उन्होंने अन्य लोगों के साथ कथित तौर पर उनके काफिले में घुस गए थे और भाजपा सरकार के खिलाफ नारे लगाए थे.

बुद्धिराजा हरियाणा के सोनीपत जिले के गोहाना में एक साधारण पंजाबी खत्री परिवार से हैं – जो कि खट्टर जैसी ही एक कम्युनिटी है. पंजाबी खत्री समुदाय का इस निर्वाचन क्षेत्र पर महत्वपूर्ण प्रभाव है. 2014 और 2019 दोनों लोकसभा चुनावों में इसी समुदाय के नेता ने जीत दर्ज की थी. 2014 में पत्रकार और बीजेपी नेता अश्विनी कुमार चोपड़ा ने और 2019 में बीजेपी के ही संजय भाटिया इस सीट से जीते थे.

बुद्धिराजा के पिता रोहतक के एक सेवानिवृत्त सरकारी क्लर्क हैं, और उनकी मां एक स्कूल शिक्षिका थीं. चंडीगढ़ में पंजाब विश्वविद्यालय में अध्ययन के दौरान, उन्हें 2014-15 शैक्षणिक वर्ष के लिए छात्र परिषद का अध्यक्ष चुना गया.

यहां उनकी जान-पहचान राज्यसभा सांसद दीपेंद्र सिंह हुड्डा से हुई, जो अब रोहतक से कांग्रेस के उम्मीदवार हैं. 2017 में, बुद्धिराजा को राज्य का एनएसयूआई अध्यक्ष नियुक्त किया गया था. इस पद पर वह 2021 तक रहे. फिर उन्हें राज्य युवा कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में चुना गया, जिस पर वह अब तक बने हुए हैं.

युवा कांग्रेस नेता दिव्यांशु के खिलाफ पंचकुला अदालत में लंबित एक मामले में घोषित अपराधी (पीओ) भी है. हालांकि, उनके खिलाफ शुरू की गई कार्यवाही किसी जघन्य अपराध के लिए नहीं थी, बल्कि 2018 में खट्टर के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के वक्त सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के मामले में तमाम सम्मन और वॉरंट के बावजूद “जानबूझकर” कोर्ट के सामने पेश न होने के लिए थी.

शुक्रवार को दिप्रिंट से बात करते हुए बुद्धिराजा ने कहा कि उनके टिकट की घोषणा गुरुवार रात को की गई थी और उन्हें अपने खिलाफ दायर मामले के बारे में शुक्रवार सुबह ही पता चला. उन्होंने कहा कि वह कार्यवाही को रद्द करने के लिए पहले ही पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय में याचिका दायर कर चुके हैं.

बुद्धिराजा ने दिप्रिंट को बताया, “मैं भगोड़ा नहीं हूं. मैं यहीं हूं और खुले में घूम रहा हूं. इस सरकार ने मेरी आवाज को दबाने के लिए हर तरह के दबाव डालने के हथकंडे अपनाए हैं. इसने मेरे खिलाफ चार आपराधिक मामले दर्ज कराए हैं.”

दिप्रिंट से बात करते हुए कानूनी विशेषज्ञों ने बताया कि किसी को पीओ घोषित करने के लिए एक लिखित अदालती उद्घोषणा जारी किया जाना जरूरी होता है, जिसमें सम्मन और गिरफ्तारी वॉरंट का प्रभाव न दिखने पर एक निर्दिष्ट स्थान और समय पर उनकी उपस्थिति की मांग की जाती है.

2005 में शुरू की गई भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 174ए, निर्दिष्ट स्थान और समय पर घोषित अपराधियों (Proclaimed Offender) की उपस्थिति न होने को अपराध मानती है.

करनाल में 25 मई को मतदान होना है.

बुद्धिराजा के खिलाफ कोर्ट का आदेश

दिप्रिंट द्वारा प्राप्त अदालती कार्यवाही के रिकॉर्ड के अनुसार, 7 अक्टूबर, 2023 को, पंचकुला की मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट डॉ. रजनी कौशल ने 2018 के सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने के मामले में बुद्धिराजा के खिलाफ उद्घोषणा आदेश जारी किया. इसके अतिरिक्त, उन्होंने पुलिस को आगे की कार्रवाई के लिए बुद्धिराजा की संपत्तियों की एक सूची बनाने का निर्देश दिया.

15 दिसंबर को अगली सुनवाई में, अदालत ने निर्देश दिया कि सेक्टर 14 पुलिस स्टेशन, पंचकुला के SHO को दिव्यांशु बुद्धिराजा के PO के रूप में उद्घोषणा के बारे में सूचित किया जाए.

अदालत की सूचना पर कार्रवाई करते हुए पुलिस ने इस साल 3 जनवरी को आईपीसी की धारा 174ए के तहत बुद्धिराजा के खिलाफ एफआईआर दर्ज की.

अदालत के रिकॉर्ड में कहा गया है, “आरोपी दिव्यांशु बुद्धिराजा के खिलाफ जारी गिरफ्तारी वॉरंट बिना तामील हुए वापस आ गया. रिकॉर्ड देखने से पता चलता है कि आरोपी दिव्यांशु बुद्धिराजा के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट को तामील करने के लिए पहले ही पर्याप्त अवसर दिए जा चुके हैं. यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि आरोपी को वर्तमान मामले के लंबित होने के बारे में उचित जानकारी है क्योंकि वह पहले भी यही कर रहे थे और ऐसा लगता है कि आरोपी जानबूझकर उसकी तामील से बच रहा है.”

इसमें कहा गया है कि, ऐसी परिस्थितियों में, अदालत इस बात से संतुष्ट है कि आरोपी की उपस्थिति प्रक्रिया के सामान्य तरीकों से सुनिश्चित नहीं की जा सकती है.

आरोपी दिव्यांशु बुद्धिराजा के खिलाफ सीआरपीसी 1973 की धारा 82 (1) के तहत एक उद्घोषणा जारी की जाए, जिसमें उसे तारीख से 30 दिनों के भीतर किसी भी समय इस अदालत में पेश होने की जरूरत होगी.”

सीजेएम ने यह भी निर्देश दिया कि उद्घोषणा को आरोपी के गांव या कस्बे में सार्वजनिक रूप से प्रदर्शित किया जाए, और एक प्रति उसके निवास पर चिपकाई जाए व दूसरी प्रति अदालत में लगाई जाए.

उसके खिलाफ मुकदमा

बुद्धिराजा के खिलाफ मामला एनएसयूआई अध्यक्ष के रूप में उनके द्वारा किए गए विरोध प्रदर्शन से उपजा है.

सेक्टर 5 पुलिस स्टेशन, पंचकुला के सब-इंस्पेक्टर राजिंदर सिंह की शिकायत के आधार पर, बुद्धिराजा, हार्दिक नैन, प्रताप राणा और दो से तीन अज्ञात व्यक्तियों के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई, जिन्हें आईपीसी की धारा 147 (दंगा) 186 (लोकसेवक को उसके कार्य से रोकना) 353 (लोक सेवक पर हमला) और 341 (गलत तरीके से रोकना) के तहत गिरफ्तार किया गया.

बाद में, 28 जनवरी, 2018 को नगर निगम आयुक्त राजेश जोगपाल की शिकायत पर सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान पहुंचाने के आरोप में पंचकुला के सेक्टर 14 पुलिस स्टेशन में एक और प्राथमिकी दर्ज की गई.

शिकायतकर्ता, जिसने आरोपी के रूप में किसी का नाम नहीं लिया, ने आरोप लगाया कि एनएसयूआई ने सेक्टर 14 चौराहे पर बिना अनुमति के होर्डिंग्स लगाए थे. इस मामले में, अदालत ने एनएसयूआई के तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष बुद्धिराजा को पीओ घोषित कर दिया और एसएचओ को उनके खिलाफ आईपीसी की धारा 174ए के तहत मामला दर्ज करने का निर्देश दिया.

शिकायतकर्ता ने एफआईआर में कहा, “यह देखा गया है कि एनएसयूआई ने पंचकुला के अधिकांश चौराहों पर कई फ्लेक्स साइन बोर्ड/होर्डिंग्स लगाए हैं. इन साइनबोर्ड्स को लगाने के लिए किसी भी व्यक्ति या एसोसिएशन द्वारा निगम से इसके लिए कोई अनुमति नहीं मांगी गई. हरियाणा संपत्ति विरूपण निवारण अधिनियम, 1989 के तहत साइनबोर्ड/होर्डिंग लगाना प्रतिबंधित है.” एफआईआर की एक प्रति दिप्रिंट के पास है.

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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