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Thursday, 6 November, 2025
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हरियाणा ने 1761 के पानीपत युद्ध के मराठा वीरों के सम्मान के लिए ज़मीन अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी की

इतिहासकारों का कहना है कि यह प्रोजेक्ट महाराष्ट्र में मराठाओं को साधने की कोशिश लगता है, लेकिन हरियाणा और महाराष्ट्र की BJP सरकारों द्वारा गढ़ गए नैरेटिव में कुछ विरोधाभास हैं.

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गुरुग्राम: हरियाणा ने पानीपत के ऐतिहासिक काला आंब स्थल पर ‘शौर्य स्मारक’ बनाने के लिए ज़मीन के अधिग्रहण की प्रक्रिया पूरी कर ली है. यह प्रोजेक्ट महाराष्ट्र के साथ मिलकर बनाया जा रहा है, जिससे दोनों राज्यों के सदियों पुराने साझा इतिहास को जोड़ा जा सके.

यह प्रोजेक्ट 23 एकड़ में फैला होगा और मौजूदा काला आंब वॉर मेमोरियल के पास बनेगा. इसका उद्देश्य 1761 में हुए तीसरे पानीपत युद्ध में लड़ने वाले मराठा योद्धाओं की वीरता को यादगार बनाना है.

हरियाणा सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के महानिदेशक मकरंद पांडुरंग, जो इस प्रोजेक्ट के लिए नोडल अधिकारी हैं, उन्होंने दिप्रिंट से कहा कि सरकार ने काला आंब स्थल पर 16 एकड़ ज़मीन अधिग्रहित कर ली है, जबकि म्यूज़ियम वाली बाकी ज़मीन पहले से ही सरकार के पास है.

उन्होंने कहा, “प्रोजेक्ट की रूपरेखा बनाने और विस्तृत प्रोजेक्ट रिपोर्ट (डीपीआर) तैयार करने के लिए कंसल्टेंट चुनने की प्रक्रिया चल रही है. टारगेट है कि 10 जनवरी 2026 को आधारशिला रखी जाए. हरियाणा और महाराष्ट्र दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री इस कार्यक्रम में मुख्य अतिथि होंगे. महाराष्ट्र सरकार चाहती है कि इसमें मराठा पहचान साफ झलके, क्योंकि तीसरे पानीपत युद्ध में मराठाओं की महत्वपूर्ण भूमिका थी.”

सूचना एवं जनसंपर्क विभाग के अतिरिक्त निदेशक रणबीर सांगवान ने दिप्रिंट को बताया कि महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के अतिरिक्त मुख्य सचिव विकास खरगे इस साल जून में प्रस्तावित स्थल का निरीक्षण करने हरियाणा अधिकारियों के साथ पहुंचे थे.

उन्होंने कहा कि दोनों राज्यों के वरिष्ठ अधिकारी मिलकर एक संयुक्त समिति बनाएंगे, जो डिज़ाइन और प्लानिंग के लिए कंसल्टेंट की नियुक्ति करेगी. अनुभवी कंसल्टेंट इस जगह को विश्वस्तरीय पर्यटन स्थल बनाने की योजना बनाएंगे.

उन्होंने आगे बताया कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) से मदद ली जाएगी और कॉन्सेप्ट डिज़ाइन को लेकर महाराष्ट्र सरकार से चर्चा की जाएगी. इतिहास को सही और आधुनिक तरीके से सामने लाने के लिए प्रसिद्ध इतिहासकारों से सलाह ली जाएगी. बैठक में जो सुझाव दिए गए, उनमें छत्रपति शिवाजी महाराज की बड़ी प्रतिमा लगाना, स्थानीय हस्तशिल्प को बढ़ावा देने के लिए दुकानों की व्यवस्था, कैफेटेरिया, म्यूज़ियम, इंटरप्रिटेशन सेंटर और लाइट-एंड-साउंड शो की व्यवस्था शामिल हैं.

सांगवान ने बताया कि समीक्षा बैठक में खरगे ने कहा कि यह प्रोजेक्ट दोनों राज्यों के बीच आपसी सम्मान और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को दिखाएगा.

सांगवान ने कहा, “उन्होंने कहा कि दिल्ली में प्रधानमंत्री संग्रहालय की तरह इसमें कई आधुनिक सुविधाएं होंगी. महाराष्ट्र ने आश्वासन दिया है कि वह हरियाणा को इस प्रोजेक्ट को पूरा करने में पूरी मदद करेगा.”

शौर्य स्मारक

14 जनवरी 1761 को हुई तीसरी पानीपत की लड़ाई भारतीय उपमहाद्वीप के इतिहास की सबसे विनाशकारी लड़ाइयों में से एक मानी जाती है. इस युद्ध में विशाल मराठा संघ—जिसका नेतृत्व सदाशिवराव भाऊ कर रहे थे और जो हिंदू पुनर्जागरण की एक बड़ी सोच का प्रतीक था—का सामना अफगान शासक अहमद शाह दुर्रानी (अबदाली) की आक्रमणकारी सेना से हुआ था.

मराठा अपनी शक्ति के चरम पर थे और दिल्ली पर अपना नियंत्रण मजबूत करने तथा अफगानों के हमलों को रोकने के लिए उत्तर की ओर बढ़े थे. उनकी सेना में लगभग 75,000 से 1,00,000 सैनिक थे और उनके पास तोपखाना था तथा कुछ राजपूत साथी भी साथ थे. उनका उद्देश्य उत्तर भारत में मराठा साम्राज्य को स्थापित करना था, लेकिन इस अभियान को रसद की कमी, आपूर्ति की दिक्कतों और आंतरिक मतभेदों ने कमज़ोर कर दिया. वहीं अबदाली की सेना लगभग 60,000 घुड़सवारों के साथ थी, जो तेज़ और फुर्तीली थी और उसने मराठों की कमजोरियों का फायदा उठाया.

आंखों देखे हालात लिखने वाले लोगों ने बताया कि नदियां तक खून से लाल हो गई थीं. कहा जाता है कि एक आम का बगीचा, जो उस खून से सींचा गया, ‘काला आंब’ या ‘ब्लैक मैंगो’ कहलाने लगा, क्योंकि वहां के पेड़ों का रंग मानो खून से गहरा पड़ गया था. यह स्थान आज भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा संरक्षित एक शांत पार्क है और बलिदान और साहस का प्रतीक है.

काला आंब स्थल को 2017 में तब विशेष महत्व मिला जब महाराष्ट्र पर्यटन विभाग के मंत्री जयकुमार रावल ने यहां एक “शौर्य म्यूज़ियम” बनाने का प्रस्ताव रखा. हालांकि, शुरुआती योजनाएं बनाई जा रही थीं, लेकिन असली गति 2024 महाराष्ट्र चुनावों के बाद आई.

जनवरी 2025 में, ‘शौर्य दिवस’ कार्यक्रम के दौरान, देवेंद्र फडणवीस ने घोषणा की कि महाराष्ट्र यहां के नवीनीकरण और युद्धस्थल पर छत्रपति शिवाजी महाराज की प्रतिमा के निर्माण के लिए पूरा सहयोग देगा. उन्होंने हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी के साथ संयुक्त कार्यक्रम आयोजित करने का प्रस्ताव दिया ताकि दोनों राज्यों के सांस्कृतिक संबंध और मजबूत हो सकें.

इतिहासकार और राजनीतिक विश्लेषक की राय

सरोज भान भारद्वाज, जो एक जाने-माने भारतीय इतिहासकार हैं और 2020 में दिल्ली यूनिवर्सिटी के एक कॉलेज के प्रिंसिपल पद से रिटायर हुए, उन्होंने दिप्रिंट से कहा कि इस प्रोजेक्ट का मुख्य मकसद लगता है कि महाराष्ट्र में मराठाओं को खुश करना है, लेकिन हरियाणा और महाराष्ट्र की बीजेपी सरकारें जिस तरह की कहानी बना रही हैं, उसमें कई तरह के विरोधाभास हैं.

भारद्वाज ने कहा, “पहला विरोधाभास यह है कि 1761 में पानीपत में अहमद शाह अब्दाली की सेना से लड़ने आए मराठे वो मराठे नहीं थे जो महाराष्ट्र से थे और जिन्हें खुश करने के लिए आज बीजेपी पानीपत में शौर्य स्मारक बनाना चाहती है. उस समय जो मराठा सेना यहां आई थी, वो ग्वालियर के सिंधिया थे. मराठों की पांच प्रमुख वंश हैं— ग्वालियर के सिंधिया, इंदौर के होल्कर, बड़ौदा के गायकवाड़, सतारा के भोंसले और पुणे के पेशवा. बीजेपी जिन पेशवा और भोंसलों को खुश करना चाहती है, असलियत यह है कि उन्होंने तो पानीपत की तीसरी लड़ाई में हिस्सा ही नहीं लिया.”

पानीपत के ऐतिहासिक ‘काला आंब’ स्थल की तस्वीर, जहां महाराष्ट्र के सहयोग से एक प्रोजेक्ट बनाया जाएगा, ताकि दोनों राज्यों के सदियों पुराने साझा इतिहास को जोड़ा जा सके | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट
पानीपत के ऐतिहासिक ‘काला आंब’ स्थल की तस्वीर, जहां महाराष्ट्र के सहयोग से एक प्रोजेक्ट बनाया जाएगा, ताकि दोनों राज्यों के सदियों पुराने साझा इतिहास को जोड़ा जा सके | फोटो: स्पेशल अरेंजमेंट

उन्होंने बताया कि यह ऐतिहासिक तथ्य है कि मुगल सम्राट शाह आलम और उससे पहले आलमगीर-II (1757-1759) ने सिंधियाओं को लिखा था कि मुगल सेना अब्दाली से लड़ने के लिए पर्याप्त मजबूत नहीं है और अफगान आक्रमणकारी को हराने में उनकी मदद चाहिए.

उन्होंने समझाया, “उस समय भारत में असल सैन्य शक्ति सिंधिया और होल्कर के पास थी, पेशवा या भोंसलों के पास नहीं. उन्होंने पहले ही मुगल साम्राज्य से समझौते कर रखे थे कि वे मुगलों की रक्षा करेंगे और बदले में चौथ और सरदेशमुखी (कर) वसूलने का अधिकार लेंगे. इसी वजह से सिंधिया की सेना ग्वालियर से यहां अब्दाली की सेना से लड़ने आई. जब सिंधिया आए, तो शाह आलम ने अपने साम्राज्य के प्रतीकात्मक अधिकार उन्हें सौंप दिए. सिंधियाओं का अब्दाली से कोई सीधा झगड़ा नहीं था, लेकिन वे मुगल सम्राट शाह आलम की मदद करने आए थे. वे यह लड़ाई हार गए और हज़ारों सैनिक खो दिए.”

भारद्वाज ने कहा कि हरियाणा सरकार का महाराष्ट्र सरकार के साथ मिलकर शौर्य स्मारक बनवाना एक और विरोधाभास है, क्योंकि भरतपुर के महाराजा सूरज मल, जिनका राज्य आज के राजस्थान, हरियाणा, दिल्ली और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में फैला था, उन्होंने सिंधियाओं को इस युद्ध में न जाने की सलाह दी थी और उन्होंने स्वयं भी इस लड़ाई में हिस्सा नहीं लिया था.

उन्होंने कहा, “लोकप्रिय कहानियों में अक्सर कहा जाता है कि महाराजा सूरज मल ने मराठों का साथ नहीं दिया, इसलिए उन्हें गलत ठहराया जाता है, लेकिन असल इतिहास बताता है कि महाराजा सूरज मल की सेना की रणनीति समझदारी भरी थी और मराठा सेनापति सदाशिवराव भाऊ ने उनकी सलाह को नज़रअंदाज़ कर दिया.”

उन्होंने आगे कहा कि यह भी सच है कि महाराजा सूरज मल सिंधियाओं से खुश नहीं थे, क्योंकि वे उनसे लगातार बढ़ता हुआ सरदेशमुखी कर मांगते थे. राजपूत राजा भी मराठों से नाराज़ थे, इसलिए वे बाद में अंग्रेजों के करीब चले गए.

उन्होंने कहा, “लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि महाराजा सूरज मल ने कोई मदद नहीं की. जब मराठा यह लड़ाई हारकर ग्वालियर लौट रहे थे, तब महाराजा सूरज मल और महारानी किशोरी ने उनके सैनिकों और परिवारों को खाना, कपड़े, दवाई और पनाह दी.”

एक राजनीतिक विश्लेषक महाबीर जागलान ने कहा कि हरियाणा और महाराष्ट्र सरकार का यह शौर्य स्मारक बनवाना एक सोची-समझी राजनीतिक चाल है.

उन्होंने कहा, “हरियाणा की बीजेपी सरकार, जो राज्य में किसानों को बांटने के हर तरीके आज़माती है, वह इस प्रोजेक्ट का इस्तेमाल Rors समुदाय को अपनी तरफ आकर्षित करने में करेगी. इस समुदाय के संगठन हाल के वर्षों में कह रहे हैं कि Rors मराठों के वंशज हैं.”

उन्होंने कहा कि किसानों के 2020 और 2021 के आंदोलन और एमएसपी, फसल नुकसान और खरीद जैसे मुद्दों पर उनके लगातार विरोध ने सरकार को मुश्किल में डाला हुआ है.

उन्होंने कहा, “सरकार हमेशा कोशिश करती है कि किसानों को जाति और क्षेत्र के आधार पर बांटा जाए और जाट और जाट सिख किसानों को ही समस्या बताकर पेश किया जाए.”

उन्होंने आगे कहा, “महाराष्ट्र में भी मराठा समुदाय आरक्षण और मराठवाड़ा में किसानों के मुद्दों को लेकर सरकार से नाराज़ है. पानीपत में मराठा योद्धाओं की याद में शौर्य स्मारक बनाना बीजेपी के लिए मराठों को मनाने का तरीका है. साथ ही, यह प्रोजेक्ट बीजेपी की हिंदुत्व नीति में भी फिट बैठता है, जहां मध्यकालीन मुस्लिम शासकों को हिंदुओं के लिए ‘दुश्मन’ दिखाया जाता है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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