गुरुग्राम: क्या हरियाणा के किसानों को खेती के लिए अपने राज्य से बाहर जाना पड़ता है? क्या राज्य में खेती टिकाऊ नहीं है? मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की किसानों को खेती के लिए अफ्रीका में जमीन लेने में मदद करने की योजना आखिर कितनी व्यवहार्य है?
शनिवार को ऑडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए बाढ़ प्रभावित किसानों को संबोधित करते हुए खट्टर द्वारा अपनी योजना की घोषणा के बाद ये कुछ सवाल प्रमुक बने हुए हैं.
विदेश सहयोग के लिए मुख्यमंत्री के सलाहकार पवन कुमार चौधरी प्रस्ताव के बारे में सकारात्मक दिखे, उन्होंने कहा कि तंजानिया, कांगो, इथियोपिया, केन्या, युगांडा और रवांडा पहले ही हरियाणा के किसानों का स्वागत करने में रुचि दिखा चुके हैं.
चौधरी ने मंगलवार को दिप्रिंट को बताया, “हरियाणा के किसान इन देशों में पट्टे पर जमीन ले सकेंगे और फसल उगा सकेंगे. इन देशों में बड़ी मात्रा में कृषि भूमि है और हरियाणा के मेहनती किसान वहां फसलें उगाकर पैसा कमा सकते हैं.”
उन्होंने कहा कि सितंबर में, खट्टर ने दिल्ली में अफ्रीकी देशों के राजदूतों और दूतावास के अधिकारियों के लिए रात्रिभोज का आयोजन किया था.
18 अफ्रीकी देशों – तंजानिया, केन्या, युगांडा, रवांडा, बुरुंडी, कांगो, दक्षिण सूडान, जिबूती, इरिट्रिया, इथियोपिया, मलावी, सेशेल्स, मॉरीशस, जाम्बिया, बोत्सवाना, नामीबिया, मेडागास्कर, जिम्बाब्वे के राजदूत और दूतावास के अधिकारी इस आयोजन में शामिल हुए.
चौधरी ने कहा कि राज्य तब से इन देशों के संपर्क में है और विभिन्न क्षेत्रों में हरियाणा के लोगों के लिए अवसरों की संभावनाओं पर गौर कर रहा है.
लेकिन, खट्टर के पूर्ववर्ती और विपक्ष के नेता भूपिंदर सिंह हुड्डा ने कहा कि यह कहना जितना आसान है, करना उतना आसान नहीं है क्योंकि अफ्रीकी देशों में खेती के लिए बहुत सारे संसाधनों की आवश्यकता होती है.
हुड्डा ने सवाल किया, “संसाधन कहां हैं? हमारे अधिकांश किसान पहले से ही भारी कर्ज में डूबे हुए हैं. वे अफ्रीकी देशों में खेती शुरू करने के लिए आवश्यक साधन कहां से लाएंगे.”
कांग्रेस नेता ने कहा कि उन्होंने भी 2005 से 2014 के अपने कार्यकाल के दौरान अफ्रीकी देशों में किसानों को जमीन दिलाने की सुविधा के लिए प्रयास शुरू किए थे. उन्होंने बुधवार को दिप्रिंट को बताया, “अफ्रीकी देशों में जमीन की कोई कमी नहीं है और लोगों को हजारों एकड़ जमीन मिल सकती है. हालांकि, इसके लिए भूमि और कृषि उपकरणों में बहुत अधिक निवेश की आवश्यकता है.”
राज्य के कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अनुसार, लगभग 70 प्रतिशत निवासी कृषि में लगे हुए हैं. इसमें कहा गया है कि हरियाणा खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर है और भारत के केंद्रीय खाद्यान्न पूल में दूसरा सबसे बड़ा योगदानकर्ता है. राज्य में 3.74 मिलियन हेक्टेयर (हरियाणा की 84.6 प्रतिशत भूमि) खेती योग्य क्षेत्र के अंतर्गत आती है.
जबकि 8.02 लाख (49.29 प्रतिशत) सीमांत किसान हैं (एक हेक्टेयर तक भूमि वाले), 3.14 लाख (19.28 प्रतिशत) छोटे किसान हैं (1 से 2 हेक्टेयर के बीच भूमि वाले) और 5.12 लाख (31.43 प्रतिशत) अन्य श्रेणी (2 हेक्टेयर भूमि से ऊपर) में आते हैं.
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किसान संगठन खुश नहीं
हुड्डा की तरह किसान सभा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष इंद्रजीत सिंह और राष्ट्रीय किसान मंच के प्रदेश अध्यक्ष प्रह्लाद सिंह भारूखेड़ा भी मुख्यमंत्री की घोषणा से खुश नहीं थे.
सिंह ने आरोप लगाया कि केंद्र और हरियाणा की भाजपा सरकारें अपने काम से ज्यादा अपने ‘जुमलों (झूठे वादों)’ के लिए जानी जाती हैं.
उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “हरियाणा में किसानों के बच्चे अवैध तरीकों से विदेशों में बसने के लिए कृषि भूमि बेच रहे हैं, यह प्रवृत्ति पहले पंजाब तक ही सीमित थी. ऐसा इसलिए है क्योंकि सरकारी नीतियों के कारण खेती अब लाभकारी व्यवसाय नहीं रह गई है.”
सिंह ने आरोप लगाया कि किसान अपनी उपज के लिए एमएसपी सहित अपनी मांगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं, लेकिन खट्टर सरकार ध्यान भटकाने वाली रणनीति अपना रही है.
भारूखेड़ा ने जोर देकर कहा कि सरकार को इसके बजाय राज्य में किसानों की मदद करनी चाहिए. भारूखेड़ा ने दिप्रिंट को बताया, “हमारे राज्य में सबसे अच्छी कृषि भूमि और खेती के लिए उपयुक्त जलवायु परिस्थितियां हैं. यदि सरकार हमारे कल्याण में रुचि रखती है, तो उसे बेहतर बीज, रियायती लाभ और फसलों के लिए लाभकारी समर्थन मूल्य प्रदान करके हमारी स्थितियों में सुधार करने के बारे में सोचना चाहिए. एक बार यह हो जाने के बाद, किसान राज्य में कृषि उत्पादन में बदलाव ला सकते हैं.”
सिरसा जिले के वैदवाला गांव के प्रगतिशील किसान सुरिंदर सिंह वैदवाला ने मॉरीशस में अपने अनुभव साझा किए जहां वह अवसरों की तलाश में गए थे.
उन्होंने कहा, “मैं भारत-अफ्रीका फोरम शिखर सम्मेलन के सदस्य के रूप में कोविड महामारी की शुरुआत से कुछ महीने पहले 2019 में मॉरीशस गया था. शिखर सम्मेलन में अफ्रीकी देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया. मेरी रुचि उन देशों में खेती की संभावनाएं तलाशने में थी. मैंने पाया कि भूमि और श्रम कोई समस्या नहीं है, लेकिन बड़ी समस्या कृषि उपकरणों में भारी निवेश सुनिश्चित करना है.”
वैदवाला, जिनके पास बड़ी मात्रा में कृषि भूमि है, ने कहा कि विदेश में खेती में आने वाली लागत का अध्ययन करने के बाद उन्होंने यह विचार छोड़ दिया.
(संपादन: अलमिना खातून)
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