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Sunday, 3 November, 2024
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हार्दिक, अनंत, जिग्नेश – गुजरात चुनाव से पहले कांग्रेस को मजबूत करने में लगी युवा ‘दोस्तों’ की तिकड़ी

अनंत पटेल और हार्दिक पटेल कांग्रेस के सदस्य हैं, जबकि जिग्नेश मेवाणी निर्दलीय उम्मीदवार हैं, जो कांग्रेस पार्टी का समर्थन कर रहे हैं. गुजरात में कांग्रेस 1995 से सत्ता से बाहर है.

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नई दिल्ली: जैसे ही गुजरात में चुनावों को लेकर हलचल तेज हुई राज्य की कांग्रेस इकाई के लिए एक नई युवा तिकड़ी उम्मीद के रूप में उभरकर सामने आ रही है. इन दिनों वंसदा से विधायक अनंत पटेल(42) वडगाम से विधायक जिग्नेश मेवाणी(41) और पाटीदार नेता हार्दिक पटेल(28) एक साथ मंच साझा करते दिख रहे हैं.

अनंत और हार्दिक जहां कांग्रेस के सदस्य हैं, वहीं जिग्नेश निर्दलीय विधायक हैं जिन्होंने पार्टी को समर्थन दिया है.

गौरतलब है कि गुजरात में कांग्रेस 1995 से सत्ता से बाहर है. उसने 2017 में गुजरात की 182 विधानसभा सीटों में से 77 पर जीत हासिल की थी.

अनंत, हार्दिक और मेवाणी को पिछले हफ्ते गांधीनगर में एक मंच साझा करते हुए देखा गया था. गुजरात में प्रस्तावित पार-तापी-नर्मदा नदी-जोड़ने की परियोजना के खिलाफ ये तीनों अपनी आवाज बुलंद कर रहे थे. इस आंदोलन को कांग्रेस ने ‘आदिवासी सत्याग्रह’ का नाम दिया है.

पिछले बुधवार, दिल्ली में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में अनंत ने कहा था कि वे विकास के खिलाफ नहीं हैं, न तो वह और न ही कांग्रेस. लेकिन यह विकास आदिवासी समुदायों की कीमत पर नहीं होगा.

उन्होंने कहा, ‘इस ‘आंदोलन’ का मकसद आदिवासियों की रक्षा करना और उन्हें बचाना है. कांग्रेस अब तक वलसाड, तापी और डांग जिलों में विरोध प्रदर्शन कर चुकी है. हमारी योजना अभी ऐसे 14 और विरोध प्रदर्शन करने की है. नदी जोड़ने की परियोजना को बंद करने के लिखित आश्वासन के बाद ही हमारा ये विरोध थमेगा.

तापी में मेवाणी ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है. अनंत ने दिप्रिंट को बताया कि हार्दिक ने जहां भी जरूरत होगी, वहां उनके समर्थन का वादा किया है. ‘वे दोनों मेरे अच्छे साथी हैं.’

हार्दिक बताते हैं, ‘सबसे पहले, यहां सरदार सरोवर बांध था, जहां बांध का पानी आस-पास के समुदायों को नहीं मिलता है. फिर सरदार पटेल के नाम पर स्टैच्यू ऑफ यूनिटी बनाई गई. सरदार पटेल इस बात से सबसे ज्यादा परेशान होंगे कि उनके नाम पर एक स्मारक के लिए इतने सारे आदिवासियों को विस्थापित किया गया.’


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जाति समीकरण

अलग-अलग समुदायों पर इन तीनों का खासा प्रभाव है जिसके चलते ये तीनों एक बेहतरीन टीम बनाते नजर आ रहे हैं. अनंत, एक आदिवासी नेता हैं , जिग्नेश एक दलित नेता और हार्दिक एक पाटीदार हैं. ये तीनों समुदाय मिलकर गुजरात की आबादी का लगभग एक तिहाई हिस्सा हैं.

2015 में आरक्षण के मुद्दे पर हार्दिक पाटीदार आंदोलन का एक चेहरा बनकर उभरे थे. तब उन्होंने एलान किया था कि जब तक गुजरात की तत्कालीन मुख्यमंत्री आनंदीबेन पटेल उनकी मांगों को स्वीकार नहीं करेंगी, तब तक वह अपना आमरण अनशन करना जारी रखेंगे. उन्होंने राज्य की भाजपा सरकार को राज्य में 100 से ज्यादा रैलियों का आयोजन कर हिला कर रख दिया था.

उन्होंने उस समय कहा था, ‘यह पाटीदार समुदाय ही है जिसने सभी 26 लोकसभा सीटों पर भाजपा की जीत सुनिश्चित की, मंत्री बनाया और मुख्यमंत्री चुना. लेकिन अगर आप इस समुदाय को चोट पहुंचाते हैं, तो सरकार गिर जाएगी. ठीक उसी तरह जैसे एक कुर्सी के दो पैरों को खींच कर बाहर निकालने पर वह कुर्सी गिर जाती है.’

जिग्नेश दलित आंदोलन में गुजरात का एक चेहरा हैं. साहित्य के छात्र रहे मेवाड़ी सामाजिक कार्यकर्ता भी रह चुके हैं. उन्होंने वकील मुकुल सिन्हा के साथ मिलकर सफाई कर्मचारियों और सुरक्षा गार्डों के अधिकारों पर काम किया. इसके बाद उन्होंने आप में शामिल होने से पहले वकालत की ओर रुख किया था.

2016 में, गुजरात के ऊना में चार दलितों को बेरहमी से पीटा गया था. इस घटना से देश में फैले जातिगत भेदभाव के चेहरे को एक बार फिर सामने ला खड़ा कर दिया था. इसे लेकर देशभर में हंगामा बरपा था. ये घटना मेवाणी के लिए राजनिति में एक महत्वपूर्ण मोड़ बन गई. उन्होंने राष्ट्रीय दलित अधिकार मंच (आरडीएएम) की स्थापना की. इस घटना का विरोध करने के लिए उन्होंने अहमदाबाद से ऊना तक 10 दिवसीय मार्च का आयोजन किया था. और बाद में एक प्रमुख दलित आवाज के रूप में उभर कर सामने आए. उन्होंने 2017 के विधानसभा चुनावों में, निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपना पहला चुनाव लड़ा और जीत हासिल की.

पिछले सितंबर में, जब जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र संघ नेता कन्हैया कुमार दिल्ली में पार्टी मुख्यालय में कांग्रेस में शामिल हुए, तो इसने राजनीतिक गलियारों में हलचल पैदा कर दी. कार्यक्रम में मेवाणी, कन्हैया कुमार के साथ दिखे लेकिन वह आधिकारिक तौर पर पार्टी में शामिल नहीं हुए.

उसके बाद से हार्दिक के साथ इन दोनों को लेकर ‘फायरब्रांड ट्रोइका’ बनाने की अटकले लगाईं जाने लगीं, जो युवाओं के बीच पार्टी की अपील को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं. हालांकि ये चर्चा जल्द ही समाप्त हो गई. कभी-कभार होने वाली प्रेस कॉन्फ्रेंस को छोड़कर कुमार पार्टी के कार्यक्रमों से काफी हद तक गायब रहे.

कन्हैया कुमार पिछली बार जब सुर्खियों में आए थे तो उसकी वजह इंस्टाग्राम पर उनकी एक तस्वीर थी जिसमें वह खूबसूरत पहाड़ियों के बीच एक कमरे में एक किताब पढ़ते नजर आ रहे थे. इस तस्वीर ने पूर्व कम्युनिस्ट नेता को सोशल मीडिया पर ‘बेगूसराय के बुर्जुआ’ उपनाम दिया था.

कांग्रेस पार्टी की गुजरात इकाई के कार्यकारी अध्यक्ष मेवाणी और हार्दिक भी कम ही सुर्खियों में रहे. खासकर जब पार्टी ने युवाओं को लुभाने के लिए उनके प्रति ज्यादा उत्साह नहीं दिखाया.

जहां कन्हैया कुमार अपनी नई भूमिका के साथ तालमेल बिठाते दिख रहे हैं, वहीं मेवाणी और हार्दिक ने गुजरात में सत्तारूढ़ भाजपा पर दबाव बनाने के लिए अनंत पटेल के साथ हाथ मिलाया है.

नवसारी में जन्मे 42 साल के अनंत पटेल ने सूरत के वीर नर्मद दक्षिण गुजरात विश्वविद्यालय से मास्टर डिग्री और आर.के. देसाई कॉलेज ऑफ एजुकेशन से बीएड किया है. वह एक सामाजिक कार्यकर्ता और लोकप्रिय आदिवासी नेता रहे हैं. उन्होंने 2017 में कांग्रेस के टिकट पर वंसदा से चुनाव लड़ा और विधायक बने.

अनंत पार-तापी-नर्मदा नदी-लिंक परियोजना के खिलाफ आंदोलन का चेहरा बन गए हैं. इस परियोजना में परिकल्पना की गई है कि महाराष्ट्र के पश्चिमी घाटों के अतिरिक्त पानी को सिंचाई पुन बिजली और जलापूर्ति के लिए सौराष्ट्र और कच्छ के अर्धशुष्क क्षेत्रों की ओर लाया जाए.

25 मार्च को नदी जोड़ो परियोजना के विरोध में कांग्रेस ने हजारों लोगों को इकट्ठा किया और गांधीनगर में विधानसभा तक मार्च किया. विरोध करने पर कई नेताओं को हिरासत में लिया गया था.

चुनावों को देखते हुए केंद्र सरकार ने पार-तापी-नर्मदा नदी-जोड़ने की परियोजना को रोकने का फैसला किया है, लेकिन उसने इस परियोजना को पूरी तरह से बंद नहीं किया है.

नदी जोड़ने की परियोजना को रोकने के फैसले को खारिज करते हुए तीनों ने दावा किया कि ‘लोगों को बेवकूफ बनाने के लिए’ यह सिर्फ एक चुनावी हथकंडा है और चुनाव खत्म होने के बाद परियोजना फिर से शुरू हो जाएगी.

मेवाणी कहते हैं, सच तो यह है कि सरकार ने परियोजना को रोकने के लिए दबाव महसूस किया है और ये ‘अपने आप में एक छोटी सी जीत’ है.

चुनाव पर नजर, भविष्य की योजनाएं

विधानसभा में, इन तीनों में से दो विधायक हैं. इस तिगड़ी का पूरा फोकस इस साल के अंत में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव से पहले राज्य में ज्यादा से ज्यादा समर्थन जुटाना है.

हार्दिक ने दिप्रिंट को बताया कि तीनों ‘अच्छे दोस्त’ पाटीदार आंदोलन, बेरोजगारी और महिलाओं के अधिकारों जैसे मुद्दों पर एक साथ काम कर रहे हैं.

पटेल कहते हैं, ‘हम हर मुद्दे के लिए ठोस योजना बना रहे हैं. मेवाणी ने कहा कि बेरोजगारी उनके एजेंडे में एक बड़ा मुद्दा है, क्योंकि इससे सभी जूझ रहे हैं.

हार्दिक बताते हैं, ‘कांग्रेस को जिस मुद्दे पर ध्यान देने की जरूरत है, वह है राज्य में बढ़ती बेरोजगारी. हमें 25 मार्च के विरोध प्रदर्शन की अनुमति नहीं थी, फिर भी हजारों की संख्या में लोग आए. ये दिखाता है कि लोग बेरोजगारी से कितने परेशान हैं.’

मेवाणी और हार्दिक 2016 से एक-दूसरे को जानते हैं. उन्होंने कहा कि सरकार को ‘मुश्किल में डालने’ की उनकी आपसी इच्छा, दोस्ती में बदल गई.

हार्दिक ने कहा, ‘मैं जिग्नेश को 2017 से पहले से जानता था. हम एक आंदोलन से उभरे हैं और चाहते हैं कि और लोग भी हमारे साथ आएं.’

दलित और आदिवासी समुदायों के लिए काम करने की मंशा उन्हें और अनंत को साथ ले आई है.

मेवाणी ने कहा, ‘दलित और आदिवासी सबसे ज्यादा गरीब हैं और हाशिए पर हैं.’ वह आगे कहते हैं, ‘उनकी यही दशा हमें अनंत के साथ लेकर आई है.’

केंद्र सरकार की दो बड़ी परियोजनाओं – 2018 में स्टैच्यू ऑफ यूनिटी परियोजना और प्रस्तावित पार-तापी-नर्मदा परियोजना – की वजह से राज्य के आदिवासी क्षेत्रों में खासा विरोध देखने को मिल रहा है. कांग्रेस इसका फायदा उठाना चाह रही है.

मेवाणी बताते हैं, ‘काग्रेंस में युवाओं और कार्यकर्ताओं ने एकजुट होकर पार्टी को जीत दिलाने के लिए, ईमानदारी से इन मुद्दों पर एक चुनावी माहौल बनाया है.’

उन्होंने कहा कि आदिवासियों के बीच ऐसा माहौल है, जो उन्होंने पहले कभी नहीं देखा था.

वह कहते हैं, यही वजह है कि पार्टी न केवल आदिवासियों के लिए आरक्षित 28 सीटों पर जीत हासिल करेगी, बल्कि उन सभी 46 निर्वाचन क्षेत्रों में भी जीत हासिल करेगी जहां आदिवासी आबादी का दबदबा है.

मेवाणी ने आम आदमी पार्टी (आप) को भी खारिज कर दिया, जो पंजाब में अपनी शानदार जीत के दम पर गुजरात में अपनी छाप छोड़ने की उम्मीद कर रही है.

आप ने पिछले साल स्थानीय निकाय में प्रमुख विपक्षी दल बनकर, सूरत नगर निगम चुनाव में 120 में से 27 सीटें जीती थीं. आप को यह जीत कांग्रेस की कीमत पर मिली थी और कांग्रेस यहां खाली हाथ रही थी.

अनंत ने कहा, पार-तापी-नर्मदा नदी जोड़ने की परियोजना सिर्फ एक आदिवासी समस्या नहीं है – यह जमीन और जंगलों की लड़ाई है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, ‘परियोजना से लगभग 6,000 स्कूल बंद जाएंगे. यह सिर्फ नदी जोड़ने की परियोजना के खिलाफ लड़ाई नहीं है, बल्कि हमारी जमीन और जंगलों को बचाने की लड़ाई है. हम कंक्रीट के जंगलों में नहीं रहना चाहते.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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