नई दिल्ली: ऐसा लगता है कि आम आदमी पार्टी (आप) ने 2002 के बिलकिस बानो मामले में 11 दोषियों के आजीवन कारावास में विवादास्पद छूट दिए जाने पर खामोशी इख़्तियार कर ली है.
आप के कई पदाधिकारियों ने दिप्रिंट को बताया कि अरविंद केजरीवाल की अगुवाई वाली पार्टी, जो चुनावी राज्य गुजरात में अपने पदचिन्हों का विस्तार करना चाह रही है, इस मुद्दे पर बोलने की इच्छुक नहीं है क्योंकि इससे वो एक ऐसे सूबे में चुनावी बारूदी सुरंग पर चढ़ जाएगी, जो सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण के लिए जाना जाता है.
बानो का सामूहिक बलात्कार किया गया, और अभियोजन के अनुसार, उसके परिवार के 14 सदस्य- जिनमें उसकी तीन साल की बेटी सालेहा भी शामिल थी- गुजरात के रंधिकापुर गांव में एक भीड़ के हाथों मार डाले गए, जब वो मार्च 2002 में गोधरा दंगों के दौरान जान बचाकर भाग रहे थे.
मामले में दोषी ठहराए गए 11 लोग, जो सभी उम्रक़ैद की सज़ा काट रहे थे, सोमवार 15 अगस्त को गोधरा जेल से रिहा कर दिए गए, जिससे पहले बीजेपी की अगुवाई वाले राज्य के एक सरकारी पैनल ने, सज़ा में छूट की उनकी याचिका को स्वीकार कर लिया था.
दोषियों की रिहाई ने एक देशव्यापी आक्रोश पैदा कर दिया है, जिसमें – बीजेपी और आप को छोड़कर- सभी राजनीतिक पार्टियां इस क़दम की निंदा कर रही हैं.
दिल्ली के सीएम और आप के राष्ट्रीय संयोजक अरविंद केजरीवाल ने अभी तक, सोशल मीडिया या सार्वजनिक बातचीत के दौरान इस मुद्दे पर कोई टिप्पणी नहीं की है.
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दिप्रिंट ने बृहस्पतिवार को वरिष्ठ आप नेता और दिल्ली के डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया के पास निजी रूप से पहुंचकर, इस मामले पर टिप्पणी लेनी चाही लेकिन उन्होंने इस विषय पर बोलने से मना कर दिया.
आप प्रवक्ता और पार्टी में राजनीतिक मामलों की समिति के सदस्य, दुर्गेश पाठक ने बृहस्पतिवार को दिल्ली में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस से इतर कहा कि रिहाई ‘एक ग़लत चीज़ नज़र आती है’ लेकिन उन्होंने आगे कहा कि ‘हमें इस मामले के और विस्तार में जाने की ज़रूरत है कि आख़िर उन 11 दोषियों को कैसे रिहा किया गया- इसकी वैधता और तकनीकी बारीकियों को देखना होगा’.
इस मामले पर आप का रुख़ उनकी उसी रणनीति की तरह है, जो उन्होंने 2019-2020 में दिल्ली के शाहीन बाग़ में नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ हुए प्रदर्शनों के दौरान अपनाई थी.
पार्टी नेताओं के अनुसार, हालांकि आप एक धर्मनिर्पेक्ष पार्टी होने का दावा करती है, लेकिन मुसलमानों से जुड़े मामलों में आमतौर पर ये एक बारीक़ और अस्पष्ट रुख़ अपना लेती है, ताकि बीजेपी उस पर ‘मुसलमानों को ख़ुश करने वाली पार्टी’ का ठप्पा न लगा सके.
पार्टी पदाधिकारियों ने कहा कि ये भी एक कारण है, कि वरिष्ठ पार्टी नेताओं ने इसी साल दिल्ली के जहांगीरपुरी में दंगा-ग्रस्त इलाक़ों से दूसरी बनाए रखी, जब अप्रैल में हनुमान जयंती के मौक़े पर एक हिंदू जुलूस के दौरान झगड़े शुरू हो गए.
बुधवार को, जिसे आप की छिपी हुई आलोचना के तौर पर देखा जा रहा है, वरिष्ठ कांग्रेस नेता पवन खेड़ा ने पूछा कि ‘विपक्ष के कुछ वर्ग’ बिलकिस बानो केस में दोषियों की रिहाई पर ‘ख़ामोश’ क्यों बने हुए हैं.
एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन्होंने कहा: ‘वो पार्टियां जो ‘निर्भया’ को आधार बनाकर सियासत में शामिल हुई थीं, आज ख़ामोश क्यों हैं? क्या वो सिर्फ वोट लेने के लिए बनी हुई हैं?’
सेंटर फॉर दि स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़ (सीएसडीएस) के संजय कुमार ने कहा, ‘विपक्षी दलों को इस मुद्दे पर बोलना चाहिए, लेकिन आप के लिए इसमें बहुत जोखिम शामिल है’.
उन्होंने आगे कहा, ‘बहरहाल, ये सब समझने की बात है. इस मुद्दे पर आक्रामक रुख़ इख़्तियार करने से, एक आम धारणा पैदा हो सकती है कि आप मुस्लिम तुष्टीकरण में लगी है, और इससे राज्य के हिंदू वोटर नाराज़ हो सकते हैं. इस समय इस मुद्दे पर आप की ख़ामोशी के पीछे यही एक कारण दिखाई पड़ता है’.
पाठक ने कहा ‘एक बात जो यक़ीन के साथ कही जा सकती है, वो ये कि इस तरह के मामले बहुत संवेदनशील नेचर के होते हैं, और जब कोर्ट ने एक आदेश जारी कर दिया है, तो राज्य सरकार को कोर्ट के निर्देशों का कड़ाई के साथ पालन करना चाहिए’.
उन्होंने आगे कहा, ‘जब अदालत ने उन्हें (दोषियों को) दोषी क़रार दिया है, तो मौजूदा गुजरात सरकार द्वारा उनकी रिहाई एक ग़लत क़दम नज़र आती है’.
AAP का औचित्य
एक वरिष्ठ आप नेता ने, जो अपनी पहचान नहीं बताना चाहते थे, कहा कि पार्टी का ‘गुजरात प्रचार विकास और कल्याण के मुद्दों के इर्द-गिर्द केंद्रित है’.
नेता ने आगे कहा, ‘यही वो मॉडल है जिसका हमने पंजाब में पालन किया है, जहां इसी साल हम विजयी रहे, और दूसरे राज्यों में भी हम इसी पर चल रहे हैं. हम सांप्रदायिक राजनीति से दूरी बनाए रखने की कोशिश कर रहे हैं. राज्य में बीजेपी हमारी मुख्य विरोधी है, लेकिन दोषियों की रिहाई के मुद्दे पर उन पर हमला करना आप के लिए उल्टा पड़ सकता है’.
पार्टी के एक दूसरे वरिष्ठ पदाधिकारी ने आगे कहा कि गुजरात में आप के जनाधार में अधिकतर वो लोग हैं, जो वैचारिक रूप से बीजेपी के साथ थे, लेकिन फिर बेरोज़गारी, कुछ विशिष्ट क्षेत्रों में विकास के अभाव और महंगाई जैसे मुद्दों पर पार्टी के खिलाफ हो गए हैं.
पदाधिकारी ने कहा, ‘अगर आप बिलकिस मामले में बीजेपी के क़दम के खिलाफ रुख़ लेती है, तो ऐसे मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा नाराज़ हो सकता है. एक पार्टी के तौर पर हम फैसले के खिलाफ थे, लेकिन हम निश्चित नहीं हैं कि क्या इस समय इस मुद्दे पर एक सार्वजनिक रुख़ लेना एक सही क़दम होगा’.
गुजरात में इसी साल चुनाव होने जा रहे हैं, और आप ने राज्य में एक भारी प्रचार अभियान छेड़ा हुआ है.
बीजेपी भी, जिसके अब सत्ता में छह लगातार कार्यकाल हो गए हैं, दोषियों की रिहाई के मुद्दे पर अभी तक चुप्पी साधे हुए है.
इस साल मार्च में, बिलकिस बानो मामले के एक दोषी राधेश्याम भगवानदास शाह ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाकर गुहार लगाई थी कि गुजरात सरकार को समय से पहले रिहाई की उसकी याचिका पर, विचार करने का निर्देश जारी किया जाए. उसने कहा था कि इस साल 1 अप्रैल तक दोषी पहले ही 15 साल और चार महीने जेल में बिता चुके थे.
अपने जवाब में गुजरात सरकार ने कोर्ट को बताया कि चूंकि इस मामले में मुक़दमा महाराष्ट्र में पूरा हुआ था, इसलिए समय से पहले रिहाई की उसकी याचिका महाराष्ट्र सरकार के समक्ष दायर की जानी चाहिए.
लेकिन, इस साल 13 मई को दिए गए एक फैसले में, न्यायमूर्तियों अजय रस्तोगी और विक्रम नाथ की सुप्रीम कोर्ट की एक बेंच ने कहा कि चूंकि अपराध गुजरात में किया गया था, इसलिए सामान्य स्थिति में मुक़दमा भी गुजरात में ही चलाया जाता, इसलिए दोषियों की याचिका पर गुजरात सरकार को ही विचार करना चाहिए.
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