नई दिल्ली: नरेंद्र मोदी सरकार केंद्रीय योजनाओं में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए एक ‘विशेष हिस्सा’ निर्धारित करने की योजना बना रही है, जैसा अभी एससी और एसटी के लिए होता है. दिप्रिंट को मिली जानकारी में यह बात सामने आई है. यह कदम इस साल के अंत में हिमाचल प्रदेश और गुजरात में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले उठाने की तैयारी है, जहां एक बड़ा हिस्सा ओबीसी आबादी का है.
ओबीसी कल्याण पर संसदीय समिति की ‘लगातार मांग’ के मद्देनजर सामाजिक न्याय मंत्रालय ने नीति आयोग को पत्र लिखकर पूछा है कि क्या ओबीसी के लिए ‘स्पेशल कंपोनेंट प्लान’ बनाया जा सकता है. योजना का प्रस्ताव करने वाले दस्तावेज दिप्रिंट ने देखे हैं.
सरकारी सूत्रों ने कहा कि इस विचार पर आगे की चर्चा के लिए इसे प्रधानमंत्री कार्यालय (पीएमओ) के समक्ष भी उठाया गया है.
एक सरकारी अधिकारी ने कहा, ‘मुद्दा काफी गंभीर है और फिलहाल इस पर मंथन जारी है. इसे चर्चा के लिए नीति आयोग और पीएमओ के समक्ष रखा गया है और उसके आधार पर ही कोई फैसला लिया जाएगा.’
‘स्पेशल कंपोनेंट प्लान’ के तहत केंद्र और राज्य की योजनाओं में खासतौर पर एससी और एसटी के लिए आवंटित धन को जोड़ा जाता है.
मौजूदा समय में, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए ‘स्पेशल कंपोनेंट प्लान’ के तहत सरकारी योजनाओं के आवंटन का एक निश्चित प्रतिशत उनके कल्याण पर खर्च के लिए आरक्षित है और 41 मंत्रालय और विभाग इस पर अमल कर रहे हैं. 2022-23 के लिए अकेले अनुसूचित जाति के कल्याण के लिए 1.15 लाख करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं.
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संसदीय समिति की रिपोर्ट
2018-19 में ओबीसी कल्याण पर संसदीय समिति की एक रिपोर्ट में कहा गया था कि वह ‘इस पर ध्यान दिलाने के लिए बाध्य है कि अन्य पिछड़े वर्गों (ओबीसी)—जो कि मंडल आयोग की रिपोर्ट के अनुसार देश की कुल आबादी का 52 प्रतिशत है और 2004-05 (61वां रिकॉर्ड) में किए गए राष्ट्रीय नमूना सर्वेक्षण के मुताबिक 41 प्रतिशत है—के कल्याण पर होने वाला केंद्रीय खर्च सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के कुल कोष के 18 से 20 प्रतिशत तक ही है.’
रिपोर्ट में बताया गया कि ओबीसी के बीच गरीबी और बेरोजगारी की दर काफी अधिक थी और सिफारिश की कि ‘ओबीसी कल्याण के लिए केंद्र की तरफ से तत्काल धन आवंटित किया जाए.’
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘समिति की राय है कि ओबीसी के बीच गरीबी और बेरोजगारी को तत्काल दूर करने के उद्देश्य से ओबीसी कल्याण पर केंद्रीय आवंटन की व्यापक समीक्षा की जरूरत है.’
रिपोर्ट में कहा गया था, ‘इस संबंध में समिति यह भी याद करती है कि ओबीसी कल्याण समिति ने 30.08.2013 को संसद में प्रस्तुत अपनी तीसरी रिपोर्ट (पंद्रहवीं लोकसभा) में सिफारिश संबंधी पैरा संख्या 2.2 और 2.3 में इस मुद्दे को रेखांकित किया. हालांकि, तबसे देश में ओबीसी की स्थिति में कोई बहुत सुधार नहीं हुआ है.’
वहीं स्पेशल कंपोनेंट पर बीजेपी के एक नेता ने कहा, ‘जब हमारे पास एससी और एसटी के लिए ऐसी योजना है तो यह ओबीसी के लिए क्यों नहीं होनी चाहिए? अगर इस तरह की योजना लागू की जाती है तो इससे समुदाय के उत्थान में मदद मिलेगी.’
1995 से ही गुजरात की सत्ता में काबिज भाजपा राज्य में एक बार फिर अपनी जीत सुनिश्चित करने की कोशिश में लगी है. एक अनुमान के मुताबिक, राज्य में ओबीसी—मुस्लिम ओबीसी को छोड़कर—की आबादी 35.6 प्रतिशत है. हिमाचल प्रदेश में कुल आबादी में लगभग 18 प्रतिशत ओबीसी हैं.
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