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Tuesday, 14 October, 2025
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‘सरकार नागरिकों को यूं डराती नहीं रह सकती’: कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व IAS कन्नन गोपीनाथन

केरल के कोट्टायम जिले के पूर्व सिविल सेवक का कहना है कि राजनीति में शामिल होने का निर्णय छह साल के आत्ममंथन और विचार-विमर्श के बाद लिया गया.

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नई दिल्ली: जम्मू-कश्मीर (J&K) से अनुच्छेद 370 हटाए जाने और उसके बाद नागरिक आज़ादियों पर कार्रवाई से निराश होकर छह साल पहले सिविल सेवा छोड़ने वाले पूर्व भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) अधिकारी कनन गोपीनाथन ने अब राजनीति में कदम रखा है.

“मैंने छह साल पहले आईएएस की नौकरी छोड़ दी थी क्योंकि मुझे लगा कि नौकरी में रहते हुए मैं नागरिकों के मौलिक अधिकारों में कमी के खिलाफ आवाज नहीं उठा सकता,” गोपीनाथन ने कांग्रेस में शामिल होने के कुछ घंटे बाद दिप्रिंट से कहा. “यह सरकार नागरिकता जैसे बुनियादी अधिकारों पर लोगों को डराने-धमकाने का काम कर रही थी और अपनी अंतरात्मा की पुकार पर मैंने सेवा छोड़ दी थी.”

उन्होंने कहा, “मेरे लिए यह बिल्कुल साफ है कि दो तरह की नागरिकता नहीं हो सकती, नागरिकों के पास स्वतंत्रता के बिना नागरिकता नहीं हो सकती, और नागरिकता का बोझ लोगों पर नहीं डाला जा सकता.” उन्होंने यह बात मोदी सरकार के तहत दिसंबर 2019 में संसद से पारित नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के संदर्भ में कही.

IAS से इस्तीफा देने के बाद गोपीनाथन का रास्ता मुश्किलों, ट्रोलिंग और उत्पीड़न से भरा रहा.

“मेरा जीवन बहुत पारंपरिक था — मैंने इंजीनियरिंग की, नौकरी की, IAS में गया, शादी की आदि. इसलिए मैंने इसके बाद की योजना नहीं बनाई थी,” उन्होंने कहा. “इस्तीफा देने के बाद के शुरुआती महीनों में मैंने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ आंदोलन खड़ा करने में वक्त लगाया क्योंकि भारतीयों की यात्रा ‘प्रजा से नागरिक’ बनने तक मेरे लिए बहुत मायने रखती है.”

उन्होंने कहा, “यह सरकार नागरिकता जैसे बुनियादी मुद्दे पर लोगों को डराने लगी थी, और यह किसी लोकतंत्र में स्वीकार्य नहीं है.”

“लोकतंत्र में नागरिक और मतदाता सरकार चुनते हैं, न कि सरकार नागरिकों को,” उन्होंने कहा. “और सरकार आखिर है क्या? ज़मीनी स्तर पर तो यह तय करने वाला एक पटवारी या तहसीलदार होता है कि कोई व्यक्ति भारतीय है या नहीं. लोकतंत्र में यह नहीं चल सकता.”

जैसे-जैसे उन्हें लगा कि कांग्रेस पार्टी इन अधिकारों की रक्षा के पक्ष में खड़ी है, खासकर राहुल गांधी के नेतृत्व में, उन्होंने पार्टी में शामिल होने का फैसला किया.

“कांग्रेस में शामिल होना मेरे छह साल के आत्ममंथन और विचार का परिणाम है,” केरल निवासी गोपीनाथन ने कहा.

“पहला सवाल यह था कि संगठित राजनीति में शामिल होकर क्या मैं अपनी वह आवाज खो दूंगा जिसके लिए मैंने IAS छोड़ी थी. दूसरा, मुझे कांग्रेस के उन आदर्शों और विचारधारा को देखना था जिनके लिए यह पार्टी दशकों से लड़ती आई है, और केवल बाहरी छवि पर ध्यान नहीं देना था — जैसे कि मुझे कोई नेता पसंद है या नहीं, या किसी एक मुद्दे पर पार्टी की राय से मैं सहमत हूं या नहीं.”

उन्होंने कहा, “आज वह आत्ममंथन और विचार का परिणाम सामने आया.”

AGMUT (अरुणाचल प्रदेश-गोवा-मिजोरम और केंद्र शासित प्रदेश) कैडर के 2012 बैच के IAS अधिकारी गोपीनाथन 2018 में केरल की विनाशकारी बाढ़ के दौरान राहत कार्यों में अपनी भूमिका के लिए चर्चा में आए थे. लेकिन एक साल बाद, उन्होंने सबको चौंकाते हुए इस्तीफे की घोषणा की, जब केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 रद्द किया और जम्मू-कश्मीर का दर्जा घटाकर केंद्र शासित प्रदेश कर दिया.

छह साल बाद भी सरकार ने उनका इस्तीफा स्वीकार नहीं किया है. उन्होंने कहा, “मेरे बाद इस्तीफा देने वाले कई अधिकारियों के इस्तीफे मंजूर हो गए, लेकिन मेरा अब तक नहीं हुआ.”

इस वजह से वे निजी क्षेत्र में नौकरी नहीं कर सके. “मैं किसी कंपनी में शामिल नहीं हो सका क्योंकि मुझे सेवा से औपचारिक रूप से मुक्त नहीं किया गया. इसलिए मैं यहां-वहां सलाहकार के रूप में ही काम कर सका,” उन्होंने कहा. “इससे मुझे और मेरे परिवार को आर्थिक दिक्कतों का सामना करना पड़ा.”

गोपीनाथन के इस्तीफे के दो महीने बाद, गृह मंत्रालय (MHA) ने उनके खिलाफ “दुर्व्यवहार” और “अशोभनीय आचरण” के आरोप में विभागीय जांच का प्रस्ताव रखा.

आरोपों में कहा गया कि उन्होंने आचरण नियमों का उल्लंघन किया, जो किसी अधिकारी को “सरकारी नीतियों पर बिना अनुमति मीडिया से संवाद करने” और “सरकारी नीतियों की आलोचना करने” से रोकते हैं, जिससे “केंद्र सरकार के अन्य संगठनों या विदेशी राज्यों के साथ संबंधों को नुकसान पहुंच सकता है.”

जब कोविड महामारी फैली, तो सरकार ने उन्हें दोबारा IAS में शामिल होने के लिए कहा, नहीं तो एक साल की सज़ा या जुर्माना हो सकता था.

उन्होंने कहा, “किसी असहज आवाज को चुप कराने का सबसे आसान तरीका है उसे बदनाम करना, और मेरे साथ भी यही किया गया. उन्होंने मेरे बारे में झूठी कहानियां गढ़ीं. छह साल हो गए हैं, और आज तक मेरा इस्तीफा स्वीकार नहीं किया गया है.”

उन्होंने कहा कि यह तो पता नहीं कि सरकार ने जानबूझकर उन्हें परेशान करना चाहा या नहीं, लेकिन उनके कदमों का नतीजा परेशान करने वाला ही रहा.

ब्यूरोक्रेसी की स्थिति पर बोलते हुए, कन्नन ने कहा कि अफसरों का इस्तेमाल लोगों को डराने-धमकाने के औजार के तौर पर किया जाता है. “इस सरकार ने सिविल सर्विस अधिकारियों के लिए दो रास्ते बना दिए हैं—खुद को बचाना या सही काम करना. अक्सर लोग पहला रास्ता चुनते हैं,” उन्होंने कहा. “खासकर तब जब वे देखते हैं कि सही काम करने का नतीजा सिर्फ उत्पीड़न होता है.”

2018 में, बाढ़ से तबाह केरल में राहत शिविरों में बिना अपनी पहचान बताए आठ दिनों तक काम करने के लिए कन्नन की खूब सराहना हुई थी.

रिपोर्टों के मुताबिक, कन्नन ने कोच्चि बंदरगाह शहर में राहत सामग्री के भारी पैकेट खुद अपने सिर पर उठाकर ट्रकों से उतारे थे. लेकिन जब लोगों ने उन्हें एक IAS अफसर के रूप में पहचान लिया, तो वह चुपचाप शहर छोड़कर चले गए.

उनके इस्तीफे के समय, रिटायर्ड IAS अधिकारी अनिल स्वरूप ने एक ट्वीट में एक युवा अफसर के इस्तीफे पर निराशा जताई थी. उन्होंने लिखा, “हम ऐसे अफसरों पर गर्व करते हैं. कन्नन ने अपने काम के लिए तारीफें बटोरीं. वह उस सेवा, IAS, को क्यों छोड़ना चाहते हैं जो जनता की सेवा करने और संतुष्टि पाने का इतना बड़ा मौका देती है? उन्होंने खुद दिखाया था कि क्या किया जा सकता है.”

कन्नन के इस्तीफे के कुछ दिन बाद, कर्नाटक कैडर के अधिकारी ससिकांत सेंथिल ने भी “अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की कमी” का हवाला देते हुए IAS से इस्तीफा दे दिया था. सेंथिल बाद में कांग्रेस में शामिल हो गए. पिछले साल उन्होंने तमिलनाडु की तिरुवल्लूर लोकसभा सीट से चुनाव जीता.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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