भोपाल: 13 दिसंबर को मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री का पद संभालने के तुरंत बाद, डॉ. मोहन यादव ने अपने पहले नौकरशाही फेरबदल में 1997-बैच के आईएएस अधिकारी राघवेंद्र कुमार सिंह को अपना प्रमुख सचिव नियुक्त किया है.
सहकर्मियों द्वारा अधिकारियों के बीच एक कुशल और प्रभावी समन्वयक के रूप में वर्णित सिंह, जो 2010 से लेकर 2012 के बीच इंदौर के कलेक्टर भी रहे, उन्हें टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज (टीसीएस) और इंफोसिस को शहर के सुपर कॉरिडोर में अपने कैंपस शुरू करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने का श्रेय दिया जाता है. एक अधिकारी के मुताबिक, राज्य सरकार को ज़मीन आवंटित करने के लिए नौकरशाही के एक वर्ग के विरोध को दूर करना पड़ा.
बैठक का हिस्सा रहे एक अधिकारी ने दिप्रिंट से कहा, “तत्कालीन मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के साथ बैठक के दौरान, वरिष्ठ सरकारी अधिकारी टीसीएस और इंफोसिस को नाममात्र दरों पर भूमि आवंटित करने से झिझक रहे थे, लेकिन यह राघवेंद्र ही थे जिन्होंने इस प्रोजेक्ट को सुनिश्चित करने के लिए अपना कदम आगे बढ़ाया.”
अधिकारी ने कहा, “उन्हें (सिंह) चौहान का समर्थन था, जिन्होंने उस बैठक में – टाटा के नैनो प्लांट के लिए गुजरात सरकार द्वारा आवंटित भूमि का हवाला देते हुए कहा था – “अगर गुजरात दे सकता है तो हम क्यों नहीं.” ज़मीन दे रहे हैं, कोई चोरी-डकैती थोड़ी कर रहे हैं.”
मध्य प्रदेश में सीएम मोहन यादव के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता रोज़गार के अवसर पैदा करना है, इंदौर में मेगा उद्योग स्थापित करने के सिंह के अनुभव ने उन्हें प्रमुख सचिव बनाए जाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.
राज्य के भाजपा नेताओं के अनुसार, सिंह की प्रमुख सचिव के पद पर नियुक्ति का एक अन्य महत्वपूर्ण कारण न केवल प्रशासन के विभिन्न पहलुओं के साथ बल्कि चौहान के साथ भी प्रभावी समन्वय सुनिश्चित करना है.
भाजपा के एक नेता ने कहा, “सरकार तो वही है बस सरदार नया है.”
उत्तर प्रदेश के बलिया से आने वाले सिंह ने 1997 में सिविल सेवा में शामिल होने से पहले मध्य प्रदेश के रीवा इंजीनियरिंग कॉलेज में इंजीनियरिंग की पढ़ाई की.
नर्मदापुरम (होशंगाबाद) में बतौर उप-विभागीय अधिकारी (एसडीओ) अपना करियर शुरू करने के बाद, सिंह की इंदौर में कम से कम आठ पोस्टिंग रही हैं और उन्होंने लगभग एक दशक वहां विभिन्न पदों पर काम करते हुए बिताया, जो इंदौर के एक औद्योगिक केंद्र में परिवर्तन के साथ मेल खाता था.
उनकी पोस्टिंग में महू के उप-विभागीय मजिस्ट्रेट, जिला पंचायत के सीईओ, इंदौर सर्कल के लिए जीएसटी आयुक्त, इंदौर जिला कलेक्टर और इंदौर डिवीजन के आयुक्त शामिल हैं. वे दो बार इंदौर में मध्य प्रदेश औद्योगिक विकास निगम के प्रबंध निदेशक भी रह चुके हैं.
जब नई कराधान व्यवस्था लागू की जा रही थी तब सिंह जीएसटी आयुक्त थे और उन्होंने नए कानून के तहत कराधान प्रणाली पर विभिन्न सूचना कार्यशालाओं, व्याख्यानों और सेमिनारों के जरिए से व्यापारी समुदाय के बीच असंतोष को दूर करने के लिए काम किया.
इंदौर कलेक्टर के रूप में अपना कार्यकाल पूरा करने के तुरंत बाद, सिंह को 2011 में मध्य प्रदेश पर्यटन निगम का प्रबंध निदेशक बनाया गया था, उस समय यादव, जो अब मुख्यमंत्री हैं, इसके अध्यक्ष थे. अधिकारियों के मुताबिक, दोनों के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध रहे और सिंह उनके गुड बुक्स में बने रहे.
मध्य प्रदेश के एक अन्य सरकारी अधिकारी ने कहा, “भले ही मोहन यादव ने कई मायनों में उज्जैन विकास प्राधिकरण के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया था, सिंह, जो एमडी पर्यटन थे, पहले नौकरशाह थे जिनके साथ उन्होंने राज्य के पर्यटन बोर्ड के अध्यक्ष के रूप में काम किया था.”
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चौहान के अधीन सिंह का कार्यकाल
सिंह को चौहान के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार के तहत एक महत्वपूर्ण अधिकारी माना जाता था. 2005 में मुख्यमंत्री बनने के बाद, चौहान ने 2006 में उन्हें अपने गृह जिले, सीहोर का कलेक्टर नियुक्त किया था. यह उनके कार्यकाल के दौरान था कि ट्राइडेंट ग्रुप ने चौहान के निर्वाचन क्षेत्र बुधनी में कपड़ा फैक्ट्री स्थापित करने के लिए किसानों से सीधे लगभग 800 एकड़ ज़मीन खरीदी थी.
राज्य सरकार के एक तीसरे अधिकारी के अनुसार, “तत्कालीन भूमि अधिग्रहण अधिनियम में किसानों से ज़मीन खरीदने के लिए किसी निजी पार्टी के लिए कोई प्रावधान नहीं होने के बावजूद यह कार्य निर्बाध रूप से हासिल किया गया था.”
अधिकारी ने कहा, “प्रभावी समन्वय से सभी किसानों को भरोसा जीतने के बाद उन्हें उनकी मांग से चार गुना अधिक मूल्य दिया गया. इसी तरह इंदौर में सिंह ने समझा कि निवेश विश्वास के साथ आता है और वह इंदौर में स्थापित होने वाले उद्योगों के लिए सभी बाधाओं को दूर करने में प्रभावी थे.”
2018 में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार के सत्ता में आने के बाद, सिंह को 2019 में तत्कालीन शिक्षा मंत्री जीतू पटवारी, जो अब कांग्रेस के राज्य प्रमुख हैं, के अधीन उच्च शिक्षा आयुक्त बनाया गया था.
फिर, 2020 में ज्योतिरादित्य सिंधिया और उनके वफादारों की मदद से भाजपा के सत्ता में लौटने के बाद, यादव पहली बार मंत्री बने, उच्च शिक्षा विभाग प्राप्त किया और सिंह उनके अधीन आयुक्त के रूप में बने रहे.
2021 में वह जनसंपर्क विभाग (डीपीआर) के आयुक्त बने और उसके बाद उन्हें खनन विभाग में प्रमुख सचिव के रूप में स्थानांतरित कर दिया गया, साथ ही उन्हें भोपाल स्थित अटल बिहारी वाजपेयी इंस्टीट्यूट ऑफ गुड गवर्नेंस एंड पॉलिसी एनालिसिस के प्रमुख का अतिरिक्त प्रभार भी दिया गया.
‘याराना रवैये’ वाला नौकरशाह
ऐसे समय में जब राज्य में सिविल सेवकों की पहचान राजनेताओं के प्रति उनकी वफादारी के आधार पर ग्वालियर प्रशासनिक सेवा (सिंधिया के करीबी), इंदौर घराने (कैलाश विजयवर्गीय के करीबी) या कैंप शिवराज के रूप में की जाती है, सिंह को होने का गौरव प्राप्त है किसी से संबद्ध नहीं.
वल्लभ भवन के गलियारों में, उन्हें ‘याराना (दोस्ताना) रवैये’ वाले अधिकारी कहा जाता है, जो एक कप चाय की चुस्की के लिए अपने जूनियर के पास जाने से पहले संकोच नहीं करते.
अपने इंजीनियरिंग के दिनों में खाना बनाना सीखने के बाद, सिंह को विशेष मौकों पर घर पर दोस्तों और परिचितों की मेज़बानी करने के लिए जाना जाता है, जहां वह शेफ भी रहे हैं. उनके साथ काम कर चुके लोगों के अनुसार, सिंह अपनी दिनचर्या के साथ-साथ हिंदी साहित्य का भी आनंद लेते हैं.
सत्ता के गलियारों में चौहान के तत्कालीन प्रमुख सचिव मनीष रस्तोगी, जो कि 1994 बैच के आईएएस अधिकारी हैं, के बारे में सुगबुगाहट थी कि वे एक “आरक्षित” व्यक्ति हैं. दूसरी ओर, सिंह इसके ठीक विपरीत हैं — एक ऐसे व्यक्ति जो आसानी से उपलब्ध हैं और सुनिश्चित करते हैं कि अलग-अलग दलों के बीच बातचीत होती रहे.
(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)
(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
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