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Monday, 4 November, 2024
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‘पानी दो, वोट लो’ – जोधपुर के गांवों पीने का पानी बना चुनावी मुद्दा, लोग एक दशक से इस समस्या से जूझ रहे

राजस्थान में कांग्रेस और बीजेपी के बीच खींचतान के बीच जोधपुर जिले के लोग फंसे हुए हैं, जो उम्मीद कर रहे हैं कि चुनाव कुछ बदलाव लाएंगे.

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जोधपुर: जोधपुर शहर से बमुश्किल 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित बासनी बेदा गांव के निवासी वहां नल लगने के बाद बहुत खुश थे. माना जा रहा था कि नलों से पानी के लिए उनकी एक दशक पुरानी ‘प्यास’ खत्म हो जाएगी. लेकिन यह खुशी बस कुछ ही समय के लिए थी. नलों के अंदर से केवल हवा ही निकली, पानी नहीं.

इन ग्रामीणों की उम्मीदें अब 26 अप्रैल को जोधपुर निर्वाचन क्षेत्र में होने वाले लोकसभा चुनावों पर टिकी हैं, उनकी एक स्पष्ट मांग है – पानी दो, वोट लो.

निवासी मंगला राम कहते हैं, “पाइप लाइनें बिछाई गईं, नल लगाए गए, लेकिन पानी नहीं है. लगभग दस साल हो गये. हमारी स्थिति में ज़रा भी बदलाव नहीं आया है. हमें अपनी ज़रूरतों को पूरा करने के लिए निजी टैंकरों पर निर्भर रहना पड़ता है,”

जोधपुर जिले के एक अन्य गांव बर्रो की ढाणी में रहने वाली सुशीला कहती हैं, “पानी के मुद्दे पर कोई बात नहीं हो रही, जो कि होनी चाहिए. नेता आते हैं, बोलते हैं पानी देंगे, लेकिन देते नहीं” वह कहती हैं कि पानी की आपूर्ति ही एकमात्र मुद्दा है जिसे गांव के लोग प्रचार के लिए आने वाले राजनीतिक नेताओं के सामने उठा रहे हैं.

Sushila, resident of Barron Ki Dani, a village in Jodhpur district | Photo by Devesh Singh Gautam, ThePrint
जोधपुर जिले के गांव बर्रों की ढाणी की रहने वाली सुशीला | फोटो: देवेश सिंह गौतम, दिप्रिंट

इन निवासियों का दावा है कि अपने घरों के अंदर स्थित टैंकों को भरवाने के लिए उन्हें पानी के टैंकरों पर 1000-2000 रुपये के बीच खर्च करने के लिए मजबूर होना पड़ता है.“ यह 2024 है, और हमें अभी तक पानी नहीं मिला है. हम सुनते हैं कि शहरों में 24/7 पानी की आपूर्ति होती है और यहां 15 दिनों तक पानी नहीं मिलता है. हमें परवाह नहीं है कि कौन सी पार्टी सत्ता में आती है, हम केवल पानी चाहते हैं.

जोधपुर और आसपास के जिलों के कई ग्रामीण इलाके अभी भी जल संकट से जूझ रहे हैं. जहां तक भूजल का सवाल है, ग्रामीणों को केवल कठोर जल ही मिलता है.

“यहां तक कि जिन टैंकों में हम पानी जमा करते हैं, उन्हें भी साफ करना मुश्किल है. मक्खियां, यहां तक कि छोटे सांप भी, कभी-कभी पानी में घुस जाते हैं. हमें पीने के लिए और अपने मवेशियों के लिए भी वही पानी इस्तेमाल करना पड़ता है. जिनके पास कोई विकल्प नहीं है, उन्हें अपनी दूध देने वाली गायों को पास के नाले से पानी पीने के लिए छोड़ना पड़ता है,”

जल संकट कोई नई बात नहीं है, लेकिन ग्रामीण भारत में हर घर में पाइप से पानी का कनेक्शन उपलब्ध कराने के लिए प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व वाली सरकार द्वारा 2019 में शुरू की गई महत्वाकांक्षी पहल, हर घर नल से जल योजना जैसी परियोजनाओं ने लोगों की उम्मीदें बढ़ा दी हैं.

केंद्रीय जल शक्ति मंत्री और जोधपुर से सांसद गजेंद्र सिंह शेखावत के बारे में लोगों का कहना है कि उन्होंने ने भी इस तरफ ध्यान नहीं दिया. दोबारा इस सीट से बीजेपी के उम्मीदवार ने वादा किया है कि लोगों के एक साल के भीतर इस समस्या से छुटकारा मिल जाएगा.

शेखावत ने जोधपुर जिले के बालेसर गांव में लोगों के एक समूह से कहा, “मैं जादूगर नहीं हूं. लेकिन आपके पानी की समस्या मैं हल जरूर करुंगा.” यह टिप्पणी राजस्थान के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत पर एक तंज है, जिन्हें राज्य के राजनीतिक हलकों में अक्सर जादूगर कहा जाता है. गहलोत पिछले साल दिसंबर में राज्य का चुनाव हार गए थे. दोनों वरिष्ठ नेताओं को प्रतिद्वंद्वी के तौर पर देखा जाता है.

शेखावत के अनुसार, जब पीएम नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हर घर में नल से जल की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए काम शुरू हुआ, तो “देश के केवल 16 प्रतिशत हिस्से को पानी मिलता था. आज 76 प्रतिशत घरों को पानी मिल रहा है.”

शेखावत ने राजस्थान में पानी की अनुपलब्धता का दोष पिछली कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार पर मढ़ा है. उन्होंने कहा, ”दुर्भाग्य से राजस्थान में पिछले पांच साल में कांग्रेस सरकार ने जनता की प्यास पर राजनीति को तरजीह दी. उन्हें आर्थिक मदद और संसाधन मुहैया कराने के बावजूद उन्होंने उनका काम नहीं किया. यह उनकी विफलता के कारण है कि राजस्थान अभी भी जल संकट से जूझ रहा है.”

जोधपुर लोकसभा सीट से शेखावत को बाहर करने की उम्मीद कर रहा विपक्ष, जोधपुर की पानी की समस्या को हल करने में उनकी विफलता के लिए मंत्री पर निशाना साध रहा है.

कांग्रेस के जोधपुर उम्मीदवार करण सिंह उचियारदा ने दिप्रिंट को बताया, “कैबिनेट मंत्री होने के बावजूद, वह अपने निर्वाचन क्षेत्र के लिए कुछ नहीं कर सके, पूरे राज्य के बारे में तो भूल ही जाइए. पानी एक प्रमुख मुद्दा बना हुआ है. ऐसी स्थिति में उन्हें पद छोड़ देना चाहिए था,”

सरकार ने हर घर नल से जल योजना की जल परियोजनाओं को रोक दिया, जिसके परिणामस्वरूप जोधपुर में जल संकट पैदा हो गया. उन्होंने कहा, “कांग्रेस को पता था कि अगर राज्य के हर घर तक पानी पहुंच गया, तो वे अगले 50 वर्षों तक सत्ता में वापस नहीं आ पाएंगे. कांग्रेस ने राजस्थान के लोगों के खिलाफ पाप किया और उन्हें अपने राजनीतिक लाभ के लिए प्यासा रखा.”

उन्होंने आगे दावा किया कि कांग्रेस सरकार ने राजीव गांधी लिफ्ट कैनाल परियोजना के तीसरे चरण का काम समय पर शुरू नहीं किया.

कांग्रेस और भाजपा के बीच इस खींचतान के बीच जिले के लोग फंसे हुए हैं, जो उम्मीद कर रहे हैं कि चुनाव कुछ बदलाव लाएगा.

Residents of Barron Ki Dani village | Photo by Devesh Singh Gautam, ThePrint
बैरों की ढाणी गांव के निवासी | फोटो: देवेश सिंह गौतम, दिप्रिंट

क्षेत्र के निवासी राम सिंह कहते हैं, “लोग पानी के बिना कैसे जीवित रह सकते हैं? जिन स्थानों पर पाइप लाइन बिछाई गई है, उन्हें टैंकर माफिया तोड़ देते हैं क्योंकि पानी के अभाव में वे इसे बेचने में सक्षम होते हैं. यहां तक कि टैंकरों से पानी लेने के लिए भी, जिसके लिए हम बहुत अधिक पैसे चुकाते हैं, हमें कतार में लगना पड़ता है,”

वह आगे कहते हैं, “वहां वर्षों से पानी की समस्या है, लेकिन आज तक इसका समाधान नहीं हुआ है. सिंचाई की बात तो दूर, पीने का पानी भी मिलना मुश्किल है,”

इस वर्ष की शुरुआत में, राजस्थान और मध्य प्रदेश सरकारों ने “संशोधित पीकेसी-ईआरसीपी” यानि मूल पार्बती-कालीसिंध-चंबल लिंक का पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना के साथ एकीकरण के लिए केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के साथ एक समझौता ज्ञापन (एमओयू) पर हस्ताक्षर किया. यह भारत सरकार की नदियों को जोड़ने की राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य योजना (आईएलआर) कार्यक्रम के तहत दूसरी परियोजना है.

ईआरसीपी लंबे समय से पाइपलाइन में है. 2017 में तत्कालीन मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने पूर्वी राजस्थान के 13 जिलों में पानी की समस्या से निपटने के लिए पूर्वी राजस्थान नहर परियोजना तैयार कर केंद्र सरकार को भेजी थी. इस परियोजना के तहत, मानसून के बचे हुए पानी को चंबल बेसिन से दूसरी तरफ मोड़ना था.

कांग्रेस नेताओं ने शेखावत के आरोपों पर पलटवार करते हुए कहा कि जल संकट दिसंबर में भाजपा सरकार के सत्ता में आने के बाद शुरू हुआ. “लोग स्थानीय भाजपा सांसदों से नाराज़ हैं क्योंकि उन्होंने कुछ नहीं किया है. उन्होंने डिलीवरी नहीं की है. केंद्र ने राजस्थान पर ध्यान नहीं दिया. उदाहरण के लिए, ईआरसीपी योजना को लें. पीएम ने वादा किया था, और फिर उन्होंने पूरा नहीं किया. हमने मुद्दा उठाया.

पूर्व सीएम अशोक गहलोत ने दिप्रिंट को एक साक्षात्कार में बताया, “उन्होंने सिर्फ एक एमओयू पर हस्ताक्षर किया है जो दिखावे के अलावा और कुछ नहीं है. इसके बारे में किसी को कुछ नहीं पता. हमने अपने कार्यकाल में पानी की स्थिति में सुधार किया. वास्तव में, समस्या जल वितरण में है, उपलब्धता में नहीं.”

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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