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Wednesday, 27 March, 2024
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वो 3 कारण जिसकी वजह से कांग्रेस अडाणी के खिलाफ उसके अभियान ‘चौकीदार चोर है’ से बेहतर मानती है

कांग्रेस का मानना है कि अडाणी का मुद्दा कॉर्पोरेट जगत को विभाजित करेगा उसके एक वर्ग को अपनी तरफ आकर्षित करेगा. और छोटे व्यापारियों को लुभाने में उनकी मदद करेगा.

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नई दिल्ली: कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी पार्टी के सदस्यों ने बुधवार को संसद से प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) मुख्यालय तक अडाणी समूह और इसकी कथित धोखाधड़ी गतिविधियों के खिलाफ ‘शिकायत’ दर्ज कराने के लिए मार्च निकालने की मांग की.

बजट सत्र का दूसरा सत्र शुरू होने के बाद लगातार प्रदर्शन का यह तीसरा दिन था – जब पार्टी ने कथित ‘अडाणी -मोदी संबंध’ के खिलाफ पूरी ताकत झोंक दी थी.

दिल्ली पुलिस ने कांग्रेस और कम से कम 16 अन्य दलों के सांसदों को संसद के एरिया से बाहर जाने की अनुमति नहीं दी थी.

पिछले सत्र में, उद्योगपति गौतम अडाणी के खिलाफ कांग्रेस का हमला अमेरिका स्थित रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग के निष्कर्षों पर आधारित था. इस सत्र में, हालांकि, यह सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की अपने नेता राहुल गांधी से यूके में की गई “लोकतंत्र-में-खतरे” टिप्पणी के लिए माफी मांगने की कांग्रेस की प्रतिक्रिया के तौर पर भी देखा जा रहा है.

अडाणी पर कांग्रेस के निरंतर ध्यान ने कई लोगों से पूछा है कि क्या यह ‘चौकीदार चोर है’ और राफेल घोटाला जो 2019 के लोकसभा चुनावों में कांग्रेस के लिए चुनावी रूप से विनाशकारी साबित हुआ.

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हालांकि, गांधी और पार्टी नेतृत्व का मानना है कि अडाणी का मुद्दा अलग है. दिप्रिंट ने सांसदों सहित कई कांग्रेस नेताओं से बात की और कहा कि इस विश्वास के तीन कारण हैं.

सबसे पहले, पार्टी को लगता है कि राफेल के विपरीत, जो सिर्फ एक घोटाला या सौदा था, अडाणी का मुद्दा ऐसे कई और आरोपों की शुरुआत हो सकता है जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के चारों ओर “अचूक” महिमामंडन से दूर कर सकते हैं.

दूसरा, पार्टी का मानना है कि इसका अभियान कॉर्पोरेट जगत को खंडों में विभाजित कर देगा और एक बार जब वे आश्वस्त हो जाएंगे कि अडाणी समूह को सरकार द्वारा गलत तरीके से समर्थन दिया जा रहा है, तो दूसरों को खुद के लिए छोड़ दिया जाएगा.

तीसरा, पार्टी छोटे व्यापारियों को टार्गेट करने के लिए अडाणी मुद्दे का भी उपयोग कर रही है, जिन्हें वे यह कहकर लुभाने की कोशिश कर रहे हैं कि भाजपा छोटे व्यवसायों को नष्ट कर रही है. और अगर छोटे व्यवसायों को नुकसान हो रहा है और सिर्फ एक आदमी का बिजनेस बेहतर हो रहा है, तो इसका चुनावी प्रभाव पड़ना तय है.

दिप्रिंट से बात करते हुए कांग्रेस के महासचिव संचार प्रभारी जयराम रमेश ने कहा कि संदेश काफी हद तक काम कर रहा है.

उन्होंने कहा, “मेरा मानना है कि ज्यादातर लोग इस बात पर यकीन करेंगे कि अडाणी ने जो किया वह पीएम की भागीदारी के बिना नहीं कर पाता. क्या इससे चुनावी फायदा होगा? यह हमारे पार्टी संगठन पर निर्भर करता है.


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क्या काम करेगी कांग्रेस की रणनीति?

हालांकि, पहला सवाल यह है कि क्या अडाणी भ्रष्टाचार के मुद्दे के रूप में ‘स्टिक’ कर सकता है, क्योंकि शेयर की कीमत में हेरफेर आदि के आरोप आम आदमी के लिए समझना मुश्किल है. उदाहरण के लिए, कॉमनवेल्थ गेम (CWG) घोटाले की तुलना में इसे समझना बहुत ही मुश्किल है ये वो मामले है जिसने 2014 में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) सरकार को गिराने में अहम भूमिका निभाई सहायक साबित हुई थी. कांग्रेस नेताओं का मानना है कि यह यहां भी काम करेगा.

2024 में होने वाले चुनाव को ध्यान में रखते हुए पार्टी की रणनीति पर काम कर रहे एक सूत्र ने कहा, “अडाणी के मामले में हमारे पास डेटा और आसान आंकड़े हैं जो दिखाते हैं कि दुनिया के सबसे अमीर लोगों में उनकी रैंकिंग दूसरे स्थान से कैसे 609 पर पहुंच गई.

सूत्र ने आगे कहा: “आप तर्क दे सकते हैं कि राफेल को समझना मुश्किल था और सीडब्ल्यूजी (घोटाला) को समझना आसान था. लेकिन उस समय बीजेपी का चुनावी मुद्दा सिर्फ सीडब्ल्यूजी नहीं था. 2जी भी था. यह घटनाओं का एक समूह था जिसने कांग्रेस को भ्रष्टाचार से जोड़ा. राफेल एक सौदा था और हम इसके साथ गए. यहां, अडाणी घोटाला एक पूरा चुनावी मुद्दा नहीं हो सकता है, लेकिन यह ऐसे अन्य मुद्दों के सामने आने का रास्ता बना सकता है -इस दौरान दूसरे कंकाल भी कोठरी से बाहर आने के लिए तैयार होंगे – तब हम बताएंगे कि कैसे ये वास्तव में ‘सूट बूट की सरकार’ है .

Opposition leaders' march from Parliament to ED office on Adani issue in New Delhi Wednesday | Photo: Suraj Singh Bisht, ThePrint
नई दिल्ली में बुधवार को अडाणी मुद्दे पर संसद से ईडी कार्यालय तक विपक्षी नेताओं का मार्च | फोटो: सूरज सिंह बिष्ट, दिप्रिंट

दूसरा सवाल कई लोग पूछ रहे हैं कि क्या कांग्रेस पीएम और अडाणी के खिलाफ इस नैरेटिव को बरकरार रख पाएगी.
इसके लिए, ऊपर बताए गए सूत्र ने कहा कि घोटाला खुद 2024 के लिए एक चुनावी मुद्दा नहीं हो सकता है, लेकिन पार्टी इसका तब तक “दूध” निकालेगी जब तक यह दे सकती है.

सूत्र ने यह भी कहा, “एक साल के लिए किसी एक मुद्दे, घोटाले या फिर एक इंसान के बारे में बात करना बहुत मुश्किल है. मेरी समझ से, इस मुद्दे के कई पहलू होंगे जो समय-समय पर सामने आएंगे और हर बार हमें इसे भुनाना होगा. ”
दूसरी ओर, जयराम रमेश ने दिप्रिंट को बताया कि जहां तक अडाणी का संबंध है, कांग्रेस के लिए चुनावी लाभ इस बात पर निर्भर करेगा कि पार्टी इस मुद्दे पर खुद को कैसे संगठित करती है.

उन्होंने बताया, “हमें वह करना है जो हमें करना है. हम निश्चित रूप से इस सुपरस्कैम के पूर्ण आयामों को उजागर करने की पूरी कोशिश कर रहे हैं जो पीएम की जानकारी और सक्रिय सहयोग के साथ हुआ है. हमने 28 दिनों से रोजाना तीन तीखे सवाल उठाए हैं. हमने सेबी और आरबीआई को लिखा है. हमने देश भर में प्रेस कांफ्रेंस की है. इससे चुनावी लाभ मिलेगा या नहीं, यह पार्टी संगठन पर निर्भर करेगा.

क्रोनी कैपिटलिज्म एंड डिवीजन

दिप्रिंट ने पार्टी संगठन के विभिन्न सदस्यों और सांसदों से बात की, जो संसद में आंदोलन कर रहे हैं, यह समझने के लिए कि कांग्रेस अडाणी मुद्दे के साथ कहां जाना चाहती है.

सोनिया गांधी की अध्यक्षता में सोमवार को कांग्रेस संसदीय दल (सीपीपी) की बैठक में मौजूद कांग्रेस के एक सांसद ने कहा कि पार्टी नए सत्र के पहले दिन विशेषाधिकार समिति द्वारा राहुल गांधी को निलंबित किए जाने को लेकर आशंकित थी, लेकिन योजना अडाणी मुद्दे पर सदन को बाधित करना था.

अडाणी के मुद्दे पर विपक्ष एकजुट नहीं है. कुछ लोग जेपीसी (संयुक्त संसदीय समिति) की मांग कर रहे हैं. कुछ सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में जांच की मांग कर रहे हैं. अधिकांश क्षेत्रीय दलों, जिनमें हमारे कुछ सहयोगी भी शामिल हैं, ने अडाणी समूह के साथ शांति स्थापित कर ली है और वे एक सीमा से आगे नहीं बढ़ेंगे. अगर राहुल का मुद्दा नहीं उठाया जाता, तो शायद इस सत्र में अडाणी का मुद्दा भी हवा हो जाता.’

सांसद ने कहा, “लेकिन क्योंकि उन्होंने माफी (राहुल द्वारा) की मांग की, इसलिए अब हम अडाणी मामले के साथ पूरी ताकत से आगे बढ़ गए हैं. हमें लगातार बताया जा रहा है कि मोदी के साथ अडाणी के संबंध स्पष्ट हैं, इसलिए हमें यह सुनिश्चित करने के लिए जोर देना चाहिए कि दोनों के बीच संबंध लोगों को याद रहें. निश्चित रूप से, ‘क्रोनी कैपिटलिज्म’ अति महत्वपूर्ण मुद्दा है. ”

गांधी की टीम के सूत्र का कहना है कि जबकि जोर क्रोनी कैपिटलिज्म के खिलाफ है, पार्टी की समझ यह है कि इसने “कॉर्पोरेट युद्ध” भी खड़ा किया है. इसका मतलब यह है कि जिन कॉर्पोरेट संस्थाओं को सरकार द्वारा ‘पसंद’ नहीं किया जा रहा है, वे स्वाभाविक रूप से अडाणी के इतनी तेजी से बढ़ने के विरोधी होंगे. सूत्र ने खुलासा किया कि अडाणी को कॉर्पोरेट इकोसिस्टम में अलग-थलग करने के लिए पार्टी इन कॉरपोरेट संस्थाओं को अपने पक्ष में करने की योजना बना रही है.

कॉर्पोरेट्स के नामों का खुलासा करने से इनकार करते हुए सूत्र ने कहा, “जो कॉर्पोरेट्स अडाणी का विरोध कर रहे हैं वे हमारे पास पहुंच रहे हैं. उनमें से अधिक हमारी मदद करेंगे ताकि अडाणी को तरजीह देना बंद हो जाए. ”

यह भी ध्यान रखना दिलचस्प है कि जहां कांग्रेस और राहुल गांधी की कथित क्रोनी कैपिटलिज्म के खिलाफ लड़ाई अडानी-अंबानी जीबों के साथ शुरू हुई थी, हिंडनबर्ग रिपोर्ट जारी होने के बाद से यह पूरी तरह से अडानी पर केंद्रित रही है.

अडाणी को एलआईसी से जोड़ा जा रहा है, छोटे कारोबारियों को भी टारगेट किया जा रहा है.

अडाणी मुद्दे को जमीनी स्तर से जोड़ने के लिए पार्टी द्वारा किए गए पहले प्रयासों में से एक इन समूहों में जीवन बीमा निगम (एलआईसी) और स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (एसबीआई) द्वारा किए गए निवेश को इंगित करना था.

कांग्रेस के एक सांसद ने कहा, जो आज संसद परिसर में विरोध प्रदर्शन का हिस्सा थे ने कहा, ‘पहली नजर में यह ऐसा मुद्दा नहीं है जिसे ग्रामीण इलाकों के लोग समझेंगे. इसलिए, तथ्य यह है कि उनका पैसा अडाणी समूह में निवेश किया गया है, यह इंगित करना महत्वपूर्ण था. ”

जब उनका ध्यान दिप्रिंट की रिपोर्ट की ओर खींचा गया कि एलआईसी, वास्तव में, अडाणी में अपने शेयर बेचने से 11,000 करोड़ रुपये के करीब का लाभ कमाएगी, तो सांसद ने कहा, “यह इस बारे में नहीं है कि एलआईसी को कितना लाभ या हानि होगी . लेकिन सैद्धांतिक रूप में, सार्वजनिक धन को क्रोनी पूंजीपतियों में निवेश नहीं किया जाना चाहिए. यही वह बिंदु है जिसे हम बनाने की कोशिश कर रहे हैं.

ऊपर कॉपी में दिए गए राहुल गांधी की टीम के सूत्र ने यह भी बताया कि पार्टी जीएसटी और नोटबंदी के खिलाफ अपने अभियानों के माध्यम से “छोटे व्यापारियों” और एमएसएमई को वापस जीतने की कोशिश कर रही थी.

पार्टी के एक अन्य सूत्र ने कहा, “छोटे व्यापारियों का एक वर्ग है जो शेयरों में निवेश करता है और जानता है कि बाजार कैसे काम करता है. वे इसे समझेंगे और उनमें से कुछ भाजपा/मोदी मतदाता भी हैं.चूंकि उनके व्यवसाय को नुकसान हो रहा है (जीएसटी के कारण, अन्य बातों के अलावा), वे यह भी समझेंगे कि एक दूसरा बिजनेसमैन कैसे सरकार के साथ मिलीभगत के कारण पैसा कमा रहा है. ”

(संपादन: पूजा मेहरोत्रा)

(इस ख़बर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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