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Monday, 23 December, 2024
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‘कूड़ा-कचरा हटना चाहिए’- दूसरे दल से आए नेता की गिरफ्तारी के बाद दलबदलुओं पर बंगाल BJP के भीतर तकरार तेज

हावड़ा के भाजपा नेता सुमित रंजन करार को सरकारी नौकरी दिलाने के बहाने कथित तौर पर रिश्वत लेने के आरोप में गिरफ्तार किए जाने के बाद पार्टी नेता तथागत रॉय ने सवाल उठाया है कि ‘ऐसे लोग किस पार्टी से आए हैं.’

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कोलकाता: हावड़ा में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के एक नेता की गिरफ्तारी ने पार्टी की पश्चिम बंगाल इकाई के भीतर दरार और गहरी कर दी है, जो भाजपा के भीतर 2021 के विधानसभा चुनावों में तृणमूल कांग्रेस से हारने के बाद ही नजर आने लगी थी.

पिछले साल की चुनावी हार ने विधानसभा चुनावों के ऐन पहले बड़े पैमाने पर दूसरे दलों के नेताओं को भाजपा में शामिल करने के अभियान को लेकर पार्टी के भीतर सवाल खड़े कर दिए थे, खासकर तब जबकि दूसरी पार्टियों से आए नेता चुनाव में कोई शानदार प्रदर्शन नहीं कर सके थे.

सरकारी नौकरी दिलाने के नाम पर कथित तौर पर रिश्वत लेने के आरोप में गत शुक्रवार को सुमित रंजन करार की गिरफ्तारी के साथ ही पार्टी के भीतर ‘अंदरूनी बनाम बाहरी’ की बहस नए सिरे से तेज हो गई है. 2021 के विधानसभा चुनावों में पश्चिम बंगाल के उदयनारायणपुर निर्वाचन क्षेत्र से भाजपा के उम्मीदवार रहे करार 2020 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में आए थे. वह 2021 का चुनाव तृणमूल प्रत्याशी समीर कुमार पांजा से 13,000 से अधिक मतों से हार गए थे.

करार की गिरफ्तारी के बाद भाजपा सदस्य और त्रिपुरा और मेघालय के पूर्व राज्यपाल तथागत रॉय ने रविवार को अपनी ही पार्टी पर निशाना साधने के लिए सोशल मीडिया का सहारा लिया और टिप्पणी की कि ‘भाजपा के लिए यह पता लगाने का समय है कि ऐसे लोग किस पार्टी से आए थे और उन्हें कौन लाया था? इस तरह के कूड़े-कचरे को भाजपा से तुरंत हटा दिया जाना चाहिए.’

भाजपा की बंगाल इकाई के अध्यक्ष रह चुके रॉय ने अपने ट्वीट के साथ पश्चिम बंगाल के लिए भाजपा के केंद्रीय पर्यवेक्षक कैलाश विजयवर्गीय की एक तस्वीर भी पोस्ट की और उसके साथ ही वोडाफोन के लोकप्रिय प्रोमो में इस्तेमाल होने वाले पग की फोटो भी लगाई. गौरतलब है कि विजयवर्गीय की अगुआई में ही 2021 के चुनावों से पहले दूसरे दलों के नेताओं को भाजपा में शामिल किया गया था, और तृणमूल कांग्रेस से आए और उस समय भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रहे मुकुल रॉय ने भी उनका साथ दिया था.

दिप्रिंट ने फोन और व्हाट्सएप के जरिये विजयवर्गीय और उनके कार्यालय से भी संपर्क साधा लेकिन यह रिपोर्ट प्रकाशित होने तक उनकी तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली थी.

इस बीच, तथागत रॉय ने दिप्रिंट को बताया कि उनका ट्वीट खुद ही सारी बात स्पष्ट कहता है. उन्होंने कहा, ‘हमने चुनाव बाद देखा कि भाजपा में कई चेहरों को अनावश्यक रूप से उच्च पद दिए गए. मैं सुमित रंजन को भी उन्हीं में एक मानता हूं. राज्य में पार्टी के राजनीतिक तौर पर बेहतर स्थिति में आने के लिए जरूरी है कि ऐसे लोगों को बाहर का रास्ता दिखा दिया जाए.’

रॉय ने कहा, ‘मैंने तो पहले ही कहा था कि पश्चिम बंगाल में चुनाव से पहले इतने लोगों को पार्टी में शामिल करना एक बेतुका और मूर्खतापूर्ण कदम है. हो सकता है कि इसके पीछे गलत मंशा भी रही हो.’

2021 के पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनावों के दौरान भाजपा ने न केवल गृह मंत्री अमित शाह की मौजूदगी वाली रैलियों में बड़े पैमाने पर दूसरी पार्टी के नेताओं को शामिल किया, बल्कि तृणमूल नेताओं को तो चार्टर्ड विमानों से नई दिल्ली लाई ताकि वे पार्टी में शामिल हो सकें. इसी तरह भाजपा में आए एक नेता राजीव बनर्जी ने पार्टी के टिकट पर डोमजूर निर्वाचन क्षेत्र से 2021 का चुनाव लड़ा लेकिन तृणमूल के कल्याण घोष से हार गए. बाद में वह भाजपा छोड़कर तृणमूल में लौट गए.

भाजपा ने कोलकाता में हेस्टिंग्स के नजदीक अपने चुनाव कार्यालय में भी बड़ी संख्या में दूसरे दलों के नेताओं को पार्टी में शामिल कराया था.

दिप्रिंट ने व्हाट्सएप पर भाजपा सांसद और राष्ट्रीय उपाध्यक्ष दिलीप घोष के कार्यालय से संपर्क साधा लेकिन रॉय के ट्वीट पर कोई टिप्पणी करने से इनकार कर दिया गया.

इससे पहले, पिछले साल के विधानसभा चुनावों में भाजपा की हार की समीक्षा करते हुए पार्टी की बंगाल इकाई के तत्कालीन अध्यक्ष घोष ने कहा था, ‘2019 में कई उम्मीदवार तृणमूल से हमारी पार्टी में आए थे और वे जीते भी थे. दलबदल करके आए नेता विधानसभा चुनाव में क्यों हारे? पार्टी के पुराने कार्यकर्ताओं में (नए सदस्यों के खिलाफ) असंतोष है. हम इन मुद्दों को देख रहे हैं.’

राजनीतिक विश्लेषक और कोलकाता के बंगबासी कॉलेज में राजनीति विज्ञान के एसोसिएट प्रोफेसर उदयन बंदोपाध्याय ने कहा, ‘इनमें अधिकांश नेता इस उम्मीद के साथ भाजपा में शामिल हुए थे कि पार्टी अपनी सरकार बनाएगी और उन्हें मंत्री पद मिलेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. इसने केवल अराजकता ही बढ़ाई है. वैसे अगर भाजपा अपने पुराने नेताओं का ही बेहतर ढंग से इस्तेमाल करती तो शायद उसका प्रदर्शन अच्छा होता.’

उन्होंने आगे कहा, ‘पार्टी में आए दलबदलुओं को प्राथमिकता मिली और पुराने नेताओं को दरकिनार कर दिया गया, जिससे उनमें असंतोष बढ़ा.’


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दलबदलुओं पर अविश्वास

बहरहाल, तथागत रॉय तृणमूल कांग्रेस के एक अन्य पूर्व नेता सुवेंदु अधिकारी का बचाव करते नजर आए, जो पिछले साल विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले ही भाजपा में शामिल हुए थे.

सुवेंदु अधिकारी ने चुनाव में नंदीग्राम निर्वाचन क्षेत्र से पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को हराया और मौजूदा समय में पश्चिम बंगाल विधानसभा में विपक्ष के नेता हैं.

रॉय ने कहा, ‘कोई भी स्वाभिमानी व्यक्ति ममता (बनर्जी) की कार्यशैली को स्वीकार नहीं करेगा. मुझे सुवेंदु से तमाम उम्मीदें हैं, वह एक मेहनती नेता हैं और वह भाजपा में अच्छा काम कर रहे हैं.’

इस बीच, जब वरिष्ठ भाजपा नेता ने दलबदलुओं के पार्टी में शामिल होने पर सवाल उठाए हैं, ऐसे कई नेता पिछले साल विधानसभा चुनावों में हार के बाद से भाजपा को छोड़ चुके हैं और या तो फिर तृणमूल के पाले में लौट गए हैं या पहली बार पश्चिम बंगाल की सत्ताधारी पार्टी के सदस्य बने हैं.

इनमें अर्जुन सिंह, बाबुल सुप्रियो, मुकुल रॉय, उनके बेटे सुभ्रांशु रॉय, राजीव बनर्जी, सब्यसाची दत्ता और प्रबीर घोषाल जैसे नेता शामिल हैं. बंगाल भाजपा के पूर्व उपाध्यक्ष जॉय प्रकाश मजूमदार भी इस साल की शुरुआत में तृणमूल कांग्रेस में शामिल हो गए थे.

पश्चिम बंगाल भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट से कहा कि, ‘तथागत रॉय ने जो कहा है, वही बात दिलीप घोष, भाजपा पश्चिम बंगाल इकाई के अध्यक्ष सुकांत मजूमदार और कई अन्य नेता पहले भी कह चुके हैं.’

नेता ने कहा, ‘पिछले साल चुनाव से पहले हमारी पार्टी में शामिल होने वाले कई नेता चले गए हैं. मैं तो कहूंगा कि उनमें से कम से कम 99 फीसदी चले गए हैं. लेकिन यह (दूसरे दलों से शामिल करना) किसी एक व्यक्ति की जिम्मेदारी नहीं हो सकती. हमारी पार्टी कोई एक व्यक्ति नहीं चलाता है, सभी निर्णय सामूहिक जिम्मेदारी के साथ लिए जाते हैं.’

भाजपा के भीतर ‘अंदरूनी बनाम बाहरी’ पर जारी बहस और टकराव की चर्चा करते हुए राजनीतिक विश्लेषक और गैंगस्टर स्टेट: द राइज एंड फाल ऑफ सीपीआई (एम) इन वेस्ट बंगाल के लेखक शौर्य भौमिक ने कहा, ‘राजनीति में दलबदलुओं पर भरोसा घट रहा है. तृणमूल के दो दर्जन से अधिक नेता चुनाव से पहले भाजपा में शामिल हुए थे और फिर हारने के बाद वे तृणमूल में लौट गए. इसलिए, पार्टियों को यह देखना चाहिए कि क्या वाकई दलबदल से वोटों के मामले में कोई राजनीतिक लाभ होता है.’

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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