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Friday, 15 November, 2024
होमराजनीतिदीदी या परिवार? बंगाल की लड़ाई में समर्थन के नाम पर बंटा फुरफुरा शरीफ के पीर का ख़ानदान

दीदी या परिवार? बंगाल की लड़ाई में समर्थन के नाम पर बंटा फुरफुरा शरीफ के पीर का ख़ानदान

फुरफुरा शरीफ के सबसे बड़े पीर क़ुतुबुद्दीन सिद्दीक़ी, TMC की हिमायत में फ़तवे पर विचार कर रहे हैं. लेकिन इस बीच, भतीजे अब्बास की पार्टी को उन तबक़ों से समर्थन मिलता दिख रहा है, जो TMC का विकल्प तलाश रहे हैं.

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फुरफुरा शरीफ: बंगाल में चल रही लड़ाई थोड़ी और दिलचस्प बन सकती है, जिसमें सूबे की मुख्यमंत्री के लिए, एक फ़तवे की सूरत में समर्थन आ सकता है, जिसके जारी होने की संभावना है, और जिसमें फुरफुरा शरीफ के मानने वालों, और दूसरे मुस्लिम संप्रदायों से की अपील की जा सकती है, कि वो ‘ऐसी पार्टी को वोट दें जो इस्लामी परंपराओं में दख़ल नहीं देगी’.

बंगाल की सबसे प्रभावशाली मुस्लिम दरगाह के, सबसे बड़े पीर क़ुतुबुद्दीन सिद्दीक़ी ने, दिप्रिंट के साथ एक ख़ास इंटरव्यू में, न सिर्फ संभावित फतवे के बारे में बात की, बल्कि ये भी कहा कि वो कभी नहीं चाहेंगे, कि उनके परिवार का कोई सदस्य, सक्रिय राजनीति में शामिल हो, और उसे समर्थन नहीं देंगे, ‘जिसने अपनी ख़ुद की सियासी पार्टी बना ली है’.

क़ुतुबुद्दीन, जो लोगों से बहुत कम मिलते हैं, अपने एक भतीजे पीरज़ादा अब्बास सिद्दीक़ी की बात कर रहे थे, जिन्होंने तीन महीने पहले ही अपनी ख़ुद की पार्टी बनाई है- इंडियन सेक्युलर फ्रंट (आईएसएफ). परिवार के दूसरे सदस्य भले ही अतीत में, किसी पार्टी के साथ रहे हों, या उन्होंने किसी पार्टी सदस्य के तौर पर काम किया हो- अब्बास के एक कज़िन नूरुद्दीन सिद्दीक़ी, तृणमूल छात्र परिषद के एक पूर्व नेता हैं- लेकिन ये पहली बार है कि सिद्दीक़ी ख़ानदान से, कोई राजनीति में इस हद तक घुस गया, कि अपनी अलग पार्टी ही बना ली.

अब्बास सिद्दीकी, जिन्होंने भारतीय धर्मनिरपेक्ष मोर्चा (ISF) पार्टी लॉन्च की है/ मधुपर्ण दास/ दिप्रिंट

युवा पीरज़ादा के इस क़दम से सिद्दीक़ी परिवार में दरार पैदा हो गई है, जिसे फुरफुरा शऱीफ पंथ का लीडर माना जाता है. जहां परिवार के बड़े बुज़ुर्ग, क़ुतुबुद्दीन की तरह बंगाल मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की हिमायत करते दिख रहे हैं, वहीं युवा सदस्य अब्बास की ओर ज़्यादा खिंचे हुए हैं.

अब्बास को अपने चुनाव क्षेत्र में ख़ासा समर्थन मिलता नज़र आ रहा है, जहां के लोगों का उनकी तरह ही, ममता बनर्जी की चुनावी बयानबाज़ियों और वोट-बैंक सियासत से मोहभंग हो रहा है. तृणमूल पर तमाम चुनाव क्षेत्रों में एक आम आरोप ये है, कि वो असामाजिक तत्वों के सिंडिकेट्स का समर्थन करती है, जो किसी न किसी बहाने लोगों से उगाही करते हैं, जिस आरोप को अब्बास ने बार बार लगाया है.

पीरज़ादा, जो सीपीएम और कांग्रेस के साथ गठबंधन में शामिल हुए हैं, राजनीतिक महत्वाकांक्षा रखते हैं. उन्होंने हुगली, हावड़ा, साउथ 24 परगना, कोलकाता और बीरभूम में, कम से कम 30 उम्मीदवार खड़े किए हैं. अपनी नई पार्टी की एक सेक्युलर छवि बनाने के लिए, उनके उम्मीदवारों की सूची में मुसलमान, आदिवासी, हिंदू ब्राह्मण तथा अन्य शामिल हैं.

हालांकि उन्हें अपने निकट पड़ोस, हुगली के जंगीपाड़ा चुनाव क्षेत्र, और उससे लगी ज़िले के चांदीतला और खानाकुल चुनाव क्षेत्रों से, कुछ राजनीतिक समर्थन मिलता दिख रहा है, लेकिन आईएसजे प्रमुख बीरभूम और उत्तरी बंगाल जैसे इलाक़ों में, जहां कांग्रेस का एक जनाधार है, कांग्रेस वोट उनकी पार्टी की ओर शिफ्ट होने को लेकर आशंकित हैं.

फुरफुरा शऱीफ में दिप्रिंट से बात करते हुए, अब्बास ने दोहराया कि मुसलमानों ने ऐसी कोई क़सम नहीं खाई है, कि वो हमेशा चुनाव जीतने में ममता बनर्जी की मदद करेंगे. उन्होंने कहा कि मुसलमानों को चुनने का अधिकार है. उन्होंने आगे कहा ‘मैं जीतूंगा या हारूंगा, और सीखूंगा’. साथ ही उन्होंने ये भी कहा, कि बहुत से युवा मुस्लिम नेताओं ने ममता बनर्जी की पार्टी छोड़कर, उनके साथ हाथ मिला लिया है.

मुस्लिम दरगाह और सिद्दीक़ी परिवार के मानने वाले बहुत से ज़िलों में फैले हुए हैं, जो बंगाल में मुसलमानों की चुनावी पसंद को प्रभावित करते हैं. इससे समझा जा सकता है कि क्यों सभी पार्टियों के बड़े नेता- चाहे वो तृणमूल हो, कांग्रेस हो, या सीपीएम हो- चुनावों से पहले दरगाह में आकर, बुज़ुर्गों का आशीर्वाद लेते रहे हैं.

लेकिन इस चुनावी में जो चीज़ उल्टी गंगा बहा सकती है, वो है इसी ख़ानदान के अंदर दरार.

जंगीपाड़ा में, जहां फुरफुरा शरीफ स्थित है, क़रीब 27 प्रतिशत मुस्लिम आबादी है; यहीं से सटे खानाकुल में क़रीब 25 प्रतिशत है. आईएसएफ दोनों सीटों से लड़ रही है.

1972 के बाद से कांग्रेस ने जंगीपाड़ा से लगातार चार विधान सभा चुनावों में जीत हासिल की, जबकि सीपीएम भी यहां से चार बार जीत चुकी है, जिसकी शुरूआत 1991 विधान सभा चुनावों से हुई थी. तृणमूल ने 2011 के विधान सभा चुनावों में ये सीट जीती, और 2016 में इसे फिर जीता, जिसमें उसे तक़रीबन 50 प्रतिशत वोट मिले. परंपरागत रूप से, फुरफुरा शऱीफ ने हर उस पार्टी का समर्थन किया है, जो सत्ता में रही है. हालांकि हाल के सालों में इस समर्थन में कमी आई है. 2019 के लोकसभा चुनावों में, विधान सभा क्षेत्र में पार्टी की बीजेपी पर जीत, केवल 11,000 वोटों के अंतर से थी.


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बंटा हुआ परिवार

अब्बास के आईएसएफ खड़ी करने के साथ ही, सिद्दीक़ियों के लिए सियासत के एक नए मायने हो गए हैं, जिसने परिवार में दरार पैदा कर दी है. 95 वर्षीय पीर साहब क़ुतुबुद्दीन सिद्दीक़ी ने दिप्रिंट से कहा, ‘मैं अपने ही ख़ून, अपने भतीजे के खिलाफ फतवा जारी नहीं कर सकता. लेकिन मैं पूरे बंगाल में फैले अपने लाखों को, फतवा जारी करके अपील कर सकता हूं, कि वो सूबे में धर्मनिर्पेक्षता के अस्ली चेहरे को वोट दें, जिसने कभी हमारे मज़हब में दख़ल नहीं दिया है. हम यहां ख़ुशी से रहते हैं. हम कोई ऐसा काम नहीं करेंगे, या किसी ऐसे को समर्थन नहीं देंगे, जिससे सांप्रदायिक बीजेपी को फायदा पहुंचे’.

उन्होंने आगे कहा, ‘अगर मैं फतवा दूंगा, तो इसके पीछे क़ुरान से वजहें गिनाउंगा, कि मैं ऐसा क्यों कर रहा हूं’.

परिवार के एक और बुज़ुर्ग जियाउद्दीन सिद्दीक़ी ने भी ऐसे ही विचार व्यक्त किए: ‘ममता दीदी ने यक़ीनन सूबे के मुसलमानों को, ऊपर उठाने के लिए काम किए हैं. वो मदरसों की सहायता करेंगी, उन्होंने हमें फायदा पहुंचाने के लिए, राज्य में बहुत सी स्कीमें शुरू की हैं. उन्होंने हमें कभी अपने धार्मिक अधिकार से वंचित नहीं किया है’.

उन्होंने आगे ये भी कहा कि फुरफुरा शरीफ, 2019 में संसद द्वारा तीन तलाक़ पर लगी पाबंदी का समर्थन नहीं करती. ‘ये हमारे मज़हबी काम में दख़लअंदाज़ी है. हम नहीं चाहते कि बंगाल में ऐसी चीज़ें हों. तीन तलाक़ इस्लाम का हिस्सा हैं, और इसकी इसी तरह व्याख्या की गई है’. ख़ानदान का एक हिस्सा अपने ही एक सदस्य की, राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के खिलाफ क्यों है, ये समझाते हुए उन्होंने आगे कहा, कि अब्बास का ये सियासी क़दम वोटों को बांटकर, बीजेपी को फायदा पहुंचा सकता है. उन्होंने कहा, ‘हम इसे मंज़ूर नहीं कर सकते’.

इस बीच, युवा पीरज़ादा का कहना है, कि क़ुरान ने कभी ये नहीं कहा, कि आप सियासत से दूर रहें, और उनका ऐसे मुद्दे उठाना बिल्कुल जायज़ है, जो उनके ख़याल में लोगों के लिए अहमियत रखते हैं.

उन्होंने कहा, ‘मैं अपने काम ख़ुद तय कर सकता हूं. इस्लाम और संविधान मुझे ख़ुद से, सोचने और करने की आज़ादी देते हैं. अगर चाचा दूसरों को ममता बनर्जी को वोट देने के लिए कह रहे हैं, तो वो भी एक पार्टी की हिमायत कर रहे हैं’. उन्होंने आगे कहा कि क़ुरान लोगों की सियासी पसंद के प्रभावित करने के लिए, फतवा जारी करने की इजाज़त नहीं देता. उन्होंने कहा, ‘मैं किसी पार्टी में शामिल नहीं हुआ हूं, बल्कि मैंने अपनी पार्टी शुरू की है, क्योंकि मैं किसी दूसरी पार्टी के सहारे नहीं रहना चाहता था. मुझे लगा कि हमारे लोगों की अपनी एक पार्टी होनी चाहिए. मैंने दो दूसरी बड़ी पार्टियों के साथ गठबंधन किया है’.

तृणमूल के बारे में बोलते हुए उन्होंने कहा, ‘कुछ दीवारें पेंट कर देने, और लाइटें लगा देने भर को, विकास नहीं कहा जा सकता. विकास हुआ है ये मैं तब मानूंगा, जब मुसलमान सूबे में ऊंचे प्रशासनिक पदों पर रखे जाएंगे, और सभी मुसलमान बच्चों का स्कूलों में दाख़िला हो जाएगा. हमें इमाम भत्ते के नाम पर ख़ैरात नहीं चाहिए. हमें अपने अधिकार चाहिएं. अगर मेरे विचार ग़लत हैं, और इस्लाम या संविधान में उनकी अनुमति नहीं है, तो कोई भी मुझे चुनौती दे सकता है. मैं सब कुछ छोड़कर अलग हो जाउंगा’.

अब्बास के शब्दों की गूंज सिद्दीक़ी ख़ानदान के युवा सदस्यों में भी सुनाई देती है, जिनमें से बहुत से लोग अपने बड़ों के ख़िलाफ होकर, अब्बास के समर्थन में आगे आ रहे हैं. उनमें से एक हैं उनके कज़िन नूरुद्दीन, जो पूर्व तृणमूल छात्र परिषद नेता हैं. उन्होंने कहा, ‘मैंने अब्बास के साथ काम करने के लिए तृणमूल को छोड़ दिया है’.

उन्होंने आरोप लगाया, ‘तृणमूल सिंडिकेट मालिकों की पार्टी है. उन्होंने मुसलमानों के लिए कभी कुछ नहीं किया, बल्कि (वोटों के लिए) उन्हें इस्तेमाल किया. हमारे ख़ानदान के बहुत से बुज़ुर्गों को पार्टी से पैसा मिलता है, और इसी वजह से वो ममता बनर्जी का समर्थन कर रहे हैं’. अब्बास का एक भाई नौशाद, साउथ 24 परगना की भांगर असैम्बली सीट से, आईएसएफ के टिकट पर चुनाव लड़ रहा है.

लोगों की आवाज़

इस बीच, जहां ख़ानदान के कुछ लोग और तृणमूल नेता, अब्बास पर आरोप लगा रहे हैं कि वो मुस्लिम पहचान की सियासत कर रहे हैं, वहीं अब्बास की ओर से सत्तारूढ़ पार्टी पर उठा गए सवालों की गूंज, दूसरे ज़िलों के लोगों में भी सुनाई दे रही है. तृणमूल के ख़िलाफ ऐसी ही एक आम शिकायत है, पार्टी-समर्थित असामाजिक तत्वों का, सिंडिकेट्स के रूप में फलना-फूलना, जो किसी भी बहाने से लोगों से पैसा उगाहते हैं- एक ऐसी शिकायत जो बहुत से चुनाव क्षेत्रों में सुनने को मिली.

एक मस्जिद के इमाम अब्दुल रहीम ने कहा, ‘हमें इमाम भत्ता मिलता है, लेकिन हमें वो नहीं चाहिए. हम चाहते हैं कि हमारे बच्चे पढ़ें और नौकरियों में जाएं. हम चाहते हैं कि वो आर्थिक रूप से, अपने पैरों पर खड़े हों. दीदी हमें सिर्फ चुनावों के समय याद करती हैं. उससे किसी का भला नहीं होता. हमारे नौजवानों को हिंसा और अपराध की राजनीति में खींचा जा रहा है. हमें ये नहीं चाहिए’.

उन्होंने आगे कहा: ‘हम अब्बास के साथ इसलिए नहीं हैं, कि उन्होंने क़ौम के लिए एक पार्टी बना ली है. हम उनके साथ इसलिए हैं कि हमें (तृणमूल का) एक विकल्प चाहिए, और हम बीजेपी के साथ नहीं जा सकते, क्योंकि वो एक सांप्रदायिक पार्टी है. हम तृणमूल के इस उगाही और ‘सिंडिकेट’ राज को, अब और बर्दाश्त नहीं करना चाहते’.

तृणमूल के कथित भ्रष्टाचार की एक और मिसाल देते हुए, इलाक़े के एक टी-स्टाल मालिक रहीम अली ने कहा, ‘अपनी दुकान में मरम्मत के एक छोटे से काम के लिए, मुझे एक स्थानीय तृणमूल नेता को 20,000 रुपए देने पड़े. मेरे कुछ रिश्तेदार जो एक सरकारी स्कीम के लाभार्थी हैं, 50 प्रतिशत पैसा कट मनी के रूप में, स्थानीय पंचायत के सदस्यों को दे देते हैं. क्या आप इसे मुसलमानों का विकास कहेंगे? उनके (तृणमूल) सिंडिकेट्स हर जगह हैं, और वो हर काम के लिए उगाही करते हैं’.

Jiauddin Sidduqi, an elder member of the family of the Furfura Sharif pirs. Photo by Madhuparna Das | ThePrint
जियाउद्दीन सिद्दीकी, फुरफुरा शरीफ के परिवार के बड़े सदस्य हैं/मधुपर्णा दास/ दिप्रिंट

एक किसान अलाउद्दीन शेख़ ने कहा, कि फुरफुरा शरीफ के आसपास रहने वाले मुसलमान, ममता बनर्जी के झूठे वायदों से बख़ूबी वाक़िफ हैं. ‘वो फुरफुरा शरीफ विकास बोर्ड की बात करती हैं. लेकिन हमने कभी उसके अधिकारियों को नहीं देखा. वो कैसे काम करता है? मुस्लिम दरगाह सदियों पुरानी है, लेकिन यहां कोई विकास नहीं हुआ है. मज़ार को जाने वाली सड़क बुरे हाल में है’.

फुरफुरा शरीफ में क़रीब 30 मदरसे हैं, जिनमें चार लड़कियों के लिए, और कम से कम एक दर्जन यतीमों के लिए हैं. लेकिन उनमें से किसी को सरकारी सहायता नहीं मिलती.

अब्बास ने भी बार बार पार्टी-समर्थित असामाजिक सिंडिकेट्स, और तृणमूल कार्यकर्त्ताओं द्वारा मांगी जाने वाली कट मनी का मुद्दा उठाया है. बृहस्पतिवार को, हुगली के चंदीतला चुनाव क्षेत्र में, सीपीएम उम्मीदवार और पोलितब्यूरो सदस्य मौहम्मद सलीम के समर्थन में, एक रैली को मुख़ातिब करते हुए उन्होंने कहा था, ‘बीजेपी को ममता दीदी यहां लेकर आई हैं. उन्होंने मुहर्रम पर दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन पर पाबंदी लगाई. क्यों? वो लोगों को बांटना चाहतीं थीं. उन्होंने छात्रों के लिए क्रेडिट कार्ड्स का वादा किया है. लेकिन क्या कभी उन्होंने उस ब्याज का ज़िक्र किया, जो छात्रों को बिलों पर देना होगा? वो इसी तरह का प्रचार करती हैं’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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