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Friday, 1 November, 2024
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योगी के ‘जा रहा हूं मैं’ से ‘मोदी ने वैक्सीन बनाया’ तक- कैसे वॉट्सऐप मैसेज UP वोटर्स को कर रहे टारगेट

यूपी भर में व्यापक पहुंच रखने वाले अनौपचारिक व्हाट्सएप संदेश तथ्यों पर ध्यान केंद्रित करने वाले नहीं हैं, बल्कि ये केवल दूसरों पर आरोप लगाने की कोशिश करते हैं. लेकिन वे ऐसे 'स्विंग' वोटर्स को प्रभावित कर सकते हैं और जो अभी तक अपना मन नहीं बना पाए हैं.

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नई दिल्ली: ‘मोदी राम मंदिर बनाते हैं, लेकिन वह आईआईटी/आईआईएम और एम्स भी बनाते हैं’, ‘वह लोगों को बर्तन बजाने को कहते हैं, लेकिन टीके भी बनवाते हैं’, ‘मोदी राफेल खरीदते हैं… पर वह ब्रह्मोस भी बेचते हैं…’ –  किसी अनौपचारिक व्हाट्सएप संदेश में ‘आरोप’ और उनके ‘खंडन’ की इसी तरह की रैंडम सूची शामिल होती है और यह राजनीतिक चुनाव प्रचार में आई एक नई वास्तविकता का प्रतिनिधित्व करता है.

उत्तर प्रदेश में इस चुनावी मौसम के पूरे दौर में, चुनाव पूर्व प्रचार अभियान से लेकर विधानसभा चुनावों के छह चरणों तक फैले यूपी के इस चुनावी मौसम में वोटर्स को लुभाने के लिए राजनीतिक दलों ने उत्तेजक भाषण से लेकर घर-घर जाकर की गई अपील और पारंपरिक मीडिया तक का उपयोग, सब कुछ किया है.

इस सब के बीच, विभिन्न पार्टियों के समर्थकों द्वारा फैलाये जा रहे अनौपचारिक व्हाट्सएप फॉरवर्ड के रूप में एक वास्तविक ऑनलाइन प्रतियोगिता जैसी डायरेक्ट मैसेजिंग की एक दबी हुई लहर भी मौजूद रही है.

अनौपचारिक व्हाट्सएप फॉरवर्ड की इस प्रतियोगिता की कुछ अपनी खासियतें  हैं – यह तथ्यों पर ध्यान केंद्रित करने की कोशिश नहीं करता है और इसका एकमात्र उद्देश्य विरोधी पार्टी को कलंकित करना तथा अफवाहों के माध्यम से किसी नेता या पार्टी की नीतियों को टारगेट करना होता है.

राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि ये व्हाट्सएप फॉरवर्ड उन महत्वपूर्ण ‘स्विंग वोटरों’ – एक पक्ष से दूसरे पक्ष में झूलते मतदाता – को प्रभावित कर सकते हैं, जिनके पास अपनी कोई निश्चित राजनीतिक पसंद नहीं है.

हालांकि, ये सन्देश सोशल मीडिया कंटेंट के रूप में उसी इको सिस्टम के तहत बनाए जाते हैं जिन पर किसी पार्टी की छाप होती है, पर ये संदेश ‘अनौपचारिक’ होते हैं और बस व्हाट्सएप पर ग्रुप्स में फॉरवर्ड किए जाते हैं.

और इसका क्या कारण है? आसानी से खंडन किए जा सकने की सुविधा. अपनी प्रकृति के अनुरूप यह किसी भी दल को मानहानि अथवा जानबूझकर गलत इरादे से काम किये जाने के किसी भी संभावित आरोप से मुक्त करता है.

इनमें से अधिकांश व्हाट्सएप संदेश एक ऐसे एजेंडे को आगे बढ़ाते हैं जो भाजपा और उसके सहयोगियों की मदद कर सकता है.

इसके अलावा, इन अनौपचारिक संदेशों के वर्तमान में चल रहे झंझावात में यूपी के विपक्ष की एक बहुत ही हल्की पैठ है.

बता दें कि उत्तर प्रदेश में सातवें और अंतिम चरण का मतदान सोमवार, 7 मार्च को होगा.


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यूपी में मतदाताओं के फोन पर आई संदेशों की बाढ़

वाराणसी में काल भैरव मंदिर के पास रहने वाले एक दुकानदार विनोद जायसवाल ने बताया कि उन्हें एक दिन में कम से कम एक दर्जन ऐसे व्हाट्सएप फॉरवर्ड मिलते हैं.

समाजवादी पार्टी के कट्टर समर्थक जायसवाल ने कहा कि वह उन्हें मिटाते रहते हैं क्योंकि उन्हें पता है कि उन्हें समाजवादी पार्टी को ही वोट देना है. उन्होंने कहा, ‘वे ऐसे संदेश भेजते रहते हैं. मैं अक्सर उन्हें बिना पढ़े डिलीट कर देता हूं. ऐसे बहुत सारे संदेश हैं.‘

सिर्फ वाराणसी में ही नहीं, बल्कि पूरे उत्तर प्रदेश में लोगों के फोन ऐसे व्हाट्सएप फॉरवर्ड्स से भरे पड़े हैं, जिनमें या तो पार्टियां अपने नेताओं की तारीफ कर रही होती हैं या फिर विरोधियों को फटकार लगा रही होती हैं.‘

जायसवाल को भी व्हाट्सएप पर ऊपर बताए गए आरोप-प्रत्यारोप की सूची प्राप्त हुई है. इसी सूची से शामिल एक और बिंदु में लिखा गया है, ‘मोदी रोहिंग्याओं को भगाता है, तो मोदी कश्मीरी पंडितों को बसाता भी है.’

हर जगह हैं मोबाइल फोनऐसे व्हाट्सएप फॉरवर्ड स्विंग वोट को प्रभावित कर सकते हैं

हालांकि, इनमें से अधिकांश व्हाट्सएप फॉरवर्ड, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से, सत्तारूढ़ दल के पक्ष में ही काम करते हैं, मगर अन्य दल भी अब इस तमाशे में शामिल हो गए हैं.

समाजवादी पार्टी के समर्थकों के बीच एक वीडियो प्रसारित किया जा रहा है, जिसमें योगी आदित्यनाथ पर निशाना साधते हुए कहा गया है- मैं जा रहा हूं.

योगी सरकार की किसानों के प्रति उदासीनता की आलोचना करते हुए इस वीडियो में कहा गया है- हैरान है, परेशान है, तिल-तिल कर मर रहा किसान है. और यहां उसी के उगाये अन्न से चैन की रोटी खा रहा हूं मैं, जा रहा हूं मैं.’

इलाहाबाद के गोविंद बल्लभ पंत सामाजिक विज्ञान संस्थान में राजनीतिक विश्लेषक और प्रोफेसर बद्री नारायण ने बताया कि दूर-दराज के इलाकों में भी कई लोगों के पास स्मार्ट फोन है और ऐसे में इन व्हाट्सएप संदेशों में एक खास वोटर ग्रुप को प्रभावित करने की ताकत है.

उन्होंने बताया, ‘ग्रामीण क्षेत्रों में, इन दिनों हर समुदाय के पास ऐसे फोन उपलब्ध हैं. वे इन फोन्स पर फिल्में देख रहे हैं और कई व्हाट्सएप ग्रुप में भी शामिल हैं. जो चीजें शहरों में प्रसारित होती हैं, वही गांवों में भी प्रसारित की जाती हैं. इस समय व्हाट्सएप बेहद प्रचलित है.’

इस बारे में और विस्तार से समझाते हुए नारायण कहा कि एक महत्वपूर्ण ‘स्विंग वोट’ चुनाव से एक या दो दिन पहले ही अपना मन बनाता है. इन मतदाताओं के पास वोट देने के लिए कोई एक विशेष पसंदीदा पार्टी नहीं होती है.

उन्होंने बताया, ‘ऐसे कई लोग हैं जो चुनाव से एक या दो दिन पहले भी अपने वोट के बारे में आश्वस्त नहीं होते हैं, और यह वही लोग हैं जिनके लिए ये व्हाट्सएप फॉरवर्ड किये जाते हैं और जो उनसे प्रभावित होते हैं. स्विंग वोट किसी भी समुदाय के बिना आधार वाले मतदाताओं का एक छोटा प्रतिशत होता है.’

राजनीतिक परामर्शदाता फर्म आई-पैक के एक पूर्व सहयोगी, जिन्होंने चुनाव जीतने में मदद करने के लिए विभिन्न राजनीतिक दलों के साथ काम किया है, ने बताया कि व्हाट्सएप फॉरवर्ड मतदाताओं तक पहुंचने में कारगर साबित होते हैं.

उन्होंने कहा कि विभिन्न पार्टियों के आईटी सेल में फॉलोवर्स एन्ड फ्रेंड्स (अनुयायी और मित्र) की एक अलग मशीनरी होती है जो उनके आकर्षण को सुनिश्चित करती है और यह देखती है कि कैसे वे अधिक-से-अधिक लोगों तक पहुंचें.


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भूले तो नहीं‘ – कैसे काम करते हैं व्हाट्सएप फॉरवर्ड

लेकिन, सभी का कहना था कि व्हाट्सएप फॉरवर्ड के जंगल में, भाजपा समर्थक ही असली बादशाह हैं. यूपी बीजेपी के आईटी विंग के प्रमुख, कामेश्वर मिश्रा ने कहा कि व्हाट्सएप विचारधारा और विचारों को आगे बढ़ाने और विपक्ष पर प्रहार करने और उसकी गलतियां दिखाने का एक माध्यम है.

यह आमतौर पर एक समानांतर व्हाट्सएप चैनल के माध्यम से किया जाता है, जो बाद में फेसबुक और टेलीग्राम पर उपलब्ध होता है, ताकि जमीनी स्तर पर सूचना का प्रसार किया जा सके.

मिश्रा ने समझाया कि ये अनौपचारिक चैनल, जिन्हें ‘बाजारू सामग्री’ (मार्केट कंटेंट) भी कहा जाता है, ‘अनुयायियों’ द्वारा विकसित किए जाते हैं, न कि पार्टी द्वारा आधिकारिक तौर पर.

मिश्रा ने कहा, ‘हमारे द्वारा डिजाइन की गई सभी प्रमुख विषय सामग्री (कंटेंट) हमारी अपनी सरकार से सम्बंधित सकारात्मक खबरों के बारे में होती है.’

मिश्रा ने यह भी बताया कि सोशल मीडिया पर चलाये जा रहे बहुत सारे अभियान ‘यह सुनिश्चित करने के लिए थे कि लोग सपा शासन के तहत हुए अत्याचारों को न भूलें’.

ऐसा ही एक अभियान था ‘भूले तो नहीं’

उन्होंने कहा, ‘अपने ‘भूले तो नहीं’ अभियान के तहत हमने लोगों को याद दिलाया है कि कैसे सपा शासन के तहत एक पुलिस अधिकारी को कार के बोनट से बांध दिया गया था क्योंकि वह तत्कालीन शासन व्यवस्था के खिलाफ गया था. हम इन अभियानों को जनता के बीच ले जा रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे इसे कभी न भूलें.’

मिश्रा बताते हैं, ‘एक और बात जो हम लगातार उठा रहे हैं, वह यह है कि कैसे (सपा नेता) आजम खान ने बुलंदशहर में एक किशोर लड़की के साथ सामूहिक बलात्कार के समय कहा था कि ‘बच्चों से गलती हो जाती है.’

मिश्रा ने बताया, ‘इस अभियान के पीछे का मकसद लोगों को यह याद दिलाने की जरूरत है कि अगर उन्होंने अतीत में यह सब किया है, तो वे भविष्य में और भी बुरा करेंगे.‘

11वीं सदी के एक शासक के साथ सपा की तुलना करते हुए भेजे गए एक और व्हाट्सएप फॉरवर्ड में लिखा गया है, ‘अगर पृथ्वीराज चौहान से कोई नाराज़ है तो विकल्प मोहम्मद गौरी तो नहीं होना चाहिए’.

विपक्षी गेमप्लान

समाजवादी पार्टी ने भाजपा के पक्ष को आगे बढ़ाने वाले व्हाट्सएप फॉरवर्ड की भीड़ का मुकाबला करने के लिए एक चयनात्मक दृष्टिकोण अपनाया है.

समाजवादी पार्टी के एक सदस्य ने बताया कि हमारा मुख्य फोकस जहां केंद्रीय मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने पर था, वहीं व्हाट्सएप संदेशों के माध्यम से फैलाई गई किसी भी गलत सूचना को खारिज किया जाना भी जरुरी था.

सपा सदस्य ने कहा कि नैरेटिव का सारा खेल सोशल मीडिया पर नहीं बल्कि सड़कों पर खेला जा  रहा है.

उन्होंने कहा, ‘इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि सपा या अखिलेश यादव पर हमला करते हुए उनका सोशल मीडिया अभियान कितना तेज है, हमारी ओर से अपनायी गई लाइन बीजेपी की हर बात का मुकाबला करने के लिए नहीं है. इसके बजाय, हम उन वादों पर ध्यान केंद्रित करते हैं जो उन्होंने किए थे और फिर जिन्हें उन्होंने कभी पूरा नहीं किया.’

उन्होंने आगे कहा कि, ‘एक बार सपा के घोषणापत्र के सामने आने के बाद हमारा सारा ध्यान उन वादों को स्पष्ट करने और समझाने पर रहा है जो हम कर रहे हैं.’

(इस खबर को अंग्रंजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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