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Saturday, 20 April, 2024
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मुसलमानो से जुड़े मुद्दों पर खामोशी से लेकर उन्हें दोष देने तक क्यों बदली है AAP की भाषा

पार्टी नेताओं का कहना है कि AAP के राष्ट्रीय विस्तार की कोशिशों के बीच, नया दृष्टिकोण ये है कि ऐसे हिंदू मतदाताओं को रिझाया जाए, जो BJP के साथ तो हैं लेकिन उसके शासन से संतुष्ट नहीं हैं. हालांकि एक डर ये भी है कि ये उल्टा पड़ सकता है.

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नई दिल्ली: मुसलमानों से जुड़े मुद्दों को लेकर आम आदमी पार्टी (आप) की राजनीतिक शब्दावली में अचानक एक पूरा बदलाव आ गया है. पहले वो ख़ामोश रहकर उनसे दूरी बनाए रखती थी, लेकिन अब वो इसी महीने दिल्ली के जहांगीरपुरी में हुई सांप्रदायिक हिंसा के लिए, ‘बांग्लादेशियों’ और ‘रोहिंग्या लोगों’ को दोष दे रही है.

साथ ही पार्टी ने अपनी सियासत में कुछ मूल हिंदू तत्व शामिल कर लिए जैसे कि हनुमान की पूजा और ऐसे पंडालों के साथ दीवाली का भव्य आयोजन, जो अयोध्या में बन रहे राम मंदिर की नक़ल थे.

लेकिन जहांगीरपुरी मामले में आप ने भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) पर हमला बोलने की अपनी बड़ी रणनीति के तहत दो मुस्लिम समुदायों को दोषारोपण के लिए मुख्य निशाना बना लिया. कई पार्टी पदाधिकारियों का कहना था कि किसी सांप्रदायिक मुद्दे पर राजनीतिक रुख़ इख़्तियार के मामले में, पार्टी की शब्दावली में ये एक बड़ा बदलाव है.

जहांगीरपुरी हिंसा पर टिप्पणी करते हुए दिल्ली के उप-मुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया और आप प्रवक्ता तथा विधायक आतिशी ने आरोप लगाया कि दंगे कराने के लिए बीजेपी बांग्लादेशी नागरिकों और रोहिंग्या लोगों को देश भर में बसाती रही है. बीजेपी नेताओं ने ख़ुद भी इन्हीं समुदायों पर दोष मढ़ा है.

मंगलवार को एक प्रेस कांफ्रेंस में बोलते हुए सिसोदिया ने आरोप लगाया, ‘बीजेपी की वजह से आज देश भर में गुण्डागर्दी फैली हुई है…मैं उनसे पूछता हूं कि पिछले आठ वर्षों में बीजेपी ने देश भर में बांग्लादेशियों और रोहिंग्या लोगों को आश्रय क्यों दिया? इन्होंने उन लोगों को आसरा दिया और फिर देशभर में सांप्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ने के लिए उनका इस्तेमाल किया.’

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कई वरिष्ठ आप पदाधिकारियों के अनुसार, शाहीन बाग़ से लेकर जहांगीरपुरी तक पार्टी की शब्दावली में ये बदलाव, हिंदुओं समेत एक ऐसे जनाधार को अपील करने के लिए आया है जो वैचारिक रूप से बीजेपी के साथ हो सकते हैं. लेकिन बेरोज़गारी, विकास की कमी, और महंगाई जैसे मुद्दों पर उससे नाराज़ हैं.

उनका मानना है कि ये रणनीति बीजेपी-शासित राज्यों गुजरात और हिमाचल प्रदेश में इसी साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले, चुनावी रूप से पार्टी के पक्ष में जा सकती है.

लेकिन आप के कुछ दूसरे वरिष्ठ नेताओं का मानना है कि ये रणनीति उल्टी पड़ सकती है, चूंकि ये गुजरात, कर्नाटक और तेलंगाना में पार्टी के मुस्लिम वोटों को लामबंद करने की राह में रोड़ा बन सकती है. कर्नाटक और तेलंगाना में अगले साल चुनाव होने हैं- जहां अच्छी ख़ासी मुस्लिम आबादी है.

दिप्रिंट ने फोन कॉल्स और संदेशों के ज़रिए सिसोदिया, आतिशी, और दूसरे आप प्रवक्ताओं से इस मामले पर टिप्पणी लेने का प्रयास किया, लेकिन लेख के छपने तक उनका जवाब हासिल नहीं हुआ था. जब भी उनकी प्रतिक्रिया मिलेगी, इस लेख को अपडेट कर दिया जाएगा.

AAP का बदलता रुख़

जनवरी 2020 में दिल्ली विधानसभा चुनावों से पहले सिसोदिया ने कहा था कि वो शाहीन बाग़ के लोगों के साथ खड़े हैं, जिसके बाद बीजेपी नेताओं ने उनकी आलोचना की थी. लेकिन अंत में आप ने ये कहते हुए अपने पांव पीछे खींच लिए कि शाहीन बाग़ प्रदर्शनकारियों को लेकर उनकी कोई ज़िम्मेदारी नहीं बनती.

बाद में कई अवसरों पर आप प्रमुख और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने कहा कि पार्टी सीएए का विरोध करेगी, लेकिन उन्होंने शाहीन बाग़ से दूरी बनाए रखी. उन्होंने ये भी कहा कि अगर दिल्ली पुलिस उनकी सरकार के अधिकार क्षेत्र में होती, तो उसने दो घंटे के भीतर प्रदर्शनकारियों द्वारा रोकी गई सड़क को खुलवा दिया होता. सीएम के बयान के बाद बड़ी संख्या में शाहीन बाग़ प्रदर्शनकारियों ने कहा था कि आप ने उन्हें नीचा दिखाया है.

उसी समय के आसपास आप पूरी ताक़त से हिंदू देवता हनुमान के पीछे लग गई, और केजरीवाल ने कई टीवी इंटरव्यूज़ में हनुमान चालीसा का पाठ किया, और उनके पार्टी सहयोगियों ने भी हनुमान रैलियां तथा धार्मिक अनुष्ठान कराए जैसे कि सुंदरकाण्ड का पाठ- जो तुलसीदास की रामचरितमानस में हनुमान को समर्पित एक अध्याय है.

फरवरी 2020 में बहुमत के साथ आप के दूसरी बार दिल्ली की सत्ता में आते ही, उत्तर पूर्वी दिल्ली सांप्रदायिक दंगों से दहल गई जिसने 53 लोगों की जान ले ली.

केजरीवाल ने तीन दिन की हिंसा के बाद प्रभावित इलाक़ों का दौरा किया, राजघाट पर एक शांति प्रार्थना का आयोजन किया और ‘बाहरी लोगों’ पर दोष मढ़ दिया- उन्होंने इस बारे में चुप्पी साधे रखी कि किस तरह वो हिंसा मूल रूप से दो समूहों के टकराव से शुरू हुई, जिनमें हिंदुओं की अगुवाई वाले समूह सीएए का समर्थन कर रहे थे, और मुसलमानों के समूह क़ानून का विरोध कर रहे थे.

एक साल बाद, जब 25 मंगोलपुरी में 25 वर्षीय रिंकू शर्मा की छुरा घोंपकर हत्या कर दी गई, तो आप ने दावा किया कि युवक की हत्या ‘जय श्री राम’ का नारा लगाने पर हुई, जबकि बीजेपी की केंद्र सरकार के अंतर्गत आने वाली दिल्ली पुलिस ने इस मामले में सांप्रदायिक एंगल को ख़ारिज कर दिया.

फिर अगस्त 2021 में, जब एक बीजेपी नेता की अगुवाई में एक समूह ने दिल्ली के जंतर मंतर पर मुस्लिम-विरोधी नारे लगाए, तो केजरीवाल ने उस मुद्दे पर ख़ामोशी इख़्तियार कर ली. जंतर मंतर नई दिल्ली असेम्बली चुनाव क्षेत्र में आता है जहां से केजरीवाल विधायक हैं.

लेकिन, इस महीने जहांगीरपुरी में हुई सांप्रदायिक हिंसा की प्रतिक्रिया में, आप एक क़दम और आगे बढ़ गई, और बीजेपी पर निशाना साधते हुए उसने बांग्लादेशी नागरिकों तथा रोहिंग्या समुदाय को- जो मुख्यत: मुसलमान हैं- दोषारोपण खेल के केंद्र में रख दिया.

एक आप विधायक ने जो अपनी पहचान छिपाना चाहते थे, कहा, ‘मुझे पहले का ऐसा कोई मौक़ा याद नहीं है जिसमें पार्टी ने राजनीतिक दोषारोपण के खेल में किसी समुदाय विशेष को निशाना बनाया हो’.

बीजेपी भी जहांगीरपुरी हिंसा के लिए बांग्लादेशियों और रोहिंग्याओं को दोष दे रही है.

आप ने जहांगीरपुरी से भी एक दूरी बनाई हुई है. 16 अप्रैल से, जब हिंसा हुई, 20 अप्रैल तक, जब बीजेपी-शासित नई दिल्ली नगर निगम ने अतिक्रमण-विरोधी कार्रवाई में कई दुकानों और दूसरे ढांचों को गिराया, और जिसपर अंत में सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाई, किसी भी आप नेता ने प्रभावित क्षेत्र का दौरा नहीं किया.

बृहस्पतिवार को आप ने अपने एक विधायक को इलाक़े में भेजा.


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चुनावी गणित

एक आप पदाधिकारी ने, जो नाम छिपाना चाहते थे, दिप्रिंट से कहा, ‘जिसे आप चुनावी बदलाव कहते हैं वो सीधे तौर पर चुनावी राजनीति से जुड़ा है. पार्टी बहुत से राज्यों में अपना विस्तार कर रही है. आपको देखना होगा कि बहुत सारे मतदाता ऐसे हैं जिन्होंने हो सकता है कि बीजेपी को वोट दिया हो, लेकिन अब उनके अंदर एक नाराज़गी है क्योंकि बीजेपी उन्हें नौकरियां, बेहतर शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य देखभाल, बेहतर आमदनी, बेहतर जीवन स्तर आदि देने में नाकाम रही है, आप को उन्हीं वोटों को खींचना है’.

एक दूसरे आप नेता ने भी नाम न बताने की शर्त पर कहा कि अच्छे शासन, कल्याण योजनाओं या वित्तीय सहायता के मामले में पार्टी ने कभी भी मुसलमानों या किसी दूसरे समुदाय के साथ भेदभाव नहीं किया है.

उस नेता ने कहा, ‘लेकिन जब बात ये आती है कि किस चीज़ को उजागर किया जाए और किसको नहीं, हिंदुओं और मुसलमानों से जुड़े मामलों में क्या रुख़ लिया जाए, तो वो एक पूरी तरह सियासी मुद्दा है. आपकी रणनीति सीधी सी है: अगर बीजेपी की जगह लेनी है तो उसे उसी के खेल में हराना होगा.’

लेकिन, एक और पदाधिकारी ने कहा कि ये रणनीति उल्टी पड़ सकती है, ‘मुसलमानों से जुड़े किसी मुद्दे पर ख़ामोश रहना एक बात है, लेकिन दोषारोपण के खेल में मुसलमानों को केंद्र में रखना दूसरी बात है. ये ऐसी चीज़ है जो हमने पार्टी को पहली बार करते हुए देखा है. ये उल्टी पड़ सकती है. गुजरात, कर्नाटक और तेलंगाना में संभावना है कि मुस्लिम वोट एक हो सकते हैं- जैसा कि दिल्ली के मामले में हुआ था. लेकिन पार्टिया का हालिया रुख़ उन सूबों के मतदाताओं को एक ग़लत संकेत दे सकता है’.

2020 के दिल्ली विधान सभा चुनावों में आप उन चुनाव क्षेत्रों में विजयी बनकर उभरी थी, जहां मुसलमानों की एक बड़ी आबादी है जैसे ओखला, जाफराबाद, सीलमपुर, मटिया महल, और मुस्तफाबाद. कई आप नेताओं ने कहा कि इन इलाक़ों में मुसलमानों को पार्टी के पक्ष में लामबंद होते हुए देखा गया.

पूर्व आप नेता आशुतोष ने दिप्रिंट से कहा, ‘ये सबसे ऊंचे दर्जे का राजनीतिक अवसरवाद है. आप जानबूझकर सांप्रदायिक राजनीति में कूद रही है और ये ख़तरनाक साबित हो सकता है. एक हिंदू जनाधार जिसे पार्टी तोड़ना नहीं चाहती साफतौर पर उसकी राजनीतिक के केंद्र में है, और केजरीवाल ख़ुद को हिंदुओं के सीएम के रूप में पेश कर रहे हैं’.

आशुतोष ने याद किया कि कैसे वो 2015 में केजरीवाल के साथ उत्तर प्रदेश के दादरी में अख़लाक़ के परिवार से मिलने गए थे- एक बड़ा मामला जिसमें हिंदू भीड़ ने एक मुसलमान शख़्स को अपने रेफ्रिजरेटर में गाय का मांस रखने के शक में पीट-पीटकर मार डाला था.

आशुतोष ने आगे कहा, ‘उन दिनों से आप राजनीतिक शब्दावली के मामले में यक़ीनन एक लंबा सफर तय कर चुकी है- एक ऐसा पतन जो सिर्फ हाल के वर्षों में ज़ाहिर हुआ है’.

दिल्ली-स्थित सेंटर फॉर दि स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज़ से जुड़े राजनीतिक विश्लेषक प्रवीण राय ने दिप्रिंट से कहा, ‘जहांगीरपुरी घटना पर आप का राजनीतिक रुख़ न सिर्फ पहेली की तरह है, बल्कि राजनीतिक समझ से भी परे नज़र आता है. पार्टी अपने पहले के रुख़ से हट गई है, जिसमें वो अनावश्यक विवादों और निगेटिव चुनावी असर से बचने के लिए, या तो ख़ामोश रहती थी या फिर बहुत संभलकर बयान देती थी’.

उन्होंने आगे कहा, ‘रणनीति का ये बदलाव जिसमें अपनी राजनीतिक पहुंच को विस्तार देने के लिए पार्टी हिंदू वोटों पर निगाह रख रही है, मुस्लिम समुदाय को उससे दूर कर सकता है जो कांग्रेस के विपक्ष की जगह ख़ाली करने के बाद उसकी ओर खिंचता नज़र आ रहा है. इसके उल्टा पड़ जाने की भी संभावना है, ख़ासकर ऐसे समय जब उन्होंने गुजरात और कर्नाटक के असेम्बली चुनावों में काफी निवेश किया है, जहां वो आख़िर में हिंदू और मुसलमान दोनों वोट गंवा सकते हैं’.

राय ने कहा, ‘ऐसा लगता है कि पंजाब में मिली भारी जीत ने केजरीवाल की अगुवाई वाली पार्टी को अहंकारी बना दिया है, लेकिन उन्हें ये समझने की ज़रूरत है कि वो बीजेपी का विकल्प तभी बन सकते हैं, जब वो सबको साथ लेकर चलने की राजनीति करेंगे और सभी धार्मिक समुदायों के मतदाताओं को लामबंद करेंगे’.

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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