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Wednesday, 20 November, 2024
होमराजनीतिसाड़ियां बेचने से लेकर शिक्षा मंत्री तक—कौन हैं अकबर को ‘बलात्कारी’ कहने वाले BJP नेता मदन दिलावर

साड़ियां बेचने से लेकर शिक्षा मंत्री तक—कौन हैं अकबर को ‘बलात्कारी’ कहने वाले BJP नेता मदन दिलावर

राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर एक के बाद एक विवादों में घिरे रहे हैं, लेकिन विश्लेषकों का कहना है कि यह उनका कट्टर हिंदुत्व रुख और पार्टी के प्रति वफादारी है जिसके कारण बीजेपी उन्हें बार-बार पुरस्कृत करती है.

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कोटा/जयपुर: जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता और भावी पार्टी अध्यक्ष कुशाभाऊ ठाकरे ने 1984 की गर्मियों में राजस्थान के बारां जिले का दौरा किया, तो उनके पास वहां एकत्र हुए सैकड़ों पार्टी कार्यकर्ताओं के लिए एक महत्वपूर्ण सवाल था.

बैठक को कवर करने वाले कोटा के पूर्व पत्रकार ब्रिजेश विजयवर्गीय याद करते हैं, “वहां पूछा गया, आपमें से कौन बदले में टिकट की उम्मीद किए बिना पार्टी के लिए उत्साह से काम कर सकता है. एक युवा कार्यकर्ता ने अपना हाथ उठाया. वे थे राजस्थान के वर्तमान शिक्षा मंत्री मदन दिलावर.”

यह दिलावर के चार दशक लंबे राजनीतिक करियर की शुरुआत थी. हिंदुत्व संगठनों राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और बजरंग दल के एक साधारण कार्यकर्ता से लेकर भैरों सिंह शेखावत, वसुंधरा राजे और अब भजनलाल शर्मा के नेतृत्व वाली भाजपा सरकारों में मंत्री रहते हुए, 64-वर्षीय दलित नेता और राजस्थान के हाड़ौती क्षेत्र से छह बार विधायक दिलावर ने एक लंबा सफर तय किया है.

चंबल पार्लियामेंट — के संयोजक विजयवर्गीय — एक स्थानीय संगठन जो चंबल नदी के संरक्षण के लिए काम करता है, ने दिप्रिंट को बताया, “दिलावर ने उस दिन जो निस्वार्थ काम करने का फैसला किया, वो अब तक कर रहे हैं. पार्टी उन्हें टिकट दे या न दे, वे उसी उत्साह से काम करते हैं और पार्टी के अनुशासित कार्यकर्ता हैं. वे लालची नहीं है, लेकिन वो घमंडी हैं. हालांकि, वे जिस तरह की राजनीति करते हैं, उसके लिए यह जरूरी है.”

हिंदुत्व के रंग में रंगे नेता, आमतौर पर अपने सिग्नेचर स्टाइल कुर्ता-पायजामा और सिन्दूरी (लाल रंग) टीका लगाने वाले दिलावर, जो वर्तमान में विधानसभा में रामगंज मंडी का प्रतिनिधित्व करते हैं, हाल ही में अपने कई विवादास्पद बयानों और फैसलों के लिए चर्चा में रहे हैं. पिछले महीने उन्होंने धर्म परिवर्तन के आरोप लगने के बाद कोटा गांव के एक सरकारी स्कूल से तीन मुस्लिम शिक्षकों को निलंबित करने का आदेश दिया था. स्कूल प्रबंधन और निलंबित शिक्षकों दोनों ने आरोपों से इनकार किया है.

उसी महीने उन्होंने मुगल सम्राट अकबर को — एक शासक जो ऐतिहासिक रूप से अपनी धार्मिक सहिष्णुता की नीति के लिए जाना जाता है — “आक्रांता और बलात्कारी” कहा. बाद में उन्होंने जोर देकर कहा कि यह ऑरविल और विल्बर राइट नहीं बल्कि शिवकर बापूजी तलपड़े नाम के एक भारतीय थे जिन्होंने पहला मानव रहित विमान उड़ाया था.

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, यह उनका कट्टर हिंदुत्व रुख और भाजपा के प्रति उनका समर्पण है जिसके कारण पार्टी उन्हें बार-बार पुरस्कृत करती है.

राजनीतिक विश्लेषक ओम सैनी ने दिप्रिंट को बताया, “ऐसा नहीं है कि उनका अपने क्षेत्र में बहुत प्रभाव है. यह उनका समर्पण है जो उन्हें राजनीतिक लाभ दे रहा है.”

लेकिन राजस्थान की बीजेपी इकाई का एक वर्ग दिलावर के बयानों से नाराज़ है, उनका मानना है कि इस तरह के दृष्टिकोण से पार्टी को नुकसान हो सकता है. इन नेताओं में बारां जिले के अंता से भाजपा विधायक कंवरलाल मीणा भी शामिल हैं, जो इस बात से खासे नाराज़ हैं कि मंत्री किस तरह अल्पसंख्यकों को निशाना बनाते हैं.

मीणा ने कहा, “एक मंत्री एक जिम्मेदार व्यक्ति होता है; उनके शब्दों को मापा जाना चाहिए.”


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साड़ी विक्रेता से कट्टर हिंदुत्व — मदन दिलावर की यात्रा

राजस्थान के पूर्वी और दक्षिणपूर्वी हिस्सों में स्थित हाड़ौती क्षेत्र में बूंदी, बारां, झालावाड़ और कोटा शामिल हैं. कभी बूंदी साम्राज्य का हिस्सा माने जाने वाले इस क्षेत्र में वर्तमान में 17 विधानसभा सीटें हैं, जिनमें से पिछले नवंबर में हुए विधानसभा चुनावों में भाजपा ने 11 सीटें जीती थीं.

इस क्षेत्र का सबसे बड़ा शहर कोटा एक औद्योगिक क्षेत्र है जो कभी कांग्रेस और कम्युनिस्ट पार्टियों का गढ़ था. हालांकि, उनके घटते प्रभाव और 1960 के दशक से इस क्षेत्र में संघ के काम ने इसे संघ के किले में बदल दिया है.

1959 में बारां के एक गरीब दलित परिवार में जन्मे दिलावर अहमदाबाद से थोक रेट पर साड़ियां खरीदते थे और उन्हें कोटा के बाजारों में बेचते थे. वे 1978 में आरएसएस में शामिल हुए और अंततः बजरंग दल की कोटा इकाई के अध्यक्ष बने.

वे 1990 में राम जन्मभूमि आंदोलन में शामिल हुए, जब यह अपने चरम पर था. उस साल उन्होंने अपना पहला राजस्थान विधानसभा चुनाव बारां-अटरू की आरक्षित सीट से जीता और इसे तीन और चुनावों — 1993, 1998 और 2003 में बरकरार रखा.

पूर्व मुख्यमंत्रियों भैरों सिंह शेखावत (1993-98) और वसुंधरा राजे (2003-2008) के अधीन और अब भजनलाल शर्मा के अधीन — वे तीन बार मंत्री रहे हैं.

राजस्थान केंद्रीय विश्वविद्यालय में शासन के प्रोफेसर एस.एन. आंबेडकर के अनुसार, जब दिलावर चुनावी राजनीति में शामिल हुए तब तक संघ ने हाड़ौती पर महत्वपूर्ण प्रभाव डाल लिया था.

उन्होंने कहा, “जनसंघ (भाजपा के पूर्ववर्ती) के समय से ही वहां ज़मीन पर काम किया गया था. चूंकि, दिलावर की जड़ें संघ से जुड़ी हुई हैं और वे एक बड़े दलित नेता भी हैं, इसलिए उन्हें मौके मिले.”

राज्य की भाजपा इकाई के पूर्व उपाध्यक्ष और बारां के किशनगंज से पूर्व विधायक हेमराज मीणा ने कहा, यह पूर्ववर्ती झालावाड़ शाही परिवार की राजमाता स्वरूपा देवी थीं, जिन्होंने सबसे पहले 1989 में उनके लिए टिकट की पैरवी की थी. दिलावर को संघ से परिचित कराने का श्रेय मीणा खुद लेते हैं.

2008 में पहली बार सीट जीतने के 18 साल बाद, दिलावर बारां-अटरू में कांग्रेस के पानाचंद मेघवाल से 16,000 से अधिक वोटों के अंतर से हार गए. वे आखिरी बार था जब उन्होंने उस सीट से चुनाव लड़ा था: 2013 में उन्होंने रामगंज मंडी से चुनाव लड़ा और जीता, तब से उन्होंने यह सीट बरकरार रखी है.

उक्त सैनी के अनुसार, राज्य के सबसे बड़े भाजपा राजनेताओं में से एक पूर्व सीएम शेखावत ने दिलावर और कोटा उत्तर के पूर्व विधायक प्रह्लाद गुंजल जैसे नेताओं को “हूटर” के रूप में विकसित किया.

सैनी ने दिप्रिंट को बताया, “ये लोग पार्टी के लिए हंगामा करते थे, फिर विपक्ष में रहते थे. फिर वसुंधरा राजे ने इसे आगे बढ़ाया.” उन्होंने कहा, “शेखावत, जो खुद हाड़ौती से थे, वो “इन अतिउत्साही नेताओं से नहीं निपटे”, बल्कि इसे राजस्थान भाजपा के पूर्व अध्यक्ष गुलाब चंद कटारिया पर छोड़ दिया.”

सैनी की तरह, हेमराज मीणा भी, दिलावर को “दृढ़ निश्चयी, मेहनती और ईमानदार व्यक्ति” बताते हैं, उनका मानना है कि पार्टी के प्रति उनकी वफादारी के साथ-साथ ये विशेषताएं ही थीं, जिससे उन्हें लाभ मिला.

हालांकि, कांग्रेस नेता बालकिशन नागर, जो अटरू में ब्लॉक अध्यक्ष थे, के अनुसार जब दिलावर 2008 का चुनाव हार गए, तो यह कांग्रेस ही थी जिसने उन्हें नेता बनाया. नागर मंत्री के पूर्व सहपाठी हैं, उन्होंने अटरू के सीनियर हायर सेकेंडरी स्कूल में कक्षा 6 से 10 तक उनके साथ पढ़ाई की है.

उन्होंने कहा, “उन्होंने (कांग्रेस) हमेशा उनके खिलाफ कमज़ोर उम्मीदवार उतारे, लेकिन 2008 में हालात बदले और पानाचंद मेघवाल ने उन्हें 16 हज़ार वोटों से हरा दिया. उन्होंने फिर कभी अटरू से चुनाव नहीं लड़ा.”


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‘विचारधारा का व्यक्ति’

जो लोग भाजपा नेता को जानते हैं वे उन्हें “एक स्पष्टवादी व्यक्ति” बताते हैं जो हमेशा वही कहते हैं जो वे मानते हैं. नागर ने कहा, “वे अपने लोगों के लिए हमेशा उपलब्ध हैं.” उन्होंने कहा कि दिलावर ने अक्सर भ्रष्टाचार के खिलाफ सैद्धांतिक रुख अपनाया है.

पूर्व पत्रकार विजयवर्गीय ने 1990 के दशक का एक ऐसा उदाहरण याद किया जब दिलावर पहली बार मंत्री बने थे.

“गणतंत्र दिवस के अवसर पर उन्हें कोटा में विशेष अतिथि के रूप में बुलाया गया था, जहां उन्हें कुछ लोगों का सम्मान करना था, लेकिन जब उन्होंने देखा कि भ्रष्टाचार के कई मामलों का सामना करने वाले व्यक्ति को भी सम्मानित किया जा रहा है, तो उन्होंने जिला कलेक्टर को फटकार लगाई और उस व्यक्ति को सम्मानित करने से इनकार कर दिया. उन्होंने कहा, दिलावर एक “विचारधारा के व्यक्ति” और “कट्टर हिंदुत्व के अनुयायी” हैं, जो अपने मूल विचारों से कभी विचलित नहीं होते.”

1989 की एक घटना बताती है कि दिलावर का बजरंग दल जैसे दक्षिणपंथी संगठनों पर कितना प्रभाव है. उस साल कोटा में हिंदुओं और मुसलमानों के बीच दंगे होने के बाद उनके भड़काऊ भाषणों के लिए मंत्री को हिरासत में लिया गया था — 2011 की जनगणना के अनुसार, 15 प्रतिशत मुस्लिम आबादी वाला जिला.

विजयवर्गीय ने कहा, “हालांकि, जल्द ही, हज़ारों (बजरंग दल) कार्यकर्ताओं की भीड़ ने पुलिस को घेर लिया और नारे लगाए, ‘जेल के ताले टूटेंगे, मदन दिलावर छूटेंगे.” इतनी भारी भीड़ देखकर पुलिस को उन्हें छोड़ना पड़ा.”

इस दिसंबर में दिलावर नए भजनलाल शर्मा मंत्रिमंडल में शपथ लेने वाले 22 विधायकों में से एक बने. बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार, अब किनारे कर दी गई राजे से दूर जाने के उनके फैसले ने इस चुनाव में भूमिका निभाई. दिलावर 2003 से 2008 के बीच राजे सरकार में समाज कल्याण मंत्री थे.

उन्होंने कहा, “एक समय था जब दिलावर को पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे का करीबी माना जाता था, लेकिन (प्रधानमंत्री नरेंद्र) मोदी के शासन में राजे का महत्व कम होने के साथ, उन्होंने उनसे दूरी बनानी शुरू कर दी. उनके मंत्री बनाए जाने में इसकी बड़ी भूमिका रही है.”

हालांकि, हेमराज मीणा का मानना है कि यह दिलावर की वैचारिक दृढ़ता थी जिसने भाजपा को उन्हें चुना. उन्होंने कहा, “सिस्टम को चलाने के लिए कुछ बूढ़े लोगों की ज़रूरत है. दिलावर के पास वो अनुभव है और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि वे आरएसएस की विचारधारा के प्रति समर्पित हैं. हिंदुत्व की लहर है और चूंकि वह एक कट्टर अनुयायी हैं, इसलिए वह पार्टी की पसंद थे.”

बारां में भाजपा युवा मोर्चा के महासचिव रोहित नायक भी इस बात से सहमत हैं और कहते हैं कि मंत्री राजस्थान में अपनी एक अलग पहचान बनाने में सक्षम हैं. उन्होंने कहा, “फिलहाल, वे राजस्थान में हिंदुत्व का चेहरा हैं.”

मिशनरियों को ‘निशाना’ बनाना, शिक्षकों को निलंबित करना

इस दिसंबर में तीसरी बार मंत्री पद की शपथ लेने के बाद से दिलावर विवादों में घिर गए हैं. शिक्षकों को निलंबित करने और स्थानांतरित करने से लेकर राज्य के सभी स्कूलों में सूर्य नमस्कार का आदेश देने के अपने विवादास्पद फैसले तक, शिक्षा मंत्री बार-बार राष्ट्रीय सुर्खियां बटोर रहे हैं.

उदाहरण के लिए मार्च में उन्होंने एक गणतंत्र दिवस समारोह में हिंदू देवी सरस्वती की प्रार्थना करने से इनकार करने पर एक दलित शिक्षक को निलंबित कर दिया.

लेकिन यह पहली बार नहीं है कि बीजेपी नेता को अपने फैसलों के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है. 2006 में तत्कालीन राज्य के समाज कल्याण मंत्री दिलावर ने कथित अनियमितताओं को लेकर कोटा स्थित ईसाई मिशनरी समूह इमैनुएल मिशन इंटरनेशनल (ईएमआई) द्वारा संचालित पांच संस्थानों को बंद करने का आदेश दिया था. अगस्त 2008 में राजस्थान हाई कोर्ट ने फैसले को पलट दिया.

बजरंग दल के प्रदेश संयोजक योगेश रेनवाल ने आरोप लगाया कि संगठन धर्म परिवर्तन करा रहा है. उन्होंने कहा, “इसलिए उन्होंने कार्रवाई की.”

इस बीच विपक्षी कांग्रेस विभिन्न विवादों को लेकर दिलावर को बर्खास्त करने की मांग कर रही है.

राजस्थान कांग्रेस के महासचिव और प्रवक्ता आर.सी. चौधरी ने कहा, “स्कूलों की बेहतरी के लिए काम करना शिक्षा मंत्री का काम होना चाहिए था, लेकिन वे आरएसएस की विभाजनकारी नीति का पालन कर रहे हैं.”

दूसरी ओर, राजस्थान विश्वविद्यालय, जयपुर में राजनीति विज्ञान के पूर्व प्रोफेसर नरेश दाधीच ने कहा, “कोई भी उनकी ईमानदारी पर सवाल नहीं उठा सकता है और समाज सेवा उनकी राजनीति का अहम हिस्सा रही है. उनमें आत्मविश्वास है और बोलने का अलग अंदाज़ है.”

(संपादन : फाल्गुनी शर्मा)

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए क्लिक करें)


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