नई दिल्ली: एक समय था जब उन्होंने अपने निर्वाचन क्षेत्र दतिया में हाजियों का स्वागत किया और अंतर्धार्मिक सभाओं की मेजबानी की थी, लेकिन आज वह अपने माथे पर लाल तिलक लगाए हिंदुत्व के सिद्धांतों की रक्षा करने वाले एक मुखिया के अवतार में हैं.
अपनी इस छवि को लेकर उनका जोश इतना ज्यादा है कि मध्य प्रदेश के गृहमंत्री ने सबसे पहले ‘पठान’ के निर्माता को फिल्म में दीपिका पादुकोण की कॉस्ट्यूम बदलने या राज्य में प्रतिबंध का सामना करने की चेतावनी दे डाली. उन्होंने इस मामले में बजरंग दल को भी पीछे छोड़ दिया है.
भाजपा मंत्री ने फिल्म निर्माता को चेतावनी जारी करने से पहले कहा था, ‘गाने (‘बेशरम रंग’) में पहने गए कपड़े आपत्तिजनक हैं. साफ है कि इस गाने को गंदी मानसिकता के साथ फिल्माया गया है. बहरहाल, जेएनयू मामले में दीपिका पादुकोण टुकड़े-टुकड़े गैंग की समर्थक रही हैं.’
सेलिब्रिटी डिजाइनर सब्यसाची मुखर्जी, बॉलीवुड अभिनेता आमिर खान, निर्माता-निर्देशक प्रकाश झा, एफएमसीजी प्रमुख डाबर और अब शाहरुख खान- इन सभी को 62 वर्षीय नेता के गुस्से का सामना करना पड़ा है.
मंत्री ने यह भी कहा है कि सरकार कड़े नियम बनाने की योजना बना रही है. इसके बाद मध्य प्रदेश में ‘लव जिहाद’ के मामलों की जांच के लिए शादी से पहले पुलिस सत्यापन अनिवार्य हो जाएगा.
‘तो इसलिए सबसे अलग हैं नरोत्तम’- 2008 में एक समान हेडलाइन वाली यह खबर कई दैनिक समाचार पत्रों में एक साथ प्रकाशित हुई थी. भाजपा नेता ने तब पहली बार लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचा था. उनके गृह राज्य के बाहर भी लोग अब उन्हें जानने लगे थे.
बाद में चुनाव आयोग ने पाया कि यह एक पेड आर्टिकल था और उन्होंने अपने चुनाव खर्च के बारे में गलत जानकारी दी थी. चुनाव आयोग ने मिश्रा को उस साल राज्य विधानसभा चुनाव लड़ने से रोक दिया, लेकिन उन्हें मध्य प्रदेश उच्च न्यायालय से स्टे मिल गया और पार्टी ने उनके खिलाफ कभी कोई कार्रवाई नहीं की.
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मिश्रा में आया बदलाव
यह ज्यादा पुरानी बात नहीं है. 2008 से लेकर 2018 तक परिस्थितियां काफी अलग थीं. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान स्वयं मध्य प्रदेश में मुसलमानों के बीच एक सकारात्मक छवि बनाए हुए थे.
ये वो समय था, जब चौहान के दूसरे और तीसरे कार्यकाल के दौरान मिश्रा हज से लौटने वाले मुसलमानों का स्वागत किया करते थे. दतिया ने 2016-17 के दौरान कई अंतरधार्मिक बैठकें भी देखीं है.
एक मंत्री ने दिप्रिंट को बताया, ‘हिंदू संस्कृति के रक्षक के रूप में मिश्रा का अवतार एक नई घटना है. अपने शुरुआती वर्षों में उन्होंने कभी भी इतनी कड़ी लाइन नहीं ली… कैलाश विजयवर्गीय जब शिवराज कैबिनेट में नंबर दो थे, तब ऐसा किया करते थे. दिल्ली में सत्ता परिवर्तन के बाद मिश्रा ने महसूस किया कि पीएम मोदी की हिंदू हृदय सम्राट की छवि के साथ एक नए भारत को जगाने और योगी (यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ) के आने के बाद पूरा तंत्र बदल गया है.’
उन्होंने कहा, ‘वह एक पंडित है. उन्हें एहसास हो गया था कि वह इसका फायदे उठा सकते हैं. उन्होंने गृहमंत्री के रूप में अपने आपको एक कट्टर राजनेता के रूप में ढालना शुरू कर दिया. एक ऐसा नेता जो लव जिहाद, धर्मांतरण या अन्य मुद्दों पर नरम रुख नहीं रखता है.’
मध्य प्रदेश के कई भाजपा नेताओं ने कहा कि केंद्रीय नेतृत्व को खुश करने और खुद को ध्रुवीकरण करने वाले व्यक्ति के रूप में स्थापित करने के लिए मिश्रा द्वारा यह एक अच्छी तरह से तैयार की गई रणनीति है.
उन्होंने जोर देकर कहा, मिश्रा जानते हैं कि उनके पक्ष में कोई जातिगत आधार नहीं है क्योंकि भाजपा में ओबीसी का वर्चस्व बढ़ रहा है. उनमें से एक ने कहा, ‘ब्राह्मण होना पार्टी की सामाजिक पहुंच के अनुकूल नहीं था, लेकिन उनकी ध्रुवीकरण वाली छवि उन्हें हमेशा फायदा देगी.’
अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP) और भारतीय जन युवा मोर्चा (BJYM) में अपने राजनीतिक करिअर की शुरुआत करने के बाद, मिश्रा 2005 में पहली बार बाबूलाल गौर सरकार में मंत्री बने थे.
तब से उनके आगे बढ़ने की गति स्थिर रही है. हालांकि शुरुआत में वह भाजपा नेतृत्व के शीर्ष क्रम में नीचे थे, जिसमें जयंत मलैया, गौरी शंकर शेजवार, कैलाश विजयवर्गीय और गोपाल भार्गव जैसे लोग आते थे.
ऊपर उद्धृत मंत्री ने कहा, ‘2013 में संसदीय मामलों के साथ-साथ सूचना और जनसंपर्क विभाग मिलने के तुरंत बाद से मिश्रा ने सरकारी विज्ञापन जारी करके पत्रकारों और मीडिया मालिकों के साथ अच्छे संबंध बना लिए थे. इससे उन्हें खासा फायदा भी मिला था. अमित शाह ने 2017 में राज्य का दौरा करते हुए क्षेत्रीय समाचार पत्रों के संपादकों के साथ नरोत्तम के घर पर नाश्ता किया था. इसने मध्य प्रदेश की राजनीति में एक तूफान ला दिया था.’
भाजपा के वरिष्ठ नेता जयंत मलाया ने कहा कि मिश्रा ‘संगठनात्मक क्षमताओं के साथ एक अच्छे प्रबंधक’ रहे हैं. मलाया 2013 से 2018 तक शिवराज कैबिनेट में शामिल थे.
भोपाल के राजनीतिक विश्लेषक गिरिजा शंकर ने भी स्वीकार किया कि मिश्रा ने मीडिया घरानों के मालिकों के साथ अच्छे संबंध बनाए थे.
शंकर ने दिप्रिंट को बताया, ‘इसने शिवराज को संकट के समय में निपटने और केंद्र के अपने एजेंडे को आगे बढ़ाने में मदद की. लेकिन अब संस्कृति के रक्षक के रूप में उनकी छवि बीजेपी और आरएसएस की लाइन से आती है. वह खुद को ध्रुवीकरण करने वाले के तौर पर स्थापित करना चाहते हैं. ठीक उस तरह से जैसे अन्य राज्यों में राजनेता योगी मॉडल का अनुकरण करने की कोशिश कर रहे हैं.’
मिश्रा को राजनीति में उनके शुरुआती वर्षों से जानने वाले एक अन्य भाजपा पदाधिकारी ने बताया कि दिवंगत अरुण जेटली ने दतिया विधायक को मध्य प्रदेश की राजनीति में जगह बनाने में मदद की थी.
उन्होंने कहा, ‘जेटली उस समय बीजेपी में प्रभावशाली शख्सियत थे. आडवाणी से जिनकी मुलाकात नहीं हो पाती थी, वो अपना पक्ष रखने के लिए जेटली से मिलते थे. नरोत्तम जेटली के कार्यालय में नियमित रूप से आते थे. पांच मिनट तक उनकी सलाह लेने के लिए घंटों इंतजार करते थे. चूंकि शिवराज (चौहान) जेटली के मित्र थे, इसलिए वह (मिश्रा) अपनी राजनीतिक आकांक्षाओं के लिए जेटली का आशीर्वाद लिया करते थे.’
जेटली के अलावा, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को मिश्रा को आगे लाने में एक बड़ी ताकत माना जाता है. दतिया के एक भाजपा जिला नेता ने कहा कि मिश्रा के शाह के साथ संबंध 2010 से हैं. ये वो समय था जब शाह मुश्किल दौर से गुजर रहे थे.
भाजपा जिला नेता ने कहा, ‘पीताम्बरा शक्ति पीठ दतिया में एक महत्वपूर्ण पीठ (तीर्थ स्थल) है जहां इंदिरा गांधी से लेकर वसुंधरा राजे और राजनाथ सिंह तक, कई राजनेताओं ने अपने संकट के समय में दौरा किया है. शाह 2010 में अपने बुरे दिनों का सामना कर रहे थे, उन्हें गुजरात से बाहर रहने का आदेश दिया गया था, तब वे पीठ में दर्शन करने आए थे. मिश्रा ने यात्रा का आयोजन किया… वह रिश्ता सालों तक बना रहा. जब शाह दिल्ली आए तो उन्होंने मिश्रा को आगे लाना शुरू कर दिया. मंत्री ने दतिया में इस तरह की यात्राओं का आयोजन करके अन्य नेताओं के साथ भी अच्छे संबंध बनाए हैं.’
9 जुलाई, 2014 को अमित शाह के भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में राजनाथ सिंह से पदभार संभालने के बाद मिश्रा के लिए अनुकूल परिस्थितियां पैदा हो गईं थी.
विजयवर्गीय और मिश्रा मध्य प्रदेश के उन लोगों में से थे, जिन पर शाह की नजर पड़ी. उन्होंने विजयवर्गीय को भाजपा का महासचिव बनाया और मिश्रा को शिवराज कैबिनेट में नंबर दो के रूप में ला खड़ा किया.
मिश्रा को विभिन्न महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी जाती रहीं हैं. इनमें से सबसे महत्वपूर्ण 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए वरिष्ठ नेता गोवर्धन झाड़पिया के साथ यूपी के सह-प्रभारी के रूप में उन्हें जोड़ना था.
उनकी ब्राह्मण पृष्ठभूमि को देखते हुए मिश्रा को कानपुर में चुनावी तैयारियों का प्रबंधन करने के लिए नियुक्त किया गया था. यहां इस समुदाय का काफी दबदबा है.
दरअसल, उस समय कानपुर ने भाजपा के शीर्ष नेताओं को चिंता में डाला हुआ था. पार्टी के वरिष्ठ नेता मुरली मनोहर जोशी को बिना सोचे-समझे हटाकर, उनकी जगह यूपी के मंत्री सत्यदेव पचौरी को ले आया गया था. लेकिन पचौरी ने इस सीट से आसानी से जीत हासिल कर सबको चौंका दिया.
मिश्रा के शेयरों में तब और उछाल आया, जब शाह ने उन्हें 2020 में कमलनाथ के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को गिराने के लिए ‘ऑपरेशन कमल’ के लिए प्रतिनियुक्त किया. विजयवर्गीय के साथ मिलकर मिश्रा ने राज्य में भाजपा सरकार के लिए रास्ता बनाने के लिए 22 कांग्रेस विधायकों के दलबदल को सुचारू रूप से सुनिश्चित किया था.
एक पूर्व सांसद मंत्री ने कहा, ‘नरोत्तम ने तीन दिनों के लिए दिल्ली में डेरा डाला क्योंकि भाजपा आलाकमान मप्र में नेतृत्व के मुद्दे पर विचार कर रहा था. उन्हें उम्मीद थी कि बीजेपी शिवराज से आगे कोई विकल्प तलाश रही है. लेकिन पीएम कुछ और सोच रहे थे. वह जानते थे कि सिर्फ शिवराज के पास एक अखिल राज्य अपील है जो उपचुनावों में जीत सुनिश्चित कर सकती है और यह नई सरकार के अस्तित्व के लिए महत्वपूर्ण होगी.’ उन्होंने आगे कहा कि अगर पार्टी ध्रुवीकरण करने वाले व्यक्ति के रूप में उनकी साख पर विचार करती, तो मिश्रा सीएम बनने के दावेदार थे.
मीडिया हलकों में मिश्रा की लोकप्रियता को भोपाल के एक टेलीविजन पत्रकार ने अच्छी तरह से अभिव्यक्त किया था. पत्रकार ने कहा था, ‘वह आसानी से उपलब्ध हैं. उनका 10 बजे का बुलेटिन पत्रकारों को काफी खबरें दे देता है. इससे वह हमेशा खबरों में बने रहते हैं.’
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(अनुवाद : संघप्रिया | संपादन : इन्द्रजीत)
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