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Thursday, 26 December, 2024
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गोवा के ‘एक्सीडेंटल CM’ से जीत हासिल कर दूसरा कार्यकाल पाने तक- प्रमोद कैसे खुद पर संदेह जताने वालों पर भारी पड़े

सावंत ने 2019 में अपनी काबिलियत और मनोहर पर्रिकर के कद के साथ तुलना को लेकर तमाम संदेहों के बीच राज्य की बागडोर संभाली थी, लेकिन उन्होंने इस बार न केवल भाजपा को चुनावों में जीत दिलाई, बल्कि सोमवार को विधायक दल के नेता भी चुन लिए गए.

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मुंबई: प्रमोद सावंत सोमवार को गोवा में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) विधायक दल के नेता चुन लिए गए और अब वह दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेंगे.

अभी एक हफ्ते से थोड़ा ज्यादा ही समय बीता है, जब 10 मार्च को गोवा विधानसभा चुनाव के लिए जारी मतगणना के बीच 48 वर्षीय सांवत काफी बेचैन नजर आ रहे थे. दरअसल, मतगणना के पहले दो राउंड में वह कांग्रेस उम्मीदवार धर्मेश सगलानी से पीछे चल रहे थे.

संकेलिम से दो बार विधायक रह चुके सावंत ने आखिरकार तीसरे दौर में बढ़त बना ली, लेकिन अंतिम दौर तक लगभग 600 वोटों का अंतर ही रहने के कारण माहौल तब तक अनिश्चिततापूर्ण ही रहा जब तक मौजूदा मुख्यमंत्री को विजयी घोषित नहीं कर दिया गया. जीत की घोषणा होने पर उनके चेहरे पर राहत और उल्लास साफ झलक रहा था. जब एक कड़क, पूरी बाजू की फॉर्मल शर्ट और ट्राउजर में पहने सांवत मतगणना केंद्र से बाहर निकले तो वहां का इंट्री पास उनके गले में लटका हुआ था.

अपने पहले दो चुनाव 2012 में 6,918 मतों के भारी अंतर से और 2017 में 2,131 मतों के बड़े अंतर से जीतने वाले समय सांवत के लिए इस बार का चुनाव किसी चुनौती से कम नहीं था. हालांकि, भाजपा नेता को खुद पर पूरा भरोसा था.

सावंत ने पणजी से जीतने वाले भाजपा विधायक अतानासियो मोनसेरेट—जिन्हें वह 2019 में कांग्रेस से लाए थे—को गले लगाने के लिए रुकने से पहले संवाददाताओं से कहा, ‘जीत का अंतर कम हो सकता है, लेकिन मेरी जीत का श्रेय पूरी तरह से मेरे कार्यकर्ताओं को जाता है, जिन्होंने मेरे निर्वाचन क्षेत्र में नहीं होने पर भी मेरे लिए काम किया.’

‘एक्सीडेंटल सीएम’ बने सावंत—जिन्होंने 2019 में अपनी राजनीतिक और प्रशासनिक क्षमताओं को लेकर तमाम सारे सवालों, और अपने पूर्ववर्ती स्वर्गीय मनोहर पर्रिकर से लगातार तुलना किए जाने के बीच गोवा की बागडोर संभाली थी—के लिए इस बार के नतीजे खुद को साबित करने से कहीं ज्यादा मायने रखते हैं.

उनके नेतृत्व में भाजपा ने पार्टी के दिग्गज नेता पर्रिकर के नेतृत्व के बिना अपने पहले विधानसभा चुनाव में कुल 40 सीटों में से 20 पर जीत हासिल की है. इसके अलावा, तीन निर्दलीय विधायकों और क्षेत्रीय महाराष्ट्रवादी गोमांतक पार्टी (एमजीपी) के दो विधायकों ने राज्य में भाजपा को सरकार के समर्थन के पत्र सौंपे हैं.

पार्टी का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन 2012 में रहा था, जब उसने पर्रिकर के नेतृत्व में 21 सीटें जीती थीं, लेकिन तब उसका एमजीपी के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन था.

चुनाव नतीजे घोषित होने के दिन पणजी स्थित भाजपा कार्यालय के अंदर पपराजी के लिए पोज देते हुए गोवा में पार्टी के चुनाव प्रभारी देवेंद्र फडणवीस ने सावंत और भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष सदानंद शेत तनवड़े को फूल-मालाओं से लाद दिया. उसी शाम फडणवीस ने एक प्रेस कांफ्रेंस में कहा कि दोनों के बीच ‘शानदार समन्वय’ ने भाजपा को गोवा में अब तक की दूसरी सबसे अच्छी जीत दिलाई है.

गोवा के कई भाजपा नेताओं ने दिप्रिंट से बातचीत में कहा कि यद्यपि पार्टी की चुनावी सफलता एक साझा प्रयास है लेकिन सावंत का मजबूत नेतृत्व इसमें काफी मददगार रहा. उन्होंने कहा कि सत्ता-विरोधी लहर होने की चर्चाओं के बीच सावंत के आत्मविश्वास से भरे व्यवहार और पार्टी के अपने बल पर सरकार बनाने में सक्षम होने के भरोसे ने जमीनी स्तर पर पार्टी कार्यकर्ताओं का मनोबल काफी बढ़ाया.

गोवा से भाजपा के राज्यसभा सदस्य विनय तेंदुलकर ने दिप्रिंट को बताया, ‘उन्होंने हर निर्वाचन क्षेत्र में हर प्रत्याशी के लिए प्रचार किया, हालांकि इसकी वजह से वह खुद अपने निर्वाचन क्षेत्र पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं दे पाए. गोवा के बारे में ऐसा कहा जाता है कि किसी भी उम्मीदवार को अपने निर्वाचन क्षेत्र के हर घर तक पहुंचना पड़ता है, नहीं तो बाद में सिर पकड़कर बैठे रहने की ही नौबत आ सकती है.’

उन्होंने कहा, ‘मुख्यमंत्री अपने निर्वाचन क्षेत्र में घर-घर जाकर प्रचार नहीं कर सके, इसके बजाये उन्होंने कुछ नुक्कड़ सभाएं कीं और अपना ज्यादा से ज्यादा समय भाजपा के अन्य उम्मीदवारों को दिया. हमने यह चुनाव बिना किसी सहयोगी के लड़ा और कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में तो पहली बार कमल खिलने का इतिहास भी रचा.’


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‘एक्सीडेंटल’ सीएम

2017 में गोवा विधानसभा अध्यक्ष चुने गए सावंत को मार्च 2019 में तत्कालीन सीएम पर्रिकर के निधन के बाद इस पद के लिए कई नेताओं की दावेदारी के बीच बेहद नाटकीय घटनाक्रम में मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठाया गया था.

कई लोगों ने इस पर संदेह जताया कि शांत स्वभाव और कोई खास बड़ी पहचान न रखने वाले सावंत क्या पर्रिकर जैसे कद्दावर नेता की जगह लेने में सक्षम होंगे, और पार्टी और सरकार को ऐसे समय में बचाकर रख पाएंगे जब भाजपा के पास विधानसभा में अपने दम पर टिके रहने की ताकत नहीं है और वह काफी हद तक अपने क्षेत्रीय सहयोगियों एमजीपी और गोवा फॉरवर्ड पार्टी (जीएफपी) पर निर्भर है.

जनवरी में सावंत ने दिप्रिंट को बताया था, ‘हर किसी ने मेरी मनोहर पर्रिकर के साथ तुलना शुरू कर दी थी. उनके साथ तुलना करना संभव नहीं है. लेकिन हम अभी भी मनोहर पर्रिकर की विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं.’

आयुर्वेदिक चिकित्सक सावंत के उस समय भाजपा के भीतर सबसे लोकप्रिय विकल्प बनने की एक वजह यह भी थी कि वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े रहे हैं और पर्रिकर की तरह ही स्थानीय स्तर पर बतौर भाजपा नेता अपनी पहचान बनाई है. उनकी पत्नी सुलक्षणा सावंत भी एक भाजपा कार्यकर्ता हैं.

सावंत के बतौर मुख्यमंत्री दो सालों के कार्यकाल के दौरान भाजपा ने सरकार ने अपनी स्थिति काफी मजबूत कर ली थी, जिसमें उनके पदभार संभालने के चार माह के भीतर ही एमजीपी और कांग्रेस के कई विधायकों को पार्टी में शामिल किया जाना शामिल रहा है. पार्टी सूत्रों ने कहा कि अपना अधिकांश समय कार्यकर्ताओं के साथ बिताने के ख्यात और सरकारी मामलों के साथ-साथ पार्टी के कार्यों को भी पूरा समय देने वाले सावंत ने इस दलबदल में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी.

हालांकि, ‘एक्सीडेंटल सीएम’ का टैग सावंत के साथ अटका रहा क्योंकि उनकी सरकार को कोविड-19 महामारी से ठीक से निपटने, खासकर दूसरी लहर के दौरान, में नाकाम रहने के कारण तीखी प्रतिक्रिया झेलनी पड़ी. सावंत के कामकाज के तरीकों को लेकर भी पार्टी के अंदर नाराजगी के सुर उठते रहे. उनका राज्य के स्वास्थ्य मंत्री विश्वजी राणे के साथ सार्वजनिक स्तर पर टकराव भी जारी रहा, जो हमेशा से ही मुख्यमंत्री पद पाने के इच्छुक रहे थे.

भाजपा के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि सावंत ने तय किया कि वह अपनी टिप्पणियों से ‘इस तरह के झगड़े को हवा नहीं देंगे.’

उन्होंने आगे कहा, ‘चाहे विश्वजीत राणे हों या माइकल लोबो, राज्य में पार्टी की कोर कमेटी इन मुद्दों पर चर्चा करेगी और मुख्यमंत्री को बताएगी कि उन्हें क्या करना है.’

गोवा में विधानसभा चुनाव करीब आने तक सावंत सरकार के पूर्व मंत्री लोबो सार्वजनिक तौर पर ऐसी टिप्पणियां कर रहे थे कि कैसे पार्टी अब ‘कॉमर्शियल’ हो गई है और पर्रिकर के मूल्यों को भूल गई है. उन्होंने अंततः पार्टी छोड़ दी और कांग्रेस में शामिल हो गए.

विवादों से नाता

2019 में महाराष्ट्र के सिंधुदुर्ग जिले के डोडामार्ग तालुका में कथित तौर पर दो बड़े भूखंड खरीदने को लेकर सावंत विपक्ष के निशाने पर आ गए थे. विपक्षी नेताओं ने आरोप लगाया कि सावंत ने अचल संपत्ति की कीमतों में उछाल का अनुमान लगाकर जमीन खरीदी, क्योंकि गांव मांग कर रहे हैं कि उनका गोवा में विलय कर दिया जाए.

2021 में वह एक बार फिर मुश्किलों में घिरे नजर आए जब गोवा के पूर्व राज्यपाल सत्य पाल मलिक (अब मेघालय के राज्यपाल) ने इंडिया टीवी को दिए एक इंटरव्यू में सावंत के नेतृत्व वाली गोवा सरकार के बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार में लिप्त होने का आरोप लगाया.

उसी वर्ष, दो नाबालिग लड़कियों के कथित सामूहिक बलात्कार मामले पर अपनी टिप्पणी की वजह से वह एक और विवाद में फंस गए. दरअसल, सावंत ने यह कह दिया था कि माता-पिता को इस पर आत्ममंथन की जरूरत है कि उनके नाबालिग बच्चे पूरी रात समुद्र तट पर अकेले क्यों थे. हालांकि, बाद में उन्होंने सफाई दी कि उनकी टिप्पणी को संदर्भ से अलग रखकर पेश किया गया है और उनकी प्रतिक्रिया ‘एक जिम्मेदार सरकार के मुखिया और एक 14 साल की बेटी के पिता के तौर पर’ थी.

मूल निवासियों’ के घरों को नियमित करने संबंधी मुख्यमंत्री सावंत के विवादास्पद भूमिपुत्र विधेयक को लेकर भी उन्हें राजनीतिक पर्यवेक्षकों की आलोचनाओं का सामना करना पड़ा है, जिनका कहना है कि यह मूल निवासियों के बजाय प्रवासियों के फायदे पर ज्यादा केंद्रित है, क्योंकि इसमें ‘भूमिपुत्र’ की परिभाषा में उन लोगों शामिल किया गया हो जो तीन दशकों से अधिक समय से गोवा में रह रहे हैं.

चुनाव में सावंत के साथ मिलकर काम करने वाले भाजपा के एक नेता ने दिप्रिंट को बताया कि अगर विवादों की बात छोड़ दें तो सावंत ने अपने कार्यकाल के दौरान गोवा में सड़कों के बुनियादी ढांचे के विकास पर बहुत काम किया.
उन्होंने आगे कहा, ‘उत्तरी गोवा से दक्षिण गोवा की यात्रा अब बहुत आसान हो गई है. मोपा में नए एयरपोर्ट के विकास ने गति पकड़ी है.’

पार्टी नेता ने कहा, ‘प्रमोद सावंत मूलत: बेहद साधारण व्यक्ति हैं. वह बहुत आक्रामक नहीं है. वह अपना काम करते रहते हैं, काफी अनुशासनप्रिय हैं. लेकिन वह एक प्रशासनिक चेहरा अधिक हैं. कोई मजबूत राजनीतिक चेहरा नहीं हैं. यह निश्चित रूप तौर पर एक ऐसी चीज है जिस पर उन्हें काम करने की जरूरत है.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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