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Wednesday, 25 December, 2024
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सम्मान समारोह, क्रीमी लेयर की आय सीमा बढ़ाने तक — हरियाणा में BJP क्यों दे रही है ओबीसी को फायदे

भाजपा ने हरियाणा में ओबीसी को वोटों को रिझाने की कोशिशें पिछले अक्टूबर में की थी, जब उसने अपने जाट प्रदेश अध्यक्ष ओपी धनखड़ की जगह ओबीसी नायब सैनी को नियुक्त किया था. सैनी ने मार्च में पंजाबी मुख्यमंत्री खट्टर की जगह ली थी.

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गुरुग्राम: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने मंगलवार को महेंद्रगढ़ में पिछड़ा वर्ग सम्मान समारोह को संबोधित करते हुए नायब सैनी के नेतृत्व वाली भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) की सरकार द्वारा हरियाणा में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए आय क्रीमी लेयर की सीमा 6 लाख रुपये से बढ़ाकर 8 लाख रुपये सालाना करने के फैसले की घोषणा की.

हालांकि, यह फैसला 23 जून को कैबिनेट की बैठक में लिया गया था, लेकिन शाह ने रैली में गजट अधिसूचना की एक प्रति दिखाई. दस्तावेज़ में अधिसूचना की तारीख 16 जुलाई, महेंद्रगढ़ रैली की तारीख दिखाई गई है. इसमें यह भी कहा गया है कि वेतन और कृषि से होने वाली आय को इस सीमा में शामिल नहीं किया जाएगा, जिससे हज़ारों लोगों को लाभ होगा.

शाह ने एक और फैसले की घोषणा की, जिसमें पंचायतों, नगर निगमों और नगर पालिकाओं में ओबीसी कोटा बढ़ा दिया गया. पहले, पंचायती राज संस्थाओं में बीसी-ए श्रेणी के लिए 8 प्रतिशत आरक्षण था. अब बीसी-बी श्रेणी के लिए अतिरिक्त 5 प्रतिशत कोटा दिया जाएगा. इसी तरह, शहरी स्थानीय निकायों में बीसी-ए श्रेणी के लिए मौजूदा 8 प्रतिशत आरक्षण को बीसी-बी श्रेणी के लिए नए 5 प्रतिशत कोटे से पूरक बनाया जाएगा.

2014 में मोदी सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही भाजपा खुद को पिछड़े वर्गों और ओबीसी के हितों की हिमायती के रूप में पेश कर रही है. हरियाणा में भाजपा ने पिछले साल अक्टूबर में ओबीसी को बढ़ावा देना शुरू किया, जब पार्टी ने अपने जाट प्रदेश अध्यक्ष ओपी धनखड़ की जगह ओबीसी नायब सैनी को नियुक्त किया. सैनी ने मार्च में पंजाबी मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर की जगह ली.

हरियाणा में 10 में से पांच संसदीय सीटें हारने के बाद भाजपा अब यह सुनिश्चित करना चाहती है कि विधानसभा चुनावों में उसका ओबीसी वोट बैंक उससे दूर न चला जाए और इसलिए ये रियायतें दी जाएं.


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विपक्ष का रुख

छह बार के कांग्रेस विधायक कैप्टन अजय यादव, जो खुद एक प्रमुख ओबीसी नेता हैं, ने कहा कि आय सीमा बढ़ाने का भाजपा का कदम कोई नई बात नहीं है, क्योंकि केंद्र ने पहले ही क्रीमी लेयर के लिए 8 लाख रुपये तय कर दिए हैं.

यादव ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार ने हरियाणा में क्रीमी लेयर की सीमा को कम करके इन वर्षों में ओबीसी को उनके लाभों से दूर रखकर उन्हें बहुत बड़ा नुकसान पहुंचाया है. खट्टर इसके लिए जिम्मेदार हैं और पात्रता के उद्देश्य से वेतन और कृषि से आय को आय में जोड़ने के लिए भी जिम्मेदार हैं, जिससे ओबीसी के एक बड़े हिस्से को लाभ से बाहर रखा गया है.

उन्होंने कहा कि मंडल आयोग ने कभी नहीं कहा कि कोटा के उद्देश्य से वेतन और कृषि से आय को ओबीसी की पारिवारिक आय में शामिल किया जाएगा.

उन्होंने कहा, “ओबीसी की सबसे बड़ी मांग जाति जनगणना कराना है, क्योंकि हम जानते हैं कि हम आबादी में 52 प्रतिशत हैं और हमें अपनी आबादी के अनुसार प्रतिनिधित्व और नौकरियों में हिस्सा नहीं मिल रहा है, लेकिन भाजपा कभी भी जाति जनगणना कराने के लिए सहमत नहीं होती है, क्योंकि मोदी सरकार जानती है कि उसके झूठ का पर्दाफाश हो जाएगा.”

पूर्व मुख्यमंत्री और विपक्ष के नेता भूपेंद्र सिंह हुड्डा ने कहा कि भाजपा का तथाकथित ओबीसी दृष्टिकोण केवल एक नैरेटिव बनाने के उद्देश्य से है क्योंकि पार्टी का वोट हासिल करने के बाद एससी-ओबीसी समुदायों को धोखा देने का इतिहास रहा है.

हुड्डा ने दिप्रिंट को बताया कि 2014 से भाजपा ने दलितों और पिछड़े वर्गों के लिए आरक्षण, अधिकारों और कल्याणकारी योजनाओं को लगातार कमजोर किया है.

उन्होंने आरोप लगाया कि खट्टर सरकार ने केंद्रीय स्तर पर नीति से हटकर क्रीमी लेयर की सीमा को 8 लाख रुपये से घटाकर 6 लाख रुपये कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप कई पिछड़े वर्ग के लोगों को आरक्षण का लाभ नहीं मिल पाया.

कांग्रेस नेता ने मांग की, “हमारी पार्टी ने इस मुद्दे को सड़कों और विधानसभा दोनों में उठाया, लेकिन सरकार ने इस पर ध्यान नहीं दिया. अब चुनाव से पहले भाजपा ओबीसी को गुमराह करने के प्रयास में क्रीमी लेयर की सीमा को बढ़ाकर 8 लाख रुपये करने का दावा कर रही है. अपनी पीठ थपथपाने के बजाय, भाजपा सरकार को पिछड़े वर्गों से वोट मांगने के बजाय अपने पिछले कार्यों के लिए माफी मांगनी चाहिए.”

उन्होंने नौकरियों की भर्ती के लिए हरियाणा कौशल रोज़गार निगम के इस्तेमाल की भी आलोचना की, जबकि सरकार संविधान के तहत अनिवार्य आरक्षण नीति का पालन नहीं करती. हुड्डा ने बताया कि 2 लाख पदों का बैकलॉग है, जिसमें ओबीसी के लिए हज़ारों पद शामिल हैं, लेकिन सरकार इसे पूरा करने का कोई इरादा नहीं दिखा रही है.

क्या क्रीमी लेयर की सीमा कम हुई?

अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग की वेबसाइट पर उपलब्ध जानकारी से पता चलता है कि खट्टर सरकार ने 17 अगस्त, 2016 को एक अधिसूचना जारी कर हरियाणा के लिए क्रीमी लेयर निर्धारित की थी.

अधिसूचना में कहा गया है, “3 लाख रुपये तक की सकल वार्षिक आय वाले व्यक्तियों के बच्चों को सबसे पहले सेवाओं और शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश में आरक्षण का लाभ मिलेगा. बचा हुआ कोटा पिछड़े वर्ग के नागरिकों के उस वर्ग को मिलेगा जो 3 लाख रुपये से अधिक लेकिन 6 लाख रुपये प्रति वर्ष तक कमाते हैं. छह लाख रुपये प्रति वर्ष से अधिक कमाने वाले वर्गों को उक्त अधिनियम की धारा 5 के तहत क्रीमी लेयर माना जाएगा.”

28 अगस्त 2018 को जारी एक अन्य अधिसूचना के माध्यम से सरकार ने फैसला लिया कि 2016 की अधिसूचना के तहत क्रीमी लेयर तय करने के लिए किसी व्यक्ति की वार्षिक आय की गणना के उद्देश्य से, सभी स्रोतों से आय को इसमें शामिल किया जाना चाहिए.

इसके विपरीत, 13 सितम्बर 2017 के अपने कार्यालय ज्ञापन के माध्यम से, केंद्र ने क्रीमी लेयर की सीमा 6 लाख रुपये से बढ़ाकर 8 लाख रुपये कर दी.

गुरु नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर के प्रोफेसर जगरूप सेखों ने कहा कि जब से मोदी के नेतृत्व में भाजपा सत्ता में आई है, तब से यह देखा गया है कि पार्टी हमेशा सत्ता में आने के लिए समाज के भीतर की दरारों का फायदा उठाने की कोशिश करती रही है.

राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर ने दिप्रिंट को बताया, “जब कोई पार्टी विभाजनकारी राजनीति करती है, तो यह हमेशा अल्पकालिक होती है और लंबे समय तक काम नहीं करती है. 2024 के चुनावों ने दिखाया है कि न तो जाति की राजनीति और न ही लोगों को धार्मिक आधार पर विभाजित करने का प्रयास भाजपा के लिए काम आया. पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा ने जाट बनाम गैर-जाट की कहानी सफलतापूर्वक बनाई क्योंकि 2016 में जाट आरक्षण हिंसा ताज़ा थी. पार्टी जानती है कि यह रणनीति इस बार काम नहीं करेगी. इसलिए, जैसे-जैसे चुनाव नज़दीक आने लगे, उसने ओबीसी की राजनीति खेलना शुरू कर दिया.”

सेखों ने कहा कि हरियाणा मोदी सरकार के लिए बहुत महत्वपूर्ण राज्य है और इसे खोने का मतलब उत्तर-पश्चिम से भाजपा का सफाया होगा. उन्होंने कहा, “सत्तारूढ़ पार्टी की दिल्ली, पंजाब और हिमाचल प्रदेश में अपनी सरकार नहीं है और उसे जम्मू-कश्मीर से कोई उम्मीद नहीं है. हरियाणा हारने का मतलब है कि पार्टी की उत्तर-पश्चिम में मौजूदगी नहीं रहेगी.”

उन्होंने कहा, “हरियाणा भाजपा के लिए इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि यह दिल्ली को तीन दिशाओं से कवर करता है. मोदी सरकार पंजाब से दिल्ली आने वाले किसान प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए हरियाणा का इस्तेमाल करती है. फरवरी में यह अंबाला में शंभू सीमा और जींद में खनौरी सीमा पर किसानों को रोकने में कामयाब रही. अगर हरियाणा भाजपा के हाथ से निकल जाता है, तो कांग्रेस सरकार किसानों की नाराज़गी की कीमत पर उन्हें रोककर मोदी सरकार का उपकार नहीं करेगी.”

सेखों ने कहा कि हरियाणा हारने से पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भाजपा की पकड़ पर भी असर पड़ेगा. हालांकि, भाजपा के पास इस क्षेत्र में राजस्थान और उत्तराखंड है.


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सबसे ज्यादा वोट

राजनीतिक विश्लेषक महावीर जागलान ने कहा कि हरियाणा में ओबीसी सबसे ज्यादा वोटों का हिस्सा है और संसदीय चुनावों में किसानों (यानी जाट) और दलितों के भाजपा के खिलाफ जाने के बाद सत्तारूढ़ पार्टी ओबीसी पर अपनी पकड़ मजबूत करने की पूरी कोशिश कर रही है.

जागलान ने कहा कि ओबीसी को खुश करने के लिए भाजपा के इस कदम का एक और कारण यह है कि पार्टी का नेतृत्व छह बार के सांसद राव इंद्रजीत सिंह के हालिया बयानों से चिंतित है, जो मोदी कैबिनेट में अपने राज्यमंत्री पद से नाराज़ हैं.

जागलान ने कहा, “ओबीसी में यादव सबसे बड़ा समुदाय है. 2014 से वे नियमित रूप से भाजपा को वोट देते रहे हैं, जिससे गुरुग्राम, रेवाड़ी और महेंद्रगढ़ में भाजपा को बहुमत मिला है. हालांकि, गुड़गांव के सांसद ने अपनी कड़वाहट जता दी है, इसलिए भाजपा ओबीसी के साथ कोई जोखिम नहीं लेना चाहती है.”

एक अन्य राजनीतिक विश्लेषक सतीश त्यागी ने कहा कि भाजपा का ओबीसी को अपने पक्ष में करने का प्रयास सिर्फ हरियाणा में ही नहीं, बल्कि पूरे देश में देखा जा रहा है.

उन्होंने दिप्रिंट को बताया, “2022 में बिहार में हुए जातिगत सर्वेक्षण में पाया गया कि ओबीसी आबादी 63 प्रतिशत है. हालांकि, हरियाणा के लिए कोई जातिगत जनगणना डेटा उपलब्ध नहीं था, लेकिन 1990 में गठित गुरनाम सिंह आयोग ने ओबीसी आबादी को 30 प्रतिशत बताया था.”

उन्होंने कहा कि किसी भी जातिगत जनगणना के आंकड़ों के अभाव में, आयोग ने 1987 के चुनावों में चुने गए विधायकों की जातिवार संख्या, विश्वविद्यालयों में किए गए शोध और सार्वजनिक डोमेन में उपलब्ध 1931 में हुई अंतिम जातिगत जनगणना के आंकड़ों पर भरोसा किया.

उन्होंने कहा कि चूंकि निष्कर्ष किसी भी जनगणना और सर्वेक्षण पर आधारित नहीं थे, इसलिए बिहार में 2022 का जातिगत सर्वेक्षण संकेत देता है कि हरियाणा में ओबीसी की वास्तविक संख्या भी अब तक मानी जा रही 30 प्रतिशत से कहीं अधिक हो सकती है.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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