नई दिल्ली: एक पारंपरिक लोहियावादी ‘सतर्क’ फील्ड पत्रकार और एक विनम्र राजनेता- एनडीए के हरिवंश नारायण सिंह सोमवार को ध्वनिमत से लगातार दूसरे कार्यकाल के लिए राज्य सभा के उपसभापति चुन लिए गए.
जेडी(यू) नेता को बधाई देते हुए प्रधानमंत्री ने जो राज्य सभा में मौजूद थे, कहा, ‘वो एक उत्कृष्ट अंपायर हैं और उनका ताल्लुक सदन के सभी गलियारों से है’.
उन्होंने आगे कहा, ‘मेरे मन में हरिवंश जी के लिए जो सम्मान है, उसे सदन का हर सदस्य साझा करता है. उन्होंने ये सम्मान कमाया है. संसद में उनकी निष्पक्ष भूमिका, हमारे लोकतंत्र को मज़बूत करती है…सांसद बनने के बाद हरिवंश जी ने हमेशा सुनिश्चित किया है कि सभी सांसद किस तरह अधिक कर्तव्यनिष्ठ बन सकते हैं. उनके अंदर का पत्रकार जीवित रहा है’.
बतौर उपसभापति सिंह का ये दूसरा कार्यकाल होगा- वो पहली बार अगस्त 2018 में चुने गए थे और उनका कार्यकाल इस साल अप्रैल में खत्म हो गया था.
1956 में उत्तर प्रदेश के बलिया में पैदा हुए सिंह ने चार दशक से अधिक बतौर हिंदी पत्रकार गुज़ारे हैं और महाराष्ट्र, झारखंड, बिहार तथा पश्चिम बंगाल में काम किया है.
2014 में सिंह ने बिहार मुख्यमंत्री और जेडी(यू) प्रमुख, नीतीश कुमार का ध्यान आकर्षित किया जिन्होंने इन्हें राज्य सभा के लिए पार्टी का उम्मीदवार नामित करने का फैसला किया.
उच्च सदन में सभी दलों के बीच अच्छी साख होने के बावजूद सिंह के कुछ निकटतम विश्वासपात्र लोग और सहयोगी, उन्हें अभी भी ‘पहले एक पत्रकार’ के रूप में देखते हैं, जो ख़ुद ‘पूरी तरह आश्वस्त नहीं हैं’ कि करियर के अंत में वो एक राजनेता कैसे बन गए.
एक वरिष्ठ पत्रकार क़ुरबान अली ने दिप्रिंट को बताया, ‘वो अकसर इस बारे में हंसते हैं कि वो किस तरह सियासत में आ गए. वो कहते हैं कि ये किस्मत का खेल है और उनकी डोरी किसी और के हाथ में है’.
अली 1970 के दशक में मुम्बई में, टाइम्स समूह के स्वामित्व वाली धर्मयुग पत्रिका में, सिंह के साथ काम किया करते थे- जो इन दोनों के करियर की शुरूआत थी.
जन-समर्थक, स्थापना-विरोधी पत्रकार
धर्मयुग में जाने से पहले सिंह ने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (बीएचयू) से अर्थशास्त्र में मास्टर्स की डिग्री पूरी की. यहीं पर रहकर उनमें लोहिया ब्रांड के समाजवाद के प्रति लगाव पैदा हुआ और वो जेपी आंदोलन के भी एक सक्रिय समर्थक बन गए.
धर्मयुग के बाद उन्होंने कुछ वर्ष कोलकाता में बिताए और साप्ताहिक पत्रिका ‘रविवार’ की संपादकीय टीम में काम किया. अंत में 1989 में वो रांची स्थित प्रभात खबर में चले गए- वो अखबार जिसे उत्तर भारत में सबसे अधिक पढ़े जाने वाले, हिंदी अख़बारों में से एक बनाने का श्रेय, अकेले उन्हीं को जाता है.
प्रभात ख़बर के कार्यकारी संपादक, अनुज सिन्हा ने दिप्रिंट को बताया, ‘उन दिनों ये अख़बार बहुत ख़राब स्थिति में था. लेकिन प्रबंधन में बदलाव होने के बाद, जब उन्हें लाया गया तो फिर प्रभात ख़बर ने पीछे मुड़कर नहीं देखा है. उन्होंने युवा लोगों को प्रशिक्षित किया, वो अपनी सोच में भविष्यवादी थे और उन्होंने सुनिश्चित किया कि लोगों के सरोकार की गूंज अख़बार में दिखाई दे’.
सिन्हा, जो सिंह के ज्वॉयन करने से पहले से अख़बार से जुड़े हैं, ‘पेपर का चेहरा बदलने’ का श्रेय उन्हीं को देते हैं.
सिन्हा ने कहा, ‘हम बस रांची में स्थित थे लेकिन उनके (सिंह के) बदलावों ने सुनिश्चित कर दिया कि हम तीन राज्यों में दस रीजंस से छपने शुरू हो गए. 800 से बढ़कर अब लगभग 8 लाख अख़बार- हमारा सर्कुलेशन बहुत तेज़ी से बढ़ा है’.
सिन्हा ने कहा कि सिंह ने प्रभात खबर को जन-समर्थक और स्थापना विरोधी अखबार बनाने का प्रयास किया- जिसने लगातार घोटालों और भ्रष्टाचार का पर्दाफाश किया.
एक ‘नो-नॉनसेंस इंसान’
स्थापना विरोधी रुख अपनाने से लेकर अब बिहार में सत्ताधारी पार्टी का हिस्सा बनने तक- सिंह का सफर काफी दिलचस्प रहा है.
लेकिन उनके करीबी राजनेता कहते हैं कि उनकी निजी राजनीति और विचारधारा, उस पार्टी से इतर हैं जिससे उनका ताल्लुक है.
पूर्व बीजेपी नेता और अब जमशेदपुर से एक निर्दलीय विधायक सरयू रॉय ने कहा, ‘पत्रकारिता और राजनीति के बीच एक बारीक लकीर होती है. लेकिन मेरा मानना है कि किसी पार्टी में शामिल होने के बाद भी आप जन समर्थक हो सकते हैं. मुझे पूरा यकीन है कि वो (सिंह) पार्टी के अंदर अपनी असहमतियां, अपनी आलोचना और अपने समाधान रखते रहेंगे’.
रॉय ने कहा कि वो सिंह को 1970 के दशक से निजी तौर से जानते हैं और वो एक ‘व्यवस्थित’ और ‘नो-नॉनसेंस’ इंसान हैं.
2019 के लोकसभा चुनावों में झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री रघुबर दास को हराने वाले सरयू रॉय ने आगे कहा, ‘वो हमेशा से एक सीधे और मेहनती इंसान रहे हैं.
जेडी(यू) में सिंह के सहयोगी भी, उनके बारे में यही भावनाएं रखते हैं.
जेडी(यू) प्रवक्ता संजय सिंह ने कहा, ‘हमारे दिमाग में एक ठेठ राजनेता की जो छवि है, वो उस पर पूरा नहीं उतरते. वो एक बहुत सीधे और ज़मीनी इंसान हैं. राज्य सभा में भी वो सुनिश्चित करते थे कि सबके साथ लेकर चलें और वो सब का ख़याल रखते हैं’.
चंद्रशेखर की ‘पसंद’
1990 में जब कुछ समय के लिए जनता दल सत्ता में आया तो सिंह ने तब के प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के मीडिया सलाहकार के रूप में काम किया. लेकिन 6 महीने में सरकार गिरने के साथ ही सिंह का कार्यकाल भी ख़त्म हो गया.
सिन्हा ने कहा, ‘वो कुछ एक बार सिंह की जवानी के दिनों में मिले थे जब चंद्रशेखर बलिया जाते थे. बरसों बाद जब वो पीएम बने तो उन्हें वो मुलाकातें याद आ गईं. तब से अब तक सिंह ने हमेशा सभी पार्टियों के सीनियर नेताओं का ध्यान आकर्षित किया है’.
उसके बाद जब सिंह पत्रकारिता में लौटे तो वो चंद्रशेखर के बारे में लिखते रहे और उनके जीवन और राजनीति पर एक करीबी एक्सपर्ट बन गए.
अगस्त 2018 में राज्यसभा का उपसभापति बनने के पहले दिन, सिंह का एकतरफा चुनाव उच्च सदन में हास्य का विषय बन गया.
कांग्रेस उम्मीदवार बीके हरिप्रसाद के खिलाफ सिंह की आसान जीत की तरफ इशारा करते हुए पीएम मोदी ने कहा था, ‘दोनों तरफ हरि थे लेकिन मुझे उम्मीद है कि हरिवंश नारायण की जीत के साथ राज्य सभा पर हरि कृपा रहेगी’.
सिर्फ यही नहीं मोदी ने सिंह को भूतपूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर का ‘पसंदीदा’ भी बताया.
उन्होंने कहा था, ‘इनके अंदर लिखने का हुनर है. ये पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी की भी पसंद थे’.
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