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Monday, 23 December, 2024
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कापू और OBC पर फोकस, वंशवादी शासन खत्म करने पर जोर-आंध्र प्रदेश में BJP का चुनावी मंत्र

अल्लूरी सीताराम राजू की प्रतिमा के अनावरण के लिए प्रधानमंत्री मोदी की यात्रा और के.वी. विजयेंद्र प्रसाद के राज्यसभा के लिए मनोनयन ने राज्य में नए सिरे से भाजपा के अभियान की पिच तैयार कर दी है, जहां दो साल बाद चुनाव प्रस्तावित हैं.

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हैदराबाद: भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) आंध्र प्रदेश में जमीनी स्तर पर खुद को मजबूत करने के लिए नए सिरे से शुरू किए गए अभियान में प्रभावशाली कापू समुदाय के साथ-साथ पिछड़ी जातियों को लुभाने और वंशवादी राजनीति को लेकर प्रमुख क्षेत्रीय दलों—वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) और तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) पर निशाना साधने पर ध्यान केंद्रित कर रही है.

क्रांतिकारी नायक अल्लूरी सीताराम राजू की प्रतिमा के अनावरण के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आंध्र यात्रा और स्क्रीनराइटर के.वी. विजयेंद्र प्रसाद को राज्यसभा के लिए नॉमिनेट करने की उनकी घोषणा ने राज्य में पार्टी के प्रचार अभियान की पिच तैयार कर दी है.

दूसरे तेलुगु भाषी राज्य तेलंगाना में भाजपा ने अपनी खासी मौजूदगी दर्ज कराई है, यह 2020 के हैदराबाद नगरपालिका चुनाव में मिली सफलता और 2021 के हुजुराबाद विधानसभा उपचुनाव में जीत से साफ है. तेलंगाना से चार लोकसभा सांसदों वाली पार्टी अब 2023 में राज्य की सत्ता में आने का लक्ष्य लेकर चल रही है.

इसके विपरीत, उसका मिशन आंध्र इतनी मजबूत स्थिति में नजर नहीं आ रहा जहां 2024 में चुनाव होने हैं. हालांकि, भाजपा दक्षिण में अपने पैर मजबूती से जमाने के एक बड़े लक्ष्य के साथ राज्य में अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए नए सिरे से प्रयास कर रही है.

जाने-माने निर्देशक और स्क्रीनराइटर विजयेंद्र प्रसाद ने ब्लॉकबस्टर फिल्म बाहुबली की पटकथा लिखी है. उनके बेटे एस.एस. राजमौली ने बाहुबली के साथ-साथ हिट तेलुगु फिल्म ‘आरआरआर’ का निर्देशन किया है जो राजू और उनके क्रांतिकारी साथी कोमाराम भीम के बीच दोस्ती पर केंद्रित फिक्शन फिल्म है. राजू और भीम दोनों ने उन क्षेत्रों के आदिवासी लोगों की लड़ाई लड़ी थी जो अब आंध्र और तेलंगाना में हैं.

तेलंगाना स्थापना दिवस (2 जून) के मौके पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने हैदराबाद के निजामों के शासन के विरोध के संदर्भ में राजू सहित तमाम प्रमुख हस्तियों का जिक्र किया था.

इसके बाद सोमवार को मोदी ने अल्लूरी की 125वीं जयंती के अवसर पर भीमावरम में उनकी 30 फुट ऊंची कांस्य प्रतिमा का अनावरण किया. यह कदम ऐसे समय पर उठाया गया है जब राजू के नेतृत्व वाले रम्पा विद्रोह का शताब्दी वर्ष भी है.

राज्य में भाजपा के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, ‘राजू की प्रतिमा के अनावरण से विशाखापत्तनम और जुड़वां गोदावरी जिलों में पार्टी की पैठ बढ़ाने में मदद मिलेगी, जहां 10 फीसदी आदिवासी आबादी में 4 फीसदी आदिवासी हैं.’


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कापू वोटवैंक, पवन कल्याण से गठबंधन पर फोकस

आंध्र प्रदेश में बीजेपी 2018 तक तेलुगु देशम पार्टी (टीडीपी) की जूनियन पार्टी की भूमिका में रही थी. टीडीपी के साथ गठबंधन के तहत 2014 में उसने दो लोकसभा सीटें और चार विधानसभा सीटें जीतीं लेकिन 2019 के आम चुनाव में वह खाली हाथ ही रही.

फिलहाल बीजेपी का लक्ष्य टीडीपी को पीछे छोड़कर मुख्य विपक्षी दल की भूमिका में आना है. पार्टी अभिनेता पवन कल्याण की जन सेना पार्टी का समर्थन कर रही है, जिसकी असली ताकत कापू समुदाय ही है. एक अन्य भाजपा नेता के मुताबिक, मुख्य रूप से एक कृषि प्रधान समुदाय माने जाने वाले कापू की आंध्र की कुल आबादी में लगभग 20 प्रतिशत हिस्सेदारी है. ये समुदाय 39 से अधिक विधानसभा क्षेत्रों में खासा दबदबा रखता है, खासकर पूर्व और पश्चिम गोदावरी, कृष्णा और गुंटूर जिलों में.

भाजपा नेता के मुताबिक, अन्य प्रमुख समुदायों में मात्र पांच फीसदी आबादी वाले रेड्डी और करीब 10 फीसदी आबादी वाले कम्मा आते हैं. जहां कांग्रेस और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) का सबसे बड़ा जनाधार रेड्डी हैं, वहीं कम्मा टीडीपी की रीढ़ हैं.

ऐसे में भाजपा राज्य की पिछड़ी जाति वाले वोट बैंक में सेंध लगाने की कोशिश में जुटी है. राज्य में बीजेपी के अध्यक्ष सोमू वीरराजू एक पिछड़े समुदाय कापू से आते हैं और उनके तेलंगाना के समकक्ष बंदी संजय भी उसी वर्ग से आते हैं. वीरराजू के पूर्ववर्ती कन्ना लक्ष्मीनारायण भी इसी समुदाय से आते हैं.

भाजपा नेता ने कहा, ‘आंध्र में हमारी विफलता का एक कारण यह भी है कि हम गठबंधनों पर निर्भर रहे हैं. सबसे पहले तो हमने टीडीपी के साथ गठजोड़ किया और अभी अस्पष्टता (समझौते पर) है. केंद्र में वाईएसआरसीपी के साथ हमारे रिश्ते सौहार्दपूर्ण हैं लेकिन राज्य में हम लड़ रहे हैं. पवन कल्याण टीडीपी के साथ हाथ मिलाने के विकल्प तलाश रहे हैं. हमारे लिए क्या विकल्प बचेंगे? इस सबको लेकर भ्रम की स्थिति नुकसानदेह है.’

जून में भाजपा प्रमुख जेपी नड्डा ने आंध्र में पार्टी नेतृत्व से कहा था कि राजनीतिक गठबंधनों की चिंता करने के बजाए पहले संगठन को खड़ा करने पर ध्यान दें.

एक राजनीतिक टिप्पणीकार का मानना है कि आंध्र में एक बड़ी ताकत के तौर पर उभरने के लिए बीजेपी को अभी बहुत कुछ करना होगा. आंध्र यूनिवर्सिटी में पॉलिटिकल साइंस विभाग के प्रमुख प्रो. पेटेटी प्रेमानंदम ने दिप्रिंट से कहा, ‘अगर पवन कल्याण, टीडीपी और भाजपा हाथ मिलाते हैं, तभी वे वाईएसआरसीपी को नुकसान पहुंचा पाएंगे. अगर गरीबों के लिए कल्याणकारी कार्यक्रमों की बात करें तो जगन भी मोदी की तरह काम कर रहे हैं. उन्होंने गरीबों, महिलाओं और युवाओं के लिए कम से कम 20 योजनाएं शुरू की हैं.’

वंशवादी राजनीति पर फोकस

2021 के तिरुपति लोकसभा उपचुनाव से पहले भाजपा ने एक यात्रा शुरू करके अपने चिरपरिचित हिंदुत्व कार्ड को भुनाने की कोशिश की लेकिन वाईएसआरसीपी को मिले 6 लाख से अधिक वोटों की तुलना में उसे केवल 57,000 वोट हासिल हुए. दूसरे भाजपा नेता ने तर्क दिया कि निजामों के शासन के इतिहास के साथ तेलंगाना के विपरीत आंध्र प्रदेश में ‘तुष्टिकरण की राजनीति’ पर निशाने साधने की भाजपा की कोशिशों का कोई ठोस नतीजा निकलने की उम्मीद नहीं है.

पार्टी नेताओं और विश्लेषकों का मानना है कि बड़ी संख्या में मुस्लिमों के मौजूद न होने के कारण रायलसीमा (राज्य के दो प्रमुख क्षेत्रों में से एक, जिसमें दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र के आठ जिले शामिल हैं) के कुछ हिस्सों को छोड़कर बाकी राज्य में भाजपा की यह रणनीति खास सफल नहीं हो सकती.

पूर्व में उद्धृत पहले भाजपा नेता ने कहा, ‘लोकप्रिय जनभावनाओं को वाईएसआरसीपी के खिलाफ उभारने के लिए एक मजबूत संगठन के अलावा भ्रष्टाचार और वंशवादी राजनीति का नैरेटिव आगे बढ़ाने की जरूरत है. हमारे प्रयासों को गति तभी मिलेगी जब हम टीडीपी या वाईएसआरसीपी के कुछ प्रमुख नेताओं को अपने खेमे में लाने में सक्षम होंगे.’

उन्होंने कहा, ‘हमने 45,000 बूथों और 9,000 शक्ति केंद्रों को मजबूत करने का एक रोड मैप बनाया था. पार्टी ने अपनी राज्य इकाई से निर्वाचन क्षेत्रों में लाभार्थियों तक पैठ बनाने को कहा है. केंद्रीय मंत्रियों के जिलों के दौरे नियमित तौर पर जारी हैं. तेलंगाना में शुरू में हमें 2-3 फीसदी वोट मिले थे जो बाद में बढ़कर 20 फीसदी हो गया. तेलंगाना की सियासी इबारत को आंध्र में दोहराया जा सकता है.’

प्रेमानंदम ने भी जोर देकर कहा कि हिंदी भाषी राज्यों के विपरीत आंध्र में हिंदुत्व की राजनीति बहुत कारगर नहीं होगी. उन्होंने कहा, ‘ध्रुवीकरण मुश्किल है. आंध्र में ध्रुवीकरण की तुलना में क्षेत्रीय पहचान अधिक महत्वपूर्ण है. लोग आज भी मोदी के तिरुपति वाले उस भाषण को याद करते हैं जिसमें उन्होंने आंध्र को विशेष राज्य का दर्जा देने का वादा (2014 में) किया था. अगर एक रेलवे प्रोजेक्ट और अन्य लंबित बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को मंजूरी मिल जाए और भाजपा एक पैकेज की घोषणा कर दे तो चीजें बदल सकती हैं.’

आंध्र को विशेष राज्य का दर्जा देने का अपना वादा न निभाना भाजपा को गंभीर नुकसान पहुंचाने वाला माना जा रहा है. यह 2014 और 2019 के राज्य चुनावों के नतीजों से साफ है, जिसमें पार्टी का वोट शेयर क्रमशः 2.18 प्रतिशत और 0.8 प्रतिशत रहा. 2019 के लोकसभा चुनाव में तो नोटा (1.5 प्रतिशत वोट) का प्रदर्शन भाजपा (0.96 प्रतिशत) से बेहतर था.

चुनावी नतीजे दर्शाते हैं कि जमीनी स्तर पर कैडर और भावनात्मक मुद्दों के अभाव में भाजपा के लिए आगे की राह काफी कठिन है. पार्टी अब वंशवादी शासन के खिलाफ आवाज उठाने की कोशिश में लगी है, जिस मुद्दे जिस पर 3 जुलाई को हैदराबाद की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में चर्चा भी की गई थी.

भाजपा के राष्ट्रीय सचिव और आंध्र के सह-प्रभारी सुनील देवधर ने दावा किया, ‘जगन ने चर्च और लोकलुभावन योजनाओं के लिए सरकारी खजाने को खोल दिया है. मंदिरों की उपेक्षा को रेखांकित किया जाएगा. दोनों (टीडीपी प्रमुख एन. चंद्रबाबू) नायडू और जगन वंशवाद को बढ़ावा देने वाले हैं. जगन धीरे-धीरे भ्रष्टाचार के भी प्रतीक बनते जा रहे हैं. वंशवादी शासन खत्म करने का हमारा संकल्प राज्य में हमारे लिए आगे के रास्ते खोलेगा.’

(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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