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Sunday, 22 December, 2024
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मोदी और राहुल 2019 में इन पांच चीजों से कर लें तौबा

2019 में राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी के बारे में बहुत कुछ देखने, सुनने और सोचने को मिलेगा, यही दो चेहरे सबसे ज्यादा उभर कर आएंगे.

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अब जो हम 2019 में प्रवेश कर ही गए हैं तो हमें राहुल गांधी और नरेंद्र मोदी, इन दोनों व्यक्तियों के बारे में बहुत कुछ देखने, सुनने और सोचने को मिलेगा. चाहे कोई भी कितना ज़ोर क्यों न लगा ले, 2019 के चुनावों में यही दो चेहरे सबसे ज़्यादा उभर कर आएंगे. इन दोनों नेताओं से 2019 में इन चीज़ों को न करने का एक विनम्र निवेदन है.

नरेंद्र मोदी

1. नेहरू पर इलज़ाम लगाना बंद करें : सच में? क्या आप अपनी सारी असफलताओं के लिए नेहरू को कोसेंगे? यह बात सबको हज़म नहीं हो रही, आपके हिंदुत्ववादी वोटरों को भी नहीं. नेहरू ने आपका होमवर्क नहीं चुराया और न ही राहुल गांधी में वो काबिलियत है कि वे ऐसा कर सकें. नेतृत्व का मतलब होता है ज़िम्मेवारी भी लेना, सिर्फ अपने मृत पूर्वजों पर इलज़ाम थोपना नहीं. जितना ज़्यादा मोदी नेहरू पर इलज़ाम थोपते हैं, उतना ही ज़्यादा वे लोगों को उनकी याद दिलाते हैं, जिन्होंने भारतीय गणतंत्र की स्थापना की. नकारात्मक प्रचार भारत में उतना कारगार नहीं है. आपको अपना 2014 का प्रचार याद है न?

2. डेटा के साथ छेड़छाड़ बंद करें: जिनको नौकरी नहीं मिल रही है, वो इस बात से खुश नहीं होंगे कि आपने बेरोज़गारी का डेटा ही छापना बंद कर दिया है. किसानों की ख़ुदकुशी की संख्या का पता न लगा कर, क्या मोदी ने कृषि संकट को दूर कर दिया है? और यह तो सरासर शर्म की बात है कि सकल घरेलू उत्पाद या जीडीपी आंकड़ों की विश्वसनीयता पर सवाल उठने शुरू हो गए हैं, क्योंकि मोदी सरकार इसको बार-बार बदलती रहती है, ताकि यह यूपीए सरकार से बेहतर दिखे. जाली नंबरों से सच्चाई नहीं छिपती. सबको मालूम है कि अर्थव्यवस्था ढलान पर है. 2019 में साफ-सुथरे आर्थिक आंकड़ों के साथ आइये, ठीक है?

3. सरकारी संस्थानों का राजनीतिक फायदा उठाना बंद करें: टैक्स रेड और विपक्षियों के खिलाफ कोर्ट केस अब मज़ाक बन गए हैं, खासतौर से क्योंकि अब ऐसा लगता है कि ये सब उन विपक्षी नेताओं पर निशाना कसते हैं, जिनके राज्यों में चुनाव आने वाले हैं. माना कि कांग्रेस ने भी ऐसा किया था, लेकिन मोदी जी, अगर आप राजनीति के जादूगर हैं, तो क्यों न इस खेल को कायदे से खेला जाए? सिर्फ सीबीआई ही नहीं बेशुमार संस्थानों को विपक्ष और आलोचकों के पीछे पड़ने के लिए खुला छोड़ दिया गया है. अब जो 2019 के चुनाव आने लगे हैं, विपक्षी नेताओं का शोषण आपको ही भारी पड़ सकता है, क्योंकि शायद ये उनको शहीद के रूप में दिखाए.

4. संस्थानों की आज़ादी को तबाह न करें: लोकतंत्र सिर्फ चुनावों तक ही सीमित नहीं है. लोकतंत्र के लिए स्वायत्त संस्थान भी ज़रूरी हैं, जो देश को आराम से चलाने में मदद करते हैं. चाहे वह रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया हो या सेंट्रल ब्यूरो ऑफ़ इन्वेस्टीगेशन (सीबीआई) या फिर केंद्रीय सूचना आयोग हो या फिर गैर मौजूद लोकपाल, मोदी सरकार ने इन संस्थानों की स्वायत्तता को तबाह करने के लिए कोई कसर न छोड़ी.

5. कैमरे पर नज़रें गड़ाए रखना बंद करें: आप प्रधानमंत्री हैं. कैमरे आपका पीछा करते हैं. आपको कैमरे का पीछा करने की जरूरत नहीं. अपनी भव्य और सुन्दर तस्वीरों को निहारने के जुनून से बाहर निकलिए. अपने डिज़ाइनर कुर्ते को दिन में तीन बार न बदलिए. अच्छा काम करें और सारी नज़रें आप पर खुद-ब-खुद ही आएंगी.

राहुल गांधी

1. भूल-चूक करना बंद करें: राहुल गांधी को बड़े रूप में एक नेता न स्वीकारे जाने का एकमात्र कारण है — उनकी भूल-चूक. जब वे कुम्भा राम को कुम्भकरण कहते हैं, तो ऐसा लगता है कि न ही उन्हें कुम्भकरण के बारे में मालूम है न ही हें कुम्भा राम के बारे में कुछ पता है और शायद उन्हें यह भी नहीं पता कि यह चूक बिलकुल भी हास्यास्पद नहीं है. यही त्रुटियां लोगों को याद रहती हैं और उन्हें लगता है कि राहुल गांधी इतने स्मार्ट नहीं कि देश चला सकें. (ये कारण हैं जिनसे मोदी को गलतियां करने पर ज़्यादा नुकसान नहीं होता)

2. खूब सारी फॉरेन छुट्टियों पर रोक लगाएं: आप खुद को पिछड़े, वंचित और गरीबों का नेता तब तक नहीं कह सकते अगर आप विदेश में छुट्टियां मनाने के आदी हों. अब ऐसे में राहुल गांधी एक उखड़े हुए नेता के जैसे प्रतीत होते हैं, जिन्हें यह नहीं मालूम कि साधारण भारतीय नागरिक कैसे रहता है और यह कोई कभी-कभार होने वाली घटना तो है नहीं. राहुल गांधी झट से जेट सवार होकर दुनिया के किसी और ही कोने में साल में कई बार पहुंच जाते हैं वो भी बिना किसी कारण के. अपने जन्मदिन या नए साल में उनको विदेश में क्यों जाना ही होता है?

3. रफाल-रफाल चीखना बंद करें: रफाल ने जितने विवाद पैदा करने थे कर दिए. इसने राहुल गांधी की काफी मदद की और भाजपा को अपने बचाव के लिए मजबूर भी किया, लेकिन सब कुछ राष्ट्रिय मीडिया पर. अब जो सुप्रीम कोर्ट ने इस विवाद को ख़त्म कर दिया है, तो राहुल गांधी को भी इस मुद्दे को ठंडे बस्ते में डाल देना चाहिए. चाहे यह स्कैम हो या न हो, रफाल का किस्सा ख़त्म. अब आगे बढ़िए.

4. यह सोचना छोड़िये कि आप जन-जन के नेता हैं: राहुल गांधी को राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में मिली जीत का श्रेय दिया जा रहा है, क्योंकि ये राज्य उनकी अगुआई में जीते गए थे. ठीक वैसे ही जैसे वे अन्य राज्यों में मिली हार का इलज़ाम भी खुद पर लेते हैं, लेकिन फिर भी वे अपनाई गयी रणनीतियों के लिए श्रेय ले सकते हैं. लोगों ने राहुल गांधी नहीं, भाजपा के खिलाफ वोट दिया, किसान कर्ज माफ़ी को वोट दिया. 2019 में राहुल गांधी के लिए यही अच्छा होगा, यदि वे यह सोचना बंद कर दें कि वे जन-जन के नेता हैं. जितनी कम रैलियां, उतनी ही कम गलतियां. अपने लोगों और गठबंधन के साथियों को परदे के पीछे से जीतने दें, यही उनके लिए बेहतर रहेगा.

5. भैय्या कहना बंद करें और साथ ही अपनी बाहें चढ़ाना भी: आधी बाजू या फुल बाजू, पहले निर्णय कीजिये की आपको क्या सूट करता है. बाहें चढ़ाने से ऐसा लग सकता है कि आप लड़ने को तैयार हैं. पर यदि वे बार-बार नीचे आती रहे, और आप बार-बार बाहें चढ़ाते रहे, आप योद्धा के विपरीत लग सकते हैं. आप एक ऐसे व्यक्ति हैं, जिनके हाथ में स्थिति नहीं रह पाती. साथ ही साथ यह ‘देखो भैय्या’ कहना भी बंद कीजिये. यह उतना सटीक नहीं लगता. आप लुट्येन्स की दिल्ली में पले-बढ़े हैं, लखीमपुर खीरी में नहीं, और यह बात सबको पता है.

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