पुणे: बारामती से सांसद सुप्रिया सुले, जो अपने निर्वाचन क्षेत्र से चौथी बार चुनाव लड़ रही हैं और अपनी भाभी और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार के साथ आमने-सामने की लड़ाई में फंसी हैं, ने कहा कि ‘उनकी लड़ाई किसी व्यक्ति के नहीं बल्कि विचारधारा के खिलाफ’ है.
अपनी पार्टी के समर्थकों के घरों की निजी यात्राओं के बीच दिप्रिंट से बात करते हुए एनसीपी (शरद चंद्र पवार) नेता सुले ने कहा कि वे अपनी भाभी से केवल इसलिए लड़ रही हैं क्योंकि पार्टी का दूसरा गुट अब उस विचारधारा के साथ जुड़ा हुआ है जिसका उन्होंने हमेशा विरोध किया है.
सुले ने कहा, “मैं अपने प्रतिद्वंद्वी को कभी भी एक व्यक्ति के रूप में नहीं देखती. मेरी लड़ाई नीति, मेरी विचारधारा के बारे में है. यह कभी भी व्यक्तिगत नहीं होता.” उन्होंने आगे कहा, “यह एक वैचारिक लड़ाई है. वे बहुत राजनीति कर रहे हैं जो देश की अर्थव्यवस्था (और) किसानों को नुकसान पहुंचा रही है. उन्होंने 10 साल पहले अपने देश के प्रति जो प्रतिबद्धताएं जताई थीं, उनका उन्होंने पालन नहीं किया. मैं एक खास विचारधारा से जुड़ी हूं और आज, राकांपा का एक गुट उस विचारधारा और नीति निर्माताओं में शामिल हो गया है जिनसे हम सहमत नहीं हैं.”
हालांकि, उन्होंने कहा कि उनकी नज़र राज्य की राजनीति पर नहीं है और वे संसदीय राजनीति को प्राथमिकता देती हैं.
राकांपा को पिछले साल जुलाई में विभाजन का सामना करना पड़ा जब उसके अधिकांश कार्यकर्ताओं ने उनके भतीजे अजित पवार के नेतृत्व में शरद पवार के नेतृत्व वाली पार्टी के खिलाफ विद्रोह कर दिया.
विद्रोही गुट, जिसे अंततः चुनाव आयोग और महाराष्ट्र अध्यक्ष द्वारा वास्तविक एनसीपी के रूप में मान्यता दी गई, ने महाराष्ट्र में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना के सत्तारूढ़ महायुति गठबंधन से हाथ मिला लिया.
महायुति ने अब सुले से पवार परिवार के गढ़ बारामती को छीनने के लिए सुनेत्रा पवार को मैदान में उतारा है.
बारामती में लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में 7 मई को मतदान होगा.
यह भी पढ़ें: 10 साल तक BJP प्रमुख रहे संजय टंडन को मिला चंडीगढ़ सीट से लोकसभा चुनाव लड़ने का टिकट
‘मतदान का पारिवारिक रिश्तों पर कोई असर नहीं’
सुले ने दिप्रिंट को बताया कि एनसीपी में विभाजन का पवार परिवार के भीतर संबंधों पर कोई असर नहीं पड़ा है.
बारामती की सांसद ने कहा, “बिल्कुल नहीं, मेरी तरफ से नहीं, क्योंकि जैसे-जैसे आपकी उम्र बढ़ती है, आप समझदार होते जाते हैं.”
अब तक, न तो सुले और न ही सुनेत्रा ने सीधे तौर पर एक-दूसरे पर निशाना साधा है या आलोचना भी नहीं की है.
हालांकि, चुनाव प्रचार के शुरुआती चरण में सुले ने सुनेत्रा पवार पर अप्रत्यक्ष हमला किया.
फरवरी में बारामती में एक रैली में सुले ने सुनेत्रा पवार पर परोक्ष हमला करते हुए कहा कि वे अपने पति सदानंद सुले को अपनी ओर से भाषण देने के लिए नहीं भेजती हैं.
सुले ने कहा, “संसद में कौन जाएगा? क्या मैं जाऊंगी या मेरे पति जाएंगे? कोई भी पति संसद जाने का इच्छुक हो – मेरे पति नहीं जाते – लेकिन संसद जाने के इच्छुक किसी भी पति को अपनी पत्नी का पर्स पकड़कर कैंटीन में बैठना चाहिए.”
लेकिन, जैसे-जैसे अभियान तेज़ हो रहा है, सुले ने अब सत्तारूढ़ गठबंधन की आलोचना करने का विकल्प चुन लिया है.
लगभग दो हफ्ते पहले अपने निर्वाचन क्षेत्र में पत्रकारों से बात करते हुए सुले ने सुनेत्रा पवार को अपने “बड़े भाई की पत्नी और एक मां की तरह” बताया और पारिवारिक द्वंद्व को मजबूर करने के लिए भाजपा को दोषी ठहराया.
‘संसद में रहना चाहूंगी’
राजनीतिक पर्यवेक्षकों के साथ-साथ स्वयं राकांपा नेताओं ने पार्टी में विभाजन के पीछे मुख्य रूप से दो कारण बताए हैं — अपने नेताओं के खिलाफ जांच एजेंसियों द्वारा जांच और राज्य की राजनीति में पार्टी का चेहरा बनने और अपने चाचा की विरासत को आगे बढ़ाने की पांच बार के डिप्टी सीएम अजित पवार की महत्वाकांक्षाओं को समायोजित करने में पार्टी की असमर्थता.
अजित पवार के विद्रोह से एक महीने से भी कम समय पहले, उनके चाचा शरद पवार ने प्रफुल्ल पटेल के साथ सुले को एनसीपी का कार्यकारी अध्यक्ष नामित किया था. पटेल अब अजित पवार गुट के साथ हैं.
उस समय, शरद पवार ने अपनी बेटी को महाराष्ट्र में पार्टी की जिम्मेदारियों की देखरेख का प्रभारी भी बनाया था, जहां अविभाजित एनसीपी के पास अपने पूरे राष्ट्रीय पदचिह्न का बड़ा हिस्सा था. उन्होंने उन्हें पार्टी का चुनाव प्राधिकारी भी बनाया था.
ये ज़िम्मेदारियां इस बात का संकेत थीं कि 80-वर्षीय व्यक्ति सुले को कमान सौंपना चाहते थे.
अपने विद्रोह के बाद अपनी पहली रैली में अजित पवार ने स्पष्ट रूप से मोहभंग जताते हुए कहा कि यह उनकी गलती नहीं है कि उन्होंने एक अलग गर्भ से जन्म लिया.
हालांकि, बुधवार को दिप्रिंट से बात करते हुए सुले ने कहा कि वे राष्ट्रीय राजनीति में रहना पसंद करती हैं.
उन्होंने कहा, “मैंने हमेशा पार्टी से लोकसभा के लिए टिकट मांगा है और अगर आप आंकड़ों पर गौर करें, तो यह खुद ही सब कुछ बताता है. मैं संसद में उच्च प्रदर्शन करने वाली व्यक्ति हूं. अगर आप मेरे काम को देखें. हम जिन नीतियों को लागू करने का प्रबंधन करते हैं, मैं संसद में अव्वल हूं और वहां रहना पसंद करूंगी.”
(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ें: कांग्रेस ने 2 बार बदले उम्मीदवार, राजस्थान की भारत आदिवासी पार्टी को मौका देने से क्यों किया इनकार