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Monday, 6 May, 2024
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दिल्ली विधानसभा में कम हुईं बैठकें, मुद्दों की गुणवत्ता में आई कमी: प्रजा फाउंडेशन की रिपोर्ट

प्रजा फाउंडेशन की रिपोर्ट से पता चला है कि दिल्ली के विधायकों द्वारा उठाए गए मुद्दों की गुणवत्ता में गिरावट आई है और 4 विधायकों ने 2020 में अपने चुनाव के बाद से विधानसभा में एक भी मुद्दा नहीं उठाया है.

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नई दिल्ली: प्रजा फाउंडेशन द्वारा मंगलवार को जारी एक रिपोर्ट में जानकारी मिली है कि छठी दिल्ली विधानसभा की तुलना में सातवीं दिल्ली विधानसभा में प्रति वर्ष आयोजित होने वाली बैठकों की संख्या और निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा उठाए गए मुद्दों की गुणवत्ता में गिरावट देखी गई.

‘दिल्ली एमएलए रिपोर्ट कार्ड, 2023’ शीर्षक वाली अपनी रिपोर्ट में गैर-लाभकारी संस्था जो शासन और नागरिक मुद्दों पर सर्वेक्षण करती है, ने नोट किया है कि दिल्ली में कुछ विधायकों ने 2020 में अपने चुनाव के बाद से विधानसभा में “एक भी मुद्दे” पर बात नहीं की है.

निष्कर्षों से पता चलता है कि बैठकों की संख्या में 51 प्रतिशत की कमी आई है, जो छठी दिल्ली विधानसभा (2015-20) के दौरान प्रति वर्ष औसतन 21 से घटकर सातवीं दिल्ली विधानसभा (फरवरी 2020 से एक सितंबर 2022 तक) के दौरान प्रति वर्ष औसतन 10 हो गई है.

इसके अलावा 2022 में बैठकों की संख्या के मामले में दिल्ली 28 राज्य विधानसभाओं में से 16वें स्थान पर थी, उस वर्ष केवल 15 बैठकें आयोजित की गईं.

रिपोर्ट में कहा गया है, “बैठकों की कम संख्या के परिणामस्वरूप विधायकों को उपस्थित होने और नागरिकों के मुद्दों पर विचार-विमर्श करने के कम अवसर मिले हैं. नतीजतन दिल्ली के विधायकों द्वारा उठाए गए मुद्दों की संख्या भी 2015 के बाद से असंगत रही है.”

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इसमें यह भी बताया गया है कि 10 विधायकों ने 2022 में (23 मार्च 2022 और 19 जनवरी 2023 के बीच) दिल्ली विधानसभा में एक भी मुद्दा नहीं उठाया जिनमें से चार विधायकों ने 2020 में चुने जाने के बाद से अभी तक एक भी मुद्दा नहीं उठाया है. ये सभी विधायक सत्तारूढ़ AAP से हैं – इनमें ओखला विधायक अमानतुल्ला खान, संगम विहार विधायक दिनेश मोहनिया, राजौरी गार्डन विधायक धनवती चंदेला और चांदनी चौक विधायक परलाद सिंह साहनी शामिल हैं.

रिपोर्ट में कहा गया है, “यह वो समय था जब मई 2022 से दिसंबर 2022 तक दिल्ली नगर निगम में कोई निर्वाचित निकाय नहीं था. ऐसी स्थिति में विधानसभा सार्वजनिक महत्व के मुद्दों को प्रभावी ढंग से उठाने का एकमात्र मंच बनी हुई थी.”

जब दिप्रिंट ने टिप्पणी के लिए चार विधायकों से संपर्क किया, तो मोहनिया ने कहा कि वे रिपोर्ट पढ़ने के बाद ही टिप्पणी करेंगे, जबकि शेष ने खबर के छापे जाने तक जवाब नहीं दिया था. उनके जवाब आने के बाद इस खबर को अपडेट कर दिया जाएगा.

मूल्यांकन मापदंडों पर खरा उतरने वाले तीन विधायक भाजपा से थे, इसमें घोंडा विधायक अजय कुमार महावर 100 में से 83.12 अंक हासिल कर सूची में शीर्ष पर रहे, उसके बाद दूसरे नंबर पर करावल नगर विधायक मोहन सिंह बिष्ट (81.29) और विश्वास नगर विधायक ओम प्रकाश शर्मा (78.26) के साथ तीसरे स्थान पर रहे.

सबसे कम प्रदर्शन करने वाले विधायकों में निचले तीन आप सदस्य थे, इनमें मोहनिया (5/100 स्कोर) और खान (13/100) क्रमशः 61 और 60 वें स्थान पर थे और मटिया महल विधायक शोएब इकबाल 59 (14/100) स्थान पर थे. गौरतलब है कि दिल्ली विधानसभा के 70 विधायकों में से प्रजा फाउंडेशन ने 61 के प्रदर्शन का आकलन किया — उन विधायकों को छोड़कर जो उस समय स्पीकर, डिप्टी स्पीकर, मुख्यमंत्री या मंत्री के रूप में कार्यरत थे.

रिपोर्ट के मुताबिक, दिल्ली विधानसभा में उठाए जाने वाले मुद्दों की संख्या और प्रति वर्ष विधायकों की उपस्थिति में भी गिरावट देखी गई है.

उदाहरण के लिए 2017 में विधानसभा की 21 बैठकों के दौरान कुल 1,116 मुद्दे उठाए गए, जबकि दिल्ली के निर्वाचित प्रतिनिधियों की उपस्थिति 87 प्रतिशत रही.

हालांकि, 2022 में (1 सितंबर तक) 872 मुद्दे उठाए गए और 15 बैठकें हुईं, जबकि उपस्थिति घटकर 83 प्रतिशत रह गई.

निर्वाचित प्रतिनिधियों द्वारा उठाए गए मुद्दों की गुणवत्ता का मूल्यांकन उसके महत्व पर आधारित था — नागरिक मुद्दों, सामुदायिक कल्याण, शिक्षा, स्वास्थ्य, परिवहन और प्रदूषण सहित अन्य मुद्दों पर आधारित.

रिपोर्ट से पता चलता है कि उठाए गए मुद्दों के महत्व का औसत स्कोर, जो 2018 में 38.7 प्रतिशत और 2022 में 38.3 प्रतिशत था, 2023 में गिरकर 35.9 प्रतिशत हो गया है.

(संपादन: फाल्गुनी शर्मा)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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