मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस का कहना है कि उनकी सरकार सूखे की स्थिति को संभालने में लगी हुई है, लेकिन किसी भी किसान की आत्महत्या चिंता का विषय है.
मुंबई: कृषि क्षेत्र पर कुल व्यय में इजाफा करने के बावजूद महाराष्ट्र में भाजपा सरकार के चार वर्षों में किसान आत्महत्या लगभग दोगुना हो गई है.
राज्य के राहत और पुनर्वास विभाग (रिलीफ एंड रिहैबिलिटेशन डिपार्टमेंट) के आंकड़ों से पता चलता है कि जनवरी 2015 और सितंबर 2018 के बीच 11,225 किसान आत्महत्या दर्ज की गई थी. हालांकि इन संख्याओं में हर साल मामूली कमी देखी गई है.
इसकी तुलना में, राज्य में पिछली कांग्रेस-एनसीपी सरकार के पहले चार वर्षों (जनवरी 2010 से दिसंबर 2013) में किसान आत्महत्या के 6,028 मामले सामने आए.
कुल मिलाकर 2001 से लेकर 30 सितंबर 2018 तक राज्य में 28,928 किसानों ने आत्महत्या की है.
सरकार और विशेषज्ञों के मुताबिक, इस दुखद घटना के पीछे सबसे बड़ा कारक वर्षा की कमी रही है. जिसने उत्पादन और लागत को प्रभावित किया है. मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि उनकी सरकार किसानों की स्थिति में सुधार करने की कोशिश कर रही है. लेकिन जब तक किसानों की मौत होती रहेगी. तब तक यह चिंता का विषय बना रहेगा.
गौरतलब है कि किसानों और विपक्षी दलों के विरोध के दबाव में फडणवीस सरकार ने पिछले साल 47 लाख किसानों को 21,500 करोड़ रुपये के ऋण की छूट दी थी.
त्रासदी भरे आंकड़े
राज्य के वार्षिक आर्थिक सर्वेक्षण के अनुसार, 2014-15 और 2015-16 में बारिश सामान्य स्तर से कम लगभग 70.2 प्रतिशत और 59.4 प्रतिशत थी. 2016-17 और 2017-18 में स्थिति में सुधार हुआ. राज्य में 94.9 प्रतिशत और 84.3 प्रतिशत बारिश दर्ज की गई.
2001 के बाद सबसे ज़्यादा किसान आत्महत्या 2015 में दर्ज की गई थी. जो फडणवीस सरकार का पहला पूर्ण वर्ष था. जब राज्य के कुछ हिस्से भीषण सूखे के चपेट में थे.
इस साल कुल 3,263 किसानों ने अपनी ज़िंदगी समाप्त कर दी. इनमें से 1,541 मामले यानी लगभग 47 प्रतिशत विदर्भ (अमरावती और नागपुर डिवीज़नों) और 1,130 औरंगाबाद डिवीज़न में हुए, औरंगाबाद भी पानी की कमी वाले मराठवाड़ा क्षेत्र का हिस्सा है.
अगले दो वर्षों में आत्महत्या की संख्या में बहुत मामूली से कमी दर्ज की गई. 2016 में, सरकार ने 3,080 मामले दर्ज किए, जबकि 2017 में यह आंकड़ा 2,917 था. अगर हम 2001 से गणना करे तो किसान आत्महत्या के लिहाज से ये साल दूसरे और तीसरे नंबर पर हैं.
2018 में इस संख्या में और गिरावट आई है, सरकार ने पहले नौ महीनों में 1,965 मामले दर्ज किए हैं. हालांकि, इस साल जून और सितंबर के बीच औसत वर्षा से कम करीब 77 प्रतिशत बारिश दर्ज की गई है.
इस साल महाराष्ट्र के कुछ हिस्सों में अच्छी बारिश दर्ज की गई है लेकिन राज्य सरकार ने मराठवाड़ा, विदर्भ और उत्तरी महाराष्ट्र के 180 तालुकों में सूखा जैसी स्थिति घोषित की है.
क्या कहना है फडणवीस का
दिप्रिंट से बात करते हुए महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने कहा कि उनकी सरकार को सूखे जैसी स्थितियों से लगातार निपटना पड़ा, लेकिन किसी भी किसान की आत्महत्या चिंता का विषय है.
उन्होंने कहा, ‘संख्या कम हो रही है, लेकिन मुझे नहीं लगता कि आत्महत्या कोई सूचकांक (प्रदर्शन का) हो सकता है. आंकड़ों में जाने और यह कहने कि मामलों में वृद्धि या कमी आई है. मेरा मानना है कि जब तक ऐसी घटनाएं हो रही हैं, यह हमेशा चिंता का विषय रहेगा.’
उन्होंने कहा कि वर्ष 2016-17 को छोड़कर उनकी सरकार ने लगातार सूखे का सामना किया. उन्होंने दावा किया कि राज्य सरकार ने स्थिति को अच्छी तरह से संभाला है. और ऐसा जारी रहेगा.
विशेषज्ञों की राय
पुणे में गोखले इंस्टीट्यूट ऑफ पॉलिटिक्स एंड इकोनॉमिक्स में प्रोफेसर संगीता श्रॉफ ने कहा कि किसानों की आत्महत्या की बड़ी संख्या गहरी कृषि संकट का परिणाम थी. जो फरवरी 2013 से 2015-16 तक चली.
श्रॉफ ने कहा,‘फरवरी 2013 में अनियमित बारिश और ओलावृष्टि ने फसलों को खराब कर दिया. इसके बाद 2014-15 और 2015-16 दोनों साल सूखा पड़ा. इन सालों में कपास और सोयाबीन जैसे फसलों की पैदावार ही नहीं हुई. कई किसानों के लिए आउटपुट शून्य था. उन्होंने खेती भी नहीं की. इसका कारण कीमतों में वृद्धि नहीं होना और खेती की लागत बहुत अधिक हो जाना था.’
उन्होंने कहा कि संकट का मूल कारण यह है कि सोयाबीन की खेती के केवल 0.3 प्रतिशत क्षेत्र में सिंचाई की पहुंच है, जबकि कपास के लिए यह 3 प्रतिशत है.
श्रॉफ ने कहा कि यह कुछ साल बाद पता चलेगा कि फडणवीस सरकार द्वारा शुरू की गई जलयुक्त शिवार अभियान जैसी योजनाएं स्थिति में सुधार करने में सक्षम हैं या नहीं.
जलयुक्त शिवार अभियान मिट्टी की नमी बढ़ाने के लिए फडणवीस की सबसे शुरुआती पहलों में से एक थी और मुख्यमंत्री इस योजना को अब तक सरकार के चार साल के कार्यकाल में उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियों में से एक मानते हैं.
कृषि कार्यकर्ता और महाराष्ट्र सरकार से संबद्ध वसंतराव नाइक शेटी स्वावलंबन मिशन के अध्यक्ष किशोर तिवारी कहते हैं,‘किसान आत्महत्या कृषि संकट का प्रत्यक्ष संकेत है.’
तिवारी कहते हैं, ‘पिछले 2-3 वर्षों से लगातार फसलें खराब हो रही हैं. बारिश पर्याप्त नहीं है, फसल ऋण में वृद्धि नहीं हुई है, इनपुट लागत अधिक है और कृषि उपज की कीमतें खर्च की तुलना में पर्याप्त नहीं हैं.’
वो आगे कहते हैं, ‘पिछली सरकार के पास कोई समझ नहीं थी. कम से कम यह सरकार सही चीज़ें कह रही है, हालांकि इन्होंने बहुत कुछ नहीं किया है. लागत, फसल और क्रेडिट के मूल मुद्दों पर एक साथ काम किए जाने की ज़रूरत है. जब तक ऐसा नहीं होगा, संकट जारी रहेगा.’
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