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Sunday, 22 December, 2024
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छत्तीसगढ़ में घरवापसी का चेहरा ‘दिलीप सिंह जूदेव’ की विरासत को फिर से आगे लाने की RSS-BJP की कवायद

प्रबल सिंह जुदेव का कहना है कि उनके पिता को उनका हक नहीं मिला जबकि वह मुख्यमंत्री बनने के योग्य थे. भाजपा अब अगले साल की चुनावी लड़ाई की तैयारी करते हुए उनकी प्रासंगिकता महसूस कर रही है.

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नई दिल्ली: उनकी मौत के नौ साल बाद और इस बीच तीन रद्द किए गए कार्यक्रम, पूर्व केंद्रीय मंत्री दिलीप सिंह जूदेव की प्रतिमा आखिरकार लोगों के सामने आ ही जाएगी. छत्तीसगढ़ में चुनाव से एक साल पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत आज जशपुर में आदिवासियों के बीच घरवापसी (पुन: धर्मांतरण) का चेहरा बने जूदेव की प्रतिमा का अनावरण करने जा रहे हैं.

भारतीय जनता पार्टी और आरएसएस इस क्षेत्र में आदिवासी आबादी को लुभाने के लिए जूदेव की विरासत को फिर से सामने लाने की कवायद में जुटे हैं. वहीं उनके बेटे प्रबल प्रताप सिंह ने कहा कि उनके पिता को उनका हक नहीं मिला और उन्हें छत्तीसगढ़ का मुख्यमंत्री बनाया जाना चाहिए था.

प्रबल ने दावा किया कि उन्हें ‘धर्मांतरण-माफियाओं’ (ईसाई मिशनरियों) ने फंसाया था और उन्हें मुख्यमंत्री की दौड़ से बाहर कर दिया गया. भाजपा के राज्य सचिव और अखिल भारतीय घरवासी प्रमुख (आरएसएस में पुन: धर्मांतरण के प्रभारी) अब अपने पिता के नक्शेकदम पर चलते हुए ईसाई धर्म अपनाने वाले आदिवासियों का फिर से धर्मांतरण कर रहे हैं.

जशपुर जिले और उसके आसपास आदिवासियों में ‘राजाजी’, ‘कुमारसाहेब’, ‘बाबा’ और ‘मामा’ कहे जाने वाले दिलीप सिंह जूदेव बिलासपुर से दो बार सांसद और तीन बार राज्य सभा सांसद रहे हैं. वह 2003 में अटल बिहारी वाजपेयी की कैबिनेट में केंद्रीय मंत्री थे.

तत्कालीन जशपुर रियासत के राजा जूदेव ने आदिवासियों के पैर धोने के राजा के काम को प्रक्रिया का जरूरी हिस्सा बनाकर घर वापसी को एक दिलचस्प मोड़ दे दिया था.

प्रबल सिंह जूदेव ने दिप्रिंट को बताया, ‘मेरे पिता ने अकेले इन सभी अच्छी तरह से वित्त पोषित विदेशी ताकतों के खिलाफ लड़ाई लड़ी. उन्हें आदिवासियों का अटूट समर्थन मिला हुआ था. काम करने के लिए उन्हें भारी विरोध का सामना करना पड़ा. राजपूतों के अपने ही वंश ने उन्हें अस्वीकार कर दिया था. इस नेक कार्य को करने और हिंदुओं की रक्षा करने के लिए उन्हें बहुत कुछ सहना पड़ा. उन्होंने हमेशा माना कि हिंदुओं की रक्षा करना मंदिरों के निर्माण से ज्यादा पवित्र है.’

भाजपा नेता ने कहा, ‘अगर वह मुख्यमंत्री होते, तो राज्य कांग्रेस के पास नहीं जाता. यहां धर्मांतरण विरोधी कानून की जरूरत है. मैं (पूर्व मुख्यमंत्री) रमन सिंह जी का सम्मान करता हूं. मेरे पिता ने उनके कार्यकाल के दौरान उनका काफी समर्थन किया था. लेकिन मुझे लगता है कि वह (रमन सिंह) हिंदुओं के लिए काफी कुछ कर सकते हैं, धर्मांतरण विरोधी कानून ला सकते हैं. उन्होंने आदिवासियों के लिए ज्यादा कुछ नहीं किया है.’


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घरवापसी का चेहरा

आरएसएस के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा कि जूदेव की राजनीतिक प्रासंगिकता और शून्यता अब फिर से महसूस की जा रही है क्योंकि छत्तीसगढ़ फिर से ‘मिशनरियों के ‘विचारहीन धर्मांतरण’ के युग में वापस जा रहा है.

आरएसएस के पदाधिकारी ने दावा करते हुए कहा, ‘यह वह समय है जब हम जूदेव की विरासत पर अपना हक जमा सकते हैं. वह इलाके में शेर बनकर रहे थे और कभी किसी चीज से नहीं डरे. लोगों को उन्हें याद रखना चाहिए और उनके पदचिन्हों पर चलना चाहिए. एशिया के सबसे बड़े चर्चों में से एक जशपुर में मौजूद है. वही धर्मांतरण का मुख्यालय है. इसे रोकना होगा.’ वह आगे बताते हैं, ‘जूदेव सिंह जी को आदिवासियों में नेता के रूप में जाना जाता है. जब वे एक-दूसरे से मिलते तो नमस्कार नहीं कहते बल्कि जय जूदेव कहते थे. यह उनको दिए जाने वाला सम्मान और उनका प्रभाव ही था.’

भागवत की जशपुर और अंबिकापुर की दो दिवसीय यात्रा कांग्रेस शासित राज्य में राजनीतिक जमीन बदलने की पृष्ठभूमि में महत्वपूर्ण मानी जा रही है.

संघ प्रमुख 14 नवंबर को गुजरात में सरदार पटेल की प्रतिमा को डिजाइन करने वाले राम वी. सूत्र द्वारा बनाई गई प्रतिमा का अनावरण करेंगे और जशपुर जिले में दिन बिताएंगे. आरएसएस के एक सूत्र ने बताया कि वह 15 नवंबर को अंबिकापुर जाएंगे और लगभग 15,000 स्वयंसेवकों की ओर से पाठा संचालन (आरएसएस स्वयंसेवकों द्वारा रूट मार्च) में भाग लेंगे.

प्रबल सिंह ने कहा, ‘मिशनरी और अन्य विदेशी ताकतें चाहती हैं कि हिंदुओं का पतन हो. वो कहते हैं कि हिन्दू धर्म में आदिवासियों और दलितों को बहिष्कृत माना जाता है. लेकिन मेरे पिता ने एक राजा और उच्च जाति के राजपूत होने के बावजूद उन्हें प्राचीन सनातन धर्म में वापस लाने के लिए उनके पैर तक धोए थे.’

Dilip Singh Deo washing the feet of a tribal girl | By special arrangement | ThePrint
एक आदिवासी लड़की की पैर धोते दिलीप सिंह जूदेव | फोटो: विशेष प्रबंध/दिप्रिंट

उन्होंने आगे बताया, ‘हिंदू धर्म कभी किसी को अस्वीकार नहीं करता है और न ही दूसरों को परिवर्तित करता है. हम सिर्फ अपने लोगों की वापसी चाहते हैं. क्योंकि मेरे पिता हमेशा कहते थे कि लोग धर्मांतरण के बाद देश के साथ संबंध खो देते हैं और राष्ट्रीय हित को पहचानने में विफल रहते हैं. वहां विभाजन शुरू हो जाता है. पाकिस्तान और बांग्लादेश का निर्माण धर्म परिवर्तन के कारण हुआ. मैं अपने पिता के अधूरे काम को अंजाम दे रहा हूं. अपने पिता के काम का जश्न मनाने के लिए मैंने इस सप्ताह ओडिशा में 15000 आदिवासियों की घर वापसी का आयोजन किया है.’


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वंश और राजनीति

जशपुर का पूर्व शाही परिवार छत्तीसगढ़ में संघ परिवार का एक मजबूत और अविभाज्य हिस्सा रहा है. जूदेव के पिता राजा विजय भूषण सिंह देव को जमीन बांटने और इसके बुनियादी ढांचे के निर्माण के लिए आरएसएस का समर्थन करने के लिए जाना जाता है. संघ की आदिवासी शाखा बनवासी कल्याण समिति पूर्ववर्ती शाही परिवार से नजदीकी के साथ जुड़ी हुई है.

जूदेव स्वयं कई आरएसएस विंग के सदस्य थे. भले ही जूदेव ने एक मिशनरी कॉलेज, सेंट जेवियर कॉलेज, रांची से स्नातक की उपाधि प्राप्त की हो लेकिन उन्होंने हमेशा मिशनरियों द्वारा आदिवासियों का ईसाई धर्म में परिवर्तित करने को लेकर आलोचना की थी.

कानून में स्नातक जूदेव भाजपा में शामिल हुए और 1989 और 2009 में बिलासपुर से सांसद बने. उन्हें 2003 में वाजपेयी कैबिनेट में पर्यावरण और वन राज्य मंत्री बनाया गया था.

उनका पतन तब शुरू हुआ जब एक स्टिंग ऑपरेशन में उन्हें छत्तीसगढ़ में खनन अधिकारों के लिए एक होटल के कमरे में रिश्वत लेते दिखाया गया. जूदेव ने छत्तीसगढ़, दिल्ली, राजस्थान और मध्य प्रदेश में चुनाव से ठीक पहले नवंबर 2003 में इस्तीफा दे दिया था.

बिलासपुर के सांसद का लंबी बीमारी के बाद 2013 में गुरुग्राम के एक अस्पताल में निधन हो गया था.

सहयोगी के रूप में उनके साथ काम करने वाले एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने कहा, ‘वह अपने करीबी लोगों से कहा करते थे कि मूंछें उनके व्यक्तित्व का एक अभिन्न अंग हैं. उन्होंने हमसे कहा था कि मूंछें उनकी शाही छवि और उनके वंश को दर्शाती हैं.’

जब वह प्रमुख थे तो अक्सर उन्हें अपनी मूंछों पर ताव देते हुए देखा जाता था. सोमवार को अनावरण की जाने वाली प्रतिमा दिवंगत नेता की उनके प्रसिद्ध मुद्रा में है. जूदेव के सहयोगी ने जोर देकर कहा, ‘यहां हमेशा से उनकी यही छवि रही है. उन्हें अपने शाही खून और अपनी मूंछों पर बहुत गर्व था.’

(अनुवाद: संघप्रिया मौर्य | संपादन: कृष्ण मुरारी)

(इस खबर को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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