नई दिल्ली: कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री भूपिंदर सिंह हुड्डा के वफादार माने जाने वाले दलित नेता उदय भान को इस बुधवार को कुमारी शैलजा की जगह पार्टी की हरियाणा इकाई का नया प्रमुख नियुक्त किया.
2024 में होने वाले विधानसभा चुनावों के देखते हुए यह कदम ऐसे समय में उठाया गया है जब कांग्रेस की राज्य इकाई गुटीय संघर्ष में घिरी हुई है, और यह इस बात का भी एक संकेत प्रतीत होता है कि पार्टी अब अपनी हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कमान हुड्डा खेमे को सौंप रही है.
हरियाणा विधान सभा के एक मौजूदा कांग्रेसी सदस्य ने उनका नाम न छापे जाने की शर्त पर दिप्रिंट को बताया कि कांग्रेस के केंद्रीय नेतृत्व ने पहले हुड्डा को इस पद की पेशकश की थी, लेकिन हरियाणा विधानसभा के विधायक नहीं चाहते थे कि वह कांग्रेस विधायक दल (सीएलपी) के नेता के रूप में अपना पद छोड़ें.
इस विधायक ने कहा, ‘दिल्ली के नेतृत्व ने तो उन्हें (प्रदेश) अध्यक्ष पद की पेशकश की थी, लेकिन उन्हें सीएलपी नेता के रूप में पद छोड़ना पड़ता क्योंकि वे एक साथ दो पदों पर नहीं रह सकते. उन्होंने हमसे सलाह-मशविरा किया और हम सब ने कहा कि हमें विधानसभा में एक मजबूत नेता की जरूरत है..’
66- वर्षीय भान, जो अब तक अपेक्षाकृत लो-प्रोफ़ाइल रहते हैं, हरियाणा के पूर्व विधायक और राज्य के ‘जाने-माने’ नेता गया लाल के बेटे हैं. ये वही हैं गया लाल जिनकी हरकतों ने पार्टी बदलने वाले दलबदलुओं का वर्णन करने के लिए कुख्यात राजनीतिक मुहावरे ‘आया राम, गया राम’ की उत्पत्ति को प्रेरित किया था.
उन्हें भूपिंदर सिंह हुड्डा के समर्थक के रूप में भी जाना जाता है, और यही वजह है कि बुधवार को लिए गए इस फैसले को गांधी परिवार द्वारा दिए गए इस संकेत के रूप में देखा जा रहा कि हरियाणा में कांग्रेस का भविष्य हुड्डा खानदान की विरासत पर टिका है.
भान की नियुक्ति एक ऐसे समय में हुई है जब हुड्डा और शैलजा, जो 2019 में हरियाणा के विधानसभा चुनाव से ठीक पहले एचपीसीसी की प्रमुख बनी थीं, के बीच की गुटबाजी फिर से शुरू हो गई थी.
दलित नेता और मनमोहन सिंह सरकार में पूर्व मंत्री रहीं कुमारी शैलजा ने इस महीने कुछ समय पहले अपना पद छोड़ने की पेशकश की थी.
ध्यान देने की बात है कि हुड्डा ने इस घोषणा के बाद अपने एक ट्वीट में अंतरिम कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को धन्यवाद दिया. उन्होंने हिंदी में लिखा, ‘इस फैसले से हरियाणा में पार्टी का संगठन मजबूत होगा.’
चार कार्यकारी अध्यक्षों – श्रुति चौधरी, राम किशन गुर्जर, जितेंद्र भारद्वाज और सुरेश गुप्ता को भी हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी (एचपीसीसी) में नियुक्त किया गया है, जिसे कथित तौर पर विभिन्न गुटों को शांत करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है.
यह फेरबदल ऐसे समय में भी हुआ है जब कांग्रेस की अधिकांश राज्य इकाइयों को या तो पुनर्गठित किया जा रहा है या वे जल्द ही पुनर्गठन प्रक्रिया से गुजरेंगीं.
फरवरी-मार्च में हुए विधानसभा चुनावों में अपने निराशाजनक प्रदर्शन के बाद से, कांग्रेस ने पंजाब, गोवा, मणिपुर और उत्तराखंड की अपनी राज्य इकाइयों के लिए नए प्रमुख नियुक्त किए हैं.
इसी मंगलवार को, कांग्रेस ने मंडी की सांसद और पार्टी के दिवंगत दिग्गज वीरभद्र सिंह की विधवा प्रतिभा सिंह को हिमाचल प्रदेश की पार्टी प्रमुख के रूप में नियुक्त किया है. इस तरह इसने एक बार फिर ‘युवा चेहरे’ के ऊपर ‘विरासत’ को तरजीह दी है.
कौन हैं उदय भान?
हालांकि, भान 1980 के दशक से ही हरियाणा की राजनीति में सक्रिय हैं, फिर भी उन्हें हरियाणा के पूर्व विधायक गया लाल के बेटे के रूप में ज्यादा जाना जाता है, जो स्वयं अपने दलबदल के लिए कुख्यात थे.
‘आया राम, गया राम’ 1960 के दशक में लोकप्रियता हासिल करने वाला एक मुहावरा था, जिसे लाल के ‘कारनामों’ के बाद ही गढ़ा गया था. हरियाणा में हसनपुर (सुरक्षित) विधानसभा सीट के एक निर्दलीय विधायक गया लाल साल 1967 में एक ही दिन में तीन अलग-अलग दलों के पाले में आये-गए थे.
भान 1989 और 1993 के बीच कृषक भारती सहकारी (कृभको) के अध्यक्ष थे और वे साल 1997 में कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए थे.
उन्होंने 1987 में हसनपुर से अपना पहला विधानसभा चुनाव लड़ा और जीता और उसके बाद उन्होंने दो बार और यह सीट जीती – 2000 में एक निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में और बाद में 2005 में कांग्रेस के उम्मीदवार के रूप में.
भान ने साल 2014 में कांग्रेस उम्मीदवार के रूप में होडल (सुरक्षित) सीट जीती थी, लेकिन पिछले विधानसभा चुनाव में वह भाजपा के जगदीश नैय्यर से हार गए थे.
फूल चंद मुलाना, अशोक तंवर और कुमारी शैलजा के बाद भान पिछले 17 वर्षों में हरियाणा कांग्रेस के चौथे दलित प्रमुख हैं.
राज्य में दलितों की अच्छी खासी आबादी है – 2011 की जनगणना के अनुसार 21 प्रतिशत – और पार्टी नेतृत्व का वर्षों से यह विश्वास रहा है कि हुड्डा जैसे जाट नेता द्वारा पार्टी का नेतृत्व करने से दलित मतदाता इससे विमुख हो जाएंगे. खासकर जब से साल 2012 में हरियाणा में हुई जातिगत हिंसा ने राज्य को हिलाकर रख दिया गया था.
पार्टी सूत्रों का कहना है कि शायद यही बात भान को एक अच्छा विकल्प बनाती है.
हरियाणा में काम कर चुके एक एआईसीसी सचिव ने कहा, ‘अगर हुड्डा खुद इस पद को नहीं संभाल रहे हैं, तो यह तथ्य कि वह एक ऐसे दलित नेता हैं जिन्हें हुड्डा की ओर से मंजूरी मिली हुई है, उन्हें एक अच्छा विकल्प बनाता है.’ उन्होंने कहा, ‘यह तथ्य कि वह अपेक्षाकृत लो-प्रोफाइल है, भी पार्टी के हलकों में कम परेशानी पैदा करेगा.’
नाराज लोगों को मनाने की कोशिश
हरियाणा की कांग्रेस इकाई वर्षों से गुटबाजी से त्रस्त रही है. हुड्डा इस राज्य के पुराने राजनैतिक योद्धा और राज्य में पार्टी का सबसे लोकप्रिय चेहरा रहे हैं. तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) में एक संक्षिप्त कार्यकाल के बिताने के बाद अब आम आदमी पार्टी (आप) के साथ आने वाले अशोक तंवर और 2019 के बाद से हरियाणा इकाई की प्रमुख रही कुमारी शैलजा के साथ हुड्डा की हमेशा से तनातनी रही है.
बताया जा रहा है कि हुड्डा सीनियर या उनके बेटे दीपेंद्र हुड्डा को राज्य कांग्रेस का शीर्ष पद दिए जाने की अटकलों के बीच शैलजा ने इस महीने की कुछ समय पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात की थी.
कांग्रेस के संगठन सचिव के.सी. वेणुगोपाल ने बुधवार को जारी किये गए एक बयान में कहा, ‘कांग्रेस अध्यक्ष ने हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी की अध्यक्ष पद से कुमारी शैलजा के इस्तीफा को तत्काल प्रभाव से स्वीकार कर लिया है.’
हालांकि, हरियाणा कांग्रेस प्रमुख के रूप में उसकी पसंद स्पष्ट रूप से हुड्डा के पक्ष में है, फिर भी पार्टी आलाकमान ने अन्य नियुक्तियों के साथ संतुलन बिठाने की कोशिश की है. भारद्वाज और सुरेश गुप्ता हुड्डा के वफादार रहे हैं, गुर्जर शैलजा के करीबी सहयोगी हैं, और श्रुति चौधरी हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री बंसी लाल की पोती हैं.
कांग्रेस आलाकमान ने पिछले कुछ हफ्तों में हरियाणा के कई वरिष्ठ नेताओं के साथ बैठकें की थीं
मार्च में, कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने भूपिंदर और दीपेंद्र हुड्डा, कुमारी शैलजा, एआईसीसी के हरियाणा प्रभारी विवेक बंसल, और वरिष्ठ नेताओं रणदीप सुरजेवाला, किरण चौधरी और कुलदीप बिश्नोई से मुलाकात की थी.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
यह भी पढ़ेंः पीएम मोदी अगले हफ्ते जर्मनी, डेनमार्क और फ्रांस के दौरे पर जाएंगे, साल 2022 की होगी पहली विदेश यात्रा