नई दिल्ली: चार राज्यों और एक केंद्र-शासित क्षेत्र के लिए, आगामी विधान सभा चुनावों की घोषणा करते हुए, मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) सुनील अरोड़ा ने कहा कि, चुनाव आयोग (ईसी) ‘अच्छे से अच्छे’ अधिकारियों को, पश्चिम बंगाल में ऑब्ज़र्वर्स नियुक्त कर रहा है.
ये कहते हुए कि बिहार के पूर्व मुख्य चुनाव अधिकारी (सीईओ), और 1984 बैच के एक रिटायर्ड आईएएस अधिकारी अजय वी नायक को, बंगाल में एक ऑब्ज़र्वर के तौर पर तैनात किया जाएगा. अरोड़ा ने कहा, ‘उनके जितना अच्छा सीईओ आयोग में कभी नहीं रहा है. ऐसा नहीं है कि हमारे पास ऐसे अधिकारियों की कमी है, लेकिन वो तो अच्छों से भी अच्छे थे’.
इसके अलावा अरोड़ा ने आगामी चुनावों के लिए, आईपीएस ऑब्ज़र्वर्स के तौर पर, दो और तैनातियों का ऐलान किया- आंध्र प्रदेश से 1981 बैच के रिटायर्ड आईपीएस अधिकारी विवेक दूबे, और मणिपुर-त्रिपुरा काडर के 1977 बैच के रिटायर्ड आईपीएस, अधिकारी मृणाल कांति दास.
ईसी ने इन ऑब्ज़र्वर्स को पश्चिम बंगाल में, क़ानून व्यवस्था की निगरानी करने के अधिकार दिए हैं, जिसे चुनावों से पहले ख़तरनाक माना जा रहा है.
आयोग देशभर में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए, एक विस्तृत मशीनरी के ज़रिए काम करता है. इसके पैदल सैनिकों में हर प्रांत के लिए, मुख्य निर्वाचन अधिकारियों (सीईओ) तथा रिटर्निंग अधिकारियों (आरओ) के अलावा, सामान्य ऑब्ज़र्वर्स, पुलिस ऑब्ज़र्वर्स, और व्यय ऑब्ज़र्वर्स आदि शामिल होते हैं.
ये सब सामान्य नियुक्तियां हैं जो जनप्रतिनिधित्व कानून में उल्लिखित हैं, जबकि स्पेशल ऑब्ज़र्वर्स तब नियुक्त किए जाते हैं, जब ऐसा समझा जाता है कि किसी चुनाव विशेष पर, ख़ास ध्यान देने की ज़रूरत है.
ऐसा देखा गया है कि उनकी सिफारिशों के नतीजे में, ईसी कुछ बड़े फैसले लेता है, जैसे कि चुनावों को रद्द करना, जो पहली बार 2016 में तमिलनाडु में देखा गया था.
2021 बंगाल चुनाव के लिए नियुक्तियों ने, एक विवाद खड़ा कर दिया है, और तृणमूल कांग्रेस प्रमुख ममता बनर्जी ने दूबे पर, 2019 लोकसभा चुनावों में बतौर ऑब्ज़र्वर अपने कार्यकाल के दौरान, कथित रूप से पक्षपातपूर्ण ढंग से काम करने का आरोप लगाया है.
स्पेशल ऑब्ज़र्वर्स करते क्या हैं?
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त ओपी रावत ने कहा, कि भारतीय चुनावों में स्पेशल ऑब्ज़र्वर्स नियुक्त करने का रुझान, टीएन शेषन (1990-1996) के समय से चला आ रहा है, जिन्होंने सबसे पहले इस अवधारणा को पेश किया.
उन्होंने आगे कहा, ‘उन्हें आमतौर पर चुनावों के दौरान, क़ानून व्यवस्था और धन वितरण आदि की विशेष समस्याओं के लिए, ईसी द्वारा नियुक्त किया जाता है. अमूमन ऐसा तब होता है जब चुनाव प्रचार में, बहुत अधिक गर्मी पैदा हो जाए, और स्थिति विस्फोटक हो जाए’.
‘ये रुझान शेषन के कार्यकाल के दौरान शुरू हुआ था, लेकिन ये 2010 के बिहार चुनाव थे, जहां ईसी ने बहुत लंबे समय के बाद, कोई ऑब्ज़र्वर नियुक्त किया था…पूरे राज्य के लिए एक ऑब्ज़र्वर भेजा गया था’.
रावत ने ये भी कहा, कि आयोग जिन अधिकारियों को स्पेशल ऑब्ज़र्वर्स नियुक्त करता है, वो आमतौर पर किसी पदासीन मुख्य सचिव की वरिष्ठता के होते हैं, या ऐसे अधिकारी होते हैं जो पुलिस महानिदेशक, या फिर मुख्य सचिव के पद से रिटायर हुए हों.
एक अधिकारी ने, जो पहले ईसी के साथ जुड़े थे, दिप्रिंट को बताया कि स्पेशल ऑब्ज़र्वर्स, ज़मीन पर कमीशन की ‘आंखों और कानों’ का काम करते हैं.
पूर्व अधिकारी ने कहा, ‘ऐसे मामलों में जहां आयोग को लगता हो, कि जनप्रतिधित्व क़ानून के तहत, जिस आंकलन की पहले से व्यवस्था है, उसके ऊपर एक और स्तर पर आंकलन की ज़रूरत है, तो ऐसे में वो स्पेशल ऑब्ज़र्वर्स नियुक्त करता है’.
किसी भी चुनाव में, ईसी हर ज़िले के लिए सामान्य और व्यय ऑब्ज़र्वर्स नियुक्त करता है. ये आमतौर पर मध्यम-स्तर के सेवारत सिविल सर्वेंट्स होते हैं, जिन्हें चुनाव ड्यूटी पर लगाया जाता है.
य़ह भी पढ़ें: पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस को एक और झटका, पांच वर्तमान विधायक भाजपा में हुए शामिल
उनकी सलाह पर EC अकसर कड़े फैसले लेते हैं
आयोग द्वारा नियुक्त किए गए स्पेशल ऑब्ज़र्वर्स, उन सब के ऊपर होते हैं, और उन्हीं की सलाह पर निर्वाचन आयोग, चुनावों के दौरान कुछ सबसे महत्वपूर्ण फैसले लेते हैं.
ऊपर हवाला दिए अधिकारी ने कहा, ‘ऑब्ज़र्वर्स ख़ुद से कोई फैसले नहीं ले सकते. उनके पास ऐसा करने का कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है’. उन्होंने आगे कहा, ‘वो सिर्फ ज़मीनी स्थिति का पर्यवेक्षण करते हैं, उसकी निगरानी करते हैं, और जिस चीज़ को रिपोर्ट करने की ज़रूरत होती है, उसे ईसी को रिपोर्ट करते हैं’.
मिसाल के तौर पर, 2016 में, जब ईसी ने तमिलनाडु असैम्बली की दो सीटों पर, मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए, धन के इस्तेमाल के सुबूत मिलने के बाद, चुनाव रद्द करने का फैसला लिया, तो वो स्पेशल ऑब्ज़र्वर्स की रिपोर्ट्स के आधार पर ही लिया गया था.
सूत्रों ने कहा कि पिछले महीने, जब ईसी ने सीनियर आईपीएस अधिकारी जावेद शमीम का तबादला किया, जो पश्चिम बंगाल में बतौर अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक काम कर रहे थे, तो उसने ये क़दम अपने स्पेशल ऑब्ज़र्वर्स से मिली सलाह के बाद ही उठाया.
ऊपर हवाला दिए गए अधिकारी ने कहा, ‘स्पेशल ऑब्ज़र्वर्स ख़ुद से ये फैसले नहीं ले सकते, लेकिन उनकी सलाह पर ईसी ऐसा कर सकता है’.
रावत ने समझाया कि किसी संवैधानिक अधिकार के अभाव में, स्पेशल ऑब्ज़र्वर्स का काम सिर्फ वहीं तक सीमित होता है, जो उनकी नियुक्ति के समय, ईसी द्वारा जारी कार्यकारी आदेश में, स्पष्ट रूप से लिखा जाता है.
‘राजनीतिक उत्पीड़न से मुक्त’
चूंकि स्पेशल ऑब्ज़र्वर्स की नियुक्ति असामान्य परिस्थितियों में ही की जाती है, इसलिए ऐसा माना जाता है कि उन्हें तब लाया जाता है, जब सेवारत अधिकारियों के अलावा, एक और परत की ज़रूरत महसूस होती है, क्योंकि वो राजनीतिक दलों के दबाव में आ सकते हैं. ईसी अधिकारी ने कहा, ‘मसलन, ऐसा माना जाता है कि चुनावों के दौरान, निष्पक्ष रूप से काम करने के नतीजे में, राजनीतिक पार्टियां बाद में मुख्य निर्वाचन अधिकारियों को परेशान करती हैं, और उन्हें दंडित करती हैं’.
मुख्य निर्वाचन अधिकारी ईसी की देखरेख और निर्देशन में, राज्यों में लोकसभा, राज्यसभा, और विधान सभाओं (और परिषदों का जहां वो हैं) के चुनावों के संचालन की निगरानी करते हैं.
लेकिन, वो राज्य सरकारों के नियंत्रण में काम करते हैं, भले ही उनके ऊपर उसी राज्य में, बिना किसी दबाव के निष्पक्ष चुनाव कराने का ज़िम्मा होता है.
‘स्पेशल ऑब्ज़र्वर्स आमतौर पर या तो रिटायर्ड होते हैं, या बहुत वरिष्ठ अधिकारी होते हैं, जिनकी ईमानदारी पर कोई दाग़ नहीं होता, इसलिए उन्हें परेशान करना संभव नहीं होता…इसी कारण से ईसी ऐसे लोगों को नियुक्त करता है, जो बिना किसी भय के निष्पक्ष तरीक़े से काम कर सकें’.
(इस खबर को अंग्रेजी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)
य़ह भी पढ़ें: बंगाल में चुनाव तक बीजेपी नेता भारती घोष के खिलाफ जारी गिरफ्तारी वारंट पर SC ने लगाई रोक