scorecardresearch
Sunday, 22 December, 2024
होमराजनीतिचुनाव अभियान के लिए मोदी के सात पैंतरे

चुनाव अभियान के लिए मोदी के सात पैंतरे

जिस प्रकार हर अभियान में कुछ निश्चित पड़ाव होते हैं उसी प्रकार कई राज्यों में मोदी के अभियानों की रचना एक जैसी रही है।

Text Size:

नई दिल्लीः कर्नाटक में चुनावी उन्माद थमने और शीर्ष दलों के नेताओं के गांव-देहात समेत हर जगह चुनाव प्रचार समाप्त होने के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि सबसे बड़े प्रचारक – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी –  एक बहुत स्पष्ट और काफी अनुमानित पैटर्न फॉलो करते हैं।

चाहे वह राजनीतिक नज़रिया हो, भाषण-कला हो, तीव्रता का स्तर हो या चाहे रणनीतियां, राज्य दर राज्य सब स्पष्ट रूप से पहले से ही निर्धारित दिखाई देता है।

कर्नाटक चुनाव से एक दिन पहले दिप्रिंट ने मोदी के चुनाव प्रचार के सात पैंतरों का विश्लेषण किया।

आखिरी समय में अभियान में शामिल होना

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी के विपरीत जो चुनावी राज्य के सभी इलाकों में एक एक करके जाते हैं, मोदी चुनाव के समय से ठीक पहले ही प्रचार आरम्भ करते हैं। भाजपा, पहले कांग्रेस को प्रचार करने का और अपने नज़रिए को स्थापित करने का मौका देती है और फिर कांग्रेस द्वारा लगाए गए आरोपों और हमलों पर सिर्फ अपनी प्रतिक्रिया देती है। लेकिन एक बार मोदी के मैदान में कदम रखते ही सब कुछ पूरी तरह बदल जाता है।

गुजरात विधानसभा चुनावों के दौरान मोदी ने कई बार अपने गृह राज्य का दौरा किया था। हालांकि, सही ढंग से चुनाव का प्रचार उन्होंने 27 नवम्बर को किया जोकि 9 नवम्बर को होने वाले पहले पड़ाव के चुनाव से सिर्फ 12 दिन दूर था

कर्नाटक में भी मोदी ने 12 मई को होने वाले चुनाव से करीब 12 दिन पहले 1 मई को मैदान में कदम रखा था। उस समय तक राहुल गाँधी, दक्षिण कर्नाटक और बेंगलुरू की ओर बढ़ते हुए अपने चुनाव प्रचार के कई दौरे समाप्त कर चुके थे।

स्थानीय गौरवों का बखान और अपनी पहचान बताना

अपने गुजरात चुनाव अभियान के दौरान मोदी ने कई बार गुजराती अस्मिता का बखान किया था। इसलिए जब कांग्रेसी नेता मणि शंकर अय्यर ने उन्हें एक ‘नीच आदमी’ कहा, मोदी ने बिना किसी देरी के इस मौके का फायदा उठाया । उन्होंने इसे गुजरात के बेटे को अपमानित करने वाला कथन करार दिया और कहा कि
गुजरात के मतदाता अपने ही किसी व्यक्ति का अपमान करने वाले को माफ़ नहीं करेंगे।

खुद को सर्वोच्च नेता के रूप में पेश करते हुए उन्होंने लोगों से जुड़ने की कोशिश की।

कर्नाटक में एक भाषण के दौरान, उन्होंने कांग्रेस को धमकी देते हुए कहा था कि वे ‘मोदी से पंगा न लें’, वरना यह उनके लिए बहुत भारी साबित होगा ।

एक राजनीतिक टिप्पणीकार और “नरेन्द्र मोदीः द मैन, द टाइम्स” जीवनी के लेखक नीलांजल मुखोपाध्याय कहते हैं कि, “हम इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि प्रतिभा बहुत ही ज़बरदस्त है। लेकिन उनमें अब वह नयेपन वाली बात बाकी नहीं रही”।

“उनके कर्नाटक चुनाव प्रचार में कुछ नया नहीं है। उन्होंने 2013 में भी चुनाव प्रचार किया था और जबकि उनके नाम को आधिकारिक तौर पर प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के लिए घोषित नहीं किया गया था, उन्हें पहले ही संसदीय बोर्ड में शामिल कर लिया गया था। लेकिन वह परिणाम में कोई फर्क न डाल सके।”

राजवंश पर हमला

मोदी हर उस मौके को लपक लेते हैं जो कांग्रेस पार्टी को एक राजवंशीय पार्टी के रूप में दर्शाता है और खुद को ऐसा दर्शाते हैं जैसे कि वह जमीन से उठे हुए नेता हैं। उन्होंने इस कहानी का 2014 के आम चुनावों में सफलतापूर्वक उपयोग किया और तब से आज तक उनकी यह रणनीति बदली नहीं है।

गुजरात में, उन्होंने कांग्रेस का अध्यक्ष बनने पर राहुल गांधी पर हमला किया। ठीक इसी तरह कर्नाटक में उन्होंने, राहुल गांधी के यह कहने पर हमला किया, कि यदि कांग्रेस अपेक्षित सीटें हासिल करती है तो वह प्रधानमंत्री बनने के लिए तैयार हैं।

वर्तमान में अपने चुनाव प्रचार में पहली बार उन्होंने नेशनल हेराल्ड मामले को लेकर राहुल और सोनिया गांधी पर निशाना साधा है। एक बार उन्होंने राहुल को उनकी मां की मातृभाषा (इतालवी) बोलने की चुनौती भी दी थी।

हालांकि मुखोपाध्याय कहते हैं, कि “इटेलियन” मुद्दा अब कोई असरदार मुद्दा नहीं है। इसका बार-बार जिक्र करने का मतलब यही है कि वे जानते हैं कि अन्य कुछ भी काम नहीं कर रहा है। अगर ऐसी बात है तो यह भाजपा के लिए चिंता का विषय होना चाहिए।”

एक स्थानीय नायक या ऐतिहासिक घटना को चुनना और राजवंश पर हमला करने के लिए इसका इस्तेमाल करना

जिस राज्य में मोदी चुनाव प्रचार करते हैं उस राज्य से वह एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व चुनते हैं और यह सिद्ध करने की कोशिश करते हैं कि कैसे नेहरू-गांधी वंश लोगों और राज्य के लिए अच्छा नहीं था।

गुजरात में, उन्होंने 1956 में अंजर भूकंप के दौरान पर्याप्त काम नहीं करने के लिए प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू की आलोचना की और 2001 में भुज भूकंप के बाद उनकी सरकार ने राज्य का पुनर्निर्माण कैसे किया, से इसकी तुलना की।

कर्नाटक में, उन्होंने नेहरू पर जनरल के.एस. थिमय्या और फील्ड मार्शल के.एम. करिअप्पा जैसे राज्य के आदर्शों के साथ दुर्व्यवहार करने का आरोप लगाया। लेकिन उन्होंने इस बात को समझाने के लिए गलत तथ्यों का सहारा लिया जो उनकी कहानी को सच्चा साबित कर सके ।

राजनीतिक टिप्पणीकार और ओ.पी. जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर शिव विश्वनाथन कहते हैं, “उनका इतिहास शून्यमनस्क इतिहास है और ऐसा प्रतीत होता है कि उनका यह इतिहास राज्यों के हिसाब से अलग-अलग तरीकों से बदला जाता है । “यह वास्तविक इतिहास की तुलना में एक चातुर्यपूर्ण इतिहास बन जाता है।”

कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी ने भी मोदी की इतिहास की ग़लतफ़हमी का जबाब दिया था। सोनिया गांधी ने कहा “प्रधानमंत्री इतिहास को तोड़ मरोड़ कर पेश करते हैं और स्वतंत्रता सेनानियों का उपयोग शतरंज के प्यादों के रूप में करते हैं। क्या यह एक प्रधानमंत्री को शोभा देता है? क्या आपने कभी ऐसे प्रधानमंत्री को देखा है जो हमेशा बातें तो करते हैं, लेकिन वास्तविक मुद्दों पर कभी नहीं?”

ब्रांड हिंदुत्व

इस सब के बीच में, मोदी बड़ी चतुराई से अपनी हिंदुत्व वाली छवि सामने लाते हैं। यह एक सोची समझी चाल है, जो हिंदुत्व की विचारधारा रखने वाले मतदाताओं को आकर्षित करती है।

2015 बिहार विधानसभा चुनावों में, मोदी ने मतदाताओं को याद दिलाने का एक भी मौका नहीं छोड़ा कि कैसे विपक्ष अल्पसंख्यकों सहित निचली जातियों के लिए आरक्षण को विभाजित करने की योजना बना रहा था। यह चाल ओबीसी और दलित मतदाताओं में सेंध मारने के लिए चली गई थी जो कि जेडी(यू), आरजेडी, कांग्रेस के महागठबंधन के पक्ष में थे। लेकिन मोदी की यह चाल असफल रही।

मोदी ने गुजरात में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर उचित चुनाव के बिना पार्टी अध्यक्ष के रूप में उनकी पदोन्नति किए जाने पर हमला किया और उनके अध्यक्ष चुने जाने की इस प्रक्रिया को ‘औरंगजेब राज’ बताया। वे मणिशंकर अय्यर द्वारा फिर से की गई एक टिप्पणी का जवाब दे रहे थे, जिसमें उन्होंने कहा था कि मुगल काल के दौरान कोई भी चुनाव नहीं हुआ था।

कर्नाटक राज्य के चित्रदुर्ग में एक रैली को संबोधित करते हुए मोदी ने राज्य में टीपू सुल्तान की जयंती मनाने के लिए कांग्रेस सरकार पर हमला किया।

पाकिस्तान का जिक्र

बीजेपी के चुनाव अभियानों में पाकिस्तान के मुद्दे का एक विशेष स्थान है। मोदी सहित भाजपा के कई नेता अक्सर अपने चुनावी भाषणों में इसका जिक्र करते हैं।

2014 के चुनाव अभियान के दौरान भी बिहार के वरिष्ठ भाजपा नेता गिरिराज सिंह ने सुझाव दिया था कि मोदी के विरोधियों को ‘पाकिस्तान चले जाना चाहिए’। अगले वर्ष बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने कहा था कि यदि बिहार में महा गठबंधन जीता तो पाकिस्तान में पटाखे फोड़े जाएंगे।

गुजरात में मोदी ने एक कदम और आगे बढ़ते हुए आरोप लगाया कि पाकिस्तान राज्य चुनावों में हस्तक्षेप कर रहा था। उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि पाकिस्तानी सेना के एक पूर्व अधिकारी ने अहमद पटेल को राज्य का मुख्यमंत्री बनाने के लिए पूर्व प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह समेत कांग्रेस नेताओं से मुलाकात की।

हालांकि कर्नाटक में मोदी ने अपने भाषणों में पाकिस्तान का जिक्र नहीं किया, लेकिन कथित रूप से कांग्रेस की पाकिस्तान के साथ मिली भगत के लिए शाह ने कांग्रेस पर हमला किया। यह सब अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में मुहम्मद अली जिन्ना के एक चित्र पर विवाद के एक हिंसक मोड़ लेने और मणिशंकर अय्यर द्वारा पाकिस्तान में एक सभा को संबोधित करते हुए जिन्ना को ‘कायदे-ए-आज़म’ (राष्ट्र पिता) कहे जाने के बाद हुआ था।

केंद्र की उदारता

मोदी अपने चुनाव प्रचार के आखिरी समय में केन्द्र व राज्य सरकार के मध्य संबंधों की बात करते हैं। यदि राज्य में पहले से ही भाजपा की सरकार होती है, जैसे कि गुजरात, तो वे यह बात करते हैं कि केन्द्र में कांग्रेस की सरकार के समय राज्य की कैसी दुर्गति हुई थी और अब चीजों में किस प्रकार से सुधार आया है।

यदि कांग्रेस या किसी अन्य पार्टी द्वारा शासित राज्य की बात हो तो वे यह उल्लेख करते हैं कि किस प्रकार राज्य सरकार सही कारणों और मुद्दों के लिए केंद्र द्वारा प्रदान किए गए पैसे का उपयोग नहीं कर रही है और विकास में रुकावट पैदा कर रही है। बीच-बीच में वे जन धन योजना जैसी केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित योजनाओं की सफलता का उल्लेख करते हैं।

गुजरात में दूसरे चरण के चुनाव प्रचार के अंतिम दिन 11 दिसंबर को अहमदाबाद में अपनी आखिरी रैली में मोदी ने केवल अपनी सरकार द्वारा किए गए कार्यों के बारे में ही बात की थी।

कर्नाटक में उन्होंने 8 मई को विजयपुरा की रैली में इस चरण की शुरुआत की जो कि उनकी चुनाव प्रचार की रणनीति के देखते हुए थोडा समय से पहले है। मोदी ने अपनी सरकार की विभिन्न योजनाओं, जैसै- हर गाँव में बिजली पहुँचाने से लेकर गैस कनेक्शन वितरण एवं स्वास्थ्य तथा चिकित्सा बीमा से लेकर मुद्रा ऋण तक, के बारे में विस्तार से बात की।

कर्नाटक के मतदाता गुजरात के लोगों का अनुकरण करेंगे या नहीं मंगलवार को इसका पता चल जाएगा।

Read in English:The seven-step Narendra Modi playbook for election campaigning

share & View comments