नई दिल्ली: प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया के निजी सहायक से रद्द आबकारी नीति में कथित अनियमितताओं से जुड़े धनशोधन की जांच के सिलसिले में शनिवार को पूछताछ की. अधिकारियों ने यह जानकारी दी.
अधिकारियों ने बताया कि ईडी देवेंद्र शर्मा से पूछताछ कर रही है और धनशोधन रोकथाम अधिनियम (पीएमएलए) के तहत उनका बयान दर्ज किया जा रहा है.
सिसोदिया ने एक ट्वीट में दावा किया कि ईडी ने उनके खिलाफ एक ‘‘झूठा’’ मामला दर्ज किया, जिसके बाद एजेंसी ने उनके निजी सहायक के घर पर छापा मारा और उन्हें (शर्मा) ‘‘गिरफ्तार’’ किया.
धनशोधन का मामला सीबीआई की एक प्राथमिकी के आधार पर दर्ज किया गया है, जिसमें सिसोदिया को आरोपी बनाया गया है. सीबीआई ने मामला दर्ज करने के बाद उपमुख्यमंत्री और दिल्ली सरकार के कुछ नौकरशाहों के परिसरों पर छापेमारी की थी.
इन्होंने झूठी FIR कर मेरे घर रेड करवाई, बैंक लॉकर तलाश लिए, मेरे गाँव में जाँच कर ली लेकिन मेरे ख़िलाफ़ कहीं कुछ नहीं मिला
आज इन्होंने मेरे PA के घर पर ईडी की रेड करी वहाँ भी कुछ नहीं मिला तो अब उसको गिरफ़्तार कर के ले गये है.भाजपा वालो! चुनाव में हार का इतना डर..
— Manish Sisodia (@msisodia) November 5, 2022
मनीष सिसोदिया ने ट्वीट कर कहा, ‘इन्होंने झूठी FIR कर मेरे घर रेड करवाई, बैंक लॉकर तलाश लिए, मेरे गाँव में जाँच कर ली लेकिन मेरे ख़िलाफ़ कहीं कुछ नहीं मिला आज इन्होंने मेरे PA के घर पर ईडी की रेड करी वहाँ भी कुछ नहीं मिला तो अब उसको गिरफ़्तार कर के ले गये है.भाजपा वालो! चुनाव में हार का इतना डर..’
दिल्ली के जोर बाग स्थित शराब वितरक इंडोस्पिरिट ग्रुप के प्रबंध निदेशक समीर महेंद्रू की गिरफ्तारी के बाद अक्टूबर में ईडी ने दिल्ली और पंजाब में लगभग तीन दर्जन स्थानों पर छापेमारी की थी.
मामले के आरोपियों में दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया, तत्कालीन आबकारी आयुक्त अरवा गोपी कृष्णा, उपायुक्त आनंद तिवारी और सहायक आयुक्त पंकज भटनागर शामिल हैं.
अन्य आरोपी पर्नोड रिकार्ड के पूर्व कर्मचारी मनोज राय हैं; ब्रिंडको सेल्स के निदेशक अमनदीप ढल; बडी रिटेल के निदेशक अमित अरोड़ा और दिनेश अरोड़ा; महादेव शराब के अधिकृत हस्ताक्षरकर्ता सनी मारवाह, अरुण रामचंद्र पिल्लई और अर्जुन पांडे.
ईडी और सीबीआई ने आरोप लगाया था कि आबकारी नीति को संशोधित करते समय अनियमितताएं की गई थीं, लाइसेंस धारकों को अनुचित लाभ दिया गया था, लाइसेंस शुल्क माफ या कम किया गया था और एल -1 लाइसेंस को सक्षम प्राधिकारी की मंजूरी के बिना बढ़ा दिया गया था. लाभार्थियों ने ‘अवैध’ लाभ को आरोपी अधिकारियों को दिया और पता लगाने से बचने के लिए अपने खाते की पुस्तकों में झूठी प्रविष्टियां कीं.