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Monday, 7 July, 2025
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‘बिहार में EC का कदम मनमाना, बंगाल तक पहुंचेगा असर’ — क्या कहती है SC में ADR, महुआ मोइत्रा की याचिका

ADR, महुआ मोइत्रा, योगेंद्र यादव और मनोज झा ने बिहार में चुनाव से पहले मतदाता सूची के विशेष पुनरीक्षण (SIR) के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है.

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नई दिल्ली: तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) सांसद महुआ मोइत्रा, भारत जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक योगेंद्र यादव और अन्य याचिकाकर्ताओं ने बिहार में चुनाव से पहले मतदाता सूची के स्पेशल इंटेंसिव रिवीज़न (SIR) को लेकर भारत के चुनाव आयोग (ECI) के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि ऐसी दूसरी वोटर लिस्ट जांच अब पश्चिम बंगाल में भी की जा सकती है.

इस मामले की शुरुआत 24 जून को ECI के उस आदेश से हुई, जिसमें बिहार राज्य चुनाव आयोग को मतदाता सूची का विशेष पुनरीक्षण कराने का निर्देश दिया गया था.

महुआ मोइत्रा ने अपनी याचिका में तर्क दिया है कि यह आदेश समानता के अधिकार, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और जीवन के अधिकार का उल्लंघन है. वहीं, योगेंद्र यादव ने इस फैसले को “पूरी तरह मनमाना, अनुचित और चुनावी कानूनों का उल्लंघन” बताया है.

महुआ मोइत्रा की याचिका में कहा गया है— “देश में पहली बार ऐसा हो रहा है, जहां जिन मतदाताओं के नाम पहले से वोटर लिस्ट में हैं और जिन्होंने कई बार मतदान भी किया है, अब उनसे फिर से अपनी पात्रता साबित करने को कहा जा रहा है.”

इसके अलावा, गैर-सरकारी संगठन एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) और पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज (PUCL) ने भी इसी तरह की याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में दायर की हैं. राष्ट्रीय जनता दल (RJD) के सांसद मनोज झा ने भी इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की है.

ADR की याचिका, जिसे वकील प्रशांत भूषण के ज़रिए दाखिल किया गया है, उसमें कहा गया है कि इस प्रक्रिया में तय नियमों का पालन नहीं हुआ है और अत्यंत कम समय दिया गया है, जिससे लाखों असली वोटर वोटर लिस्ट से बाहर हो सकते हैं और उनका मतदान का अधिकार छिन सकता है.

याचिका में कहा गया है— “ECI ने बिहार में SIR के लिए बहुत ही अव्यावहारिक और गैरजरूरी जल्दबाज़ी वाला टाइमलाइन तय किया है, जबकि वहां नवंबर 2025 में विधानसभा चुनाव होने हैं. लाखों लोग ऐसे हैं जिनके पास SIR आदेश में मांगे गए दस्तावेज़ नहीं हैं. कई लोग ऐसे भी हैं जो दस्तावेज़ जुटा सकते हैं, मगर इतनी कम समय-सीमा में ऐसा कर पाना मुश्किल है.”

महुआ मोइत्रा की याचिका

महुआ मोइत्रा ने अपनी याचिका में तर्क दिया है कि चुनाव आयोग (ECI) का यह कदम जनप्रतिनिधित्व कानून, 1950 और संविधान के अनुच्छेद 325 व 326 का उल्लंघन है. इन दोनों अनुच्छेदों में साफ कहा गया है कि धर्म, जाति, नस्ल या लिंग के आधार पर किसी भी व्यक्ति को वोटर लिस्ट से बाहर नहीं किया जा सकता और सभी वयस्क नागरिकों को मतदान का अधिकार है.

एडवोकेट नेहा राठी के जरिए दायर याचिका में महुआ मोइत्रा ने यह भी दावा किया है कि उनके पास जानकारी है कि यह SIR (स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन) प्रक्रिया पश्चिम बंगाल में भी अगस्त 2025 से लागू करने की तैयारी है और इसके निर्देश भी जारी कर दिए गए हैं.

महुआ मोइत्रा की याचिका में कहा गया है कि वोटर लिस्ट का ऐसा पुनरीक्षण सीधा लोकतांत्रिक अधिकारों पर हमला है. उनका आरोप है कि चुनाव आयोग सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (BJP) के इशारे पर काम कर रहा है और इस प्रक्रिया के जरिए लाखों वोटरों—खासतौर पर प्रवासी और आर्थिक रूप से कमजोर लोगों—को वोटिंग के अधिकार से वंचित करने की कोशिश हो रही है.

महुआ मोइत्रा ने कहा कि अगर यह आदेश रद्द नहीं किया गया तो इसका असर पूरे देश में पड़ेगा और बड़ी संख्या में वैध वोटर वोटिंग से बाहर हो जाएंगे. इससे न केवल देश में लोकतंत्र कमजोर होगा, बल्कि स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव भी खतरे में पड़ जाएंगे. उन्होंने यह भी मांग की है कि सुप्रीम कोर्ट चुनाव आयोग को किसी भी अन्य राज्य में इस तरह के आदेश जारी करने से भी रोके.

योगेंद्र यादव की याचिका

योगेंद्र यादव ने अपनी जनहित याचिका (PIL) के जरिए बिहार में ECI के स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. उनका कहना है कि यह प्रक्रिया जनप्रतिनिधित्व कानून (RP Act), 1950 की धारा 22 और वोटर पंजीकरण नियम, 1960 के नियम 21-ए का उल्लंघन है. इन दोनों कानूनों के मुताबिक, किसी भी मतदाता का नाम हटाने से पहले एक तय प्रक्रिया और सुरक्षा उपायों का पालन ज़रूरी है.

RP Act, 1950 की धारा 22 यह साफ करती है कि वोटर लिस्ट में सुधार, नाम स्थानांतरित (transpose) करने या नाम हटाने की प्रक्रिया क्या होगी. इस धारा के तहत, इलेक्टोरल रजिस्ट्रेशन ऑफिसर (ERO) किसी व्यक्ति की याचिका पर या खुद पहल कर जांच के बाद ही वोटर लिस्ट में बदलाव कर सकता है. हालांकि, यह बदलाव तभी किया जा सकता है जब— वोटर लिस्ट में कोई गलती हो, व्यक्ति ने उसी क्षेत्र में अपना निवास बदला हो, या व्यक्ति की मृत्यु हो चुकी हो.

दूसरी तरफ, नियम 21-ए का संबंध उन नामों से है जो गलती से या किसी अनजाने कारण से वोटर लिस्ट से छूट गए हों. इस नियम में बताया गया है कि ऐसे नामों को वोटर लिस्ट में दोबारा कैसे जोड़ा जा सकता है.

ECI का आदेश क्या है?

चुनाव आयोग (ECI) ने 26 जून को आदेश जारी कर बिहार में स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) कराने का निर्देश दिया था. इस आदेश के तहत, वोटर लिस्ट में नाम जोड़ने या बनाए रखने के लिए नागरिकता से जुड़े दस्तावेज़ दिखाना ज़रूरी है—जैसे माता-पिता में से किसी एक या दोनों के नागरिकता प्रमाण पत्र.

अगर कोई वोटर ये दस्तावेज़ नहीं दिखा सका, तो उसका नाम वोटर लिस्ट से हटने का खतरा है. महुआ मोइत्रा ने कहा कि यह आदेश अनुच्छेद 326 का उल्लंघन है, जो सभी नागरिकों को सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार (Universal Adult Franchise) का हक देता है. उन्होंने तर्क दिया कि ECI का यह आदेश ऐसे अतिरिक्त दस्तावेज़ मांग रहा है, जिनकी जरूरत जनप्रतिनिधित्व कानून, 1950 में नहीं है.

याचिका में यह भी कहा गया कि ECI के आदेश ने आधार कार्ड और राशन कार्ड जैसे आम पहचान पत्रों को मान्य दस्तावेज़ों की सूची से बाहर कर दिया है, जो वोटरों पर “बेहद भारी बोझ” डालता है. इससे लाखों लोग वोटर लिस्ट से बाहर हो सकते हैं.

याचिका में बिहार से मिले ताज़ा फील्ड रिपोर्ट्स का हवाला देते हुए कहा गया है कि राज्य के ग्रामीण और वंचित इलाकों में लाखों लोग इन सख्त और गैर-जरूरी नियमों के कारण वोटिंग अधिकार गंवाने के कगार पर हैं.

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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