कुरहानी, मुजफ्फरपुर: प्रख्यात अर्थशास्त्री और यूपीए सरकार के दौरान राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) के सदस्य रहे ज्यां द्रेज पिछले 10 दिनों से बिहार के रतनौली में संजय साहनी के लिए प्रचार कर रहे हैं. साहनी एक इलेक्ट्रीशियन हैं और मुजफ्फरपुर जिले से विधानसभा चुनाव लड़ रहे हैं.
द्रेज के अलावा छात्रों और स्वयंसेवियों की एक टीम भी साहनी के लिए प्रचार अभियान चला रही है, जो मनरेगा एक्टिविस्ट भी हैं.
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इलेक्ट्रीशियन से लेकर मनरेगा एक्टिविस्ट तक
पेशे से इलेक्ट्रीशियन साहनी ने 10 सालों तक दिल्ली में काम किया और जनकपुरी इलाके में फुटपाथ पर बिजली के उपकरण आदि ठीक करने का काम करते थे.
2011 में एक बार बिहार में अपने गांव पहुंचने पर साहनी को स्थानीय ग्रामीणों से मनरेगा के बारे में पता चला, जिन्होंने उन्हें सरकार की ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना में कथित अनियमितताओं के बारे में बताया था.
दिल्ली लौटने पर साहनी राष्ट्रीय राजधानी में एक साइबर कैफे पर पहुंचे और अपने गांव रतनौली और ‘बिहार मनरेगा’ के बारे में ब्योरा निकाला.
साहनी ने बताया, ‘मैंने सुना था कि यदि आप गूगल पर कुछ भी लिखते हैं, तो आपको उत्तर मिलेंगे. गांव की यात्रा के दौरान लोगों ने मुझे मनरेगा में कथित भ्रष्टाचार के बारे में बताया था. इसलिए मैंने इंटरनेट पर इसके बारे में और जानने की कोशिश की.
साहनी ने बताया कि वह जल्द ही अपने गांव लौट आए और मनरेगा कार्यकर्ता बन गए, जिसने योजना में भुगतान और नामांकन में कथित अनियमितताओं का मुद्दा उठाया.
हालांकि, एक बिजली मिस्त्री से एक्टिविस्ट बनना आसान नहीं था. साहनी ने बताया कि कई ‘दबंग लोगों’ ने उनके खिलाफ साजिश रची और उन्हें मनरेगा में भ्रष्टाचार उजागर करने के लिए जेल तक भेजा गया.
साहनी ने बताया, ‘कई अन्य लोगों की तरह मैं भी दिल्ली में एक प्रवासी कामगार था. मैंने केवल कक्षा 7 तक ही पढ़ाई की है. जब मैं मनरेगा के बारे में जानने के बाद अपने गांव लौटा तो योजना के तहत काम पाने में लोगों की सहायता करना शुरू किया. शुरुआत में 200 लोगों को नौकरी मिली. अब हम 400 गांवों में काम कर रहे हैं ताकि लोगों को मनरेगा के तहत रोजगार मिल सके.
उन्होंने कहा, ‘लॉकडाउन के दौरान मैंने 36,000 प्रवासी कामगारों से संपर्क किया, जो दिल्ली और पंजाब में फंसे हुए थे और उनकी मदद सुनिश्चित की. वे अब भी मेरे संपर्क में हैं. पिछले आठ वर्षों में मैंने 1,15,000 महिला मजदूरों को मनरेगा के तहत रोजगार दिलाने में मदद की है, जिनमें से 36,000 मेरे गांव की हैं.’
साहनी ने कहा कि उन्होंने मनरेगा में अनियमितताओं के खिलाफ अपनी आवाज उठाने का फैसला तब किया जब स्थानीय लोगों ने उनसे कहा कि कभी उनके गांव का कोई व्यक्ति राजनीतिक दलों के उम्मीदवारों को चुनौती क्यों नहीं देता जो कभी जरूरत के समय उनकी मदद करने नहीं आते हैं.’
2013 में साहनी ने मुजफ्फरपुर के कुर्बानी ब्लॉक में अपने संगठन समाज परिवर्तन शक्ति संगठन की स्थापना की. संगठन मनरेगा श्रमिकों को रोजगार सुनिश्चित कराने की दिशा में काम करता है.
हालांकि, उनके अभियान का नेतृत्व ज्यादातर महिला मजदूरों द्वारा किया जाता है, जो इन वर्षों के दौरान उनके साथ जुड़ी हैं, कई छात्र स्वयंसेवी भी उनकी सहायता के लिए आते हैं.
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‘साहनी ने लोगों की चेतना जागृत की’
मनरेगा के आर्किटेक्ट और आरटीआई अधिनियम के प्रमुख योगदानकर्ताओं में से एक अर्थशास्त्री और एक्टिविस्ट ज्यां द्रेज पिछले 10 दिनों से साहनी के लिए पूरी सक्रियता से प्रचार कर रहे हैं.
द्रेज को रतनौली गांव में साहनी के चुनाव कार्यालय में डाटा का विश्लेषण करते और मेहमानों का स्वागत करते देखा जा सकता है. अर्थशास्त्री-सामाजिक कार्यकर्ता साहनी के साथ उनकी चुनावी रैलियों में भी शामिल होते हैं.
यह पूछे जाने पर कि वह चुनाव प्रचार के लिए बिहार क्यों आए, द्रेज ने कहा कि उन्होंने मनरेगा पर साहनी के साथ काम किया था और जब उन्होंने सुना कि वह चुनाव लड़ रहे हैं तो उनकी मदद के लिए यहां आने का फैसला किया.
द्रेज ने कहा, ‘वह (साहनी) न केवल मनरेगा कार्यकर्ता है बल्कि वह भ्रष्टाचार, स्वास्थ्य, महिलाओं आदि के मुद्दे उठा रहे हैं. उसके पास पैसा नहीं है लेकिन लोग उसकी सहायता करने के लिए आगे आ रहे हैं. यह लोकतंत्र की जीत है. वह चाहे जीतें या हारें, उन्होंने लोगों की चेतना को जगाया है, यह एक बड़ी जीत है. यही कारण है कि मैं उनकी सहायता के लिए यहां आया हूं.’
छात्र स्वयंसेवक
साहनी के लिए प्रचार करने वालों में द्रेज अकेले नहीं हैं. अन्य शहरों और विश्वविद्यालयों के कई स्वयंसेवी भी वहां पहुंचे हुए हैं.
द्रेज की सहायक के तौर पर न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय की एक छात्रा अंकिता अग्रवाल भी दिल्ली से यहां आई है.
अंकिता ने कहा, ‘यह जनांदोलन है, वे साहनी के अभियान का नेतृत्व कर रहे हैं. हम भी इसमें कुछ योगदान दे रहे हैं. मैं एक आंदोलन का हिस्सा बनना चाहती थी, जिसका नेतृत्व महिलाएं करती हैं, इसलिए मैंने अपना सामान बांधा और बदलाव का हिस्सा बनने के लिए यहां पहुंच गई.’
लंदन से डेवलपमेंटल पॉलिटिक्स में स्नातक और रांची में विकास के क्षेत्र में काम कर रहे एक अन्य वालंटियर चिराग ने कहा, ‘वह (साहनी) कहते हैं कि जब आप समाज में बदलाव लाना चाहते हैं, तो पहले आपको खुद बदलना होगा. मैं झारखंड में काम कर रहा हूं और साहनीजी बिहार में काम कर रहे हैं. हम उनके काम से वाकिफ हैं इसलिए हमने सोचा कि अपनी जगह से ही बदलाव लाने की दिशा में काम शुरू करें.’
दिल्ली में सेंटर फॉर सोशल साइंसेज एंड ह्यूमेनिटीज में काम करने वाली शैलजा टंडन ने कहा, ‘मैं उस परिवर्तन का हिस्सा बनना चाहती हूं जो बिहार के इस गांव में हो रहा है. यह राजनीतिक ढांचे के खिलाफ एक जंग है. इसलिए मैं आंदोलन का एक छोटा-सा हिस्सा बनने के लिए यहां आई.’
द्रेज हर दिन चिराग, अंकिता और शैलजा जैसे छात्रों और स्वयंसेवियों के साथ साहनी और कई महिला मजदूरों को लेकर विभिन्न गांवों की यात्रा करते हैं.
साहनी के लिए जनसंपर्क अभियान चला रही 60 वर्षीय कुंती देवी ने कहा, ‘उन्होंने (साहनी) मनरेगा के तहत नौकरी पाने में हमारी मदद की है. यह उसका अहसान चुकाने का समय है. हम लोग के पास और कुछ नहीं है, लेकिन हम साथ तो दे सकते हैं.’
हालांकि, साहनी की लड़ाई आसान नहीं है क्योंकि जाति फैक्टर उनके पक्ष में काम नहीं कर सकता. मुजफ्फरपुर जिले के कुरहानी विधानसभा क्षेत्र, जहां 7 नवंबर को चुनाव होने हैं, में भाजपा के मौजूदा विधायक केदार गुप्ता और राजद उम्मीदवार अनिल साहनी को मुस्लिम मतदाताओं का समर्थन हासिल है. वहीं, राज्य में भाजपा का समर्थन करने वाले दो अन्य उम्मीदवारों को मल्लाह समुदाय के वोट मिलने की संभावना है.
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