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Wednesday, 25 December, 2024
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HC के अकोला पश्चिम उपचुनाव रद्द करने के आदेश से, हरियाणा के CM सैनी का विधानसभा चुनाव अधर में लटका

हरियाणा के बीजेपी नेताओं का कहना है कि बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश ने करनाल उपचुनाव पर ‘आक्षेप लगाया’ है, जिससे यह सुनिश्चित हो जाएगा कि नायब सिंह सैनी इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव तक सीएम बने रहेंगे.

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नई दिल्ली: महाराष्ट्र के विदर्भ में अकोला पश्चिम विधानसभा सीट के लिए उपचुनाव कराने के लिए निर्वाचन आयोग की अधिसूचना को रद्द करने वाले बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा पारित एक आदेश का हवाला देते हुए कांग्रेस के एक विधायक ने मांग की है कि निर्वाचन आयोग करनाल के लिए भी इसे रद्द कर दे, जिस विधानसभा सीट पर 25 मई को उपचुनाव होना है.

ईसीआई को लिखे पत्र में फरीदाबाद एनआईटी से कांग्रेस विधायक नीरज शर्मा ने कहा है कि इस समय करनाल के लिए उपचुनाव कराना “सार्वजनिक धन की बर्बादी” होगी क्योंकि जो भी सीट से चुना जाएगा वे केवल चार महीने की अवधि के लिए विधानसभा का सदस्य बना रहेगा.

हालांकि, करनाल विधानसभा उपचुनाव की अधिसूचना रद्द होने का असर बड़ा हो सकता है क्योंकि हरियाणा में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को करनाल उपचुनाव के लिए अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है.

अगर कोई व्यक्ति विधानसभा का सदस्य नहीं है तो उसे नियुक्ति के छह महीने के भीतर सदन के लिए निर्वाचित होना ज़रूरी है. सैनी को 12 मार्च को मनोहर लाल खट्टर के स्थान पर मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया था, जिनके इस्तीफे के कारण करनाल सीट पर उपचुनाव ज़रूरी हो गया था.

हरियाणा विधानसभा का कार्यकाल 3 नवंबर 2024 को समाप्त होने वाला है.

करनाल के अलावा, कम से कम चार संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों, पुणे, अंबाला, गाज़ीपुर और चंद्रपुर के लिए उपचुनाव नहीं हुए, इस तथ्य के बावजूद कि ये सीटें एक साल से अधिक समय पहले खाली हो गई थीं. ईसीआई ने इस साल जनवरी में बॉम्बे हाई कोर्ट के उस आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया, जिसमें पुणे लोकसभा सीट पर उपचुनाव कराने का निर्देश दिया गया था.

चुनाव पैनल ने तर्क दिया कि निर्वाचित व्यक्ति एक वर्ष से अधिक समय तक निचले सदन का सदस्य नहीं रहेगा. इसमें आम चुनाव की तैयारियों के कारण उपचुनाव कराने में “कठिनाई” का भी हवाला दिया गया.

संविधान विशेषज्ञ और लोकसभा के पूर्व महासचिव पी.डी.टी. आचार्य ने दिप्रिंट को बताया कि “दो राज्यों के लिए दो कानून नहीं हो सकते.”

उन्होंने कहा, “बॉम्बे हाई कोर्ट जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की अपनी व्याख्या में सही है. इसका मतलब है कि करनाल उपचुनाव नहीं हो सकता क्योंकि विधानसभा का शेष कार्यकाल एक वर्ष से कम है.”


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अकोला उपचुनाव पर बॉम्बे HC का आदेश

बॉम्बे हाई कोर्ट की नागपुर पीठ ने 26 मार्च को अकोला पश्चिम उपचुनाव के लिए जारी अधिसूचना को इस आधार पर रद्द कर दिया कि यह जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 का उल्लंघन होगा, क्योंकि निर्वाचित विधायक को एक साल से भी कम समय का कार्यकाल मिलेगा.

ईसीआई ने बुधवार को कहा कि उसने हाई कोर्ट के आदेश के अनुपालन में अकोला पश्चिम उपचुनाव के लिए “अधिसूचना को रोकने” का फैसला किया है.

अपने आदेश में न्यायमूर्ति अनिल किलोर और बॉम्बे हाई कोर्ट के एम.एस. जावलकर ने पाया कि इस समय अकोला पश्चिम सीट के लिए उपचुनाव जन प्रतिनिधित्व अधिनियम की धारा 151 (ए) के “विपरीत” है. इस प्रावधान के अनुसार, ईसीआई को सीट खाली होने के छह महीने के भीतर एक खाली संसदीय या विधानसभा सीट को भरने के लिए उपचुनाव कराना होता है, बशर्ते कि निर्वाचित सदस्य का शेष कार्यकाल एक वर्ष से अधिक हो.

पीठ ने कहा कि उसके सामने सवाल यह है कि क्या एक साल की अवधि रिक्ति की घटना की तारीख से संबंधित है या उस अवधि से संबंधित है जिसके दौरान कोई व्यक्ति निर्वाचित होने से पहले पद धारण कर सकता है.

यह आदेश अनिल शिवकुमार दुबे की याचिका पर जारी किया गया था और यह 2019 में सावनेर निर्वाचन क्षेत्र मामले में धारा 151 (ए) की व्याख्या पर निर्भर था.

बॉम्बे हाई कोर्ट की एक पीठ ने तब फैसला सुनाया था कि “किसी सदस्य के शेष कार्यकाल का मतलब है कि आने वाले सदस्य को पांच साल के कुल कार्यकाल में से उप-चुनाव के परिणाम की घोषणा की तारीख से शेष कार्यकाल मिलेगा.”

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकील संदीप गोयल ने कहा है कि वे इन आधारों पर करनाल विधानसभा उपचुनाव के लिए चुनाव आयोग की अधिसूचना को चुनौती देंगे.

HC का आदेश करनाल उपचुनाव पर ‘आक्षेप’

हरियाणा के मामले में पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने 13 मार्च को करनाल से विधायक पद से इस्तीफा दे दिया था. तीन दिन बाद, ईसीआई ने घोषणा की कि उसने 25 मई को करनाल सीट के लिए उपचुनाव की अधिसूचना जारी कर दी है.

मार्च 2021 में तत्कालीन मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत की जगह तीरथ सिंह रावत, जो उस समय विधायक नहीं थे, को मुख्यमंत्री बनाने के बाद भाजपा ने खुद को उत्तराखंड में इसी तरह की मुश्किल में पाया. परिणामस्वरूप, उन्हें अपनी नियुक्ति के चार महीने के भीतर पद छोड़ना पड़ा और पार्टी को उनकी जगह अपने तत्कालीन खटीमा विधायक पुष्कर सिंह धामी को नियुक्त करना पड़ा.

हरियाणा बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “उत्तराखंड के मामले में पार्टी नेतृत्व ने राज्य की राजनीतिक स्थिति को जानते हुए विधानसभा चुनाव से पहले उपचुनाव कराकर जोखिम नहीं लिया, जहां खंडूरी से लेकर हरीश रावत तक कई मौजूदा मुख्यमंत्री चुनाव हार गए थे, लेकिन हरियाणा अलग है क्योंकि वहां कोई राजनीतिक अनिश्चितता नहीं है जिससे पार्टी को यह विश्वास हो कि मौजूदा मुख्यमंत्री उपचुनाव हार जाएंगे.”

हालांकि, नेता ने दिप्रिंट को बताया कि हाल ही में बॉम्बे हाई कोर्ट के आदेश ने “करनाल उपचुनाव पर संदेह पैदा कर दिया है” और राज्य इकाई इस पर दिल्ली में आलाकमान से “परामर्श” कर रही है.

भिवानी-महेंद्रगढ़ से भाजपा सांसद धर्मबीर सिंह ने कहा कि पार्टी फिलहाल करनाल में जीत सुनिश्चित करने पर ध्यान केंद्रित कर रही है, जहां से पूर्व मुख्यमंत्री खट्टर लोकसभा चुनाव लड़ रहे हैं और उनके उत्तराधिकारी नायब सिंह सैनी विधानसभा में निर्वाचित होने की कोशिश कर रहे हैं.

इस बीच, कानूनी मामलों पर पार्टी को सलाह देने वाले एक केंद्रीय भाजपा पदाधिकारी ने दिप्रिंट को बताया, “पार्टी इन छोटे तथ्यों से कैसे चूक गई? यह या तो भूल है या अहंकार. मुझे नहीं पता लेकिन उपचुनाव तभी हो सकता है जब कोई इसे अदालत में चुनौती न दे या अदालतें इसे एक विशेष मामले के रूप में मानें, लेकिन कानून सभी राज्यों के लिए एक जैसा है. अगर कोई समान फैसला होता है, तो अदालतें चुनाव आयोग के अनुरोध पर तभी विचार करेंगी जब वे इसे एक विशेष मामला मानेंगे.”

हरियाणा भाजपा के एक अन्य वरिष्ठ नेता ने इस बात पर जोर दिया कि करनाल उपचुनाव की अधिसूचना को अभी तक “अदालतों में चुनौती नहीं दी” गई है.

नेता ने कहा, “अगर अदालत उपचुनाव की अधिसूचना को रद्द कर देती है, तो पार्टी के पास केवल दो विकल्प बचे होंगे: या तो मुख्यमंत्री को बदलना या हरियाणा में जल्दी चुनाव कराना क्योंकि एक ऐसे व्यक्ति को मुख्यमंत्री नियुक्त किया गया है जो इसका सदस्य नहीं है. अगर इस अवधि के दौरान विधानसभा के लिए निर्वाचित नहीं हुआ तो नियुक्ति की तारीख से केवल छह महीने तक विधानसभा पद पर रह सकती है.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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