मुंबई: 1999 के बाद पहली बार महाराष्ट्र में अपनी पार्टी का मुख्यमंत्री होने के बावजूद शिवसेना की चंदे से होने वाली आय पिछले वर्ष की तुलना में 2019-20 में 20 प्रतिशत घट गई है.
इस महीने चुनाव आयोग को भेजी गई पार्टी की वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, शिवसेना को 2019-20 में व्यक्तिगत और कॉरपोरेट चंदे और चुनावी बांड के जरिये 105.64 करोड़ रुपये मिले.
ऑडिट रिपोर्ट का ब्योरा दर्शाता है कि इनमें से 36.12 करोड़ रुपये कॉरपोरेट चंदे, 40.98 करोड़ रुपये चुनावी बांड और 16.83 करोड़ रुपये निजी दानदाताओं के माध्यम से आए और 11.70 करोड़ रुपये संस्थानों और कल्याण निकायों से मिले.
अगर पूर्व में मिले चंदे से तुलना करे तो शिवसेना ने वर्ष 2018-19 में 130.96 करोड़ रुपये हासिल किए थे, जब वह भारतीय जनता पार्टी के नेतृत्व वाली सरकार का हिस्सा थी. इसमें से सबसे बड़ा हिस्सा यानी 60.40 करोड़ रुपये चुनावी बांड के जरिये आया था. इसके अलावा निजी दानदाताओं से 23.39 करोड़ रुपये और संस्थानों और कल्याण निकायों से 25.44 करोड़ रुपये मिले थे, जबकि 17.72 करोड़ रुपये का कॉरपोरेट चंदा मिला थाय
चंदे में यह गिरावट तब दर्ज की गई है जबकि 2019-20 चुनावी साल था, जब राजनीतिक दलों का चंदा आमतौर पर बढ़ता है.
शिवसेना नेता संजय राउत के मुताबिक, पार्टी सिर्फ इसलिए चंदे की उम्मीद नहीं करती क्योंकि वह सत्ता में है.
राज्यसभा सांसद ने दिप्रिंट को बताया, ‘हमने चंदा हासिल करने के लिए कभी अपनी शक्ति के दुरुपयोग की कोशिश नहीं की. इसलिए, हम यह उम्मीद नहीं करते हैं कि लोग हमें सिर्फ इसलिए पैसा देंगे क्योंकि शिवसेना सत्ता में है और मौजूदा मुख्यमंत्री शिवसेना से हैं. लेकिन, अंतत: हर पार्टी को चुनाव लड़ने के लिए धन की जरूरत होती है, इसलिए यदि कोई स्वेच्छा से और आधिकारिक तौर पर हमें चंदा दे रहा है तो हम इसे स्वीकार करते हैं.’
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‘शिवसेना की दौलत लोगों का समर्थन है’
इस बीच, भाजपा की तरफ से चुनाव आयोग के समक्ष दायर चंदे संबंधी रिपोर्ट के मुताबिक पार्टी को 2019-20 में 785.77 करोड़ रुपये का चंदा मिला, जो 2018-19 में उसे मिली 741.98 करोड़ रुपये की राशि से कुछ ज्यादा है.
भाजपा द्वारा चुनाव आयोग के समक्ष अपने चंदे की घोषणा किए जाने के बाद शिवसेना ने अपनी पूर्व सहयोगी को फटकार लगाई और कहा कि यह सिर्फ आधिकारिक आंकड़ा है और इसमें वह दान शामिल नहीं है जो पार्टी को ‘टेबल के नीचे’ से मिला, जिसका अर्थ है कि वास्तविक आंकड़ा बहुत अधिक हो सकता है.
शिवसेना ने सोमवार को पार्टी के मुखपत्र सामना के संपादकीय में लिखा, ‘महाराष्ट्र की शिवसेना अमीरों की सूची में नहीं है और उसे बड़ा चंदा नहीं मिला है. फिर भी शिवसेना पिछले 50 सालों से सिर्फ लोगों के समर्थन की दौलत के बदौतल अपनी लड़ाई जारी रखे है.’
सोमवार को पार्टी के मुखपत्र सामना के संपादकीय में, शिवसेना ने कहा: ‘महाराष्ट्र की शिवसेना अमीरों की सूची में नहीं है और उसे कोई बड़ा दान नहीं मिला है. फिर भी शिवसेना पिछले 50 सालों से सिर्फ लोगों के समर्थन के लिए लड़ रही है.’
महाराष्ट्र बीजेपी के मुख्य प्रवक्ता केशव उपाध्याय ने दिप्रिंट को बताया, ‘सवाल भरोसे का है. जो लोग किसी पार्टी को चंदा देने का फैसला करते हैं, वे पहले उसकी साख को देखते हैं. जिस तरह से शिवसेना ने 2019-20 में अपनी संबद्धता और वैचारिक गठजोड़ में बदलाव किया, उससे उसकी विश्वसनीयता को धक्का लगा होगा.’
2019-20 में शिवसेना का राजनीतिक मंथन
2018-19 में भाजपा के साथ गठबंधन में दरार पड़ने के बावजूद पार्टी ने अपने मतभेदों को दरकिनार करने और हिन्दुत्व की साझा विचारधारा के आधार पर 2019 का लोकसभा चुनाव साथ मिलकर लड़ने का फैसला किया.
हालांकि, वित्तीय वर्ष 2019-20 तमाम राजनीतिक उतार-चढ़ावों से भरा रहा. शिवसेना ने पहले तो 2019 का लोकसभा चुनाव भाजपा संग मिलकर लड़ा, जिसके साथ वह महाराष्ट्र की सत्ता में काबिज थी. लेकिन अगले कुछ ही महीनों में संकेत दे दिया कि यदि भाजपा ने 2019 के विधानसभा चुनाव में जीतने पर मुख्यमंत्री पद शिवसेना को देने का अपना वादा पूरा नहीं किया तो गठबंधन टूट सकता है.
विधानसभा चुनाव के बाद शिवसेना नवंबर 2019 में गठबंधन से बाहर हो गई, जब भाजपा 244 में से 105 सीटों पर जीत, जो आधे से कुछ कम थी, के बाद मुख्यमंत्री पद साझा करने को तैयार नहीं हुई.
शिवसेना ने तब अपने राजनीतिक और वैचारिक प्रतिद्वंद्वियों कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के साथ मिलकर महा विकास अघाड़ी (एमवीए) का गठन किया और पार्टी अध्यक्ष उद्धव ठाकरे ने 2019-20 के वित्तीय वर्ष की आखिरी तिमाही में मुख्यमंत्री के तौर पर कार्यभार संभाल लिया.
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सत्ता में होने से शिवसेना को भाजपा के एक दानदाता का साथ मिला
यद्यपि चंदे के माध्यम से इसकी कुल आय में गिरावट आई है, लेकिन सत्ता में होने और अपना खुद का मुख्यमंत्री होने के कारण शिवसेना को एक असामान्य दानदाता—लोढ़ा डेवलपर्स—का साथ मिला है जो एक भाजपा विधायक के स्वामित्व वाली फर्म है.
लोढ़ा डेवलपर्स, जिसका नाम अब बदलकर मैक्रोटेक डेवलपर्स कर दिया गया है, ने दो चेक के जरिये 2019-20 में शिवसेना को 5 करोड़ रुपये का चंदा दिया है. फर्म का स्वामित्व भाजपा विधायक मंगल प्रभात लोढ़ा के पास है, जो पार्टी की मुंबई इकाई के अध्यक्ष भी हैं. भाजपा विधायक के बेटे अभिषेक लोढ़ा कंपनी के प्रबंध निदेशक हैं.
हालांकि, विधायक लोढ़ा ने दिप्रिंट को बताया, ‘मैं इस पर कोई टिप्पणी नहीं करना चाहता. मैं कारोबार में शामिल नहीं हूं.’
मुंबई स्थित रियल एस्टेट कंपनी ने शिवसेना को तब भी चंदा नहीं दिया था, जबकि वह भाजपा के साथ सत्ता में थी.
लोढ़ा ने आखिरी बार 2014-15 में शिवसेना को चंदा दिया था. उस समय शिवसेना और भाजपा ने साथ लोकसभा चुनाव लड़ा था, विधानसभा चुनाव से पहले दोनों ने अलग-अलग चुनाव लड़ने का फैसला किया था और चुनाव बाद राज्य में सरकार गठन के लिए फिर एक साथ आ गए थे.
लोढ़ा समूह ने अपनी सहायक कंपनियों लोढ़ा ड्वेलर्स और लोढ़ा बिल्डमार्ट के माध्यम से शिवसेना को 5 करोड़ रुपये का चंदा दिया है.
राउत के मुताबिक, ‘मंगल प्रभात लोढ़ा एक बिजनेसमैन हैं और उनकी कंपनी ने आधिकारिक तौर पर हमारी पार्टी को चंदा दिया है. यह टेबल के नीचे से नहीं दिया गया है. उन्होंने दूसरी पार्टियों को भी चंदा दिया है. इसमें आश्चर्य की कोई बात नहीं है.’
लोढ़ा समूह ने 2019-20 में एनसीपी को भी 5 करोड़ रुपये का चंदा दिया जब पार्टी एमवीए के हिस्से के रूप में शिवसेना के साथ सत्ता में आई थी.
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