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Wednesday, 5 November, 2025
होमराजनीतिदीघा में दिव्या गौतम का सादा चुनाव अभियान — काम, रोज़गार और बदलाव की बात, ‘सुशांत राजपूत’ से दूरी

दीघा में दिव्या गौतम का सादा चुनाव अभियान — काम, रोज़गार और बदलाव की बात, ‘सुशांत राजपूत’ से दूरी

दीघा से पहली बार चुनाव लड़ रहीं सीपीआई (एमएल) की उम्मीदवार दिव्या गौतम को भरोसा है कि वह रोज़गार के वादे के साथ ‘बदलाव’ ला सकती हैं — यही उनके कैंपेन का मुख्य फोकस है.

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दीघा, बिहार: न एसयूवी का काफिला, न तेज़ गाने, न कोई बड़ा हंगामा. यह एक आम बिहार के चुनाव जैसा नहीं लगता.

इसके बजाय, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी–लेनिनवादी) लिबरेशन की उम्मीदवार दिव्या गौतम पटना ज़िले की दीघा विधानसभा में घर-घर जाकर लोगों से मिल रही हैं और शांत तरीके से अपनी बात रख रही हैं.

बिहार की सबसे बड़ी विधानसभा सीट दीघा में, जहां 6 नवंबर को वोटिंग है, 34 साल की गौतम दिप्रिंट से बात करते हुए कहती हैं कि उन्हें यकीन है कि वे ‘बदलाव’ ला सकती हैं.

पत्रकारिता व जनसंचार और महिला अध्ययन में एमए करने वाली गौतम एक एकेडमिक और थिएटर आर्टिस्ट हैं. उनका कहना है कि बिहार के युवाओं के लिए बेरोज़गारी अभी भी सबसे बड़ी चिंता है और इसी मुद्दे को वह अपने कैंपेन का मुख्य केंद्र बना रही हैं.

पहली बार चुनाव लड़ रहीं गौतम, नुक्कड़ सभा—गली-मोहल्लों की छोटी मीटिंग में महागठबंधन के घोषणापत्र में किए गए सरकारी नौकरियों के वादे को दोहराती हैं.

सीपीआई (एमएल) के घोषणापत्र की प्रतियां | फोटो: साकिबा खान/दिप्रिंट
सीपीआई (एमएल) के घोषणापत्र की प्रतियां | फोटो: साकिबा खान/दिप्रिंट

गौतम ने कहा, “नौकरी की जगह ये लोग यूथ को रील बनाने को कहते हैं. मैंने आपके बच्चों को खुद पढ़ाया है. नौकरी हमारा अधिकार है और महागठबंधन की सरकार आपको ये दे कर रहेगी.” वह सीपीआई(एमएल), आरजेडी और कांग्रेस — महागठबंधन की तीन बड़ी पार्टियों — के रंगों के दुपट्टे में नज़र आती हैं.

गौतम, जो अभी पीएचडी कर रही हैं, पटना विमेंस कॉलेज में असिस्टेंट प्रोफेसर भी रह चुकी हैं.

दीघा में गौतम जब कैंपेन करती हैं, तो महिलाएं बालकनी से झुककर उनकी बातें सुनती हैं. ‘दीघा में एक नारा, तीन तारा-तीन तारा’ का नारा छोटी-छोटी गलियों में गूंजता है.

दीघा में एक महिला वोटर से बात करती दिव्या गौतम | फोटो: साकिबा खान/दिप्रिंट
दीघा में एक महिला वोटर से बात करती दिव्या गौतम | फोटो: साकिबा खान/दिप्रिंट

एक वर्कर ने आवाज़ लगाई, “लालटेन नहीं दिख रहा. फ्लैग ठीक से लगाओ सारे”.


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‘हम चाहते हैं लोग मुझे पहचानें — मेरा विज़न, मेरा काम’

गौतम बॉलीवुड के दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की कज़िन हैं, लेकिन उनका कहना है कि उन्होंने खुद को जानबूझकर उनके नाम का राजनीतिक फायदा उठाने से बचाया है.

उन्होंने दिप्रिंट से कहा, “वह मेरे कज़िन थे और हां, मैं उनसे प्रेरणा लेती हूं. जब आपके आसपास और आपके परिवार में किसी ने वैसा काम न किया हो, तो उनके सपनों को देखना और उन्हें पूरा करना बड़ी बात थी. 2020 में, इनके लोग न्याय के नाम पर चुनाव में गए और उनकी मौत से फायदा उठाने की कोशिश की, लेकिन मैं उनकी बहन हूं और मैं ऐसा नहीं करूंगी.”

उन्होंने कहा, “कुछ लोग मुझे उनका कज़िन कहकर बुलाते हैं, लेकिन वह सिर्फ मोहब्बत में होता है और मैं उसे समझती हूं.”

गौतम का कहना है कि मीडिया ने उन्हें सिर्फ राजपूत की कज़िन के रूप में दिखाया है, लेकिन वह चाहती हैं कि लोग उन्हें उनके काम से पहचानें.

उन्होंने कहा, “मैं कहूंगी कि मेरा काम, मेरी राजनीतिक जिंदगी, मेरा छात्र आंदोलन, और अब तक की मेरी ज़िंदगी लोगों के लिए इसलिए ज़रूरी है क्योंकि वे अपने प्रतिनिधि चुन रहे हैं — किसी रिश्तेदारी की वजह से नहीं. हम नहीं चाहते कि लोग मुझे सिर्फ इसी वजह से यहां लाएं (सुशांत सिंह राजपूत की कज़िन होने की वजह से).”

उन्होंने आगे कहा, “हम चाहते हैं लोग मुझे, मेरा विज़न, मेरा काम और मेरा बैकग्राउंड जानें. बेशक, वह मेरे भाई हैं. अगर लोग मुझे प्यार करते हैं, तो यह अच्छी बात है.”

गौतम ने मीडिया के एक हिस्से और बीजेपी पर आरोप लगाया कि उन्होंने राजपूत की मौत को लेकर “जनता के सामने मुकदमा जैसा माहौल बनाया” और “इसे चुनावी फायदा उठाने के लिए इस्तेमाल किया.”

सीपीआई (एमएल) उम्मीदवार ने कहा कि बीजेपी ने इस मुद्दे का पूरा इस्तेमाल किया और बाद में इसे छोड़ दिया.

गौतम ने कहा, “यह गलत है. किसी भी राजनीतिक पार्टी को ऐसा नहीं करना चाहिए था. अब केस बंद हो चुका है. उन्होंने एक ऐसे इंसान के साथ अन्याय किया जो अब इस दुनिया में नहीं है. उन्होंने आपको यह हक़ नहीं दिया कि आप इस दुनिया में सब कुछ उसके बारे में कहें.”

गौतम ने कहा, “जो आपने किया वह गलत था. जिन्होंने भी इसे इस्तेमाल किया और फिर इसे बंद कर दिया, उन्हें माफी मांगनी चाहिए. आपने सबके साथ अन्याय किया है.”

पिछले विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले 2020 में, बीजेपी ने राजपूत की मौत को चुनावी मुद्दा बना दिया था. उस समय मुंबई पुलिस की जांच पर सवाल उठे और यह बहस शुरू हुई कि महाराष्ट्र की उद्धव ठाकरे सरकार ने यह केस सीबीआई को देने से क्यों मना किया.

बाद में केंद्र ने, पटना में अभिनेता के पिता द्वारा दर्ज एफआईआर के आधार पर, नीतीश कुमार सरकार की सिफारिश के बाद यह केस सीबीआई को दे दिया था.

इस साल की शुरुआत में, सीबीआई ने दो मामलों में क्लोज़र रिपोर्ट दाखिल की — एक राजपूत की मौत से जुड़े हालात की जांच के लिए और दूसरा उनकी साथी अभिनेत्री रिया चक्रवर्ती द्वारा कथित पैसों की हेराफेरी और अवैध तौर पर बंधक बनाए जाने के आरोपों की जांच के लिए. एजेंसी को आत्महत्या के लिए उकसाने का कोई सबूत नहीं मिला.

आंदोलन का इतिहास

राजनीतिक सक्रियता गौतम के लिए कोई नई बात नहीं है. 2012 में पटना यूनिवर्सिटी छात्र संघ चुनाव में, उन्होंने सीपीआई (एमएल) के छात्र संगठन AISA की तरफ से चुनाव लड़ा था और आरएसएस के छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) को कड़ी टक्कर दी थी. वह बहुत कम अंतर से दूसरे स्थान पर रहीं.

गौतम ने 2012 में दिल्ली में 23 साल की फिजियोथैरेपी छात्रा के साथ हुए गैंगरेप और हत्या के बाद हुए निर्भया आंदोलन में भी हिस्सा लिया था.

बिहार के दिआरा इलाके से आने वाली गौतम 2000 में पटना चली गईं. उनके एक करीबी सहयोगी ने कहा, “उन्हें पढ़ने की प्रेरणा सुशांत की मां से मिली थी.”

उनके पास टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज़, हैदराबाद से जेंडर स्टडीज़ में मास्टर डिग्री है. गौतम ने बिहार लोक सेवा आयोग की परीक्षा पास की थी और सप्लाई इंस्पेक्टर के रूप में नियुक्त भी हुईं, लेकिन उन्होंने सरकारी नौकरी छोड़कर राजनीति में आने का फैसला किया.

गौतम ने कहा, “जहां उद्योग नहीं हैं, जहां सरकारी नौकरी के अलावा कोई दूसरा मौका नहीं है, वहां सरकारी नौकरी की चाह होना स्वाभाविक है. जब फैक्ट्रियां नहीं हैं, काम नहीं है, तब युवाओं का सिर्फ एक ही सपना रह जाता है — बेहतर ज़िंदगी और वह सरकारी नौकरी से मिलती है. यहां सरकारी नौकरी की बहुत इच्छा होती है, क्योंकि कोई दूसरा विकल्प नहीं है.”

सरकारी नौकरी छोड़ने की वजह पर उन्होंने कहा, “मैंने 2017 या 2018 में फॉर्म भरा था और जब रिजल्ट आया तो 2021 हो गया. 2021 में मैं पटना विमेंस कॉलेज में काम कर रही थी. मैंने महसूस किया कि जैसे ही आप ब्यूरोक्रेट बनते हैं, आपको अपने आप को सीमित करना पड़ता है. मैंने फैसला किया कि मुझे ऐसा काम करना चाहिए जिससे मैं लोगों के बीच रह सकूं.”

गौतम कहती हैं कि और ज्यादा लोगों, खासकर महिलाओं को चुनाव लड़ना चाहिए. उन्होंने कहा, “एक सोच है कि राजनीति सिर्फ बड़े लोगों की होती है, जिनके पास बहुत पैसा है, जो बिजनेसमैन हैं, बड़े माफिया, डॉन वगैरह, लेकिन जब मेरी पार्टी ने फैसला किया, तो मुझे उम्मीद हुई और हमारी पार्टी की 21 सीटों पर जो उम्मीदवार हैं, उनके जीवन को देखिए — वे बहुत साधारण पृष्ठभूमि से आते हैं.”

बिहार के दीघा में सीपीआई (एमएल) उम्मीदवार दिव्या गौतम | फोटो: साकिबा खान/दिप्रिंट
बिहार के दीघा में सीपीआई (एमएल) उम्मीदवार दिव्या गौतम | फोटो: साकिबा खान/दिप्रिंट

गौतम का मुकाबला बीजेपी उम्मीदवार और मौजूदा विधायक संजीव चौरेसिया से है, जिन्होंने 2020 में सीपीआई (एमएल) की शशि यादव को 46,000 से ज्यादा वोटों से हराया था. इस बार चुनाव त्रिकोणीय हो सकता है क्योंकि जन सुराज पार्टी ने रितेश रंजन उर्फ बित्तू सिंह को मैदान में उतारा है.

दीघा सीट पर कायस्थ समुदाय बड़ी संख्या में है. इसके अलावा राजपूत, ब्राह्मण और भूमिहार भी बड़ी जनसंख्या रखते हैं. यहां यादव जैसे ओबीसी समूह भी हैं. चौरसिया वैश्य समुदाय से आते हैं, जबकि गौतम राजपूत हैं.

चौरसिया के खिलाफ “एंटी-इंकम्बेंसी” यानी नाराजगी के अलावा, सीपीआई (एमएल) उम्मीदवार को युवाओं और महिला मतदाताओं से समर्थन मिलने की उम्मीद है.

इस क्षेत्र के लोग ज्यादा विकास चाहते हैं और लगातार नागरिक समस्याएं उठा रहे हैं, जैसे कि अतिक्रमण और पार्किंग की कमी बड़ी समस्याएं हैं.

दीघा की निवासी राशी सिंह ने कहा, “कुछ दिन पहले बारिश हुई थी और हर जगह पानी भर गया था. यह बुनियादी चीज़ है जिसे ठीक किया जाना चाहिए. हर चुनाव में नेता बड़े वादे करते हैं और फिर भूल जाते हैं.”

हालांकि, कुछ लोग यह भी कहते हैं कि वे पार्टी को वोट देते हैं, उम्मीदवार को नहीं. निवासी अभय प्रताप ने कहा, “आखिर विधायक कितना कर सकता है? जब तक पार्टी सत्ता में न हो, वे ज्यादा कुछ कर ही नहीं सकते.”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें)


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