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Sunday, 15 September, 2024
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कर्नाटक के CM को जारी नोटिस पर कांग्रेस का राज्यपाल पर पलटवार, कहा- ‘तथ्यों पर विचार नहीं किया

कथित MUDA घोटाले में एक निजी शिकायत मिलने के बाद थावर चंद गहलोत ने नोटिस जारी किया. उपमुख्यमंत्री शिवकुमार ने कहा कि राज्यपाल ने 'बेवजह जल्दबाजी' में काम किया, नोटिस वापस लेने की मांग की.

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बेंगलुरू: कांग्रेस शासित कर्नाटक गैर-राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (NDA) शासित राज्यों की बढ़ती उस सूची में शामिल हो गया है, जहां राजभवन और निर्वाचित सरकारों के बीच तीखी खींचतान चल रही है. सिद्धारमैया के नेतृत्व वाले प्रशासन ने गुरुवार को एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें राज्यपाल थावर चंद गहलोत से मुख्यमंत्री को जारी नोटिस वापस लेने को कहा गया.

सीएम की पत्नी को MUDA या मैसूर शहरी विकास प्राधिकरण द्वारा भूखंडों के आवंटन में भ्रष्टाचार के आरोपों पर राजभवन को एक निजी शिकायत मिलने के बाद गहलोत ने बुधवार को सिद्धारमैया को “कारण बताओ नोटिस” जारी किया था.

गुरुवार को उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार की अध्यक्षता में कर्नाटक मंत्रिमंडल ने कहा कि गहलोत “तथ्यों पर अपना दिमाग लगाने में विफल रहे” और “बेवजह जल्दबाजी में काम किया, जिससे सभी प्रक्रियात्मक आवश्यकताओं को दरकिनार कर दिया गया”.

कैबिनेट द्वारा लिए गए निर्णय के बयान में कहा गया, “माननीय राज्यपाल ने कारण बताओ नोटिस जारी करते समय मामले के तथ्यों पर विचार नहीं किया और रिकॉर्ड पर उपलब्ध सामग्री पर विचार नहीं किया.”

अपने पत्र में, गहलोत ने लिखा था कि सीएम के खिलाफ लगाए गए आरोप “गंभीर प्रकृति के हैं और प्रथम दृष्टया उचित प्रतीत होते हैं.”

कैबिनेट की बैठक गुरुवार सुबह सिद्धारमैया द्वारा अपने आधिकारिक निवास ‘कावेरी’ में नाश्ते की बैठक आयोजित करने के बाद हुई और उन्होंने अपने मंत्रिपरिषद द्वारा लिए गए निर्णय से दूर रहने का फैसला किया क्योंकि यह मामला उनसे व्यक्तिगत रूप से संबंधित था.

शिवकुमार ने कहा कि इस घटना का इस्तेमाल राजनीतिक प्रचार के लिए किया गया है, उन्होंने सिद्धारमैया का बचाव किया और 76 वर्षीय सीएम के साथ अपनी प्रतिद्वंद्विता को अलग रखते हुए एकजुटता का प्रदर्शन किया.

“इतनी जल्दी में ऐसा निर्णय क्यों लिया गया? हमारे अनुभव में, जो भी शिकायत दर्ज की जाती है, जांच रिपोर्ट से पहले आरोपों को साबित करने के लिए सबूत होने चाहिए. या जांच एजेंसी को (मुकदमा चलाने के लिए) अनुमति लेनी चाहिए थी.

शिवकुमार ने कहा, “लेकिन इस मामले में जांच से पहले ही कारण बताओ नोटिस जारी कर दिया गया. यह लोकतंत्र और संविधान की हत्या है.”

राजभवन और कर्नाटक सरकार के बीच टकराव दिल्ली, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल और अन्य कई गैर-एनडीए शासित राज्यों की याद दिलाता है जहां इसी तरह की स्थितियां हैं.

‘कर्नाटक में सरकार गिराने की कोशिश कर रहा केंद्र

कर्नाटक में हाल के महीनों में सामने आए दो घोटालों के बाद गठबंधन सहयोगी और दो प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और जनता दल (सेक्युलर) ने सीएम के इस्तीफे के लिए दबाव बना रखा है.

एक आरोप यह है कि राज्य द्वारा संचालित वाल्मीकि विकास निगम से 90 करोड़ रुपये से अधिक की राशि निजी बैंक खातों में भेजी गई और दूसरा आरोप यह है कि सिद्धारमैया की पत्नी को MUDA द्वारा 14 प्लॉट आवंटित किए गए.

सिद्धारमैया ने सभी आरोपों का खंडन किया है और विपक्ष के बढ़ते विरोध के बीच कांग्रेस ने उनका समर्थन किया है.

कांग्रेस ने इसे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार द्वारा कर्नाटक में राज्य सरकार को गिराने की साजिश बताया है.

कर्नाटक के वन मंत्री ईश्वर खंड्रे ने गुरुवार को संवाददाताओं से कहा, “वे (भाजपा) जनता द्वारा चुनी गई सरकार को गिराने की साजिश कर रहे हैं. हम इसके खिलाफ कानूनी और राजनीतिक रूप से लड़ेंगे.”

राज्यपाल के समक्ष शिकायत भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ता टी.जे. अब्राहम ने 27 जुलाई को दर्ज कराई थी.

कांग्रेस ने अब्राहम के चरित्र, उद्देश्य और मामले में गहलोत की जल्दबाजी भरी कार्रवाई पर सवाल उठाए हैं.

कर्नाटक में लगातार आने वाली सरकारों पर भ्रष्टाचार के आरोप और राजभवन तथा विधान सौधा (राज्य सचिवालय) के बीच खींचतान कोई नई बात नहीं है. 2011 में कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सरकार द्वारा नियुक्त कर्नाटक के राज्यपाल एच.आर. भारद्वाज का तत्कालीन मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा के साथ रिश्ता खराब था.

येदियुरप्पा के खिलाफ भ्रष्टाचार के बढ़ते आरोपों के बीच भारद्वाज ने सीएम की बर्खास्तगी की सिफारिश की थी. उस वक्त लौह अयस्क को लेकर भ्रष्टाचार से जुड़ा घोटाला सुर्खियों में था जिसने कर्नाटक को हिलाकर रख दिया और अंततः जिसकी वजह से येदियुरप्पा को सीएम पद से हटना पड़ा व कुछ समय के लिए जेल जाना पड़ा.

2019 में, कर्नाटक के राज्यपाल वजुभाई वाला ने येदियुरप्पा के नेतृत्व वाली भाजपा को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया, जबकि उस वर्ष के विधानसभा चुनावों में खंडित जनादेश के बाद कांग्रेस और जेडी(एस) ने बहुमत साबित करने के लिए हाथ मिलाया था.

येदियुरप्पा को बहुमत साबित करने के लिए 15 दिन का समय दिया गया था, लेकिन कांग्रेस ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया और उन्हें इसके लिए सिर्फ दो दिन का समय दिया गया, जिसके परिणामस्वरूप उनका कार्यकाल कर्नाटक में सीएम के रूप में सबसे कम हो गया. उस वक्त कर्नाटक में दलबदल बड़े पैमाने पर था और कांग्रेस ने आरोप लगाया कि अतिरिक्त समय का इस्तेमाल विपक्षी दलों के और अधिक विधायकों को लुभाने के लिए किया जाएगा.

विपक्ष के नेता आर अशोक ने गुरुवार को संवाददाताओं से कहा, “संविधान के अनुसार, राज्यपाल राज्य में सर्वोच्च हैं. उसके बाद सभी आते हैं. राज्यपाल द्वारा अधिकार दिए जाने के बाद ही कानून, कानून बनते हैं. ऐसे लोगों को आप कानून सिखाने की कोशिश कर रहे हैं. यह उनके (कांग्रेस) कानून के ज्ञान को दर्शाता है. यह आरोपों से बचने और राज्यपाल पर दबाव बनाने का एक प्रयास है,”

(इस रिपोर्ट को अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए यहां क्लिक करें.)


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